
प्रश्न 1 : फलित ज्योतिष कहां तक सत्य है ?
उत्तर : आधुनिक विज्ञान के अनुसार आकाशीय पिंडों के गुरुत्व, तथा विद्युत चुम्बकीय बलों का पृथ्वी की जड़ तथा चेतन वस्तुओं पर प्रभाव पड़ता है. किंतु यह प्रभाव चेतन जगत पर कैसे काम करता है- यह एक अलग विषय है. इस अलग विषय का नाम ही फलित ज्योतिष (Predictive Astrology) है.
फलित
ज्योतिष मे उन विधियों का विस्तार से वर्णन है जिनकी सहायता से हम मनुष्य के जीवन
पर ग्रह नक्षत्रों के प्रभाव का आयु तथा ग्रह बल के सापेक्ष अध्ययन करते हैं. किस
आयु मे कौन से ग्रह का कैसा प्रभाव किस पर पड़ेगा. यह प्रभाव कितना होगा? यदि
बुरा प्रभाव है तो क्या वह टाला भी जा सकेगा ? यदि प्रभाव
शुभ है तो क्या बिना किसी प्रयत्न के ही वह शुभ फल मिलेगा ?
क्योंकि
यह प्रभाव तीन विधियों से आंका जाता है (लग्न से, सूर्य
से व चंद्र से) अत: 100% फल उसी दशा मे मिल सकता है जबकि तीनो विधियों से एक ही
परिणाम मिल रहा हो. अन्यथा केवल लग्न से शुभ है तो एक तिहाई परिणाम मिलेगा,
लग्न व सूर्य से एक ही फल आ रहा है तो दो तिहाई परिणाम मिलेगा और
यदि तीनों विधियों से शुभत्व है तो 100%
परिणाम मिलेगा.
प्रश्न
2 : गोचर फलादेश क्या है ? इसका कितना प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर
: मनुष्य के जीवन को दो कुंडलियां प्रभावित
करती हैं. एक वह कुंडली, जब शिशु मां के गर्भ से बाहर आकर एक स्वतंत्र इकाई बन जाता
है. इस कुंडली को जन्म कुंडली कहते हैं.
दूसरी
वह कुंडली जो जीवन के किसी विशेष समय मे उस व्यक्ति की राशि के अनुसार ग्रह नक्षत्रों की
तात्कालिक स्थिति से बनती है. इन दोनो ही कुंडलियों का फलादेश (Prediction) मे बराबर का योगदान है.
गोचर
कुंडली के फल परिवर्तनशील होते हैं क्योंकि मानव जीवन मे ग्रह अपनी राशियां लगातार
बदलते रहते हैं. इसीलिए उनका प्रभाव तथा फल भी लगातार बदलता रहता है.
इसीलिए
गोचर कुंडली का फलादेश उस खास ग्रह स्थिति के लिए ही होता है.
प्रश्न
3- जन्म कुंडली का फलादेश यदि जन्म भर रहता है तो गोचर कुंडली का क्या महत्व हुआ ?
उत्तर
– जैसे किसी कैमरे की रील पर फोटो छप जाता है ठीक उसी तरह नवजात बच्चे के शरीर पर
भी जन्म समय के बलों का अदृश्य चित्र छप जाता है. यथा बीजो तथांकुर: के सिद्धांत
के अनुसार जन्म समय मे खगोलीय पिंडों
के अदृश्य बलों का जो फोटो बच्चे के मन
मष्तिष्क पर छपता है उसी के अनुसार बच्चे की प्रकृति और स्वभाव बनते हैं. शरीर तथा विभिन्न अंगों का आकार, सात्विक, राजसी तामसी आदि प्रकृति का निर्माण, पंच महाभूतों का शरीर निर्माण मे अनुपात आदि का ज्ञान होता है.
यदि
आज की वैज्ञानिक भाषा मे कहें तो जन्म कुंडली मे ग्रहों के बलाबल नवजात के गुणसूत्रों के कोड का एक सीमा तक
निर्धारण करते हैं.
जबकि
गोचर कुंडली उस समय के बलों का निर्धारण करती है जिस समय हम कुंडली दिखा रहे हैं.
उस समय भी तो ग्रहों के बलाबल का एक निश्चित प्रभाव पृथ्वी पर पड़ रहा होता है.
अब
प्रश्न कर्ता ज्योतिषी से पूछता है कि मेरी नौकरी कब लगेगी या मेरा विवाह कब होगा ?
इन
प्रश्नो का उत्तर देने के लिए ज्योतिषी राशि पूछता है. फिर उस राशि पर खगोलीय
पिंडों के बलों का क्या प्रभाव पड़ रहा है – यह चेक करता है. यदि सकारात्मक प्रभाव
है तो बता देता है कि कितने समय मे नौकरी लग जाएगी या कब तक विवाह हो जाएगा. यदि
तात्कालिक बलों का प्रभाव जन्म समय के बलों के विपरीत है अर्थात दोनो बल एक दूसरे
की शक्ति को घटा रहे हैं तो ज्योतिषी बता देता है कि नौकरी लगने मे अभी देर है या
शादी का समय अभी नही आया.
कहने
का तात्पर्य यह है कि गोचर कुंडली उस जातक का वर्तमान बताती है जिसका निर्माण उस
जातक की जन्म कुंडली के समय के बलों के अनुसार हुआ है.
प्रश्न
4 : राशि क्या है ?
उत्तर
:- आकाशीय गोले की बाहरी सतह को केंद्र स्थित पृथ्वी के सापेक्ष बारह बराबर भागों
मे बांट लें तो हर भाग को एक नाम देना पड़ेगा. इन बारह भागों की शुरूआत कहां से हो
रही है और अंत कहां हो रहा है- यह भी तय करना पड़ेगा.
शुरूआत
जिस भाग से होती है उसे मेष राशि ( Aries) कहा गया. आखिरी वाले
बारहवें भाग को मीन राशि (Pieces) कहा जाता है. बाकी दस भाग इनके बीच मे पड़ते हैं. हर भाग 300 का
होता है.
तो
जिस भाग मे जन्म के समय चंद्रमा स्थित होता है उसे राशि या चंद्र राशि (Moon sign) कहा जाता है. इस तरह किसी भी
कुंडली मे तीन राशियां होती हैं- पहली चंद्र राशि, दूसरी
सूर्य राशि तथा तीसरी लग्न राशि. इन्हे चंद्र कुंडली, सूर्य
कुंडली तथा लग्न कुंडली भी कहा जाता है.
भारतीय
पद्धति मे चंद्र कुंडली को सबसे अधिक महत्व दिया गया है. उसके बाद लग्न कुंडली तथा
सूर्य कुंडली आते हैं.
चंद्र
कुंडली को हमारे यहां ज्यादा महत्वपूर्ण मानने के पीछे कारण यही होना चाहिए कि यह
पृथ्वी के सबसे निकट है. इसका गुरुत्व बल दूरी कम होने की वजह से हमे ज्यादा
प्रभावित करता है. दूसरी बात कि चंद्रमा
एक राशि मे केवल 2.25 दिन तक ही रहता है. जबकि सूर्य एक राशि मे 30 दिन तक रहता
है. जिसका समय कम है उसका प्रभाव सूक्ष्म होगा. जिसका समय ज्यादा है उसका प्रभाव
सामान्य प्रकृति को निरूपित करेगा, सूक्ष्म फल उसमे कम रहेगा.
प्रश्न
5 : लग्न कुंडली क्या है ?
उत्तर:
बच्चे के जन्म के समय भी चार दिशाएं होती हैं. इनमे से एक दिशा है पूरब (East). तो जन्म के समय पूरब के क्षितिज पर जो राशि मौजूद होती है उसे लग्न (Ascendant)
कहते हैं. लग्न राशि को भी फलादेश मे काफी महत्वपूर्ण माना गया है.
प्रश्न
6 : महादशा या विंशोत्तरी दशा क्या होती है ?
उत्तर:
- मानव जीवन की संपूर्ण आयु 120 वर्ष मानी गई है. इस अवधि मे किस अंतराल मे कौन सा
ग्रह प्रभावी रहेगा- इसका पता हमे महादशा या विशोतरी दशा से चलता है. दशाओं के आने
मे ग्रहों का एक निश्चित क्रम होता है. यह क्रम इस प्रकार है-
ग्रह
|
सूर्य
|
चंद्र
|
मंगल
|
राहु
|
गुरु
|
शनि
|
बुध
|
केतु
|
शुक्र
|
महा दशा
|
06
|
10
|
07
|
18
|
16
|
19
|
17
|
07
|
20
|
नक्षत्र
|
कृत्तिका, पू.फाल्गुनी
उत्तराषाढ़ा
|
हस्त, श्रवण
रोहिणी
|
मृगशिरा, चित्रा
धनिष्ठा
|
आर्द्रा स्वाति
शतभिषा |
पूर्वाभाद्रपद पुनर्वसु
विशाखा
|
अनुराधा , उत्तरभाद्रपद, पुष्य
|
रेवती, आश्लेषा ज्येष्ठा
|
अश्विनी मघा मूल
|
पू.फाल्गुनी
पूर्वाषाढ़ा ,भरणी,
|
प्र
प्रश्न 7- जन्म के समय किस
ग्रह की दशा होगी ?
उत्तर
– जन्म के समय जो दशा होती है उसे गर्भ दशा कहते हैं . यदि हमे गर्भ दशा मालूम हो जाए तो हम यह जान सकते हैं
कि उसके बाद कौन सी दशा आएगी ?
एक
राशि मे 2.25 नक्षत्र होते हैं. हर नक्षत्र को एक ग्रह व्यक्त करता है. यह ग्रह
ज्योतिष की भाषा मे नक्षत्र स्वामी कहलाता है. नक्षत्र 27 हैं. इसका मतलब है कि एक
ग्रह तीन नक्षत्रों का स्वामी होता है.
ऊपर के चार्ट मे दिखाया गया है कि कौन सा ग्रह किन किन नक्षत्रों का स्वामी होता
है.
जन्म
के समय कौन सा नक्षत्र था- इसका पता हमें पंचांग से लग जाता है. उस नक्षत्र का स्वामी जो भी ग्रह है, जन्म
के समय उसी ग्रह की गर्भ दशा होगी.
मान
लीजिए जन्म के समय उत्तरभाद्रपद नक्षत्र था. इस नक्षत्र का स्वामी शनि है. अत: हम कह
सकते हैं कि जातक (नवजात बच्चे ) की गर्भ दशा शनि की है. चार्ट के अनुसार शनि के बाद
बुध की महा दशा आएगी, फिर केतु की तथा फिर शुक्र की.
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