बाल कहानी- विक्रम और वेताल

 

     

     श्री अरविंद मेहरोत्रा मुंबई स्थित बैंक में प्रबंधक थे, और हर साल छुट्टियां मनाने किसी हिल स्टेशन पर जाया करते थे।     इस बार उनका परिवार दक्षिण भारत के ऊटी नामक पहाड़ी पर्यटन-स्थल आया था।

  ऊटी में जिस गेस्ट हाउस में मिस्टर मेहरोत्रा ठहरे,  वह फलों और फूलों के पेड़ों से घिरी खूबसूरत घाटी पर बना था। उसके पीछे दूर तक फैली पहाड़ियां घने जंगलों से ढकी थीं।

  थोड़ी देर आराम करने के बाद मेहरोत्रा जी परिवार सहित रेस्टोरेंट मे दाखिल हुए  दोपहर के खाने का समय होने को था। वे लोग खाने की एक टेबल पर बैठ गये थे। तभी एक बेहद मोटा बेयरा पानी के गिलास लिये उनके पास आया। उसकी कांख में मीनू दबा था। पानी व मीनू टेबल पर रख वह मुस्कराने लगा। उसे देखकर श्रीमती व श्री मेहरोत्रा मुस्काए  लेकिन विक्रम तो खिलाखिला कर हंसने लगा। हंसते-हंसते ही बोला-भइया आपका नाम क्या है ?

 बेयरे ने भी हंसते हुए जवाब दिया-नाम तो आलू प्रसाद है लेकिन बच्चा लोग अपुन को आलू-भइया कह कर बुलाता है ।

विक्रम और आलू भइया मे  छोटी सी मुलाकात के बाद ही पक्की दोस्ती हो गई। आलू भइया विक्रम को बताने लगे कि पीछे जो जंगल है-उसमें भूत रहते है। उस घने जंगल में अकेले बच्चे को ज्यादा दूर नहीं जाना चाहिए ।

  खाना खाने के बाद मेहरोत्रा दंपति  लॉन में पड़ी आराम कुरसियों पर बैठ गए  और विक्रम पेड़ों पर लदे फूलों को चाव से देखने लगा।

  देखते-देखते वह रेस्तरां के पीछे जंगल की तरफ बढ गया जहां अकेले जाने के लिये आलू भइया ने मना किया था।

  थोड़ी दूर जाने के बाद विक्रम को बरगद का विशाल पेड़ दिखाई पड़ा। पेड़ के पास पहुंच कर उसने देखा-एक बूढ़ा आदमी पेड़ पर उलटा लटका हंस रहा था।

  विक्रम को यह देख कर हैरानी हुई। उसने पूछा-‘तुम कौन हो और इस तरह क्यों लटके हुए हो ?

 बूढ़ा उसी तरह लटके हुए बोला- ‘मैं वेताल हूं और किसी के शाप से यहां लटका हुआ हूं। मगर तुम कौन हो

-      मैं विक्रम हूं’

-      अरे महाराज विक्रमादित्य जैसा ही नाम है तुम्हारा।

  -  जानता हूं तुम्हारे बारे मे मै सब कुछ जानता हूं।

  -क्या मुझे लटका देख तुम्हें डर नहीं लग रहा है

  -कैसा डर ?  मैं तो तुम्हारे बारे मे सब कुछ जानता हूं। तुम पहले कहानी सुनाते हो फिर सवाल पूछते हो। सही जबाब न मिलने पर उड़ जाते हो ।

  - क्या तुमने दादी मां से कभी विक्रम और वेताल की कहनियां नहीं सुनीं ?

  - सुनीं! पर तुम्हीं सुनाओं’

विक्रम बोला तो वेताल ने उत्तर दिया- ‘सुनाता हूं। अभी सुनाता हूं लेकिन मुझे अपनी पीठ पर नहीं लादोगे विक्रम ?

-      तुम्हें कैसे लादूं पीठ पर तुम तो बड़े भारी हो।’

-      तो ठीक है मैं भी तुम्हारे जैसा हो जाता हूं।’ यह कह कर वेताल ने अपने शरीर को छोटा  किया और विक्रम की पीठ पर चिपक गया।

  वेताल को पीठ पर लादे विक्रम जंगल में आगे बढ़ने लगा। वेताल उसे कहानी सुनाने लगा

-‘सुनो विक्रम तुमने मेरी और महाराज विक्रमादित्य की कहानी नहीं सुनी होगी। आज मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाता हूं। आज से कोई दो हजार साल पहले भारत में एक राजा हुए जिनका नाम था विक्रमादित्य। वे अपनी प्रजा के सुख-दुख का बड़ा ख्याल रखते थे। अक्सर रात को वेश बदल कर नगर के भीतर बाहर घूमते थे।

  एक बार एक तांत्रिक उनके पास आया और बोला-महाराज मैं आपको अमर-अजर बना सकता हूं। बस आप अमावस्या की रात को एक वेताल का शरीर लाकर मुझे दीजिये। फिर आपको किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। लेकिन शर्त है कि आपको जंगल में आधी रात को अकेले आना पड़ेगा। राजा ने शर्त मान ली।

  निर्धारित समय पर राजा विक्रमादित्य  अंधेरी रात में जगंल पहुंच गए । वहां बहुत बड़े हवन कुंड़ में वह तांत्रिक जड़ी-बूटियों की आहुति डाल रहा था। राजा को अकेले आया देख तांत्रिक खुश हो गया। उसने राजा को आदेश दिया कि पेड़ पर लटके वेताल को  लेकर मेरे पास आओ।

  तब राजा इसी पेड़ के पास पहुंचे और मुझे यहां लटके देखा। बड़ी मुश्किल से मुझे उतारा और यज्ञ कुंड की तरफ जाने लगे। रास्ते में मैने समय बिताने के लिये कहानी सुनाई। कहानी के बाद राजा से सवाल पूछा। राजा सही उत्तर न दे पाये। मैं उड़ कर फिर डाल पर लटक गया।

  राजा इसी तरह हर बार मुझे उतार कर ले जाते। मैं उन्हें कहानी सुनाता व अंत में एक प्रश्न पूछता। सही उत्तर न मिलने के कारण मैं पेड़ पर जा लटकता। अंत में मैने राजा को बता दिया कि तांत्रिक एक गुप्त सिद्धि पाने के लिये तपस्या कर रहा है तथा राजा की बलि देते ही उसे वह सिद्धि मिल जाएगी। वह मंत्र वेताल के ऊपर बैठ कर पढ़ा जाना है इसी लिये वह मुझे भी मंगा रहा है।

  यह सुन कर महाराज विक्रमादित्य क्रोध से आग बबूला हो गये। यज्ञ स्थान पर पहुंच कर मेरी सहायता से उन्होंने तात्रिक को यज्ञ कुंड में धकेल दिया। तब से राजा विक्रमादित्य और मैं पक्के दोस्त बन गए  थे।

  आज हजारों साल के बाद मुझे फिर ऐसा लगता है कि महाराज विक्रमादित्य की आत्मा ने तुम्हारे रूप में फिर मानवयोनि में जन्म लिया है।’

  यह कहानी सुन कर विक्रम ने कहा-‘देखो वेताल ये जमाना सांइस और टेक्नोलाजी का है। आजकल आत्मा-वात्मा को कोई नहीं मानता। फिर भी तुम कहते हो तो मैं अपने सांइस टीचर शेखर सर से आत्मा के बारे में जरूर पूछूंगा।’

  अभी विक्रम और वेताल कुछ ही दूर गए  होंगे कि विक्रम ने अपने पापा अरविंद मेहरोत्रा की आवाज सुनी जो जोर-जोर से उसे पुकार रहे थे। विक्रम घबराने लगा तो वेताल ने उसे हिम्मत बंधाई और वापस बरगद के पेड़ तक ले आया। वह उड़ कर फिर पेड़ की डाल पर जा लटका और बोला-सीधे रास्ते चले जाओ विक्रम। तुम्हारा होटल बिल्कुल पास है। कल फिर आना। मैं तुम्हें अच्छी-अच्छी कहानियां सुनाऊंगा।

  विक्रम ने कल फिर आने का प्रामिस किया और फिर दौड़ता हुआ पापा मम्मी ड्राइवर रामन्ना व आलू भइया से आ मिला।

  अगले दिन वे लोग सिलिकान वैली घूमने गये। रास्ते में गाड़ी में बैठे श्री मेहरोत्रा विक्रम को बताते जा रहे थे कि कंप्यूटर हार्डवेयर व साफ्टवेयर में हमारा देश बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारी आइ0 टी0 कंपनियों को बड़े-बड़े ग्लोबल काँटेªक्ट मिलने लगे हैं। अमेरिका चीन जापान इंग्लैड आदि विकसित देश अपनी कंप्यूटर जरूरतों के लिये भारतीय कंपनियों का मुहं देखने लगे है।

  लेकिन बंगलौर शहर घूमते हुए विक्रम उदास था। श्रीमती व श्री मेहरोत्रा के बार-बार पूछने पर विक्रम ने बताया कि वह एक बार फिर उसी होटल में रूकना चाहता है जहां आलू भइया थे। उनके हाथ का खाना बड़ा टेस्टी था।

  लेकिन बेटे खाना आलू भइया तो नहीं बनाते थे। वे तो सिर्फ परोसते थे-श्रीमती जया मेहरोत्रा समझ गई थी कि कारण कूछ दूसरा है।

  झेपते हुए व फौरन संभलते हुए विक्रम ने कहा-‘जो भी हो माम वह रेस्तरां वहां का खाना और आलू भइया सभी कुछ कितना अच्छा है  प्लीज़्।’ विक्रम के बाल सुलभ अनुरोध को मेहरोत्रा दंपति और अधिक न टाल सके। दिन भर घूमने के बाद उनकी कार एक बार फिर ऊटी के उसी होटल के सामने आ रूकी।

  विक्रम बहुत खुश हुआ।

  अगले रोज सुबह का नाश्ता करने के बाद श्री मेहरोत्रा रामन्ना के साथ शहर जाने की तैयारी करने लगे। श्रीमती जया मेहरोत्रा ने कमरे में रूक कर विश्राम करना ही ठीक समझा। विक्रम भी मम्मी के साथ रूक गया।

  श्री मेहरोत्रा के जाने के बाद श्रीमती मेहरोत्रा कमरे पर जाने लगीं। उन्होने विक्रम को भी साथ लेना चाहा किन्तु वह तो आलू भाइया के साथ बातों में व्यस्त था। दूर से ही बोला-‘आप चलिये मम्मी मैं आता हूं। जरा आलू-भइया के जोक सुन लूं’

  मम्मी के जाने के बाद विक्रम रेस्तरां से बाहर निकल धीरे-धीरे उसी बरगद के पेड़ के पास पहुंच गया। वेताल उसी तरह पेड़ की डाल पर लटका हुआ था।

  खुशी से गद्गद् विक्रम बोला-‘लो मैं आ गया वेताल दोस्त मगर तुम्हें छोटा बनना पड़ेगा ताकि मैं तुम्हे अपने कोट की जेब में छिपा सकूं या फिर अपने कंधे पर बिठा सकूं।’

  वेताल ने बात मान ली व छोटे बच्चे की तरह विक्रम में कंधे पर आ बैठा। फिर वे धीरे-धीरे जंगल की पगडंडी पर चलने लगे। बातचीत के दौरान विक्रम ने बताया कि वे लोग कल मुंबई वापस लौट रहें हैं।

  समय बिताने के लिये वेताल विक्रम को कहानी सुनाने लगा। कहानी खत्म होने पर वेताल ने कहा-विक्रम यदि तुम मेरे सवाल का सही उत्तर न दे सके तो मैं पेड़ पर चला जाऊंगा।’ लेकिन विक्रम ने उसके प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया। विक्रम बोला मैं सही जवाब दूगा तो तुम वापस पेड़ पर चले जाओगे। मजबूर वेताल विक्रम के कंधों से उड़ कर पेड़ की डाल पर नहीं जा सका और विक्रम के साथ रहने पर मजबूर हो गया।

  अगले रोज जब वे लोग मुंबई के लिये रवाना हुए तो विक्रम के साथ उसका दोस्त वेताल भी था जिसे विक्रम के अलावा कोई नहीं देख पा रहा था।

  तभी चलते-चलते अचानक कार का अगला टायर पंचर हो गया। सड़क पर कुछ आगे एक गैराज था। रामन्ना ने गाड़ी वहां लगा दी।

  गैराज के मालिक ने एक चैदह-पंद्रह साल के दुबले-पतले लड़के को पहिया खोलने में लगा दिया। विक्रम अपने डिब्बे से ब्रैड बटर निकाल कर खाने ही वाला था कि उसे दया आ गई। उसने सभी ब्रैड पीस उस लड़के की ओर चुपके से बढ़ा दिये। लड़के ने फुर्ती के साथ उन्हें मुंह में ठूंसा। आंखो की भाषा में विक्रम को धन्यवाद दिया और काम पर लग गया। यह देख-वेताल बोलाशाबाश विक्रम ये काम तुमने बड़ा अच्छा किया। लेकिन एक गलती कर दी। अपने लिये कुछ नहीं बचाया। जीओ भी और जीने भी दो। दोनों ही जरूरी हैं।

  विक्रम ने देखा कि उस लड़के का पिता शराब के नशे में चूर गैराज मालिक के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ा रहा था-‘मालिक मेरे बेटे की पेशगी पगार दे दो। घर में दो रोज से चूल्हा नहीं जला।

  गैराज मालिक उसे झिड़क रहा था-‘शरम नहीं आती झूठ बोलते हुए ?  कितनी बार पेशगी पगार मांगेगा ?

  लेकिन फिर बीस रूपए  उसकी तरफ फेंक कर बाहर भगा दिया। बाहर जाते समय वह अपने बेटे के पास आया। उसका सिर चूमा और बड़बड़ाया-‘जुगजुग जिओ मेरे लाल।’ फिर सड़क के पार देसी शराब के ठेके पर जा पहुंचा।

  विक्रम ने वेताल की ओर देखा जो खामोशी से सिर झुकाये उसकी गोद में बैठा था। पंचर लग चुका था और गाडी राजमार्ग पर मुंबई की दिशा में दौड़ने लगी।

  घर पहुंच कर विक्रम से मिलने उसका पड़ोसी व नन्हा दोस्त अब्बू आया। विक्रम ने अब्बू को अपने नये दोस्त वेताल के बारे में बताया तो वह हैरान हो गया व बोला-थत्ती-थत्ती बोलो बिकलम भइया क्या बेताल होता है

  ‘हां-हां अबू होता है। अगर मैं वेताल दोस्त को याद करूं तो वह अभी आ जायेगा। लेकिन मैं उसे इतनी जल्दी परेशान नहीं करना चाहता।’

  अबू कहने लगा-दो दिन बाद ईद है। मैं मीथी-मीथी सेवियां लेकर आऊंगा। तुम दोछ्त वेताल को जलूल बुला लेना।

  तीसरे रोज विक्रम का स्कूल खुला तो वह सीधा शेखर सर के कमरे में पहुंच गया जो प्रयोगशाला जाने के लिये तैयार थे।

  विक्रम ने पूछा-सर क्या भूत-वेताल वगैरह कुछ होते हैं

  प्रयोगशाला में प्रवेश करते शेखर सर के पीछे वह भी अन्दर आ गया। सर ने उत्तर दिया-बेटे विक्रम विज्ञान भूत-प्रेतों को नहीं मानता। लेकिन फिर भी इस विषय पर काफी रिसर्च चल रही है।’

  शेखर सर के उत्तर से विक्रम की जिज्ञासा कम नहीं हो सकी। उसने अपनी क्लासमेट ट्विंकल को बताया कि वेताल सचमुच होते हैं तो वह हैरान रह गई। फिर तो एक दिन अबू व टिवंकल को घर बुला कर विक्रम ने बेताल से मिला भी दिया। वेताल नें उन्हें अच्छी-अच्छी कहानियां सुनाईं तथा वचन दिया कि जरूरत पड़ने पर वह सभी बच्चों की मदद भी करेगा।

  वार्षिक परीक्षा में वेताल ने विक्रम से कहा-विक्रम, यदि तुम चाहो तो अपनी छिपी ताकत के बल पर मैं तुम्हें सारे प्रश्न-पत्र दिखा दूंगा। तब तुम अपनी क्लास में सबसे ज्यादा नंबर ला सकोगे।

  लेकिन विक्रम ने नम्रता पूर्वक यह प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा-ये सरासर धोखा है वेताल। मुझे ऐसे नंबर नहीं चाहियें। मैं अपनी ईमानदारी और कड़ी मेहनत से नंबर लेना चाहूंगा।’

  विक्रम के इस व्यवहार पर वेताल बहुत खुश हुआ था।

  छुटिटयों मे विक्रम जब दादी मां से विक्रम-वेताल की कहानियां सुनता तो उसकी गोद में बैठा वेताल अपने किस्से सुन कर खूब खुश होता।

  विक्रम स्कूल जाता तो वेताल भी उसके बैग मे बैठ कर उसके साथ जाता।

  एक बार इंटरवल में विक्रम और वेताल ने देखा-प्रिंसिपल के आफिस के बाहर बच्चों की भीड़ लगी थी। पास जा कर देखा-प्रिंसिपल एक बच्चे को बेंत से मार रहा था। बच्चे की दोनो हथेलियों से खून टपकने लगा। बच्चे का अपराध सिर्फ इतना था वह अपने दोस्त के साथ हिन्दी में दो-तीन वाक्य बोल रहा था। यह दृश्य देखकर वेताल को इन्सान से घृणा हो गई। वह बोला-बिल्कुल निर्दयी संवेदना शून्य समाज है मानवों का। हद से ज्यादा स्वार्थी। जातियों भाषाओं और इलाकों मे बंटा बेवकूफ समाज ! आखिर क्या गुनाह हो गया अगर अपनी भाषा के कुछ वाक्य बच्चे के मुख से निकल गए ।’

  वेताल उसी क्षण प्रिंसिपल पर हमला करने के लिये अपना रूप बढ़ाने लगा। सबके देखते-देखते प्रिंसिपल अचानक बेहोश हो गया। और एंबुलेंस में डाल कर उसे फौरन अस्पताल ले जाया गया।

  एक दिन की बात है। विक्रम के दोस्त अबू की मम्मी ईद के मौके पर सेवई लेकर आई। श्रीमती जया मेहरोत्रा ने खुशी-खुशी उनकी लाई सेवियां तथा मिठाइयां स्वीकार कल लीं। अबू की मम्मी के लौट जाने पर श्रीमती मेहरोत्रा ने वह सारी चीजें बाई को फेंकने के लिये दे दी। विक्रम वेताल यह देखकर हैरान रह गये। पूछने पर श्रीमती मेहरोत्रा बोली-बेटे ये लोग मुस्लिम हैं। हम हिन्दू। इनकी सेवियां खाने से हमारा धर्म भ्रष्ट हो जायेगा।

  वेताल गमगीन होकर कहने लगा-विक्रम इंन्सानों से तो हम भूत-प्रेत कई गुना बेहतर होते हैं। हमारी बिरादरी में आने के बाद न कोई हिन्दू रहता है न मुसलमान और न ईसाई। हम सब लोग भाई-भाई की तरह हो जाते हैं।

  वेताल की बात सुन कर विक्रम का सिर शर्म से झुक गया। उसके मन में एक संकल्प उठा। वह बाई के पास गया। सेवियों का कटोरा मांगा और बगैर किसी संकोच के दो-तीन चम्मच सेवई खा गया। फिर बोला-‘मम्मी निकाल दो मुझे घर से क्योंकि मेरा धर्म भ्रष्ट हो गया है।

  बच्चे की बात सुन कर श्रीमती मेहरोत्रा कोई उत्तर न दे सकी।

  इसी प्रकार एक दिन श्रीमती मेहरोत्रा के यहां किटी पार्टी थी। पार्टी के साथ लंच भी था। बाई सुबह से ही काम पर जुट हुई थी। लंच का समय हो गया। बाई बरतन धो-पोंछ कर रखती जा रही थी। डाइनिंग रूम में तीन-तीन बार पोचा लग चुका था। सारी स्थूलकाय बेडौल व अधेड़ महिलाएं मेकअप किये गहनो से लदी-फदी बेसिर पैर की बातें कर रही थी और बाई अकेली सारा काम निपटाने में जुटी थी। तभी बाई की बेटी ने आकर बताया कि छोटा भइया रोते-रोते बेहोश हो गया है। जल्दी घर चलो।’ लेकिन श्रीमती मेहरोत्रा ने बच्ची को डपट कर भगा दिया और बोली-‘झूठ बोलती है हराम खोर ! देखती नही यहां पार्टी चल रही है  बच्ची की व बाई की आंखो में आंसू भर आये।

  वेताल बोला-ये कैसा अन्याय है विक्रम !

फिर  दोस्त वेताल की सहायता से विक्रम बाई के घर गया । बेहोश बच्चे को लेकर डाक्टर के पास पहुंचा। अपनी पाकेट-मनी से डाक्टर की फीस चुकाई व दवा खरीदी। बच्चे को दवा पिलाई। और फिर झोपडी मे लाकर छोड़ दिया। जब विक्रम घर पहुंचा तो लंच हो चुका था। सारी थुलथुली महिलाएं हाउज़ी खेलने में व्यस्त थी। जबकि भूखी-प्यासी बाई बच्चे की फिक्र मे रूआंसी,  झूठे बरतनों को ढेर मांजने में जुटी हुई थी।

  विक्रम ने आकर बताया-आंटी आपके बेटे को मैने व मेरे दोस्त वेताल ने डाक्टर को दिखा दिया है। दवा दे दी है। अब वह ठीक-ठाक है।

  बाई की आंखें खुशी से छलक आई। धोती के पल्लू से आंसू पोछंते हुए उसने विक्रम-वेताल का आभार जताया और दुगने उत्साह के साथ काम निपटाने लगी।

  विक्रम के साथ रहते-रहते वेताल को एक वर्ष बीत रहा था। परीक्षा में विक्रम अच्छे नंबरों से पास हुआ था। इसी खुशी मे श्री मेहरोत्रा ने श्री सत्यनारायण कथा का आयोजन किया था।

  कथा वाचक पंडित जयराम शराब के नशे में झूमते हुए कथा पढ़ने लगे। कथा के बीच-बीच में वे उपदेश भी दे रहे थे कि आचरण की शुद्धता से ही हर काम सफल होता है। असत्य बोलने से इच्छा शक्ति कमजोर होती है मांस-मदिरा ब्राह्मणों के लिये त्याज्य हैं। इसका सेवन कभी नहीं करना चाहिए ......’ कथा सुनने आए लोग शेयर बाजार की, घर-दफ्तर की बातों में तल्लीन थे। श्री मेहरोत्रा भी खुश थे कि समाज उन्हें ‘गाड फीयरिगं’ व्यक्ति मान चुका है।

  लेकिन सिर्फ विक्रम और वेताल इस पांखड से खुश न थे। वेताल ने तो यहां तक कह दिया-दोस्त विक्रम ! तुम्हारा मानव-समाज तो बहुत ढोंगी है। यहां लोगो के मन में कुछ रहता है और मुंह में कुछ रहता है और काम कुछ और करते हैं। ऐसे पाखंडी माहौल में यह एक साल मैने कैसे काटा है-मैं ही जानता हूं। अब मैं तुमसे प्रार्थना करता हूं कि मुझे आजाद कर दो। तुम जब कभी मुझे याद करोगे-मैं उसी पल तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा। लेकिन इस विषैले वातावरण से मुझे मुक्त कर दो।’

  विक्रम अपने प्यारे वेताल दोस्त से विछड़ने के विचार से दुःखी हो गया। लेकिन उपाय भी क्या था !  विक्रम ने भारी मन से कहा-जाओ दोस्त वेताल ! अपने खुले जंगल में जाओ। जहां न कोई अमीर है न कोई गरीब,  न कोई हिन्दू है न मुसलमान। जहां कोई भाई-अपने ही भाई की पीठ पर छुरा नहीं भोंकता। लेकिन मुझे तो यहीं रहना है। यहीं रह कर इन सब बुराइयों से लड़ाई लड़नी है।’

  वेताल आखिरी बार विक्रम से गले मिला ।  आकार बढ़ाया और उडता हुआ अपने विशाल बरगद की ओर चला गया। विक्रम उसे उडकर जाते तब तक देखता रहा जब तक कि वेताल आंखों से ओझल नहीं हो गया।

(समाप्त)

 

 

 

 

 

      

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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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