कंप्यूटर और हिंदी ( भाग-7)


















                                                  
                                                   फोंट  (FONT) : 

 विश्व की सभी लिपियां कुछ निश्चित प्रतीक-चिन्हों (symbols) से व्यक्त होती हैं. शुरू मे ये प्रतीक चिन्ह मनुष्य के द्वारा हाथ से लिखे जाते थे. छपाई की कला के आविष्कार के बाद इन प्रतीक चिन्हों के प्रतिरूप बनाए जाने लगे, जिन्हें स्याही लगाकर छापा जा सकता था. पहले पहल ये प्रतिरूप लकड़ी से बनाए गए. चीन में लकड़ी के अक्षरों से छपाई दसवीं शताब्दी मे होने के प्रमाण मिलते हैं.

यूरोप मे पुनर्जागरण काल (रेनेसां) पन्द्रहवीं शताब्दी के आरंभ से शुरू हो गया था. तभी वहां पुस्तकों की छपाई के लिए  प्रिंटिंग मशीनें बनीं. इन मशीनों पर लकड़ी के अक्षरों से छपाई करना मुश्किल काम था, अत: अक्षर लकड़ी के स्थान पर सीसा धातु (lead) के बनाए जाने लगे.

मशीन से छपी पुरानी  पुस्तक का नमूना
धातु से बने अक्षरों को  फोंट नाम दिया गया.  कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के विकास  का एक लाभ यह हुआ कि अक्षरों के ग्राफिक प्रतिरूप भी विकसित कर लिये गए.  सॉफ्टवेयर द्वारा बने ये  ग्राफिक प्रतिरूप ही आज  फोंट कहलाते हैं.

फोंट मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं ट्रू टाइप फोंट (ttf), तथा ओपन टाइप फोंट (otf).

ट्रू टाइप फोंट (ttf)-   ये छपाई के बाद भी वैसे ही दिखाई देते हैं जैसे कि कंप्यूटर स्क्रीन पर दिखाई देते हैं । इन पर किसी  अकेली कंपनी का एकाधिकार नहीं है.  इनका  आकार  इच्छानुसार घटाया बढ़ाया जा सकता है. इनका रेसॉल्यूशन भी प्रिंटर के अनुसार बदला जा सकता है. इन फोंट्स का आविष्कार एप्पल कंपनी द्वारा 1991 में एडोब कंपनी के फोंट टाइप1 के सस्ते विकल्प के रूप में किया गया. इनका प्रयोग विंडो 95 ऑपरेटिंग सिस्टम तथा परवर्ती संस्करणों में किया जा सकता है.

ओपन टाइप फोंट (otf)- ये फोंट्स माइक्रोसॉफ्टतथा एडोबद्वारा संयुक्त रूप से विकसित किये गए हैंये ट्रू टाइप फोंट्स की ही विस्तारित कड़ी हैं. इनमें पोस्टस्क्रिप्ट आंकड़ों को प्रदर्शित करने की क्षमता होती है. ओपन टाइप फोंट भी ठीक उसी तरह इंस्टाल किये जा सकते हैं जैसे कि ट्रू टाइप फोंट्स.

फोंट्स की कोडिंग :    कोडिंग के आधार पर फोंट्स  दो प्रकार के होते हैं : नॉन यूनीकोड फोंट्स   यूनीकोड फोंट्स

नॉन यूनीकोड फोंट्स (Non Unicode Fonts) :   हर देश ने अपनी लिपि के चिन्हों को कंप्यूटर पर दर्शाने के लिए  चिन्हों की  अपनी निजी कोडिंग की,  अर्थात लिपि के हर चिन्ह को एक निश्चित अंक से व्यक्त किया गया.  अंक से हर चिन्ह को इसलिए दर्शाया गया कि कंप्यूटर केवल अंकों की भाषा समझता है. और हर अंक को 0 व 1 मे व्यक्त किया जा सकता है- जैसा कि हमने पिछले अध्यायों मे पढ़ा.

नॉनयूनीकोड फोंट का उदाहरण 

                                                    •         ¼ããÀ¦ãÔãÀ‡ãŠãÀ‡ãŠñ

                                                 Àã•ã¼ããÓãã Ôãâºãâ£ããè ãä¶ãªñÃÍã


भाषा के अक्षरों तथा विशेष चिन्हों को अंकों  मे व्यक्त करने की यह यह प्रक्रिया  कोडिंग कहलाती है. हर देश अपने अपने ढंग से कंप्यूटर साइंस का विकास (  हार्ड वेयर और सॉफ्ट वेयर) अपनी भाषा मे, कर रहा था अत: हर देश मे  अलग अलग कोड विकसित हुए. ये कोड ही नॉन यूनीकोड फॉंट्स कहलाए.
अत: हम कह सकते हैं कि वे फोंट्स -

         1. जो किसी विशेष ऑपरेटिंग सॉफ्टवेयर पर ही काम करते थे.
         2. जो किसी विशेष हार्डवेयर के प्रयोग से ही दिखाई देते थे.
         3. जो किसी भाषा तथा देश विशेष के लिए ही प्रयोग किये जा सकते थे, नॉन यूनीकोड फोंट कहलाए.

कंप्यूटर प्रौद्योगिकी का विकास अधिकतर यूरोप अमेरिका आदि देशों मे हुआ जहां भाषाएं बेशक अलग थीं किंतु फॉंट्स रोमन ही थे. रोमन यानी A, B,C…..आदि अत: एक देश मे A, के लिए जो कोड निश्चित हुआ , दूसरे देश मे A, के लिए वही कोड न हो कर कुछ और था.

जब उसी देश मे , उसी भाषा मे कोई संदेश  भेजना होता था तो कोई परेशानी नही होती थी, क्यों कि भेजने वाले कंप्यूटर और रिसीव करने वाले कंप्यूटर पर हर चिन्ह के लिए एक समान कोडिंग थी. भाषा भी एक थी, हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर भी एक ही थे.

लेकिन जब यह मेसेज दूसरे देश मे भेजा जाता तो कंप्यूटर स्क्रीन पर उल्टे पुल्टे अक्षर दिखाई पड़ते जिन्हें पढ़ना आसान न था.

ऐसा क्यों हुआ ?

उत्तर साफ है. जिस देश से मेसेज भेजा गया उसका हार्डवेयर, उसका सॉफ़्टवेयर तथा उसकी कोडिंग अल्फाबेट्स के लिए अलग थी और जिस देश मे यह मेसेज खोला गया, उसका हार्डवेयर, उसका सॉफ़्टवेयर तथा उसकी चिन्हों की कोडिंग अलग थी. भले ही चिन्ह दोनो देशों मे रोमन ही थे.

इस समस्या को रोमन लिपि के लिए अमेरिका ने हल कर लिया. अमेरिका मे रोमन अक्षरों के लिए पूरे विश्व मे हर देश को इन्ही कोड्स का पालन करना जरूरी कर दिया गया. इसका फायदा यह हुआ कि जिस देश मे भी रोमन लिपि वाली भाषाएं प्रचलित थीं वहां वहां मेसेज पढ़े जाने लगे. तथा वहां से भेजे गए मेसेज दूसरे देशों मे भी पढ़े जाने लगे.

अमेरिका की  इस मानक कोड  प्रणाली ने रोमन लिपि को कंप्यूटर प्रयोगों के लिए व्यावहारिक बना दिया.
इस प्रणाली को आस्की ( ASCII) American Standard Code for  Information Interchange) कहा गया.

ASCII - अमेरिकन स्‍टैंडर्ड कोड फॉर इन्‍फोर्मेशन इंटरचेंज

यह प्रणाली अमेरिकी कंप्‍यूटर वैज्ञानिकों ने विकसित की और शीघ्र ही विश्‍व के अधिकांश देशों में अपना ली गई । इस कोडिंग में अंग्रेजी वर्णमाला के प्रत्‍येक अक्षर को एक निश्चित अंक प्रदान किया गया है । जैसे A-65, B-66 आदि. 1, 2, 3, 4 के मान यही रखे गए । सभी प्रतीकों व गणितीय चिन्‍हों को भी निश्चित अंक प्रदान किये गए । इस प्रकार 256 अक्षरों व अंकों को प्रतीक संख्‍या दी गई ।
                      ASCII की सारणी इस प्रकार है -

ASCII TABLE
ISCII-इंडियन स्क्रिप्ट कोड फॉर इंफॉर्मेशन इंटरचेंज :
जिन देशों की भाषाओं मे रोमन लिपि प्रयोग नही होती थी, उन्हे अमेरिका की इस नवीन प्रणाली का लाभ न मिल सका. जैसे कि भारत.  यहां देवनागरी लिपि  या अन्य प्रादेशिक लिपियां प्रयोग मे लाई जाती थीं. किंतु  अधिकांश राज्यों की सर्वमान्य लिपि देवनागरी लिपि तथा भाषा हिंदी थी.  
अत: देवनागरी लिपि के लिए भी  एक अलग कोड प्रणाली विकसित की गई. इसमे देवनागरी के हर अक्षर को एक कोड दे दिया गया. अब किसी भी राज्य से किसी भी अन्यभाअषी राज्य को इस लिपि मे व स्थानीय भाषा मे संदेश भेजना संभव हो गया.

ISCII की सारणी इस प्रकार है -



ISCII TABLE 
यूनीकोड फोंट्स  ( Unicode  Fonts) 

यूनीकोड का अर्थ है यूनिवर्सल कोड. यूनीकोड एक अंतर्राष्ट्रीय कंसोर्टियम है, जिसने विश्व की सभी भाषाओं के प्रतीक चिन्हों को एक अलग पहचान दी है. 

यूनीकोड फोंट्स वे फोंट्स हैं, जो विश्‍व के सभी देशों में प्रचलित सभी ऑपरेटिंग सिस्टम्स पर चल सकते हैं. ये  सभी हार्डवेयरों पर चल सकते हैं. ये सभी  भाषाओं वाले ऑपरेटिंग सिस्टम्स पर भी चल सकते हैं. इस कोडिंग में लिपियों के चिन्हों को एक यूनीक नंबर दे दिया गया है. यूनीकोड फोंट्स में भेजा गया संदेश अब विश्व में कहीं भी, किसी भी सॉफ्टवेयर व किसी भी हार्डवेयर पर आधारित कंप्यूटर पर ज्‍यों का त्‍यों पढा जा सकता है । अब तक लगभग 65000 भाषायी चिन्‍हों को यूनीकोड दिये जा चुके  हैं ।

ये कोड केवल अक्षरों के लिए ही नहीं हैं , बल्कि संकेतों के लिए भी दिये गए हैं. विश्व की कई लिपियां चित्रात्मक (Hieroglyphic) हैं. मंदारिन हो या प्राचीन मिश्र की लिपि हो या फिर सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि- ये सब चित्रात्मक लिपियों की श्रेणी मे आती हैं. इनमे एक विशिष्ट चित्र समूह को एक ध्वनि प्रदान की गई है.
ऐसे सभी संकेतों, चित्र समूहों,  चिन्हों व ध्वन्यात्मक प्रतीक चिन्हों को एक यूनीक संख्या प्रदान कर दी गई. 
अब किसी भी देश से किसी भी भाषा मे किसी भी ऑपरेटिंग सॉफ्टवेयर पर कोई संदेश भेजा जाता तो वह रिसीवर के मॉनीटर पर ठीक उसी तरह दिखाई पड़ता, जैसा कि रिसीव करने वाला चाहता था.

सभी लिपियों के सभी वर्णों को, सभी चित्रों को व सभी चिन्हों को यूनीक अंक मिल जाने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संदेशों का आदान प्रदान बिना किसी बाधा के होने लगा. इस कोड प्रणाली  को यूनीकोड कहना सर्वथा उचित है. 
16 बिट से बनने वाली सबसे छोटी संख्या 65536 है.
0000
0000
0000
0000
0000
65536
32768
2048
128
8
32
16
12
8
4







नीचे  दिये गए चित्र मे देवनागरी लिपि के प्रत्येक वर्ण के लिए  यूनीकोड अंक दिखाए गए हैं: 


देवनागरी अक्षरों के यूनीकोड फोंट
कुछ प्रमुख हिन्दी फोंट्स


नॉन यूनीकोड फोंट्स
यूनीकोड फोंट्स
कृतिदेव,
मंगल
एपीएस
एरियल यूनीकोड
अक्षर
आकृति
शुषा
अपराजिता
श्रीलिपि
कोकिला
आइएसएम
लीप ऑफिस
विंकी
-----
-------
उत्साह
गौतमी
कलिंग
निर्मला 
      गार्गी आदि


फोंट परिवर्तन (Font Conversion) :

कई बार संदेश नॉन यूनीकोड  में भेजे गए संदेश तभी पढ़े जा सकते हैं कि जब प्राप्त कर्ता के कंप्यूटर पर भी वही फोंट हो.  ऐसा न होने पर संदेश के स्थान पर जंक करेक्टर्स दिखाई देते हैं.

ऐसे संदेश पढ़ पाने का एकमात्र उपाय है- नॉन यूनीकोड फोंट्स को यूनीकोड फोंट्स मे बदलना  या फिर यूनीकोड फोंट को नॉन यूनीकोड फोंट मे बदलना.  नॉन यूनीकोड फोंट्स को यूनीकोड फोंट्स में बदलने के लिए निम्न लिखित सॉफ्टवेयर्स काम मे लाए जाते हैं :

परिवर्तन (Parivartan 2.0)  
गूगल फोंट परिवर्तक (google font converter)
 वेब दुनिया (webdunia )
भारत सरकार की वेब साइट - http://ildc.com
अक्षर विविधा (Aksharvividha) .
अनुसारक (Anusarak)    
विकीपीडिया आदि  

इनके अलावा भी फोंट परिवर्तन के लिए इंटरनेट पर अनेक ऑन लाइन तथा ऑफ लाइन साइट उपलब्ध हैं .

(क्रमश:)

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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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