कसम खाए , करे वादे, वफा का वास्ता
भी दे ।
बेवफा फिर भी कोई हो जाए तो क्या
कीजिए ॥
अब तलक जो खेलते आए थे होली रंग से ।
खून
से अब खेलने लग जाएं तो क्या कीजिए ॥
आपकी दाढ़ी पे तिनका देख कर चिपका हुआ ।
आपकी नीयत पे शक हो जाए तो क्या कीजिए
॥
मुखौटे और मुख में फर्क होता है जनाब
।
फिर
भी धोखे में कोई आ जाए तो क्या कीजिए ॥
लगा कर आसमानों पर बयानों की झड़ी ।
वे जमीनों पर बरस पाएं न तो क्या
कीजिए ॥
दिल निहायत व्यक्तिगत सम्पत्ति होता
है ।
किंतु
कोई दिल चुरा ले जाए तो क्या कीजिए ॥
अंधेरी रात हो और बस्तियों के गिर्द
लपटें हों ।
नींद से फिर भी न वो जग पाएं तो क्या
कीजिए ॥
आपका दुनियां में ग़र कुछ है तो वो है
दोस्त ।
दोस्त ही दुश्मन अगर बन जाए तो क्या
कीजिए ॥
दवा भी काम करती है बशर्ते ज़ख्म ताज़े हों ।
ज़ख्म ही नासूर ग़र बन जाए तो क्या
कीजिए ॥
जुल्फों के साए में ख्वाहिश चैन
की पाले हुए ।
उलझनों में वो अगर फंस जाएं तो क्या
कीजिए ॥
इमारत को धमाकों से हिला कर फिर कोई
हिफाजत चाहने लग जाए तो क्या कीजिए
॥
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