वैद्य श्री चोखे लाल जी की दुकान पर- इंसान तो क्या, भूल से मक्खी भी नहीं बैठती थी. समस्या
यह थी कि दिन भर खाली बैठे बैठे क्या
मारें ? सड़क से गुजरते मरीजों को हसरत भरी नजर से देख,
ठंडी आह भरते- कि काश !
एकाध मुर्गा इधर भी आ मरता ! मगर मरीज उनकी आरोग्यशाला की तरफ देख कर मुस्कराते और
आगे बढ़ जाते.
पहले कुछ दिन तक तो
चोखे लाल जी दिखावे के लिए खरल मे दवाइयां
घोटने लगे. उन्हें पक्का यकीन था कि
दवाइयां बनती देख मरीजों का भरोसा मजबूत होगा. दवाइयां घोटते हुए वह तिरछी नजरों से सड़क की तरफ भी
झांकते रहते कि शायद कोई अकल का अंधा, गाठ का पूरा , भूल से भीतर आ ही जाय ! मगर ऐसा कभी हुआ नहीं. बादल दुकान के आगे गरजते
जरूर थे, पर बरसने पड़ोस की दुकान पर जाते थे.
अचानक एक दिन चोखे जी के दिमाग मे विचार आया कि क्यों न मॉर्डन आयुर्वेद पर कोई किताब लिखी जाए ? आयुर्वेद
की परंपरा आजकल रुक सी गई है. जमाना बदला, क्लाइमेट बदला,
केमीकल खादों से अनाजों और जड़ी
बूटियों के गुणधर्म बदले, खानपान बदला. खिचड़ी
और मूंग की दाल का पानी क्या होता है - आज का बच्चा जानता तक नहीं. फिर क्या सलाह दें और किसे दें ?
खान-पान मे इतना
बदलाव आ चुका और हम पतली खिचड़ी व मूंग दाल के पानी या फिर साबूदाने की खीर पर ही
अटके हुए हैं ! हम आज भी बाबा आदम के जमाने से चले आ रहे चरक,
सुश्रुत निघंटु पढ़ा रहे हैं.
बैद्य चोखे लाल जी को बार बार यही खटकता रहता था कि आज जिन
चीजों का हम खान पान मे इस्तेमाल करते हैं उनका पुरानी किताबों मे जिक्र ही नहीं
है. तो सबसे पहले नई चीजों के गुणों पर किताब लिखनी चाहिए.
कई बरसों की
कड़ी मेहनत के बाद आखिर किताब पूरी हुई. नाम था – मॉर्डन
आयुर्वेद चिकित्सा .
इस किताब से कुछ
चुने हुए अंश हम पाठकों की सेवा मे प्रस्तुत कर रहे हैं:
अध्याय तीन – हर मौसम मे खाई जा सकने वाली डिशेज़
के गुण

1. मैगी
: यह खाने मे अत्यंत टेस्टी,
तुरंत पकने वाली तथा आसानी
से डाइजेस्ट होने वाली डिश है. बच्चे तो बच्चे, बड़े भी इसे
चाव से खाते हैं. पकने मे भी यह बस दो
मिनट लेती है. इसकी तासीर हलकी गर्म है.
मसाला मिलाने से यह तिक्त, चरपरी तथा वाही हो जाती है. इसे
अनेक रूपों बनाया जाता है. जिससे इसके गुणों मे भी किंचित फर्क आ जाता है . जैसे
मिक्स वेज के साथ बनाने से यह कब्ज नाशक हो जाती है. टमाटर के साथ बनाने से यह टेस्टी और
माइल्ड रेचक हो जाती है.
अनुपान-
दो पैकेट मैगी मे कम से कम चार पाउच टोमैटो सॉस
मिला कर गरम गरम ही सेवन कराएं. ठंडी होने पर इसके गुणधर्म बदल जाते हैं.

2. चाउमीन
: इस डिश का जन्म कीट भक्षी देश चीन मे
हुआ था.
उन्हें केंचुवे, सांप, छिपकली, आदि लम्बी लम्बी चीजें खाने का बहुत
शौक था.
जब ये सभी जीव-जन्तु चीन की धरती से लुप्त
हो गए
तो चीनियों ने खाने की चीजों को लम्बी शक्ल देनी
शुरू की.
उन्ही भगीरथ प्रयासों का नतीजा था चाउमीन. चाउमीन मैदे से
बनी पतली पतली सेवियां जैसी
होती हैं. ये नूडल्स फेमिली से आती
हैं. इन्हें उबाल कर खट्टे-मीठे, चरपरे मसालों वाले शोरबे के साथ सर्व किया जाता है. चीन वाले चाउमीन को खास तरह के चीनी मिट्टी के डोंगे मे भर कर दो लम्बी लम्बी सलाईनुमा डंडियों
से खाते हैं.
ये दो प्रकार की होती हैं- वेज चाउमीन तथा
नॉनवेज चाउमीन.
वेज
चाउमीन मैदे से तो नॉन वेज चाउमीन जानवरों के गोश्त से बनाई जाती हैं. यह गोश्त घोड़े गधे भैंस,
झोटे, गाय बैल कुत्ते बिल्ली – किसी का भी हो सकता है. हो कोई भी गोश्त लेकिन
गोश्त होना चाहिए. चीनी मिट्टी के कटोरे
मे भरे गरमागरम गाढ़े मसालेदार शोरबे मे
तैरती नॉन वेज चाउमीन को बकरा दाढ़ी वाले बूढ़े चीनी जब दो डंडियों से पकड़ कर
फुर्ती से सुड़कते हैं तो वह दृश्य बड़ा ही
मनोहर होता है.
वेज
चाउमीन के गुण धर्म अक्सर नहीं बदलते, बदलने
लायक वेज मे होता भी क्या है ! मगर नॉन वेज चाउमीन के गुण इस बात पर निर्भर करते
हैं कि गोश्त किस जानवर का है.
यहां
हम संक्षेप मे सभी का उल्लेख करेंगे-

गधे के
गोश्त की चाउमीन --- गधा इस धरती
का सबसे शांत, सबसे सहनशील प्राणी है . इसकी सात्विक प्रकृति है. इसे बस दो जून की
घास चाहिए, और काम ? काम की क्या बात
करते हैं आप ! जितना बोझ लादिए, मजाल है चूं भी कर जाए !
धरती पर यदि सबसे बुद्धिमान कोई चौपाया है तो वह गर्दभराज ही हैं. कभी इन महाशय की
आंखों मे झांक कर देखिये, इनके सुपर कंप्यूटर जैसे दिमाग की
शायद झलक आप को मिल जाए . बोझा ढोते हुए या फुर्सत मे सुस्ताते हुए भी ये महाशय समाधि
की अवस्था मे पाए जाते हैं. इसी लिए गधे के गोश्त से तैयार की गई चाउमीन दिमाग वर्धक
मानी गई है.
घोड़े
के गोश्त वाली चाउमीन – जैसा कि आप जानते ही हैं,
प्राचीन काल से ही घोड़ा अपने स्टेमिना के लिए विख्यात रहा है. अंग्रेज भी इसकी ताकत के मुरीद थे तभी तो ताकत
का पैमाना उन्होने हॉर्स पावर बनाया ! घोड़े के गोश्त से बनी चाउमीन बदन मे घोड़े
जैसा स्टेमिना लाती है. जिन रोगियों के अंग शिथिल पड़ गए हों, जो उठ-बैठ भी नहीं पाते हों – ऐसे
रोगियों के लिए मै घोड़े के गोश्त की चाउमीन
रिकमंड करना चाहूंगा.
कुत्ते
व बिल्ली के गोश्त वाली चाउमीन – यह
चाउमीन तीज त्योहारों पर ही पकाई जाती है । बिल्ली अब कोई पालता नहीं. कुत्ते घर के मेम्बर बन चुके हैं,
मॉर्डन सोसायटीज़ मे तो कुत्ते
मालिकों के साथ ही ब्रेकफास्ट, लंच व डिनर करते हैं, साथ ही नहाते धोते हैं, साथ ही सोते हैं. घर के मालिक का खाना स्किप हो सकता है मगर कुत्ते का नही.
ऐसे
मे कुत्ते के गोश्त की चाउमीन कहां मिलेगी ? चीन,
नागालैंड, म्यांमार, आदि पूर्वी द्वीप
समूहों मे तो इस प्राणी के दर्शन तक नही होते. हां ! गोश्त की दुकानों मे बकरे की
तरह छिले हुए उल्टे लटके कुत्ते जरूर कही कही मिल जाते हैं. इसीलिए कई देशों मे यह
प्राणी संरक्षित जानवरों की श्रेणी मे आ गया है. ऐसे दुर्लभ प्राणी का गोश्त बहुत महंगा होने से हर कोई अफोर्ड
नहीं कर पाता. सिर्फ तीज त्योहार पर ही कुत्ते के गोश्त की चाउमीन खाई खिलाई जाती है.
अनुपान-
वैसे तो हर चाउमीन शोरबे मे डुबो कर खाई जाती है किंतु कुछ लोग इन्हे पानीदार
बनाने की जगह बंद गोभी, शिमला मिर्च व कतरे
हुए बारीक प्याज मे भली भांति तल कर भी खाते हैं. ऐसी खुश्क चाउमीन को वेज या नॉन
वेज सूप के साथ लेने से कोष्ठबद्धता (कंस्टीपेशन) नही होती.
चाउमीन
को विनेगर, चिली सॉस तथा टोमैटो सॉस के साथ लेने से इसका टेस्ट
बढ़ जाता है. साथ ही यह पाचक भी हो जाता है.
कई
लोग चाउमीन को चाय के साथ भी लेने लगे हैं. ले सकते हैं. चाय भी तो चीन से ही आई
है. कोई रिएक्शन नही करेगी. टेस्ट भी
अनोखा आएगा. मीठी चाय, नमकीन चाउमीन ! वाह ! क्या कंबीनेशन है ?
3. मोमो
: इस डिश का मूल स्थान भी चीन है.
वहां अति प्राचीन काल से ही इसे चाव से
खाया जाता रहा है. यह वैसे तो मैदे से बनते हैं. किंतु आजकल आटा मोमो भी अच्छे
खासे बिक रहे हैं. पकाने के भेद से मोमो
कई प्रकार के होते हैं:
अचारी
मोमो
अफगानी
मोमो
पनीर
मोमो.
नॉन
वेज मोमो आदि.
गूण
तथा स्वभाव : प्राय: सभी मोमो स्वाद मे नमकीन,
श्वेत वर्ण के बिल्कुल हमारी गुझिया के आकार के होते हैं. इन्हे भाप
मे पकाने के कारण अल्सर का पेशेंट भी आराम से खा सकता है.
चेतावनी- वेज मोमो
को किसी भरोसे की दुकान से ही लें. ज्यादा मुनाफे के चक्कर मे दुकानदार इनमें सड़ी
गली पत्ता गोभी व सड़े टमाटर वाली सब्जियां
भर देते हैं.
अनुपान- मोमो को
हमेशा लाल मिर्च की चटनी के साथ कम से कम दस बारह पीस एक बार मे सेवन करें.
4.
पिज़्ज़ा : इस डिश का स्थान
इटली है. दर असल जब भारत के व्यापारी
ग्रीस व इटली जाते तो वहां खाने मे रोटी सब्जी की मांग करते थे. अब रोटी सब्जी
बनानी किसी को आती नही थी. अंग्रेज तो होते ही बड़े इन्नोवेटिव हैं ! उन्होने पाव
रोटी पर कच्ची सब्जियों का कचूमर डाल कर बेक कर दिया. ऊपर से पनीर तथा फेवीकोल
जैसा चिपकने वाला मटीरियल फैला दिया. जब इसे खाया गया तो ऐसा लगा जैसे हम रोटी
सब्जी खा रहे हों.
इस प्रकार हम देखते हैं कि पिज्जा एक द्विस्वभाव की डिश है. इसमे रोटी के गुण धर्म भी
हैं और सब्जी के गुणधर्म भी. बल्कि इसे इटैलियन व इंडियन पाक शास्त्र का फ्यूजन भी
कह सकते हैं. घर मे अवन न हो तो तवे पर भी पिज़्ज़ा बनाया जा सकता है.

पिज़्ज़ा के गुणधर्म- यह खाने मे अत्यंत टेस्टी,
रोटी व सब्जी- दोनो के गुण धारण करने वाला तथा सहज ही पचने वाला फूड
है. ज्यादा पौष्टिक बनाने के लिए इसमे पनीर मिलाया जा सकता है. इसे टोमैटो सॉस के साथ
भी खाया जाता है.
अनुपान- पिज़्ज़ा के बाइट लेते हुए बीच बीच मे
चिल्ड कोक के घूंट भी मारते रहें. इससे खाने का टेस्ट कई गुना बढ़ जाता है. साथ ही तृप्ति भी मिलती है.
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