किसी नगर मे एक
लालची सेठ रहता था। वह भारी ब्याज पर पैसा देता था। ब्याज न चुका न पाने पर जमीन
जायदाद जब्त कर लेता । कर्जदार फांसी लगा
लेते । राजा कुछ न बोल पाता । वह भी कर्जदार था। जल्दी ही सेठ दुनिया का दूसरा अमीर
बन गया।
एक रोज कोई फकीर सेठ
की कोठी के बाहर गुदड़ी बिछा कर लेट गया । नौकरों ने भगाया तो बोला - सेठ जी से मिल कर चला जाऊंगा।
सेठ आया और बोला- क्या चाहिए मुफ्तखोर ?
फकीर – ऊपर तो आओगे
ही । यह सुई भी लेते आना। वहीं ले लूंगा ।
सेठ - अरे जा! कुछ नही
होता ऊपर नीचे।
फकीर जाने लगा ।
सेठ चिल्लाया- हार गया न ! बेवकूफ समझा था मुझे !
फकीर बोला -ऊपर
नीचे कुछ नहीं होता तो किसके लिए बटोर रहा है दौलत ! दो रोटी चैन से बैठ कर नही खा
सकता ?
सेठ – नहीं नहीं !
ऊपर भी होता है, नीचे भी होता है ।
फकीर-तो फिर गौर से देख !
वारिस के भेस मे ऊपर से तेरे कर्जदार आए हैं
।
सेठ गुस्से मे पागल
हो गया - अरे लठैतो,
रंगे सियार को मंजिल तक छोड़ आना !
लठैतों ने फकीर को
ऊपर पहुंचा दिया । नीचे बचे –भूखा सेठ, उसके वारिस
और अंधा राजा ।
आज भी यही तीन बचे हैं
नीचे ।
(समाप्त)
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