अजीब परिस्थिति
उत्पन्न हो गई थी यमलोक में। चित्रगुप्त बही खाते पर नज़रें गड़ाए थे तो कालपाश हाथ में लिए गुस्साए यमराज सिंहासन पर बैठे थे। सामने मुंह नीचा किए यमदूत हाथ बांधे खड़े थे। बगल में खड़ी कुछ
आत्माएँ उत्सुकता से सारे घटनाक्रम को देख रहीं थीं।
कालपाश फटकारते हुए
यमराज चीखे-बोलते क्यों नहीं ? समय से
पहले ये आत्माएँ यहां कैसे लाई गईं ?
यमदूत बोले- क्षमा
करें महाराज, इन आत्माओं को हम नहीं लाए ।
यक़ीन न हो इन्हीं से पूछ लीजिए ।
यमराज दहाड़े-
‘सरासर झूठ है। आत्मा शरीर से खुद नहीं निकलती। उसे मेरी अप्रूवल लेकर तुम लोग
निकालते हो।’
फिर कुछ सोचकर
उन्होंने सामने खड़ी आत्माओं से पूछा- सच-सच बताओ आत्माओं,
तुम्हें ये यमदूत ही निकाल कर लाए थे न ?
‘नही महाराज- पहली आत्मा बोली- ‘आपके दूत मुझे नहीं लाए ।’ मैं खुद
शरीर छोड़कर यहां पहुंची हूं इंसाफ़ मांगने ?
यमराज चौंके-
‘इंसाफ़ ? कैसा इंसाफ़ ? क्या
अन्याय हुआ तुम्हारे साथ ?’
कहते हुए दूतों को
अभयदान दिया यमराज ने। वे सहर्ष अपने-अपने काम पर लौट गए ।
इधर पहली आत्मा
कहने लगी-‘महाराज, मैं पृथ्वीलोक के इंडिया
नामक देश में शासन कर रहे एक मंत्री की आत्मा हूं....
इस पर तत्काल आत्मा
की बात काटते हुए यमराज बोले- ‘तो यहां क्या कर रही हो ?
तुम्हारे बिना तो मंत्री कोई भी काम नहीं कर पाते होंगे। जाओ ! इसी
वक़्त जाकर मंत्री के शरीर में प्रवेश कर जाओ। वरना लोग जान जायेंगे कि मंत्री की
आत्मा मर चुकी है।
पहली आत्मा-मगर
महाराज, मंत्री मेरी सुनता ही कहां है ? पिछली जून से कपास उगानेवाले पांच सौ किसान आत्महत्या कर चुके हैं,
आठ-दस प्याज उगानेवाले भी प्राणों की बलि चढ़ा चुके, मगर मंत्री का दिल नहीं पसीजा। मैं चीख-चीख कर आवाज देती रही कि इस घोर
अन्याय को रोको। नहीं रोक सकते तो इस्तीफ़ा दे दो। लेकिन इसने मेरी चीख-पुकार कभी
नहीं सुनी। उल्टे मुझे कहने लगा-साली आत्मा पागल हो गई है, इस्तीफा
देने को कहती है। पगली इतना भी नहीं जानती कि पहले तो मानव-योनि ही मुश्किल से
नसीब होती है। उस पर मंत्री पद तो जाने कितने जन्मों के पुण्यों से मिलता है।
ऐसे-कैसे इस्तीफा दे दूं ? मेरे साथवालों ने तो दीन-इमान,
लाज-शरम, धर्म-कर्म, हया-दया
सारे आइटम बेच दिए, यहां तक कि-आत्मा भी। मैंने कम से कम तुझ
करमजली आत्मा को तो नहीं बेचा ? इतना बड़ा त्याग क्या कम
है ?
यमराज- मंत्री से
एकाध गलती हो भी गई थी तो भी तुम्हें उसका
शरीर छोड़कर नहीं आना चाहिए था,
आत्मा जी। आफ्टर आल दिस इज़ अगेंस्ट प्रोटोकाल यू नो ?
पहली आत्मा- इसे आप
एकाध ग़लती कहते हैं यमराज ! मानव में अगर मानवता ही नहीं बची तो बचा क्या ?
यदि रूपया-पैसा, ज़मीन-जायदाद ही सब कुछ है तो
फिर आपके-हमारे होने या न होने का क्या अर्थ ? इसका मतलब
सांख्य, वेदांत, मीमांसा, योग आदि दर्शन झूठे हैं। सत्य है तो सिर्फ चार्वाक दर्शन, यावज्जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्। भस्मी भूतस्य देहेषु कोत्र पुनरागम ? यदि भौतिक विश्व ही सत्य है तो आपका यमलोक भी झूठा हुआ ? मैं भी झूठी हूई ? तो फिर सत्य क्या है यमराज जी ?
बात हाथ से फिसलती
देख यमराज बोले-‘खैर ! अब जब तुम यमलोक आ ही गई हो और वापिस मंत्री के शरीर में भी नहीं जाना
चाहती तो गेस्टहाउस में जाकर आराम करो। कल बोर्ड मीटिंग में ब्रह्मा,
विष्णु, महेश आदि की उपस्थिति में तुम्हारा
केस पुटअप करूंगा।’
इसके बाद यमराज
दूसरी आत्मा से बोले- हां ! अब आप बताइए, कहां
से आना हुआ, और ऐसी क्या विपत्ति आन पड़ी थी कि बिन बुलाए,
वक्त से पहले चली आईं ?
दूसरी आत्मा- यमराज
जी, चांस की बात कि मैं भी पृथ्वी-लोक में,
इंडिया के एक भूमाफ़िया की आत्मा हूँ। यह शख़्स ग़रीब किसानों को ऊँचे
सूद पर कर्ज़ देता था। जब किसान क़र्ज न
लौटा पाता तो ये उनकी ज़मीन अपने नाम करा लेता। सब तरफ से नाउम्मीद किसान आखिर हार कर आत्महत्या कर लेता।
यमराज – हे आत्मा
जी, क्या तुमने भू माफ़िया को कभी आवाज़ नहीं
दी ?
दूसरी आत्मा- क्यों
नहीं यमराज जी, कई बार आवाज दी। पर वह बिगड़
जाता और उल्टे मुझे समझाने लगता- देख आत्मा की बच्ची, ज़्यादा
इमोशनल होने की ज़रूरत नहीं। मेरे पड़ोसी की आत्मा से सबक़ सीख। वह अब तक पचास से
ज़्यादा किसानों को ऊपर पहुंचा चुका, करीब ढाई सौ एकड़ धरती
हड़प चुका, पर उसकी आत्मा ने चूं तक न की। कराहना, चीखना तो दूर की बात है। और एक तू मेरी आत्मा है ! तेरी जैसी गधी आत्मा की आवाज़ सुन-सुन कर मैं अब
तक सिर्फ तीस किसान निपटा सका। ज़मीन भी सिर्फ़ एक सौ बीस एकड़ जोड़ पाया।
फिर गहरी सांस
खीचंकर दूसरी आत्मा बोली-‘तब आप ही बताइए यमराज जी,
ऐसे फौलादी, मशीनी इंसानों के भीतर मैं कैसे
रह सकती थी ?’
यमराज- क्या भारत
वर्ष इतना मटीरियलिस्टिक हो चुका ? क्या
मानवीय संवेदनाएं वहां ख़त्म हो गई हैं ?
दूसरी आत्मा-यमराज
जी, एक बार आप जरा चलकर तो देखिए । आपके
नरकों की यातनाओं से अब कोई नहीं डरता। पैसा ही भगवान हो गया है। मानवता, करूणा, अहिंसा, दूसरों की भलाई
जैसे विचार अब सिर्फ़ इतिहास में पढ़ाए जाते हैं। पैसे के पीछे भाई, भाई का खून कर देता है। ईमानदारी और सच्चाई की, अब
वहां कोई कद्र नहीं करता। जो जितना बड़ा दगाबाज़, झूठा,
भ्रष्ट और धूर्त है,
वह उतना ही कामयाब है। हे यमराज
जी, इंडिया के लोगों का स्वभाव बड़ा ही जटिल हो गया है।
दुनिया भर के ग़लत काम करके पहले वे बेहिसाब दौलत जोड़ते हैं, फिर
भागवत सप्ताह या भगवती जागरण करा कर धर्मात्मा बन जाते हैं। ऐसे ढ़ोंगी भक्तों के
हृदयों में कोई आत्मा आख़िर कब तक रह सकती है ?
यह सुनकर यमराज को
गहरा दुःख पहुंचा। भूमाफ़िया की आत्मा को धीरज बंधाते हुए उन्होंने कहा-हे निष्पाप
आत्मा, तुम्हारी पीड़ा जायज है। ऐसे
हिप्पोक्रेटों की देह में निवास करना, हवालात में रहने से भी
अधिक कष्टप्रद है। तुम्हारा केस भी कल की बोर्ड मीटिंग में पुटअप होगा। अतः तुम भी
गेस्ट हाउस जाकर विश्राम करो।
अब केवल एक आत्मा
और बची थी।
यमराज-कहिए आत्मा जी, आप
कहां से तशरीफ़ लाईं ? आपके इस तरह खूंटा तुड़ाकर भाग आने के पीछे कौन-सी
मजबूरी थी ?
तीसरी आत्मा-हे
यमराज जी, मैं एक ऐसे नेता की आत्मा हूं
जो दो तिहाई उम्र बीतने तक, सर्वहारा, आम आदमी के हक़ों की बात करता रहा। जिसने
लाल झंडे वाली यूनियनें बनवा-बनवा कर जहां उद्योग-धंधों की तालाबंदी का अध्याय
लिखा तो, भूमि-सुधार के क़ानून बनाकर चालीस बरसों तक सत्ता का
सुख भोगा। लेकिन आज वही शख्श श्रम सुधारों के नाम पर मजदूरों के हड़ताल के हक को
ग़ैर क़ानूनी बताता है। मार्क्स, लेनिन या माओ की विचारधाराओं
से खाद- पानी पा कर जो बड़ा हुआ, आज वह उन्हीं विचारधाराओं की
खिल्ली उड़ाता है। छंटनी से दाने-दाने को मोहताज हुए फ़ैक्टरी मज़दूर अब इन्हें दिखाई
नहीं पड़ते। अपने खेतों से बेदखल किये गये, छोटे किसानों की
पीड़ा इन्हें अब महसूस नहीं होती। उत्तर प्रदेश के बहराइच में बाईस ग़रीब लोग भूख से लड़ते-लड़ते
मर जाते हैं तो ये सदन में एक शब्द भी नहीं बोलते। इनके जिस्मों पर चरबी देखकर कौन
कहेगा कि ये लुटे-पिटे, समाज के आख़िरी पायदान पर टिके सर्वहारा के नेता हैं ? ऐसे दो मुंहें सांपों के भीतर मै कैसे रहती यमराज जी ?
यमराज-क्या तुमने
कभी उसे चेतावनी नहीं दी ?
तीसरी आत्मा-क्यों नहीं यमराज जी ! मैंने कई बार वार्निंग इश्यू
करते हुए कहा-अगर तुमने सीधे-सादे भोले-भाले लोगों को धोखा देना बंद न किया तो मैं तुम्हारी देह छोड़ यमलोक
चली जाऊंगी। इस पर नेता बोला-हम कौमनिस्टवाले हैं,
आत्मा वात्मा को नहीं
मानते। बड़ी मुश्किल से जिन्दगी भर लाठियां खाकर, बुढ़ापे
में सत्ता मिली है। तेरे चक्कर में कैसे गंवा दें। तुझे मेरे शरीर में रहना मंजूर
नहीं तो कल की जाती आज चली जा, और आज की जाती अभी चली जा।
यह सुनकर यमराज का चेहरा तमतमा उठा,
वे तत्काल भैंसे पर बैठ क्षीर सागर पहुंचे जहां भगवान विष्णु शेषनाग
की शय्या पर लेटे गहरी नींद मे सोए हुए थे। यमराज ने उन्हें उठाया, अभिवादन किया और कहा-‘हे विश्व के पालनहार, जागिए ! आपके चौबीसवें अवतार की पृथ्वी लोक में
परिस्थितियां बन चुकी हैं। अब और देर न कीजिये। वरना लोगों का आप पर से विश्वास उठ
जायेगा।’
(समाप्त)
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