
ई-मेल : ( इलेक्ट्रॉनिक
मेल )
विकास के शुरूआती दौर मे सूचनाओं
का आदान प्रदान चिट्ठियों के द्वारा होता था। ये चिट्ठियां पोस्ट कार्ड , या अंतर्देशीय
पर लिखी जाती थीं भारत मे इसके लिए एक अलग विभाग था- भारतीय डाक एवं तार विभाग ( Indian Post And Telegraph
Department). लिखने के बाद चिट्ठियों को लेटर बॉक्स मे डाल देते थे।
वहां से डाकिया उन्हे निकाल कर मुख्य डाकघर ( General Post Office, GPO) मे लाता। वहां चिट्ठियों की छंटाई होती और पिन कोड के हिसाब से उनके अलग अलग
ग्रुप बना कर रेलगाड़ी या हवाई जहाज से भेज दिये जाते। फिर वहां भी उन्हे जीपीओ मे लाकर
अलग अलग गांवों कस्बों शहरों के हिसाब से छांटा जाता । फिर डाकिया उन्हे व्यक्तिगत
तौर पर प्राप्तकर्ता के घर देने जाता ।
लेकिन ई मेल
मे यह सब झंझट नहीं है। इस विधि मे, पत्र भेजने वाला अपना संदेश इलेक्ट्रॉनिक संकेतों
के रूप में एक या अनेक प्राप्तकर्ताओं तक
भेजता है. आज ई-मेल भेजने के लिए इंटरनेट और कंप्यूटर नेटवर्क जरूरी हैं, लेकिन
शुरू में ऐसा नहीं था. ई-मेल भेजने वाले को व पाने वाले को उस समय लाइन पर मौजूद
रहना पड़ता था. आज की तरह तब मेल सर्वर नहीं थे. तब इस का नाम था वायरलेस टेलीग्राफ या बेतार का तार या केवल तार(टेलीग्राम).
संदेशों को मोर्स कुंजी के सहारे टाइप किया जाता था । रिसीविंग एंड पर उन इलेक्ट्रोनिक
सिग्नलों को डिकोड करके प्रिंट कर लेते थे, जिसे डाकिया संबंधित पते पर दे आता
था ।
आज डेस्कटॉप कंप्यूटर या फिर लैपटॉप
कंप्यूटर पर एप के जरिये मनचाही भाषा मे मेल भेजा जा सकता है ।
ई-मेल संदेश का ढांचा :
- शीर्षक (Header) : जैसे द्वारा(From), सेवामें(To), कार्बन प्रति(CC),ब्लाइंड कार्बन कॉपी(BCC),विषय( Subject), दिनांक(Date) आदि.
- काया (Body) : आधारभूत विषयवस्तु, जैसे कथ्य, या कभी कभी अंत में
हस्ताक्षर ब्लॉक. यह ठीक एक साधारण पत्र की तरह होता है.

ई-मेल की काया से पत्र का
शीर्षक एक खाली रेखा से पृथक रहता है.
विषय वस्तु की एनकोडिंग:
अपने शुरुआती चरण में ई-मेल
7-बिट के ASCII के लिए
विकसित किया गया था. भले ही यह 8-बिट के सर्वर्स के साथ कंपैटिबल था. नॉन आस्की
कोड वाले संदेशों के लिए एमआइएमई( MIME) मानक
द्वारा करेक्टर्स सेट स्पेसिफायर्स तथा
विषय वस्तु के स्थानातरण के लिए ‘दो’ कंटेंट ट्रांसफर एनकोडिंग’ भी प्रयोग मे लाए
गए, ताकि उन नॉन आस्की कोड वाले करेक्टर्स को भी पढ़ा जा सके व प्रिंट भी किया जा
सके. इस झमेले से बचने के लिए 8-बिट( MIME)व बाइनरी(BINARY)
एक्सटेंशंस का समावेश ई-मेल मे किया जा सके. कई देशों आज अनेक कोडिंग स्कीम चल रही
हैं. इनके चलते लैटिन लिपि मे भेजे गए संदेश उन देशों में डिकोड नहीं हो पाते, और
संदेश ऐसे करेक्टर्स के रूप मे दिखाई पड़ता है, जिन्हे पढ़ा नहीं जा सकता. हां, अगर
संदेश भेजने वाला संदेश के साथ एनकोडिंग स्कीम भी भेज दे तो उस स्थिति में संदेश
पढ़ा जा सकता है.
इस समस्या से निपटने के लिए अब
सभी ई-मेल सेवा प्रदाता अंतर्राष्ट्रीय कएक्टर्स सेत का प्रयोग करने लगे हैं. इस
अंतर्राष्ट्रीय करेक्टर सेट को यूनीकोड कहते हैं. यह यूनीकोड अपने गुणों के कारण
ई-मेल संप्रेषण मे बहुत उपयोगी होता जा रहा है.
सादा टेक्स्ट (Plain text) और एचटीएमएल (HTML) :
आजकल ज़्यादातर ई-मेल सेवा देने
वाली कंपनियां एक और सुविधा देने लगी हैं. संदेश को सादे अथवा एचटीएमएल रूप मे भी
दिया जाता है.
संदेश को एचटीएमएल मे भी देने
से कई फायदे हैं. जैसे :
(क) इसमें इनलाइन लिंक्स तथा
चित्र भी दिये जा सकते हैं.
(ख) पिछले संदेश को ब्लॉक कोट्स
मे दिया जा सकता है.
(ग)संदेश को रैप किया जा सकता
है
(घ) अंडरलाइन, इटैलिक्स व
फोंट-स्टाइल –सुविधाओं का समावेश किया जा सकता है.
लेकिन एचटीएमएल मे संदेश देने
से कुछ नुकसान भी हैं, जैसे-ई-मेल का साइज़ बढ जाता है, प्राइवेसी
नहीं रहती, हानिकारक वाइरसों के आक्रमण बढ़ जाते हैं आदि आदि.
सबसे पहले आर्पानेट के माध्यम से सन 1973 मे ई-मेल भेजा गया था.
1980 मे आर्पानेट के इंटरनेट मे बदलने के
बाद मेल सेवाओं में तेजी आई. 1973 मे भेजी गई ई-मेल ठीक वैसी ही थी जैसे आज हम कोई
टेक्स्ट भेजते हैं.
शुरू मे ई-मेल फाइल ट्रांसफर
प्रोटोकॉल (FTP) के अनुसार भेजी जाती थी, किंतु आज इनका पैमाना है-सिंपल मेल ट्रांसफर
प्रोटोकॉल (SMTP).
हॉस्ट
आधारित ई-मेल प्रणाली की शुरूआत
ई-मेल की
शुरूआत इंटरनेट से जुड़ी है. बल्कि सच तो ये है कि इंटरनेट ही वह महत्वपूर्ण औजार है,
जिसने ई-मेल को जन्म दिया. एमआइटी ने सबसे पहले सन 1961 में कंपैटिबल टाइम शेयरिंग
सिस्टम(CTSS) क सफल प्रदर्शन किया. इस सिस्टम के द्वारा आइ बी एम 7094 कंप्यूटर के
उपभोक्ता सुदूर स्थित डायल टर्मिनलों से कंप्यूटर को लॉग ऑन कर सकते थे, तथा अपनी
फाइलें वहीं से मेमोरी डिस्क पर सुरक्षित रख सकते थे. सूचनाओं को ऑनलाइन प्रणाली
से भेजने के इस नए तरीके ने लोगों को बहुत उत्साहित किया.
सन 1965 से यह विधि ई-मेल के
रूप में पूरी तरह प्रचलित हो गई. उस समय यह विधि जिन कंप्यूटरों के द्वारा चलाई
गई, वे थे- एसडीसी का क्यू32 तथा एम आइटी का सीटीएसएस सिस्टम. लैरीब्रीड का एपीएल
मेलबॉक्स(1972), ‘आइबीएम’ का पीआरओएफएस(1981),तथा ‘डेक’(डिजिटल इक्विप्मेंट
कॉरपोरेशन) का ‘आल इन वन’ (1982).
एलएएन (LAN) आधारित ई-मेल प्रणाली की शुरूआत :
ऊपर बताई गई मेल प्रणालियों की कुछ सीमाएं थीं, जैसे कि
ये केवल उन कंप्यूटरों पर ही चल पाती थीं, जो
एक ही ऑपरेटिंग सॉफ्टवेयर पर काम करते थे. उदाहरण के लिए-
- 1978 के यूयूसीपी व 1980 के यूज़नेट सिस्टमो मे यूनिक्स से यूनिक्स मे ई-मेल, फाइलें कॉपी किये जा सकते थे. साथ ही इन्हें डायलअप मोडेम्स या लीज़ लाइनों के साथ भी शेयर किया जा सकता था.
- 1981 में ‘बिटनेट’ के द्वारा आइबीएब मेनफ्रेम कंप्यूटरों
से ई-मेल संदेश लीज़ लाइनों पर भेजे गए.
- 1984 में ‘फिडोनेट’के एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर ने ‘डॉस’ आधारित
आइबीएम कंप्यूटरों पर ई-मेलों को भेजना संभव कर दिखाया. साथ ही डायल अप मोडेमों
के द्वारा बुलेटिन बोर्ड पोस्टिंग्स को शेयर करना भी संभव हुआ.
1980 के आरंभिक दौर में ऐसे
कंप्यूटरों की बहुतायत होने लगी, जो नेटवर्क से जुड़े होते थे तथा मेन फ्रेम न होकर
डेस्क टॉप थे. पर इनसे ई-मेल भेजने में भी एक कमी थी. इन कंप्यूटरों से उन्हीं
कंप्यूटरों पर मेल भेजी जा सकती थी, जो उस विशिष्ट सर्वर से जुड़े थे. दूसरे, इन
नेटवर्कों से कई संगठन जुड़े होते थे. सभी का प्रोटोकॉल एक समान होना जरूरी था.
ऐसे नेटवर्क कंप्यूटरों मे
इस्तेमाल होने वाले कुछ मेल सॉफ्टवेयर हैं-सीसी:मेल, लांटास्टिक, वर्डपरफेक्ट
ऑफिस, माइक्रोसॉफ्ट मेल, बनयान वाइंस, तथा लोटस नोट्स.
शुरुआती स्वतंत्र कंप्यूटर
सिस्टमों मे इंटरओपेरेबिलिटी इस प्रकार थी :
- आर्पानेट (ARPANET) : इंटरनेट के आधुनिक स्वरूप मे लाने वालों
की दौड़ मे आर्पानेट सबसे आगे है. आर्पानेट ने ही अलग अलग तरह के कंप्यूटर
सिस्टमों पर ई-मेल भेजने के आदान प्रदान के लिए पहली बार प्रोटोक़ोल परिभाषित
किए.l
- यूयूसीपी(uucp): इस प्रणाली का शुरू में डायल अप टेलीफोनों के लिए अलग अलग मेल सिस्टमों के बीच नॉन यूनिक्स सिस्टमों मे प्रयोग किया गया.
-
- सीएसनेट(CSNet): आर्पानेट के साथ डायल अप टेलीफोन जोड़ने के लिए, तथा
अंतत: सभी को इंटरनेट से जोड़ने के लिए इसका प्रयोग किया गया.
बाद मे इंटरओपेरेबिलिटी के
क्षेत्र में कुछ और प्रयास भी हुए, जैसे कि :
- नॉवेल(Novell),कलर्ड बुक प्रोटोकॉल( Coloured Book protocols) ,एक्स 400(X.400) तथा इंटरनेट
सिंपल मेल ट्रांसफर प्रोटोकॉल(Internet SMTP).
एसएनडीएमएसजी(SNDMSG) से एमएसजी(MSG) तक का सफर:
1970 के शुरू मे ‘रे टॉम्लिंसन’
ने उस समय उपलब्ध सुविधा SNDMSG
को संशोधित किया ताकि नेटवर्क पर भेजे गए संदेशों व फाइलों की नकल की जा सके. इससे आर्पानेट के प्रोजेक्ट
मैनेजर लॉरेंस को READMAIL का विचार
सूझा.इस कमांड से यह फायदा हुआ कि सभी तात्कालिक संदेशों को उपभोक्ता के टर्मिनल
पर डंप किया जा सका.साथ ही उन्होने प्रोग्राम RD भी लिखा,
जिसकी मदद से तमाम मेल संदेशों तक पहुंचना आसान हो गया. बाद मे बैनी वेसलर ने इस
प्रोग्राम को अद्यतन किया जो तब NRD कहलाया. मार्टी
योंक ने इसे फिर से लिखा ताकि पढ़े गए संदेशों को SNMSG के द्वारा
पुन: भेजा जा सके. इस सुविधा को WRD नाम दिया
गया. बाद मे इसका नाम बदल कर BANANARD हो गया.
जॉन विट्टल ने इसे फिर अद्यतन
किया ताकि संदेशों को अग्रेषित (फॉरवर्ड) किया जा सके, तथा मेल के साथ ही उसका
उत्तर देने का विकल्प ‘रिप्लाई’ लाया जा सके. इस संशोधित प्रोग्राम को MSG कहा गया.
इस तरह हम देखते हैं कि MSG में वे सभी सुविधाएं मौजूद
थीं, जिनकी जरूरत एक ई-मेल संदेश को भेजने, सहेजने, पढ़ने, व उत्तर देने मे पड़ती
है. आज के ई-मेल प्रोग्रामों मे भी ये सुविधाएं चली आ रही हैं. अत: MSG को आधुनिक
ई-मेल सॉफ्टवेयरों का पूर्वज माना जा सकता है.
आर्पानेट मेल( ARPANET mail) का उदय :
आर्पानेट कंप्यूटर नेटवर्क का ई-मेल के विकास मे बहुत बड़ा
योगदान है. ऐसी रिपोर्टें मिली हैं कि 1969 मे आर्पानेट के विकास के साथ ही इस पर
ई-मेल भेजने का काम शुरू हो गया था.’रे टॉम्लिंसन” को इस बात का श्रेय दिया जाता
है कि उसी ने सबसे पहले 1971 में ‘@’ चिन्ह का प्रयोग ई-मेल भेजने मे किया. ‘@’
चिन्ह से पहले उपभोक्ता का नाम होता था तथा चिन्ह के बाद उस मशीन का नाम , जिससे
संदेश भेजा जा रहा है. सबसे पहला ई-मेल उसने ‘डेक-10’ मशीन से दूसरी ‘डेक-10’ पर
भेजा. दोनो मशीनें उस परीक्षण के दौरान
पास पास ही रखी हुई थीं.
टॉम्लिंसन का यह प्रयास
आर्पानेट द्वारा तत्काल अपना लिया गया. कई
साल तक आर्पानेट ने इस सुविधा का अपनी गतिविधियों मे खतरनाक हथियार की तरह खूब
उपयोग किया. बाद मे इंटरनेट के रूप मे इस का प्रयोग होने लगा.
ज़्यादातर नेटवर्कों के मेल
भेजने के लिए अपने अलग एड्रेस फॉरमेट तथा ई-मेल प्रोटोकॉल थे. बाद मे जैसे जैसे
आर्पानेट व बाद मे इंटरनेट का विकास होता गया, अधिकतर साइटों ने अपने ई-मेल गेटवे
बना लिये. ये गेटवे इंटरनेट व दूसरे नेटवर्कों के बीच ई-मेल का आदान प्रदान करते
थे.
एक ईमेल एड्रेस का उदाहरण
देखिये, जिसमे यूयूसीपी हॉस्ट पर स्थित प्रयोगकर्ता को इंटरनेट मेल भेजा गया है :
hubhost!middlehost!edgehost!user@uucpgateway.somedomain.example.com
हिन्दी मे ई-मेल :
हिन्दी में ई-मेल भेजना अंग्रेजी में मेल भेजने जैसा
ही है. बस जरूरी शर्त यही है कि हमारे कंप्यूटर पर हिन्दी मे काम करने का
विकल्प उपलब्ध होना चाहिए.
अध्याय 4. में कंप्यूटर पर हिन्दी मे काम करने
का विकल्प समझाया गया है. ऑपरेटिंग
सॉफ्टवेयर द्वारा अथवा एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर द्वारा कंप्यूटर पर हिन्दी का विकल्प
लाने के बाद हिन्दी मे ई-मेल भेजना बहुत आसान हो जाता है.
हमारे यहां मुख्यत: तीन ऑपरेटिंग सॉफ्टवेयर काम कर
रहे हैं-
•
विंडोज़ एक्स पी
•
विंडोज़ 2000
•
विंडोज़
विस्ता
•
एक्सपी व 2000 में हिन्दी इंडिक सॉफ्टवेयर IME hindi indic नहीं
होता. इसे अलग से डाउनलोड करना पड़ता है. विधि इस प्रकार है :
•
www.bhashaindia.com पर क्लिक करें
•
INDIC
IME>>indic IME1(hindi) >>1(v5.0)
>>ok.
•
फाइल को अनज़िप कर सेव करें.
•
सेटअप चलाएं
विंडोज़ एक्स पी के लिए
Start>>setting>>controlpanel>>regional option>>lang.tab >>ok. दक्षिण एशियाई भाषाओं को एनेबल करने के लिए
पहले बॉक्स को टिक करें. ok. अब
कंप्यूटर विंडो एक्सपी की सीडी मांगेगा. सीडी डालें.
2. Start>> setting >>controlpanel>>regopt.opt >lang.tab details
>> Keyboard पर क्लिक करें
3. Add बटन दबाएं.
4. Hindi सलेक्ट करें.
5. Keyboard layout के
लिए HINDI INDIC IME1(V5.1) >>ok.
6. इसके बाद कंप्यूटर को दोबारा
ऑन करें. मॉनीटर के निचले दाएं कोने पर इंडिक का मीनूबार आ जाएगा.
7. EN पर क्लिक करें. HI अर्थात
हिन्दी विकल्प चुनें.
8. अब आप हिन्दी में टाइप कर सकते
हैं.
विंडो 2000 के लिए
Start>> setting >>controlpanel>>regional option.
2. Language setting>>indic
>>ok.
3. अब कंप्यूटर विंडो 2000 की
सीडी मांगेगा. सीडी डालें. इससे हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं के लिए कंप्यूटर एनेबल हो जाएगा.
4. Start>>setting>>controlpanel>>regionaloption.
5. input local को
क्लिक करें.फिर add बटन दबा कर hindi सेलेक्ट
करें.ok.
6. Keyboard layout
को क्लिक करके Hindi
INDIC 1(v5.0) क्लिक करें. ok. अब सिस्टम को
दोबारा चलाएं.(रिबूट करें).
7. इसके बाद मॉनीटर के निचले दाएं
कोने पर इंडिक का मीनूबार आ जाएगा.
8. EN पर क्लिक करें. HI अर्थात
हिन्दी विकल्प चुनें.
9. अब आप हिन्दी में टाइप कर सकते
हैं.
विंडो विस्टा के लिए
कंट्रोल पैनल-रीज़नल ऑप्शन-क्लिक.
2. लैग्वेज टैब पर क्लिक .सेलेक्ट हिन्दी.
3. क्लिक की-बोर्ड. सेलेक्ट Hindi Indic IME(v 5.0)
4. कंप्यूटर स्क्रीन के नीचे बाईं ओर EN लिखा आएगा.
क्लिक करें.HINDI को क्लिक करें.
5. की बोर्ड सेलेक्ट करें.
6. आपका कीबोर्ड अब हिन्दी में टाइप करेगा.
किंतु अब जो कंप्यूटर बाजार मे आ रहे हैं, उनमे अनिवार्य रूप
से हिन्दी के यूनीकोड तथा नान यूनीकोड फोंट उपलब्ध रहते हैं. जरूरत है केवल हिंदी का
कोई एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर डाउन लोड करने की. ऐसे अलग अलग स्पेकिफिकेशन वाले अनेक एप्लीकेशंस
भाषा ईडिया.कॉम (www.bhashaindia.com)
से डाउन लोड किये जा सकते हैं।
हिन्दी में ई-मेल भेजना-
•
हिन्दी में मेल भेजने के लिए यह जरूरी है कि आप
कंप्यूटर में पहले हिन्दी विकल्प चुन लें.
•
उसके बाद की विधि वही है जो अंग्रेजी में मेल भेजने
में प्रयोग होती है.
•
ई-मेल में केवल यूनीकोड फोंट्स का प्रयोग ही करें, तभी मेल पाने
वाला उसे पढ़ सकेगा.
हिन्दी समर्थित ई-मेल सेवा
प्रदाता -
एक बार कीबोर्ड हिन्दी एनेबल हो जाने के बाद किसी भी
ई मेल सेवा से हिन्दी में मेल भेजी जा सकती है. निम्नलिखित मेल सेवा प्रदाताओं के
माध्यम से हिन्दी ई-मेल भेजी जा सकती हैं :
•
लोटस नोट्स, संस्करण 7.0 (कार्यालयों के लिए)
•
जीमेल
•
रेडिफमेल
•
हॉटमेल
•
याहू मेल
•
इंडियाटाइम्स मेल.
अब तो लगभग सभी ई मेल सेवा प्रदान करने वाली कंपनियां
हिंदी मे ई मेल भेजने की सुविधा देने लगी हैं।
(समाप्त)
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