
सदन में प्रश्नकाल चल रहा था। अध्यक्ष के कहने पर युवा सांसद उठे और बोले
- रेस्पेक्टेड अध्यक्ष जी, मैं खेलमंत्री से पूछता हूं कि हमारे खेलों में राजनीति इतनी क्यों बढ़ गई है ?
जिस क्रिकेट से हमारे
सटोरिये भाई हज़ारों करोड़ के वारे-न्यारे करते हैं,
जिसकी बदौलत क्रिकेट
बोर्ड शहद से लबालब भरे छत्ते बन गए हैं,
जिस क्रिकेट के बूते
अंग्रेज़ों की गुलामी के उस ख़ुशनुमा इतिहास को हम अब तक संजोए हुए थे- उसी क्रिकेट
मे इस क़दर सियासत घुस जाना क्या हमारे स्वाभिमान पर चोट नहीं है ?
क्या ये हमें सट्टा बाज़ार
से उखाड़ फेंकने का षड्यंत्र नहीं है ?
क्या ये हमें
अंग्रेजों की वफादारी से दूर करने की घिनौनी कोशिश नहीं है ?
खेलमंत्री को खड़े होकर
बताना होगा, हाउस को यकीन दिलाना होगा,
वरना हम ‘बंद’ करेंगे,
रेलें-बसें रोकेंगे,
भूख हड़ताल करेंगे।
यहां तक कि सदन की कार्यवाही भी नहीं चलने देंगे।
मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे अध्यक्ष चौंके। विशाल तोंद पर हाथ
फिराया और गुर्राए
- खेल मंत्री जवाब दें।
‘रंगी दाढ़ी, और खोपड़ी पर स्थापित विग को ठीक से बिठाते हुए कमर पकड़े,
युवा तथा खेल मामलों
के अस्सी वर्षीय मंत्री किसी तरह खड़े हुए और करीब करीब कहराते हुए बोले
-जानता हूं,
तू जलता है मुझसे,
क्योंकि मैने इस उमर
में भी खेल और युवा मंत्रालय बखूबी संभाल रखा है। मगर मूर्ख,
क्या मेरे साथ भी
राजनीति नहीं हुई ? क्या ये मेरी खेलने की उम्र थी ?
कब से राजनीति में हूं
? जब मैं खेलने लायक था,
तब पूछा किसी ने ?
अब जब मुंह में दांत
नकली, पेटी में आंत आपरेशन वाली-तब मैं क्या तो खा लूं और क्या
खेल लूं ? इसलिए कहता हूं
बैटर लेट दैन नैवर। अब मैं नही खा सकता तो क्या हुआ ? मेरी
आनेवाली पीढ़ियां खा लेंगी। मैं नहीं खेल सका तो मेरे पोते पड़पोते खेलेंगे !
उनके बैठते ही एक युवा सांसद खड़े हुए और टाई को ठीक करते
हुए बोले
- अध्यक्ष जी,
मेरा प्रश्न है कि आज़ादी के बाद से आज तक सदन में सिर्फ
ग़रीबी पर चर्चा हुई, ग़रीबों पर बहस हुई-पर क्या ग़रीबी हटी ?
क्या ग़रीब बदले ?
सर,
आप खुद ग़रीब-मज़दूरों
की राजनीति करते करते यहां तक पंहुच गए ! आपकी पार्टी ऊपर तक पहुंच गई,
पर ये ढीठ ग़रीब बदल पाए
?
ये नहीं बदले । और मैं
आपको लिखकर दे सकता हूं कि ये आनेवाले समय में भी नहीं बदलेंगे। इसलिए समाज कल्याण मामलों के मंत्री से मेरी रिक्वेस्ट
है कि वे सदन का कीमती समय ग़रीबी की लपटों के हवाले न होने दें। अब हाउस में
सिर्फ़ जीडीपी की बात हो, सेंसेक्स की बात हो,
एफडीआई
पर चर्चा हो। ज़्यादा से ज़्यादा क़र्ज़े कैसे लिए जाएं
- इस पर विचार हो....
इस पर डाक्टर
अमरीक सिंह खड़े हुए। मुस्करा कर उन्होंने युवा सांसद को निहारा और बोले
- मुझे खुशी है कि हमारे यंग एमपी सही दिशा में जा रहे हैं।
वाकई हमारे बुजुर्ग आज़ादी के बाद से ग़रीबों को ही उठाने मे लगे रहे पर गरीब उठकर नहीं दिए। अब
खुद सोचिए - ग़रीबों के चक्कर में हम अमीरों के साथ नाइंसाफी कब तक करते रहेंगे ? जहां
तक उधारी उठाने की बात है- हमने दुनियां के हर मुल्क से भरपूर उधार उठाया है। सोना
गिरवी रख कर भी जम कर उधार लूटा है । मेरे पास जो ताज़ा आंकडे़ हैं,
उनके मुताबिक अब
बांग्लादेश, नेपाल, मालदीव और भूटान ही बचे हैं जहां से हमने उधारी नहीं उठाई। वरना बाकी सारे
मुल्कों के उधारखातों मे हमारा नाम सुनहरे अक्षरों मे लिखा हुआ है।
अब
देखिए न,
हमारा सूचकांक कहां
भागा जा रहा है ? हमारी ग्रोथ रेट कहां पहुंच गई ?
अब हम डवलपिंग कंट्री
नहीं रहे, डवलप्ड कंट्री बन चुके हैं। रही बात ग़रीबों की ?
तो वे जल्दी ही गायब होनेवाली
प्रजाति हैं। आने वाले कल मे उन्हें अजायबघर में ही देख पाएंगे,
गरीबी के नाम पर जो कर्ज
अब तक दुनियां के देशों से हमने खींच लिया है,
उससे हमारी अमीर पीढ़ियां
सैकड़ों बरसों तक ‘घी’ पीती रहेंगी । जै
हिंद।
अमरीक जी के
बैठते ही जामगिलास जी उठे। खिजाब से रंगी शाइन मारती स्याह दाढ़ी खुजलाई और बोले
-देखिये अध्यक्ष जी,
गांधी बाबा ने दलितों
के साथ कितना बड़ा धोखा किया ? उनका रिज़रवेसन खाली दो साल के लिए बढ़ा कर निकल लिये । वो तो भला हो हमारे कांग्रेसी
नेताओं का जो किश्तों मे ही सही, उसे दस-दस साल करके आगे बढ़ाते रहे। सरकारी नौकरियों में तो
अब हमारे दलित भाई जडे़ं जमा चुके हैं,
मगर प्राइवेट सेक्टर में
सेटिंग अब तक नहीं हुई । प्राइवेट इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेजों में भी अभी तक रिजरबेसन
की सुहानी पुरवा नही चली। अतः गृह मंत्री फौरन आकर सदन के पटल पर सही बात रखें।’
‘गृह मंत्री बयान दें’ स्पीकर जी ने जम्हाई लेते हुए आदेश
दिया तो पंडित दीनानाथ जी उठे और कटीली सफ़ेद मूंछों से मुस्कराहट बिखेरते हुए
पुलकित स्वर में चहके
- देखिये, इस बारे में हमारी नीति एकदम साफ़ है। हम कल सदन में बिल पेश करने जा रहे हैं। इस बिल के पास
होते ही हमारे दलित भाई पूंजीपतियों की गाढ़ी कमाई से खड़ी कंपनियों में भी नौकरी पा
सकेंगे। किसी भी गै़रसरकारी कालेज में अंकों के नहीं,
डंडे के बल पर प्रवेश
पा सकेंगे। हमारी योजना तो ये है कि पिछड़ी जातियों के हमारे दलित-भाइयों के अलावा
बाकी सभी लोगों के पेट आपरेशन के जरिये निकाल दिये जायें। न रहेगा पेट,और न लगेगी किसी को भूख ! इस बारे मे स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ कल हमारी मीटिंग भी है। ......
पंडित दीनानाथ
अभी बोलने के मूड में थे लेकिन तभी मैनेजमेंट में डिग्री लिए,
युवा सांसद उठ खड़े हुए
और बोलने लगे

- दिस इस आल रब्बिश ! कैडर ऐसा नहीं करता। खैर ! मैं
तुम्हारी बात टाप लेवल तक पहुंचा दूंगा।
अध्यक्ष का पारा चढ़ने लगा। लकड़ी की हथौड़ी को ज़ोर-ज़ोर से मेज़
पर ठोकते हुए बोले- आप लोग खुले आम चीटिंग कर रहे हैं। अनुमति मांगते हैं किसी
प्रश्न की, उठाते कोई और प्रश्न हैं। इसलिये प्रश्नकाल जारी रखने का कोई
मतलब नहीं रह गया है।’
यह कहते हुए अध्यक्ष ने लंच के बाद की कार्यवाही समाप्त करने की घोषणा दी।
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