
“वर्ष
की सर्वश्रेष्ठ नृत्यांगना श्रीमती रश्मि” ।
अखबार के मुखपृष्ठ पर खूबसूरत नृत्यमुद्रा में छपे फोटो के
साथ कुछ मोटे अक्षरों में संक्षिप्त परिचय छपा था,
वह पढने लगा-
‘नगर के प्रतिष्ठित औद्योगिक परिवार में जन्मी रश्मि जी बचपन
से ही ललित कलाओं में गहरी रूचि रखती थी। चार-पाँच वर्ष की अल्पायु में ही भरत
नाट्यम व कथकली जैसे शास्त्रीय नृत्यों में वह निपुण हो गई । प्रकृति ने भी उदारता
पूर्वक उन्हें सजाया संवारा और धन के साथ-साथ सौन्दर्य का भी असीम वैभव प्रदान
किया। रंगमंचों को अपनी प्रतिभा से आक्रांत करने के बाद रश्मि जी फिल्म क्षेत्र में प्रवेश
करना चाहती है। रश्मि जी को हमारी शुभकामनाएं।
गहरा निश्वास लेकर उसने बाहर देखा। सड़क पर वाहनों का अविरल
प्रवाह आरम्भ हो चुका था। दूर कारखानों की चिमनियों से निकलता गहरा धुआं धीरे-धीरे
सारे शहर के आकाश पर छाने लगा था।
रश्मि उसके जीवन में अप्रत्याशित रूप से आई थी। उसकी नम हो
आई आँखों के सामने फिर वहीं दिन लौट आए,
जब वह कालेज में पढ़ने
वाला विज्ञान का एक छात्र था। प्रतिमा,
जो एक अच्छे परिवार की
सुन्दर लड़की थी, उससे प्रेम करती थी। वह भी प्रतिमा के गंभीर स्वभाव का आदर करता। अवकाश के क्षणों में किसी रेस्तरां
में बैठकर चाय पीते हुए वे भविष्य की रूपरेखाओं पर विचार करते। प्रतिमा कहा करती
कि बी.एड. के बाद मैं किसी स्कूल में
अध्यापिका बनना चाहूंगी और तुम कहीं अपनी रुचि के हिसाब से नौकरी खोज लेना । फिर
ठीक वक्त पर विवाह कर लेंगे।
प्रतिमा ने अपना दायित्व भली प्रकार निभाया। बी.एड. के बाद
वह एक स्कूल मे अध्यापिका के लिए चुन ली गई । उसने भी तो अपनी भूमिका ईमानदारी से
निभाई थी । एम.एससी. करने के पश्चात् वह वैज्ञानिक
पद के लिए एक प्रतियोगिता परीक्षा में सम्मिलित हुआ और चुन लिया गया। दोनों ने एक
दूसरे को शुभकामनाएं प्रेषित कीं। अब वे बड़ी व्यग्रता से उस घड़ी की प्रतीक्षा करने
लगे, जबकि वे अलग-अलग अस्तित्व छोड़कर एक समग्र इकाई बन जाते यानी
एक पारिवारिक इकाई।
रश्मि की मोहक नृत्य मुद्राओं को बहुत समय के बाद भी वह
ह्नदय से निकाल न सका था। प्रतिमा की छवि धीरे-धीरे उसकी स्मृतियों से ओझल होने
लगी। रश्मि को प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा उसके भीतर सिर उठाने लगी। किन्तु
अपने और रश्मि के बीच की आर्थिक सामाजिक दीवारों को वह पहचानता था। अतः कठोर परिश्रम
करके दो वर्ष के अथक संघर्ष के पश्चात् उसने अपना आकार इतना बढ़ा लिया था कि अब वह
दीवारों को आसानी से पार कर सकता था। अपने परिश्रमी स्वभाव के बूते विज्ञान जगत में उसने ऐसा सिद्धांत प्रस्तुत कर
दिया जिस पर अनेक युवा वैज्ञानिक काफी वर्षों से काम कर रहे थे।
विज्ञान के अलावा
साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं मे भी उसका आविष्कार प्रकाशित हुआ। उसके जीवनवृत पर रोचक
विवरण लिखे गए । नगर के गणमान्य व्यक्तियों ने उसका अभिनन्दन किया,
जिनमें अपने पिता के
साथ रश्मि भी थी। दोनों ने एक दूसरे को आंखों ही आँखों में परख कर चतुर व्यापारी
की भांति फैसला कर डाला था। रश्मि के पिता,
जो नगर के प्रसिद्ध उद्योगपति
थे, इस नेत्र समीकरण का हल शायद ढूंढ़ चुके थे। उन्होंने उसकी
पीठ थपथपाते हुए कहा था, ‘शाबाश प्रशान्त,
तुम जैसे युवा लोगों
की बदौलत देश के कोने-कोने में हमारे नगर का नाम गूंज उठा है,
मुझे तुम पर गर्व है।’
- “लेकिन
इस नगर का परिचय तब तक अधूरा रहेगा जब तक रश्मि जी जैसी असाधारण प्रतिभाशाली युवा
कलाकार का नाम न जोड़ा जाए” । उसने बंकिम दृष्टि से रश्मि की ओर देख कर कहा था।
‘‘थैंक्स प्रशान्त जी,
रश्मि आत्मविभोर हो
उठी थी, कितने महान हैं आप’’।
फिर तनिक ठहर कर पिता की ओर मुड़ते हुए बोली थी -‘‘प्रशान्त
जी को डिनर पर इनवाइट कीजिए डैडी,
ढेर सारी बातें यहाँ
तो नहीं हो सकती न।
‘‘ओह!’’ सेठ जी मुस्करा कर बोले थे,
‘अगर प्रशान्त जी हमारी
यह पेशकश मंजूर कर लें तो हमें खुशी होगी।’
‘‘बोलिए प्रशान्त
जी, सोचने की क्या बात है” ?
रश्मि अधीर हो उठी थी। इस पर तनिक मुस्करा कर बोला था वह
-ठीक है।

डिनर पर केवल वही तीनों थे। रश्मि आधुनिकतम वेशभूषा और
मेकअप के साथ अपने डैडी के साथ उसे रिसीव करने गेट पर आई थी। फिर इधर-उधर की बातें
करते हुए वे खाने की मेज पर जा बैठे थे। रश्मि ने अपने हाथ से उसे खाना परोसा और
उसके साथ वाली कुर्सी पर बैठकर स्वयं भी खाने लगी थी।
‘‘भई प्रशान्त,
आगे क्या विचार है तुम्हारा? खाना खाते हए गंभीरतापूर्वक पूछा था सेठ जी ने।
‘‘मतलब आविष्कार के बारे में?
‘‘हाँ, आविष्कार के बारे में ही समझ लो। वैसे शादी के बारे मे क्या
सोचा है?
‘‘जी दरअसल मुझे एक ऐसा लाइफ पार्टनर चाहिए,
जिसमें कुछ टेलेंट हो ।
कोई खास बात हो बस।’’
इस पर रश्मि और उसके डैडी ने एक साथ विजयी मुस्कान के साथ
एक दूसरे को देखा। वह सिर नीचे किये उसी तरह खाता रहा।
रश्मि भी एक अच्छी आर्टिस्ट है। सेठ जी ने सीधा सवाल किया ।
इस पर
उनसे आंखे मिलाते हुए कहने को विवश होना पड़ा-
‘‘नो डाउट’’ ।
‘‘ओ.के. सेठ जी कहते हुए उठ खड़े हुए - तुम दोनों खाओ,
मैं अभी आता हूं।’’
डिनर के बाद सेठ जी ने बाकायदा विवाह की तारीख की घोषणा
करते हुए उसे सोने की अंगूठी पहना दी थी।

अन्ततः वह दिन भी आ पहुँचा। बारात लेकर जब वह घर पहुँचा तो
उसके चेहरे पर कोई खुशी न थी। भाव-शून्य आँखें,
सपाट चेहरा और गहरी
खामोशी उसकी पहचान बन गए । उसका ह्नदय चीत्कार कर रहा था,
लेकिन कौन सुन पाता
उसे ? फिर भी रश्मि के
साथ वह अतिथियों के उपहार और शुभकामनाएं स्वीकार कर रहा था।
तभी भीड़ को चीरती हुई आई थी प्रतिमा। उसके हाथ में फूलों का
गुलदस्ता था। उसके शुष्क बाल बेतरतीबी से
संवारे हुए थे। आँखें सूजकर लाल हो रही
थीं किन्तु फिर भी मुस्कराने का भरसक प्रयत्न करते हुए बोली थी,
‘विवाह के लिए मेरी
शुभकामनाएं प्रशान्त’ कहते हुए गुलदस्ता उसकी ओर बढ़ा दिया था उसने।
प्रतिमा को अपराध बोध के उन क्षणों में अपने निकट पाकर वह
भावुक हो उठा था, कंठ भर्रा गया था
उसका ।
-‘‘मुझे क्षमा कर देना प्रतिमा।’’
-‘‘टेक इट इज़ी प्रशान्त। सच्चा प्रेम केवल एक भावना है,
कल्पना है कवियों की।
प्रैक्टिकल लाइफ में इसका कोई मूल्य नहीं। कोई अर्थ नहीं। अच्छा,
विश यू आल द बेस्ट।’’
कहकर प्रतिमा तीर
की तरह बाहर निकल गई थी। उसने भावावेश में दौड़कर पकड़ लेना चाहा था अपने अतीत को,
अपनी प्रथम प्रणय कथा
को। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। विद्युत गति से बढ़ते जा रहे क्षणों का निरन्तर प्रवाह उसके और प्रतिमा के बीच जन्म ले
चुका था।
विवाह के तुरन्त बाद रश्मि ने हनीमून मनाने के लिए हिल
स्टेशन चलने का प्रस्ताव रखा तो वह सहमत हो गया था। उन्हीं एकांत क्षणों में उसे
रश्मि को निकट से जानने का अवसर मिला था।
फलों से लदे एक
छोटे पेड़ की शाखा के सहारे वे दोनो सेब तोड़-तोड़कर खा रहे थे तो रश्मि ने कहा था-
-एक बात पूछूं प्रशान्त?
-पूछो रश्मि।
-प्रामिस करो कि बुरा नही मानोगे।
-तुम्हारी कसम नहीं मानूंगा बुरा।
-तुम नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते प्रशान्त। डैडी के पास कितनी
दौलत बेकार पड़ी है। अगर मैं उनसे कह दूं तो अपने बिजनेस में वह तुम्हें फिफ्टी-फिफ्टी
का पार्टनर बना लें।
रश्मि के वाक्य में भरे उस कालकूट को किसी तरह पी गया था
वह। किंतु उसी शांत स्वर में उसने उत्तर दिया था।
-ये पक्षी देख रही हो रश्मि? कितने खुश हैं ! और कितने स्वतंत्र ! खुले आकाश में जब जहां
चाहे उड़ते हैं, झरनों का साफ पानी पीते हैं। वनों,
बागों में लगे मीठे फल
खाते हैं। एक डाल से उड़कर दूसरी डाल पर चहचहाने लगते। हैं अगर इन्हें पकड़कर सोने
के पिंजरे में कैद कर लें तो क्या ये इतने ही खुश और इतने ही आजाद रह सकेंगे ?
-मेरा ये मतलब नहीं है प्रशान्त। आइ मीन डैडी और तुम तो अब
एक हो गए न। डैडी खुद कहते हैं, प्रशान्त मेरा दूसरा बेटा है। दरअसल डैडी चाहते हैं कि हम
दोनों आराम से बैठकर खाएं ।
रश्मि एक ही सांस में सब कुछ कह जाना चाहती थी और वह भी सपाट शब्दों में बोल उठा था
-‘‘सॉरी रश्मि,
मुझे डैडी की दौलत
नहीं चाहिए । मैं अपने लिये दो रोटियां खुद पैदा कर सकता हूं। आराम से बैठकर खाना
मेरे लिए हराम है।’’
-‘‘तुम तो हर बात का उल्टा अर्थ निकालते हो प्रशान्त। तुम्हारी
सांइटिस्ट की पोस्ट भी कोई कम ग्लैमरस नहीं है लेकिन जहाँ तक पैसे का सवाल
है......‘‘रश्मि रूक गई थी।
-‘‘खैर छोड़ो प्रशान्त। रश्मि ने एकाएक विषय बदल दिया। वह देखो
उस घाटी पर कितने खूबसूरत फूल हैं जैसे हँस रहे हों। इस पर वह इतना ही कह सका था।
-अमीर की दुनिया में हर चीज हंसती है रश्मि। गरीब हँसते भी
हैं तो लगता है रो रहे हों अपने हाल पर।
छुट्टियां बिताकर
वे घर लौटे तो उनके साथ खामोशी भी आई थी। जीवन का नया अध्याय शुरू हो चुका था। उसे
अनुभव हुआ था कि रश्मि पहले वाली रश्मि नही रही। वह धीरे-धीरे एक अमीर पिता की
इकलौती संतान का आकार ग्रहण करने लगी है। उसके चेहरे से प्रेम,
श्रद्धा और समर्पण के
भाव- जिन्हें देखने के लिए उसके भीतर का पुरूष लालायित रहता था,
जाने कहाँ खो गए हैं। उन मधुर भावों का स्थान अब धीरे-धीरे अभिमान,
उपेक्षा और
सुपीरिआरिटी कंप्लेक्स ने ले लिया था । वह किसी पत्थर की प्रतिमा की तरह उन भावों
के आवागमन को मूक साक्षी बन कर देखता रहा। रश्मि सवेरे नाश्ता खिलाकर उसे आफिस
भेजती और खुद नृत्य सीखने कोचिंग इन्स्टीट्यूट चली जाती। वहाँ से वह शाम को थक कर
आती और आकर लेट जाती। रश्मि के इस लापरवाह दृष्टिकोण पर वह आखिर चुप न रह सका -
इस पर रश्मि एकाएक तैश में आ गई थी
- नहीं,
नृत्य बन्द नहीं हो
सकता। इट इज माई कैरियर।
- लेकिन
भूलो मत रश्मि कि अब तुम एक जिद्दी व अमीर पिता की इकलौती बेटी नहीं,
एक गरीब वैज्ञानिक की
मध्यमवर्गीय पत्नी हो।
-
मिडिल क्लास की औरतों
वाली दब्बू मेंटलिटी की उम्मीद मुझसे मत रखियेगा प्रशान्त। सॉरी,
मैं वह नहीं बन
संकूगी- रश्मि कड़क कर बोली थी।
इसी के साथ उसे महसूस हुआ था कि उसके और रश्मि के बीच की
दूरी एकाएक बहुत अधिक बढ़ गई है। जैसे कोई चीज जो उन्हें खींचे हुए थी,
टूट गई है और अब वे
दोनों-एक ही डिब्बे में सफर करते किन्हीं अपरिचित यात्रियों की तरह घूरने लगे हैं
एक दूसरे को। लेकिन वह स्थिति को भयानक मोड़ की ओर जाने देने के लिए भी तैयार न था।
अपमान और क्रोध के कड़वे घूंट पीते हुए उसने मुस्करा कर कहा था-
-तीसरा सदस्य आने से ही ये टेंशन खत्म होगा रश्मि।
उसने सोचा था कि रशि नारी सुलभ लज्जा से भर उठेगी,
लेकिन वैसा न हुआ।
उल्टे रश्मि उबल पड़ी थी।
- मैं तो तुमसे शादी करके ही पछता रही हूँ,
जाने किस बुरी घड़ी में
मेरा दिमाग खराब हुआ। डैडी ने फिर भी कहा था कि रश्मि सोच ले। शादी,
दोस्ती और दुश्मनी
बराबर वाले से ही करनी चाहिये। पर मैने उनकी बात न सुनी। वह क्रोध और पश्चाताप में
भर उठी थी-
- मेरे कैरियर को
खत्म करने की ये साजिश पूरी नहीं होगी कभी नहीं।
- कैरियर के लिये क्या अपने विवाहित जीवन को भी दांव पर लगा
दोगी? उसने
पूछा था ।
- ‘बिलकुल, अपने कैरियर के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ। ‘
इस पर वह खामोश हो गया। उसने निश्चय कर लिया था कि पति के
रूप में वह रश्मि से सारे संबंध तोड़ लेगा। जब तक रश्मि रहेगी वह उसकी सभी जरूरतें
पूरी करना अपना फर्ज समझेगा। उसे यह भी अनुभव हुआ कि रश्मि की महत्वाकांक्षाओं पर नियंत्रण पाने का एक ही
उपाय है, अपना आकार बढ़ाना ताकि रश्मि को अपना व्यक्तित्व बौना दिखाई
देने लगे।
वह एक बार फिर विज्ञान के रहस्यमय संसार मे उतर गया। किसी
और महत्वपूर्ण सिद्धान्त की खोज में। लेकिन रश्मि की गतिविधियों में इसमे कोई फर्क न पड़ा। वह मकान के एक बड़े हिस्से में अकेली रहने
लगी। रात को ग्रामोफोन पर कोई रिकार्ड चढ़ाकर
देर तक उसकी धुन पर नाचती रहती। कभी शराब के नशे में धुत होकर लौटती। उसके
ब्वाय फ्रेंड स्कूटर या कार पर उसे घर तक छोड़ आते। चाँदनी रातों में छत के पिछले
हिस्से में खड़े होकर कभी-कभी वह रश्मि के उस स्वरूप को मूक दृष्टा बन कर देखता ।
एक ठंडी गहरी सांस उसके गले से निकल जाती। कभी-कभी रश्मि अपने दोस्तों को बांहों
में थामे भीतर ले आती। फिर रात देर तक नाचने
और गाने की आवाजें आती रहती।
धीरे-धीरे रश्मि के प्रति उसके चेतन में स्थाई घृणा उत्पन्न
होने लगी। अपने ही सामने अपनी कोमल भावनाओं की निर्मम हत्या होते देखना उसे असह्य
लगने लगा। उसने तय किया कि आफिस से लौटते ही किसी भी बात पर वह रश्मि से उलझ
पडे़गा और साफ-साफ शब्दों में उससे तलाक लेने के लिए कह देगा।
घर पहुँचकर उसने देखा,
टैक्सी पर अपना सामन
लदवा कर रश्मि गेट से बाहर निकल रही थी। दोनों ने एक क्षण एक-दूसरे को देखा और चल
दिये। उसने रश्मि को नहीं पूछा कि वह कहाँ जा रही है।
रश्मि के जाने के बाद एक तूफान जो विवाह के बाद उठा था
धीरे-धीरे शांत होने लगा। उसकी मानसिक बेचैनी आहिस्ता-आहिस्ता दूर होने लगी और
उसका जीवन एक बार फिर वैसा ही हो गया जैसा कि विवाह से पहले था।
लेकिन उस दिन सुबह अखबार पढ़ते हुए वह चौंक उठा था। मुखपृष्ठ पर रश्मि की नृत्य मुद्रा
का सुन्दर फोटो छपा था। साथ ही मोटे अक्षरों में लिखा था- वर्ष की सर्वश्रेष्ठ
नृत्यांगना ‘‘श्रीमती रश्मि’’।
(समाप्त)
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