कुत्तों का इलाज


हर कोई हैरान था। बात ही ऐसी थी। ऐसे कई नाजुक मौके पहले भी आए थे, जब छुट्टी के रोज बैठक बुलाई जा सकती थी । कम्पनी के बढ़ते खरचों व गिरते मुनाफे पर या स्टोर से कीमती पुर्जे चोरी होने पर या फिर ऑफशोर के एक्स्प्लोरेशन प्लेटफॉर्म मे आग लग जाने पर। फर्जी  सिफ़ारिशी  चिट्ठियों पर  प्रमोशन पाने व फॉरेन ट्रेनिंग लेने वाले कुछ धोखेबाजों के लिए भी एमर्जेंसी बैठक बुलाई जा सकती थी।  पर कभी नहीं बुलाई गई ।

बैठक बुलाए जाने के पीछे इस बार खास वजह थी ।  एक तो राज्य में चुनाव होने वाले थे, दूसरे छब्बीस जनवरी की परेड सिर पर थी । परेड की सलामी लेने चेयरमैन खुद आ रहे थे ।

 पिछली बार पंद्रह अगस्त की परेड मे आवारा  कुत्तों ने भारी हड़कंप मचाया था । चेयरमैन काफी नाराज़ हुए और वार्निंग दी थी कि रिपब्लिक डे तक कुत्तों का इलाज  हो जाना चाहिए। नही तो सबकी नौकरी जाएगी ।   सुन कर पूरे दफ्तर को जैसे सांप सूंघ गया था।   सब को नौकरी की फिक्र सताने लगी।  परेड में कुल चार दिन बचे थे, और आवारा कुत्तों की अच्छी खासी तादाद स्टेडियम के आस पास देखी जा रही थी।

वक्त बहुत कम था। शनिवार और इतवार की छुट्टियां आने से सिर्फ दो ही दिन बचे थे। आनन फानन में एसएमएस पर बैठक की सूचना भेज दी गई।  बैठक अटेण्ड  करना जरूरी कर दिया गया। 
 
बैठक की शुरूआत करते हुए चीफ बोले – माइ डियर फ्रेंड्स !  परेड के दौरान स्टेडियम में आवारा कुत्तों का झुंड न जाने कहाँ से आकर डिस्टर्ब करने लगता है। यह झुंड न तो इंडिपेंडेंस डे की परेड चैन से होने देता है, और न रिपब्लिक डे की। हमारे सीएमडी ने इस पर सीरियस कंसर्न लिया है ।  आज की बैठक का यही एजेंडा है कि इन कुत्तों से कैसे निपटा जाए ? आप सभी अपने अपने आइडिया दें, ताकि कोई प्रैक्टिकल हल निकल सके।

सबसे पहले कम्युनिकेशन के प्रभारी मिस्टर भट्ट बोले - सर, ये कोई चौदह पंद्रह कुत्ते होंगे । एक झुंड में रहते हैं। इनमे एक कुतिया भी है, जिसने हाल ही में मुझे काटा था। 

मैटेरियल मैनेजमेंट के इंचार्ज मिगलानी बोले- सर, उस कुतिया के बच्चों को डॉग कैचर्स पकड़ कर ले गए थे । तभी से वह गुस्से में बिफरी हुई है। हर आने-जाने वाले को काटती फिर रही है। उसे तो गोली मार देनी चाहिए।

इस पर चीफ ने हाथ उठा कर टोका – अरे भाई,  पशु अत्याचार विरोधी संगठन की एरिया चीफ को पता चल गया तो मुशकिल हो जाएगी। वे पहले ही गुस्साई हुई हैं कि कानून व्यवस्था की आड़ में बेगुनाह जानवरों को पीटा ही नहीं  मारा भी जा रहा है। 

एच आर  के इंचार्ज कलसी तैश में आ गए -  मारें नहीं तो क्या करें सर ।  स्टेडियम के चप्पे चप्पे पर ये आवारा खूंखार कुत्ते फैल चुके हैं। अकेले घुसने की हिम्मत नहीं पड़ती। 

चीफ ने सिक्योरिटी इंचार्ज की तरफ देख कर कहा- सजवाण जी इस पर क्या एक्शन लिया गया है?

सजवाण जी ने बताया- सर, वैसे तो ऑफिस कैंपस के बाहर भी आवारा कुत्तों के कई झुंड एक्टिव हैं, लेकिन उन पर हम एक्शन नहीं ले पाते। हाँ, भीतर से हमने कई बार डॉग कैचर्स से कुत्ते पकड़वाए हैं। ये फिर वापस आ जाते हैं सर ! समझ नही आता क्या करें?

चीफ ने कुछ देर सोच कर पूछा – क्या आपको पता है कि कुत्तों मे सूँघने की पावर बहुत ज़्यादा होती है। ये पंद्रह- सोलह किलोमीटर से भी लौट आते हैं। आप ने उन्हें कहाँ तक छोड़ा था ?

सजवाण जी  भी कुछ देर तक सोचते रहे, फिर बोले - अरे सर, हमने तो उन्हें करीब बीस किलोमीटर दूर जंगल में छुड़वाया था। वे फिर भी लौट आए। मेरी  राय में तो - इन्हें खाने मे जहर दे  देना चाहिए, ताकि ये मर भी जाएँ और हम पर मारने का आरोप भी न लग सके।  

चीफ ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि पब्लिक रिलेशन इंचार्ज  त्रिपाठी बोल उठे- सर, कुत्ते भी तो जीवधारी हैं।  उन्हें मारना क्या ठीक होगा ?

चीफ बोले-  तो तुम्हारी क्या राय है  ?

त्रिपाठी बोले-  कुत्तों को कम से कम सौ किलोमीटर दूर छोड़ दें तो वे नही लौट पाएंगे ।

तभी हॉस्पिटलिटी के इंचार्ज सूद बोले- सर, जब भी कम्युनिटी हाल में कोई प्रोग्राम होता है तो काफी खाना वेस्ट होता है। यही बचा हुआ खाना कुत्तों को अपनी तरफ खींचता है। मेरी राय मे तो बचे हुए खाने को गड्ढे मे दबा देना चाहिए। न खाना बचेगा, न कुत्ते आएँगे। दूसरे सर, कालोनी के कुछ दयालु लोग भी प्राब्लम करते हैं।   कुत्तों को रोज खाना देते हैं। कुत्तों को और क्या चाहिए । इन्ही धर्मात्माओं की वजह से  हमारी कालोनी में,  स्टेडियम मे, दफ्तर में जहाँ देखो कुत्ते ही कुत्ते हैं। हम अगर इन्हें पकड़ कर छुड़वा भी दें  तो  इन धर्मराजों  की मेहरबानी से कुत्तों की नई खेप आ जाएगी ।

चीफ ने बीच में टोकते हुए कहा- यह लोगों की आस्था से जुड़ा मामला है। हम  कुत्तों को खाना खिलाने से किसी को नहीं रोक सकते। और कोई सुझाव है किसी के पास  ?

कम्युनिकेशन के इंचार्ज भट्ट बोले  – सर, रिपब्लिक डे की परेड में सिर्फ तीन दिन बचे हैं। इतने सारे कुत्तों को पकड़ना, फिर सौ किलोमीटर छोड़ कर आना मुश्किल काम है । मेरी  राय में तो परेड से पहले कुत्तों को खाने की चीज़ों मे नशीली दवा मिला कर देना ठीक रहेगा। दो तीन घंटे ये बेहोश रहेंगे तो परेड ठीक ठाक निपट जाएगी।

बागबानी इंचार्ज द्विवेदी ने सुझाव दिया- सर,  कुत्तों को खूब शराब पिलाई जाए। जब ये झूमने लगें, तो इन्हें पकड़ कर किसी कमरे मे बंद कर दिया जाए।

राजभाषा विभाग के चौधरी ने सुझाव दिया- सर , मेरा सुझाव तो यह है कि परेड ग्राउंड के बगल वाले छोटे लॉन मे खाने पीने का काफी सामान रखवा दिया जाए. कुत्ते वहां जरूर जाएंगे.  जब सारे कुत्ते आ जाएं तो लॉन का गेट बाहर से बंद कर दिया जाए. एक आदमी भीतर रह कर कुत्तों के खाने पीने का इंतजाम देखता रहे. परेड ठीक ठाक खत्म हो जाए तो गेट खोल  दिया जाए. इस तरह सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नही टूटेगी.

चीफ के चेहरे पर मुस्कान फैल गई.  बोले, आइडिया अच्छा है. एनीमल क्राइम से भी बचे, कहीं दूर छोड़ना भी बेकार था !  और कुत्ते आ जाते. ये सबसे ठीक रहेगा. रिपब्लिक डे पर कुत्तों की भी दावत हो जाए तो क्या बुरा है ? फिर हॉस्पिटलिटी इंचार्ज से कहा – मिस्टर सूद, कुत्तों की दावत का मीनू टॉप प्रिओरिटी पर रखिये. आज ही फाइल मूव करके सैंक्शन ले लो. और हां ! मीनू क्या रहेगा ? 

सूद बोले- सर वेज रखना है या नॉन वेज ?

चीफ बोले, मेरे ख्याल से  तो वेज ठीक रहेगा. रोटी. दूध, दलिया या ज्यादा से ज्यादा आमलेट.  बीच मे पानी के दस बीस कटोरे. वैसे रोटियों की जगह देसी घी के नमकीन पराठे कुत्ते चाव से खाते हैं.

चीफ के सुझाव पर खूब तालियां बजीं. सबने एक स्वर से चीफ के कुत्ता ज्ञान की भूरि भूरि सराहना की.
सूद बोले- सर कितने कुत्तों का अरेंजमेंट  करना होगा ?

सिक्योरिटी इंचार्ज बोले- वैसे तो दस बारह कुत्ते ही देखे जाते हैं, मगर फंक्शंस मे तादाद बढ़ जाती  है.

 मिगलानी ने कहा- सर इंसानों को तो समझा सकते हैं मगर कुत्तों को कैसे बताएंगे कि ज्यादा मत  आना.  मैं तो कहता हूं कि कम से कम पचास कुत्तों का एस्टीमेट लेकर चलना ठीक रहेगा.  बीस पच्चीस बढ़े भी तो टेंशन नही होगी.

 कलसी बोले- सर, हमे एक्स्ट्रा सेफ्टी लेकर चलना चाहिए. एस्टीमेट पचास का है तो सौ का अरेंजमेंट करना चाहिए. एक भी कुत्ता छूट गया तो सारा प्लान चौपट हो जाएगा. खाना बचा  तो अगले रोज खिला देंगे. क्या दिक्कत है ?  

सिक्योरिटी इंचार्ज बोले – सर ये तो सिर्फ खाने का अरेंजमेंट हुआ. हमे डॉग कैचर भी मुस्तैद रखने होंगे. कुत्तों मे खाते वक्त अक्सर लड़ाई हो जाती है. ऐसा हुआ तो  डॉग कैचर उन्हे पकड़ लेंगे. कुत्ते परेड में डिस्टर्ब नहीं कर पाएंगे.

एच आर इंचार्ज बोले- सर दावत के दौरान कुत्तों मे अफरा तफरी न फैले इसके  लिए कुछ मैन पावर भी डिप्यूट करनी होगी. करीब दस मजबूत यंग लोग हायर करने पड़ेंगे. कुत्तों को प्रॉपर ट्रीटमेंट नहीं मिला तो वे भौंकने ही नही बल्कि लड़ने भी लगेंगे. घमासान  छिड़ी तो रोकना मुश्किल होगा. चेयरमैन तक आवाज़ जाएगी. सारा गुड़ गोबर हो जाएगा.

चीफ ने सिर हिलाया और बोले यस. वेरी करेक्ट. हम  चांस नही ले सकते. प्रोपोज़ल मे कम से कम दस डॉग कैचर्स तथा दस अच्छे तगड़े लोगों को हायर करना होगा.  जिनके पास कुत्तों को केटर करने का एक्सपीरिएंस हो, उन्हे प्रेफरेंस दी जाए. ऐसे लोग क्राइसिस मे अच्छा परफॉर्म करते हैं.

डॉक्टर कक्कड़ जो अब तक खामोश बैठे थे – बोले- सर अगर कोई कुत्ता उनमे पागल हुआ तो ?
चीफ सोच मे पड़ गए. फिर बोले- तुम्ही बताओ डॉक्टर, क्या करें ?

मुस्कराते हुए डॉक्टर बोले- सर एक वेटनरी डॉक्टर  एक हेल्पर और एक स्टॉक मैन भी हायर करना पड़ेगा. कम से कम पचास टिटनेस और रेबीज़ के इंजेक्शन तैयार रखने होंगे. एमेर्जेंसी मे कहां से लाएंगे ? बैंडेड , सेनीटाइजर, व एंटीसेप्टिक क्रीम  वगैरह भी रखना होगा.  

आखिर मे कॉरपोरेट कम्युनिकेशन के इंचार्ज त्रिपाठी ने भी सलाह दी- सर, मीडिया भी बुलाना चाहिए ताकि कुत्तों की दावत कवर हो जाए. कवरेज इस तरीके से करवाएंगे कि चारों तरफ आपके मैनेजमेंट के डंके बजेंगे.

यह सुझाव भी बेहतरीन था. मान लिया गया.  तो इस तरह हलवाई, मेडीसन, गार्ड्स, हेल्पर्स, मीडिया 
वगैरह के खर्चे भी प्रोपोजल मे जोड़ लिए गए. करीब पांच लाख रुपए का प्रोपोज़ल बना जिसे चीफ
ने हाथों हाथ पास कर दिया. छुट्टी मे ही फाइनेंस डिपार्टमेंट ने सारी फॉर्मलिटीज़ पूरी कर दीं.

अगले दिन पैसा निकाल लिया गया. पिछली बार  की तरह कुत्तों का हंगामा नहीं होगा और चेयरमैन गुस्सा नहीं होंगे- यह सोच कर ही चीफ खुश थे.

अगले दिन शाम को फिर मीटिंग हुई. चीफ ने हर  इंचार्ज से फीड बैक ली. सब कुछ ओके था.  
छब्बीस जनवरी की सुबह चेयरमैन परेड ग्राउंड पहुंचे. स्टेडियम खचाखच भरा था. हमेशा की तरह हिंदी अंग्रेजी मे लाइव कमेंटरी चल रही थी. चेयरमैन ने झंडा फहराया. और फिर खुली जीप मे बैठ कर सभी प्लाटूनों का निरीक्षण करने लगे.

अचानक स्टेडियम मे भगदड़ मच गई. गुस्से मे पागल बीसियों कुत्ते ऊंची आवाज़ों मे भौंकते हुए  स्टेडियम मे घुस आए और दौड़ भाग करने लगे.  प्लाटूनें तितर बितर हो गईं. स्कूली बच्चे जान बचा कर खाली कुर्सियों की तरफ भागे. अफरा तफरी मच गई.  चेयरमैन यह देख कर आग बबूला हो गए. सलामी की आधी अधूरी रस्म निपटा कर वह वापस लौट गए.

अगले दिन कुत्तों के इलाज वाली फाइल पर विभागीय जांच बिठा दी गई.

            जांच से कई हैरत अंगेज़ खुलासे हुए,  जैसे कि  पचास की जगह सिर्फ दस कुत्तों के खाने का इंतजाम था. दस गार्डों का कहीं अता पता न था. खाने मे देसी घी के नमकीन पराठों की जगह बासी, फफूंद लगी डबल ब्रैड की बीस पच्चीस स्लाइसें एक प्लास्टिक के टब मे पड़ी थीं.  दूध मे बने दलिये की जगह बीस लीटर पानी मे आधा किलो गेहूं का दलिया उबाल कर कटोरों मे रक्खा गया था. दूध के नाम पर आधा लीटर का  मिल्क पैकेट पचास लीटर पानी मे मिला कर प्लास्टिक की कटोरियों मे रखा गया था. आमलेट का कहीं नामो निशान न था. डॉग कैचर अभी तक  नहीं पहुंचे थे.  डॉक्टर हेल्पर, स्टॉक मैन दवाइयां भी गायब थीं.  दावत पर हुआ कुल खर्च  मुश्किल से पांच सौ रुपए था जबकि सैंक्शन पांच लाख ली गई थी.

 जांच अभी भी चल रही है

(समाप्त
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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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