व्यंग्य- हे भगवान तू कहां है ?


     हे भगवान ! क्या तू कहीं है भी ? अगर  है  तो कौन से बिल मे छिपा बैठा है ? बाहर क्यों नहीं निकलता ?  ये करोड़ों मजदूर जो आज गुलाम बना दिये गए हैं - क्या तुझे दिखाई नहीं देते ? क्या है इनका कुसूर ? बता ! नहीं तो मै तेरी मूर्तियां बाहर निकाल कर फेंक दूंगा. तू जहां भी छिपा है, वहां से बाहर निकल !

हे भगवान ! वही इन्सान, जिसे तूने अपने जैसा बनाया था  ! देख जरा ! क्या हालत हो गई है उसकी  ?  लाखों गाड़ियां, हजारों ट्रेन, सैकड़ों हवाई जहाज हैं – फिर भी चौदह साल की ज्योति पिता को  साइकिल पर बिठा कर छह सौ किलोमीटर दूर गांव ले जाती है ! पर न तेरा दिल पसीजता है, न तेरे बंदों का !  

एक मां अपने पांच साल के बच्चे को सूटकेस पर लटकाए आग उगलती सड़क पर चली जा रही है- भूखी- प्यासी ! क्या तुझे वह नही दिखाई पड़ी ? क्या उस बेहोश बच्चे की पीड़ा तुझे महसूस नहीं हुई ?
एक बाप सड़क के किनारे मोबाइल पर रो रो कर गांव मे पत्नी को फोन करता  है कि बबुआ नहीं रहा. भूख प्यास और बुखार से बेहाल बबुआ तीन दिन तक तो पैदल चला पर आगे हिम्मत जवाब दे गई. गिर पड़ा और दम तोड़ दिया !  क्या उस अभागे बाप का दर्द तुझे अपने सीने मे महसूस नहीं हुआ ? तू तो सारे जगत का पिता बना फिरता  है !

हे भगवान ! तुझे वे सोलह मजदूर नही दिखाई पड़े जो चार दिन से पटरी पटरी गांव को निकले थे. चोरी छिपे ! पुलिस सड़क से नही जाने देती थी. थकान से चूर सुस्ताने के लिए वे  पटरियों पर लेटे ही थे कि गहरी नींद आ गई.  तभी एक मालगाड़ी ने उन बेकसूरों को गाजर मूली की तरह काट कर लाशों मे बदल दिया. मोटी मोटी सूखी रोटियां जो वे साथ लेकर चले  थे, वे लाशों के अगल बगल पटरियों पर बिखरी पड़ी थीं. चील कौवे लाशों का गोश्त रोटियों के साथ खा रहे थे - क्या तूने नहीं देखा भगवान ?

हे भगवान ! क्या तूने चौबीस मजदूरों की कलेजा हिला देने वाली मौत नही देखी ? जब तेरे बंदों ने बसें  और रेलें नही चलाईं तो बेचारे मजदूर ट्रकों मे छिप कर अपने गांव जाने लगे. उन्हीं ट्रकों की दर्दनाक टक्कर मे बेचारे बेमौत मारे गए ! चीथड़े उड़ गए  उनकी लाशों के ! पर हे परवर दिगार ! क्या तेरा दिल पिघला ? तू तो करुणा का सागर  है ! आई तुझे दया  ?   
  
हे भगवान ! क्या तूने श्रमिक एक्सप्रेस रेलों के भीतर भूखे  प्यासे मजदूरों को नहीं देखा- जो  पांच पांच दिन बाद घर लौटे ? टिकट खरीद कर भी जिन्हे न पानी मिला न खाना ! जिन्हे भेड़ बकरियों की तरह एक जगह से ठूंस कर दूसरी जगह पटक दिया गया ! जहां उतरना था वहां से  कई सौ किलोमीटर दूर ! क्या तुझे  दिखाई नही दिया भगवान ?

हे भगवान ! क्या तूने उन अनपढ़ मजदूरों की लाखों  की भीड़ नही देखी जिन्हे ट्रेन का ऑन लाइन रिजर्वेशन कराने के लिए दो दिन का वक्त दिया गया था ? क्या ऐसा फरमान जारी करना अनपढ़ मजदूर का मजाक उड़ाना नहीं था ? जब वे ऑन लाइन बुकिंग करने मे नाकाम रहे तो पैदल ही घर  के लिए सड़कों पर उतर पड़े .    

उसके बाद आज़ाद हिंदुस्तान की पुलिस ने जिस बर्बर तरीके से उन पर लाठियां बरसाईं, वैसे फाइल फोटो मैंने  बहुत खोजे, पर गुलाम हिंदुस्तान मे भी वैसे फोटो मुझे नही मिले. बता बे भगवान,  क्या कुसूर था उनका जिन्हे पुलिस सड़कों पर नही उतरने दे रही थी ? क्या घर जाना उनका  हक नही था ? क्या वे इस मुल्क के नागरिक नहीं थे ? क्या वे गुलाम थे ? क्या वे कर्जदार थे किसी के ?

हे भगवान ! तेरे रामराज्य मे गरीब मजदूरों को सडकों पर दौड़ा दौड़ा कर लाठियों से पीटा गया,  चिलचिलाती धूप मे मुर्गा बनाया गया. कोहनियों के बल सड़कों पर रेंगने को मजबूर किया गया, उठक बैठकें लगवाईं गईं. कई रोज के भूखे प्यासे जो मजदूर ऐसा नहीं कर सके उन्हे मार मार कर बेहाल कर दिया गया. भरे पूरे शहर मे सब उन्हे पिटते देख रहे थे, पर उन्हे बचाने वाला कोई न था. उंनका कोई सहारा न था. फिर भी मन न भरा तो  गाड़ियों मे भर भर कर उन्हे अनजान जगहों पर ले जाया गया. वहां उनका क्या हाल हुआ होगा, हे भगवान हमे  पता नही चल सका,  तुझे  तो जरूर पता होगा ! आखिर तू अंतर्यामी जो ठहरा !

हे भगवान !  क्या तुझे वह चौदह साल की ज्योति नही दिखाई दी जो पिता को साइकिल पर बिठा कर छह सौ किलोमीटर दूर गांव  ले गई ? उस नन्हीं जान का अपने पिता के लिए प्यार क्या तुझे  महसूस नही हुआ भगवान ? इतनी दूर उस बच्ची ने साइकिल कैसे चलाई होगी – कितनी थकी होगी वह- क्या तुझे महसूस नही हुआ ?

 हे भगवान ! क्या तूने मजदूर के रूप मे उस श्रवण कुमार को नही देखा जो अपने बूढ़े  मां-बाप को बहंगी मे बिठा कर पैदल ही भूखा-प्यासा अपने घर को जा रहा था ?   क्या तुझे वह कमजोर दुबला पतला मजदूर नही दिखाई पड़ा जो अपनी मां को कंधे पर बिठा कर नंगे पांव चला जा रहा था ?

हे भगवान ! क्या तूने उस मजदूर को नही देखा जो साइकिल रिक्शे पर अपने बीबी बच्चों और मां बाप को बिठाए सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गांव को निकल पड़ा था ?

हे भगवान ! तुझे वह बारह साल की लड़की तो दिखाई ही पड़ी होगी जो सात आठ  सौ किलोमीटर पैदल चल कर अपने गांव पहुंची थी, पर घर से सिर्फ ग्यारह किलोमीटर पहले बेहोश हो कर गिर पड़ी और फिर कभी नहीं उठ सकी. भूख-प्यास और थकान ने उस मासूम की जान ले ली.  

हे भगवान ! क्या तुझे वे मजदूर नही दिखाई पड़े  जो अपने गांव पैदल  चले जा  रहे थे और जिन पर  जानवरों की तरह खतरनाक केमीकल्स की बारिश की गई !  

हे भगवान ! क्या तूने उन गरीब मजदूरो की सुध ली,  जिन्हे क्वारंटाइन करने के बहाने जानवरों की तरह तबेलों मे  ठूंसा गया ?  क्या वहां दो गज का फासला था ? क्या उन्हे खाना पीना दिया गया था ? कितने मजदूर क्वारंटाइन किये गए और कितने बच कर बाहर आए  ? कितनो ने भीतर फांसी लगाई ? आंकड़े तो होंगे तेरे पास ! आखिर तू अंतर्यामी जो ठहरा !

हे भगवान ! कई रोज पैदल चल कर अपने  राज्यों की सरहदों  पर पहुंचे मजदूरों को भीतर  नही घुसने दिया गया. क्या कुसूर था उनका ?  उन्हे बसों मे बिठा कर उनके गांव  नही छोड़ा जा सकता था ? जब कहीं और से बसे आईं तो चलाने की इजाजत नही दी गई !  एक देश के नागरिक एक राज्य से दूसरे राज्य मे नही जाने दिये गए ! जबरदस्ती जाने की कोशिश की तो ऐसे पीटा जैसे वे इंसान नहीं, जानवर हों ! वे बेचारे न बस मांग  रहे  थे न ट्रेन मांग रहे थे,  न खाना पीना मांग रहे थे. बस सड़क पर चलने का हक मांग रहे थे.

हे भगवान !  जिस मजदूर ने वे आलीशान सड़कें बनाईं, क्या उसीको  उन पर चलने का हक नहीं था ? अपने गांव के बिल्कुल करीब आकर उन्हे रोक दिया गया  ! ये क्या है भगवान ? क्या हो रहा  है तेरे  भारत मे ये ? पिछले तीन महीने से सारा देश हवालात मे बंद है. जिस वजह से बंद है,  वह महामारी बेरोकटोक फैलती जा रही है. लोगों को कैद करने से क्या हासिल हुआ ?

हे भगवान ! कहते हैं कि तेरे यहां देर है अंधेर नहीं. पर साफ दिख रहा है - तेरे यहां देर भी है और अंधेर भी. तू गरीब का नहीं है ! तू  बेसहारों  का भी नही है !  तू सिर्फ पैसे वालों का है, सिर्फ ताकत वालों का है. तू भी उन्ही का हो गया जो तेरे लिए बड़े बड़े मंदिर बनवाते हैं. जो तुझे करोड़ों की भेंट चढ़ाते हैं.

हे भगवान ! जरा मजदूर के तलवों के ये छाले देख ! शायद तेरा पत्थर सा दिल पिघल जाए !

हे भगवान ! कहां गए तेरे वे भक्त, जो रात दिन तेरा नाम रटते  नही थकते थे.  क्या वे थके हारे भूखे प्यासे मजदूरों को मंदिरों मे क्वारंटाइन नही करा सकते थे  ? तेरे नाम पर चलने वाले एनजीओ आज कहां गायब हो गए ? तेरे मंदिरों मे पड़ी अरबों रुपए की दौलत क्या तेरे इन गरीब मोहताज बच्चों के काम नही आ सकती थी ? हे भगवान !  तेरे फाइव स्टार मंदिर बनाने की बजाय वह पैसा तेरे बंदों की भूख मिटाने, उनका इलाज करने मे खर्च नही किया जा सकता था  ? तेरे पुजारियों के नाम पर मंदिरों मठों  मे पल रहे लाखों सांड़ों की जगह वह पैसा गरीब मजबूर मजदूर पर नहीं लगना चाहिए  था ?

हे भगवान ! आज तेरे प्यारे भारत मे दूध  सस्ता है और गोमूत्र महंगा है. पता है क्यों? क्योंकि मूत्र की मार्केटिंग बडे लोग कर रहे हैं. गाय के मूत्र के नाम पर किस का मूत्र बिक रहा है हे भगवान तुम्हे तो जरूर मालूम होगा ! 

हे भगवान ! तेरी गोमाता मे तो तैंतीस करोड- देवी देवताओं का निवास था ! फिर क्यों आज भी उन्हे कत्लखानों मे काटा जाता है ! क्यों उनके खून से विदेशी मुद्रा का भंडार भरा जाता है ? क्यों तेरा भारत आज गोमांस का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है ?

हे भगवान ! तेरे देश मे तो धर्म और नैतिकता के ढोल पीट कर तेरे भक्त नही थकते ! फिर पराई औरत से संबंध रखने का  कानून कैसे पास हुआ ? क्या यही  राम राज्य  है ? समलैंगिक व्यवहार तो जानवर भी नहीं करते- फिर तेरे भारत मे ये कानून कैसे  बना ?  

हे भगवान !  अगर तू सचमुच  है तो आ सामने ! दे मेरे सवालों के जवाब ! खड़ा हो उनके साथ, जो तुझ पर अंधा यकीन करते हैं. जो सारे जुल्म तेरे नाम पर सहते  हैं.  अगर तू ऐसा नही कर सकता तो मै समझूंगा कि तू है ही नही. बस तेरा हव्वा खड़ा किया हुआ है कुछ चालाक, मक्कारों ने.

                               (समाप्त)


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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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