
पहला दृश्य
(परदा उठता
है। सूत्रधार दर्शकों का अभिनंदन करता है।)
सूत्रधार-आप तो
जानते ही हैं कि हम शुरू से ही नाटक-प्रधान देश रहे हैं। ऊपरवाले ने चाहा तो
भविष्य में भी हम नाटक करते रहेंगे। मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि इस
वक्त भी दिल्ली में एक नाटक खेला जा रहा है। अगर आप देखना चाहते हैं तो आइये-जनपथ
पर बने आपेरा हाऊस चलते हैं और त्याग नाटिका का सीधा प्रसारण देखते हैं।
सूत्रधार के पीठ-पीछे परदा उठने लगता हैं। प्रकाश
धीरे-धीरे कम होने के बाद फिर तेज होने लगता है।
दूसरा दृश्य
सोने के सिहांसन पर एक अधेड़ महिला बैठी है।
उसके बाब कट बाल साड़ी के पल्लू से ढके हैंं। दीवार पर बापू आदि की तस्वीरें लगी हैंं।
महिला के पांव गांधी टोपियों और चिट्ठियों से ढके हैंं। वह निर्विकार भाव से क्षितिज
की ओर देख रही है।
तभी एक विराटकाय नेता लड़खड़ाता हुआ मंच पर
चढ़ता है। जेब से एक चिट्ठी निकाल कर वह महिला के कदमों पर रखता है। फिर सर की टोपी
उतार कर कदमों के करीब रखकर जमीन पर लेट जाता है। औंधे मुंह लेटे-लेटे वह हाथ
जोड़कर स्तुति शुरू करता है।
नेता नंबर एक- जो सारे जीवों में माता के रूप् में स्थित हैं,
जिनकी नजर पड़ते ही क्वात्रोची आदि गण भय-बाधा से छूट जाते हैं,
जिनकी कृपा से नटवर लोग अनाज के बदले तेल पी-पी कर नहीं अघाते,
जो दुर्घटना से भी पहले दुर्घटना-स्थल पर पहुंचकर हालात का जायजा ले
लिया करती हैं, जिनके पहुंचते ही तनावपूर्ण स्थितियां
नियंत्रण मे आ जाती हैं-उन महाशक्ति को मैं प्रणाम करता हूं। आपसे प्रार्थना करता
हूं कि लाभ के दोनों पदों पर बनी रहें तथा त्याग वापस ले लें। ऐसे अवसरों पर हम
भक्तों के त्याग-पत्र स्वीकार करें।
(प्रकाश धीरे-धीरे मंद होता है। नेपथ्य में
वायलिन पर धुन बजती है - ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में
भर लो पानी... मंच पर धीरे-धीरे प्रकाश बढ़ने लगता है। तभी एक ओर से भैंस पर बैठकर
एक नेता मंच पर आता है। उसकी गोद में चारे का हरा गट्ठर रखा है। उसने बिना बटन की
वास्कट और घुटनों तक लंबा जांघिया पहना हुआ है। सर के छोटे-छोटे बाल सन की तरह
सफेद हैंं। भैंस पर बैठे-बैठे वह हाथ, जोड़, सर नवा कर कहता
है...)
नेता नंबर दो- जो रास्टर की जनता को दल-दल से
निकाल कर मुक्खधारा में असनान कराती हैं, जिन्होने अब भंइसिया को ही अपना बाहन बना लिया है, जिनकी कलाई पर घड़ी बंधी है,
जो एक हाथ में हंसिया, दुसरे में हंतोड़ी,
तिसरे में ललटेनिया और चौथे में तीर कमनिया पकड़ी हैं, जिनकी दिरिस्टी पड़ते ही हमरी बंड़ी, पर लगे चारा गोबर के सगरे दाग छूट गये, जो सइकिलिया पर बैठ राच्छसन का वइसे ही रौंंदती
हैं जइसे कि जंगली हांती कमल के फूलन से भरी पोखरिया को मथे देता है- अइसी बिंधबासनी ‘माई’ को हम
सीस झुका कर परनाम करता हूं...
(फिर दर्शकों की तरफ देखकर), ... हे माई, हमने प्रेझीडेंट को भी आपके आगे झुका दिया।
ई पराफिट का बिल वापस किये हैं? इत्ती हिम्मत ? अरे आप ई
जनता-जनारदन के दरबार में आ गयी हैं, दूद का दूद पानी का
पानी हुइ जाई। दुनिया भी देख ले कौन
सही था कौन गलत? हमें पूरा जनकारी है कि आप नेशनल इंटरस्ट
में ही रेझिगनेसन देइबे करती हैं। आप को जिताना है लोकतंतर को बचाना है। बोलो
डेमोकरेसी-जिंदाबाद।
तीसरा दृश्य
(मंच पर धीरे-धीरे अंधेरा छा जाता हैं।
नेपथ्य में बम धमाकों की आवाजेंं, रोने-चीखने और भगदड़ की
आवाजें, फिर टी.वी. पर समाचार वाचक की आवाज-प्रधानमंत्री के
दौरे के बाद अब तक तीन सौ किसानों ने आत्महत्या की, फिर
धीरे-धीरे मंच पर प्रकाश। लौह महिला चुनावी दौरे पर। भारतीय साड़ी पहने, पल्लू से
पूरा सर ढके, अधनंगी भीड़ से घिरी-समस्याएं सुनती हुई। भीड़ से
किसी महिला के रोते बच्चे को अपनी गोद में लेती हुई, आंखों
में भरे आंसू पोछती हुई।
(मंच पर सूत्रधार आता है। दर्शक से मुखातिब होता
है-)
सूत्रधार-आप देख रहे हैं न? ये है जनता की अदालत। ये भूखे-नंगे, अनपढ़, दबे-कुचले लोग करेंगे एक अहम फै़सला। यहीं से तय होगा कि कुछ असरदार लोग
लाभ के कई पदों पर एक साथ बैठ सकते हैं कि नहीं? काश! कि ये
लोग सही फै़सला दे पाते...
(तभी सूत्रधार को धकियाता आरती की थाली लिये
एक आदमी, महिला की तरफ बढ़ता है। उसका ऊपर का शरीर नंगा है।
नीचे घुटनों तक की धोती है। माथे पर तिलक लगा है। उसे देख सब लोग रास्ता दे देते
हैंं। वह महिला के सामने पहुंच आरती का थाल घुमाता है)
आरती वाला- जिनकी सास त्यागी थी, सास के दादा-दादी, माता-पिता त्यागी थे, जिनके ससुर, जिनके पिता, जिनके
देवर त्यागी थे, जिनकी देवरानी त्यागी हैं, देवरानी के बच्चे त्यागी हैं, जिनके अपने बच्चे
त्यागी हैंं, जिनकी दुघमुंही नातिन त्यागी हैं, जो खुद साक्षात् त्याग की प्रतिमा हैं- उन त्याग स्वरूपा परमेश्वरी को
मेरा प्रणाम । करपूर गौरं, करूणावतारम् संसार सारम...
भीड़ चीखती है-हमारे नेता-जिंदाबाद, जब तक सूरज चांद रहेगा, आप चुनाव जीतती जायेंगी।
आपके बाद आपके बच्चे नाती-पोते, पड़पोते चुनाव जीतते रहेंगे. आपके महान त्यागी खानदान की कुरबानियां हम भुला
नहीं पायेंगे...
(फिर धीरे-धीरे प्रकाश मंद होता है। नेपथ्य में
गीत सुनाई पड़ता है-ए मेरे वतन के लोगों, जरा आंख
मे भर लो पानी, जो शहीद हूए हैं उनकी, जरा
याद करो कुरबानी..., ‘हम होंगे कामयाब-हम होंगे कामयाब एक दिन... ‘जीतेगा भई
जीतेगा’, पंजे वाला जीतेगा... ‘बोट डालने जाना है, देश को बचाना है...’)
अचानक पटाखे छूटने की आवाज़ें आती हैं।
ज़िंदाबाद के नारे गूंजने लगते है। धीरे-धीरे मंच पर प्रकाश सुबह की धूप-सा फैल
जाता है। मोटे, थुलथुले, नंगे सर,
कुरते-पाजामे पहने खद्दरधारियों की ज़िंदाबाद के नारे लगाती भीड़।
सोने के सिंहासन पर बैठी महिला मुस्करा कर हाथ हिला रही है और उंगलियों से “V” का चिन्ह बना रही है। उसका गला
फूल मालाओं से भरा है। साड़ी का पल्लू नीचे खिसक गया है। बाब कट बाल अब साफ दिखाई
पड़ते हैंं। (तभी नेता नंबर तीन महिला की ओर मुंह करके जोर-जोर से दहाड़ता है …..
)
नेता नंबर तीन-हम जानते थे भारत माता,
जनता आपको रिकार्ड मतों से जिताकर फिर वापस भेजेगी। दुश्मन बुरी तरह
हारेगा । जमानतें तक ज़ब्त होंगी अपोजीशन की। ऐसा चमत्कार आज की तारीख में आपके
अलावा और कौन कर सकता है।
(तभी सूत्रधार मंच पर आता है। उसके हाथ में
कागज का टुकड़ा है।)
सूत्रधार-दर्शकों ! हैरानी की बात है कि एक
नौजवान, जान हथेली पर रखे बाहर घूम रहा था। सुरक्षा कर्मियों
से नजरें बचाकर वह बार-बार मुझे अपने पास बुला रहा था। मैं उसके पास गया तो उसने
यह कागज मुझे दिया और कहा कि मैं इसे पढ़कर
आपको सुना दूं। सुनिये-(कागज पढ़ते हुए)- इस उपचुनाव मे सरकारी खजाने से करोड़ोंं रूपया पानी की तरह बहाया गया। ये पैसा इनकम टैक्स के रूप् में सरकारी कर्मचारियों
के वेतन से काटा गया था। वह भी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क और सुरक्षा
के नाम पर। इस देश के भाग्य विधाताओं से कौन पूछेगा कि जनता की गाढ़ी कमाई को इस तरह क्यों बरबाद किया गया ?...
(तभी नेता सूत्रधार को धक्का देकर मंच से
बाहर फेंक देते हैं और एक भयानक शक्लवाला नेता दर्शकों की तरफ मुड़कर कहता है...)
नेता नंबर चार-ये बेवकूफ क्या इतना भी नहीं
जानते ? अरे नेताओं से भी कहीं हिसाब मांगा जाता है?
(एक अन्य चीखता है)
नेता नंबर पांच-सरकारी पैसा बहाने का हमें
जन्मसिद्ध अधिकार है। अपने अधिकरों का हम, हनन न होने देंगे।
देश मे सरकार चाहे किसी की भी हो, उसमे होंगे तो हम नेता ही !
पक्ष और विपक्ष सभी के नेताओं को पूरी छूट है कि पबलिक की गाढ़ी कमाई को जैसे मर्जी
आए, वैसे इस्तेमाल करें । कोई पबलिक वाला बोला तो उठवा लेंगे.
(कैमरा महिला के प्रसन्न चित्त चेहरे पर आकर ठहर जाता है अपने पैरों के पास पड़े
इस्तीफों को उठाकर नेताओं की भीड़ पर फेंकते हुए कहती है...)
महिला-हमने राष्ट्रपति की अवहेलना जरूर की पर
राष्ट्र को बचा लिया।
अब मैं लाभ के कई पदों पर एक साथ बैठ सकती
हूं-यह जनता का आदेश है। आप लोग अपने-अपने त्याग-पत्र फाड़ दें। चुनावी थकान
मिटाएं। खा-पीकर गाढ़ी नींद लें। आगे और लड़ाई है।
(परदा गिरता है। चोट खाया सूत्रधार मंच पर आता
है। नेपथ्य से आवाज आती है-भारत माता की-जै। सूत्रधार दर्शकों से)
- देखा आपने?
त्याग नाटिका का ये पहला अंक था। ऐसे नाटक इस
जनपथ स्थित आपेरा हाऊस में होते रहते हैं। भविष्य में कोई अच्छा नाटक खेला गया तो
उसे भी आप तक जरूर पहुंचाऊंगा। तक तक के लिए शुभ रात्रि।
प्रकाश धीर-धीरे मंद पड़ता है। नेपथ्य में
शहनाई पर मातमी धुन बजती है... ए मेरे वतन के लोगों, जरा आंख
में भर लो पानी... जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी...)
(समाप्त)
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