
“नो डैड अब ये कंट्री रहने लायक नहीं रहा” ।
युवराज बहुत गुस्से में था । हथेलियां मसलते हुए वह
बेचैनी से कमरे में चक्कर लगा रहा था । पीछे – पीछे बूढ़े पिता हाथ
में धोती का पल्लू थामे चक्कर काट रहे थे । साथ ही पुत्र को समझाते भी जा रहे थे-
–ऐसा नहीं कहते बेटा । जिस थाली मे खाते हैं,
उसमे छेद नहीं करते । जरा
सोचो इस देश ने हमें क्या कुछ नहीं दिया ? करीब चालीस साल हो गए हमे सत्ता का सुख भोगते हुए । गरीबों के मसीहा की इमेज मैंने यहीं बनाई । यहां के ज़्यादातर कल – कारखाने बंद करवाकर औद्योगिक क्रांति की शुरूआत भी
हम लोगों ने यहीं से की । उद्योगों का विरोध करते करते तुम्हेंं उद्योगपति भी बना दिया । इतने भोले-भाले मासूम लोग हमें और किस कंट्री में मिलेंगे ?
पिता
की बात में पाताल सी गहराई जरुर थी, पर युवराज गुस्से की इंपोर्टेड कार पर सवार था – आई कांट
बिलीव एनी मोर डैड । आप अपोज़ीशन के लीडर हैं। इतने पावरफुल होकर भी आपके बेटे को कार इंपोर्ट
में ड्यूटी पे न करने का गुनाहगार बनाया गया ! मीडिया मे उसकी इंसल्ट की
गई ! जब इस बैकवर्ड देश में ढंग की लग्जरी कारें बनती ही नहीं, तो बंदा कहां से मंगाएगा
! और जैसे ही वह इंपोर्ट करता है तो उसे चोर कहा जाता है । सेकेंडहैंड बता कर नई कार का टैक्स मैंने बचा भी लिया था तो क्या
देश बेच दिया था ? अचानक ये आसमान क्यों
टूट पड़ा ? अरे ये स्कैंडल
भी कोई स्कैंडल था ? नो डैड ! ये तो सीधे सीधे मेरी इन्सल्ट है । मैं करोड़ो – अरबों की
हैसियत वाला बिजनेसमैन ! दो – चार लाख के
मामले में लपेटा जाऊं ! ये सब मुझे और आपको बदनाम करने की साजिश है । जब मुझे इतना
सफोकेशन हो रहा है तो आपको कितना होता होगा ? ऐसे भारत में आपके
आम आदमी कैसे रहते होंगे डैड ?
युवराज
का गुस्सा अब भी उबाल पर था । पर नेता जी
खुश थे कि कम से कम बेटा बोलने तो लगा था
।
पुत्र – स्नेह में डूबे पिता ने युवराज के कंधे पर हाथ रखते
हुए कहा – तुम्हें अमरीका, ब्रिटेन में कारोबार बढ़ाते देख मुझे कितनी खुशी होती
है ? कभी सोचा क्या ? कितना अच्छा लगता है ? किसी
जमाने मे गरीब के घर मे पैदा हुआ एक मामूली लड़का जो दो वक्त की रोटी के लिए भी तरसता
था, कैडर ज्वाइन करने के बाद कैसे ऊपर उठता गया ? और आज उसी सर्वहारा का बेटा विदेशों मे बड़े बड़े
इंडस्ट्रिअलिस्ट्स के साथ उठता बैठता है ? पर बेटे, पिता होने के साथ साथ नेता भी हूं
न । चाहता हूं कि बिजनेस के साथ साथ तुम मेरी विरासत भी संभालो । मैंने जिंदगी भर की मेहनत- मशक्कत के बाद अपने
इलाके में सर्वहारा का ऐसा सॉलिड वोट बैंक बना दिया है, जो कभी धोखा नहीं दे सकता । मेरे बाद तुम
जिंदगी भर तक चुनाव जीतते रहोगे । तुम्हारे बाद मेरे पोते – पड़पोते भी जीतते और
राज करते रहेंगे । तुम्हें जरा – सी भी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी । सिर्फ परचा भरना
है, और फिर सीधे मंत्री पद संभालना है । बोलो, बेटा क्या बुराई है इसमें ?
बच्चे विदेशों मे बिजनेस संभालें, तुम देश मे सत्ता
संभालो ! हैं ?
युवराज की वणिक
बुद्धि सक्रिय होने लगी । मुट्ठियों का कसाव ढीला पड़ने लगा । निचला होठ दांतों से
दबाकर वह कुछ सोचने लगा । फिर मुस्करा कर बोला – मैं आपकी वीकनेस जानता हूं डैड ।
यू लव योर सन एंड ग्रेंड संस वैरी मच । मगर मिनिस्टर बनने के बाद ये गरीब, ये सर्वहारा मुझे परेशान भी तो करते रहेंगे । आज ये प्राब्लम, कल वो
प्राब्लम । मेरी फ्रीडम तो खत्म हो
जायेगी । कब घूमूंगा अराउंड द वर्ड ?
युवराज की शंका का
निराकरण करते हुए पिता बोले – अब जब गरीब रहेगा ही नहीं तो तुम्हें परेशान करने
आयेगा कौन । जरा ध्यान से सुनो । अब हमनेे अमरीका और ब्रिटेन को गाली देना छोड़ दिया है । पहले हम इन्हें साम्राज्यवादी
कहा करते थे । पर वह शुरु शुरु की बात थी । आज हम खुलकर कहते हैं कि साम्राज्यवाद
जैसी कोई चीज होती ही नहीं । हमने अपने ग्रास रूट कैडर को भी इंडायरेक्टली समझा दिया
है कि नीओकैपिटलिज़्म ही आज के संदर्भ मे सोशलिज़्म है. अब हम यह भी मानने लगे हैं कि स्वदेशी पूंजी और विदेशी
पूंजी- ये भ्रामक शब्द हैं। पूंजी तो पूंजी है,
चाहे स्वदेशी हो या विदेशी ! जब देश मे पूंजी बची ही नहीं, सारी स्विस बैंकों
मे चली गई या टैक्स हेवेन कंट्रीज़ मे अलोप हो गई या फिर पनामा स्कैंडल की भेंट चढ़ गई
तो विकास कैसे होगा ? विदेशी पूंजी से ही तो होगा न ?
अब जो पूंजी लगाने सात समुंदर पार यहां आएगा वो चार पैसे कमाएगा भी ! हमने काडर को अच्छी तरह समझा दिया है कि हमारे देश का
विकास विदेशी पूंजी के बगैर हो ही नहीं सकता । इसीलिए कामरेड ! विदेशी पूंजी का विरोध
अब दिखावे के लिए करो । हम लोग दुनिया के
सभी अमीर देशों में जाकर वहां की सरकारों और उद्योगपतियों से देश में पैसा लगाने
की हाथ जोड़ कर प्रार्थना कर चुके हैं । गरीबों के हजारों एकड़ खेत हमने पहले ही खाली करवा लिए थे । अब वे जमीने विदेशी पूंजीपतियों के हवाले भी कर दी
हैं बेटा । सारा टेंशन निपटा दिया है ।
युवराज ने बात ध्यान से सुनी । फिर कुछ देर विचार किया और
बोला – अरे डैड, कहां यू.एस. के ब्यूटीफुल कैसिनों, कहां पेरिस का क्यूट एफिल
टॉवर, ब्रिटेन के पिकेडिली अंडरग्राऊंड मेट्रो स्टेशन, म्यूजियम, हालैंड की सपनों की दुनियां, साफ – सुथरे गांव, नीले
मोतियों से समुद्र तट, आल्पस की बर्फीली पहाड़ियों के नजारे – और कहां गंदगी के
ढेरों से अटा पड़ा, बदबू से भरा, गंदे चीकट, भूखे नंगे, अनपढ़ लोगों की भीड़ से भरा
आपका ये भारत । है कोई कंपेरिजन । नो डैड । यहां रह पाना बहुत मुश्किल है । वी
कांट एंजाय द लाइफ इन योर भारतवर्ष ।
बूढ़े पिता ने फिर भी
हार नहीं मानी । उन पर वही विद्रोही नेता सवार होने लगा । बोले – जिस नौकर ने तुम्हारी इज्जत से खिलवाड़
करने की हिम्मत की है, उसे नौकरी से हाथ धोना ही होगा । भला हमारी दया से चलने वाली
ये सरकारें हमारा ही अपमान करें ! हमारी बिल्ली
, हमीं पर म्याऊं ? अब ये सरकार और ज्यादा नहीं चल सकती । ऐसी
जनविरोधी सरकार को जाना ही होगा ।
नब्बे वर्ष की उम्र में भी नेता जी के दिल और दिमाग का
संतुलन पूरी तरह कायम था । मलमल के कुरते की जेब से मोबाइल निकाल कर उन्होंने
नंबर मिलाया और गरजे
–नो मैडम, इतने दिन
से आपने रोजगार गारंटी अधिनियम लागू नहीं किया । इतने बीमार पीएसयू अब तक नीलाम
नहीं किये । फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट अब तक नाम मात्र को ही आ सका है ।
आपकी नकारा सरकार को अब और सपोर्ट कैसे किया जा सकता है ?
दूसरी तरफ से आवाज आई – सर, उस बेवकूफ अधिकारी को सस्पेंड कर
दिया गया है । वह भी इम्मीडिएट इफेक्ट से । रोजगार बिल इसी वीक मे इंप्लीमेंट हो जायेगा । यंग कॉमरेड को जो मानसिक
कष्ट पहुंचा, उसकी कंपंसेशन के ऑर्डर दे दिये गये हैं । आप यकीन कीजिये ।
नेता जी के चेहरे पर मुस्कराहट फैल गयी । बोले – ठीक है, ठीक है
मैडम, पर कान खोल कर सुनिए - ये आखिरी जीवन दान है ‘! लास्ट चांस ! टेक केयर ! बेस्ट ऑफ लक ।‘
समाप्त
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