लघु कथा – वही तीन



किसी नगर मे एक लालची सेठ रहता था। वह भारी ब्याज पर पैसा देता था। ब्याज न चुका न पाने पर जमीन जायदाद जब्त  कर लेता । कर्जदार फांसी लगा लेते । राजा कुछ न बोल पाता । वह भी कर्जदार था। जल्दी ही सेठ दुनिया का दूसरा अमीर बन गया।
एक रोज कोई फकीर सेठ की कोठी के बाहर गुदड़ी बिछा कर लेट गया । नौकरों ने भगाया तो बोला -  सेठ जी से मिल कर चला जाऊंगा।
सेठ आया और बोला-  क्या चाहिए मुफ्तखोर ?  
फकीर – ऊपर तो आओगे ही । यह सुई भी लेते आना। वहीं ले लूंगा ।
सेठ - अरे जा! कुछ नही होता ऊपर नीचे।
फकीर  जाने लगा ।
सेठ चिल्लाया-  हार गया न ! बेवकूफ समझा था मुझे !
फकीर बोला -ऊपर नीचे कुछ नहीं होता तो किसके लिए बटोर रहा है दौलत ! दो रोटी चैन से बैठ कर नही खा सकता ?
सेठ – नहीं नहीं ! ऊपर भी होता है, नीचे भी होता है ।
फकीर-तो फिर गौर से देख ! वारिस के भेस मे ऊपर से  तेरे कर्जदार आए हैं ।
सेठ गुस्से मे पागल हो गया  - अरे लठैतो,  रंगे सियार को मंजिल तक  छोड़ आना  !  
लठैतों ने फकीर को ऊपर पहुंचा दिया । नीचे बचे –भूखा सेठ, उसके वारिस और अंधा राजा ।
आज भी यही तीन बचे हैं नीचे ।  
(समाप्त)

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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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