धर्मराज का राजधर्म


          महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था. कुरुक्षेत्र के मैदान मे बाणों के बिस्तर पर भीष्म पितामह अकेले लेटे थे.  आजू बाजू किसी भी योद्धा की डेड बॉडी नहीं बची थी . सभी  को  सियार गीदड़ कभी का निपटा चुके थे. ऐसे मे एक दिन युधिष्ठिर उनके पास आए और प्रणाम करके बोले- पितामह,  धर्मराज  युधिष्ठिर आपके चरणों मे प्रणाम ठोकता है.

आंखें बंद  किये ही भीष्म पितामह बोले- आयुष्मान भव:. अच्छा हुआ राज-काज  की ओथ लेने के बाद तुम मेरे पास आ गए वत्स. नहीं तो हमे घोर दुख होता. कहो कैसे आए ?

धर्मराज युधिष्ठिर बोले- हे पितामह, दुर्योधन की ईगो नाम की आग मे  कुरु वंश नाम का सारा जंगल जल कर साफ हो गया है. अब इस मनहूस सिंहासन पर मुझ वार क्रिमिनल  को बिठाया गया है. पितामह ! मुझे ये कांटों का ताज ऐसे वक्त मे पहनाया गया है कि जब न मुहं मे दांत बचे हैं और न पेट मे आंत. न लड़ने भिड़ने की ताकत बची है. एनी वे. बिठा दिया है तो अब  उठना भी ठीक नहीं लगता. आपके पास इसीलिए आया हूं कि इस नाचीज़ को कुछ गाइड कीजिए कि राजधर्म क्या होता है, उसे कैसे निभाया जाता है ?

भीष्म – गुड क्वेश्चन ! देखो वत्स अब तुम हस्तिनापुर के राजा हो. सारे अधिकारी, सारे मंत्री तुम्हारे हुक्म के गुलाम हैं. सारी जिंदगी तुम्हारी जंगलों मे भटक भटक कर गुजर गई. अब जो भी दो चार साल बचे हैं, उनमे एंज्वाय करो.  

धर्मराज - बट पितामह प्रजा ?

भीष्म – प्रजा गई तेल लेने वत्स.

धर्मराज – मैं समझा नहीं पितामह ! जरा खुल कर प्रकाश डालिए.

भीष्म – सच कहूं धर्मराज, तुम्हारी इसी हिप्पोक्रेसी के चलते  पांडव बेचारे  जंगल- जंगल भटके. तुम  खुद तो दुखी रहे, भाइयों की भी रेल बनाई, कुंती को भी चैन से दो निवाले नही खाने दिये. और द्रौपदी से तो जाने किस किस जनम का बदला लिया तुम पांडवों ने ?  अब जरा आराम के दिन आए हैं . युद्ध की थकान मिटाओ. खूब खाओ  पीओ.  इस धरा पर अनेक तीर्थ हैं. उनकी यात्राएं करो, नाच गाना, खेल उत्सव, नौटंकी  कराओ. ये क्या प्रजा प्रजा की रट लगा रक्खी है ?

धर्मराज – पर पितामह मेरी इमेज तो धर्म की रक्षा करने वाले की है. मै अधर्म करूंगा तो लोग क्या कहेंगे ?
भीष्म – लो कल्लो बात. अच्छा बताओ,  जिन कपड़ों मे तुम रात को सोते हो, क्या उन्ही मे सुबह सिंहासन पर बैठ जाते हो ?

धर्मराज - नही पितामह. ऐसा भला मैं क्यों करूंगा. दरबार मे तो मैं पूरे राजसी ड्रेस में, बाकायदा मुकुट पहन कर कमर मे तलवार खोंस कर चमड़े की खूबसूरत जूतियां पहन कर डिओडोरेंट छिड़क  कर बैठता हूं.
भीष्म- तो फिर प्यारे पोते, मेरी बात ध्यान से सुनो. जीवन मे सफल होने के लिए आज से तुम्हे दो चेहरे रखने होंगे. एक धर्मराज का चेहरा और दूसरा युधिष्ठिर नाम के आदमी का चेहरा. जब चेहरा अकेला होता है तो चेहरा कहलाता है, परन्तु  जब  चेहरे एक से ज्यादा हो जाते हैं तो वे मुखौटे कहलाते हैं. राजा के मिनिमम कितने मुखौटे होने चाहिएं - इस पर शास्त्रों के अपने अपने मत मतांतर हैं. पर अगर मुझे पूछते हो तो मुखौटे जितने ज़्यादा हों, उतना अच्छा.


धर्मराज - (मुस्कराते हुए) पितामह ज्यादा मुखौटे क्यों अच्छे होते हैं.

भीष्म ‌– देखो वत्स. राजते इति राजा. अर्थात जो जितना शाइनिंग होगा  वह उतना अच्छा राजा माना जाएगा. शाइनिंग सिर्फ खाल के रंग से ही नही होती. बंदे मे कम्युनिकेशन स्किल भी होनी चाहिए. वह फेंकने मे इतना माहिर होना चाहिए कि गंजे को भी कंघी बेच सके. पढ़े लिखों मे जाए तो इंटेलेक्चुअल मुखौटा पहने, धार्मिक प्रोग्रामों मे जाए तो रिलीजियस मुखौटा लगाए, गरीब गुरबों के बीच जाना वैसे तो अवॉइड करे,  मगर जाना जरूरी हो तो गरीबों के मसीहा का मुखौटा लगा कर जाए और कॉरपोरेट्स के बीच जाना हो तो सोने से बना, हीरे जवाहरातों से जड़ा मुखौटा पहन कर करोडों की आलीशान कार मे बैठ कर जाए. पड़ोसी राजाओं के बुलावे पर जाए तो हजारों करोड- के अति सेफ चार्टर्ड एअर क्राफ्ट मे अपने बंधु बांधवों सहित जाए. और जब रनिवास मे पहुंचे तो सारे मुखौटे उतार कर खूंटी पर टांग दे और असली औकात मे जा जाए.  इस तरह मुखौटे बदल बदल कर चलने वाला राजा कभी दुख  को प्राप्त नही होता. ऑरीजिनल मुंह लेकर जगह जगह जाने वाले राजा को छोटे- छोटे, दो- दो कौड़ी के राजा भी भाव नहीं देते. समझे  ?

धर्मराज -  मुखौटे वाली बात मेरी समझ मे अच्छी तरह बैठ गई है पितामह. यहां से जाते ही मैं कम से कम एक दर्जन डिफ्रेंट मुखौटों का ऑर्डर दूंगा. ऐसे- ऐसे  मुखौटे बनवाऊंगा कि अच्छे अच्छे तीसमारखां भी मुख और मुखौटे मे फर्क नही कर पाएंगे.

फिर थोड़ी  देर तक धर्मराज खामोश हो गए.  पितामह ने पूछा - क्या सोचने लगे बच्चे  ? एनी डाउट ?

धर्मराज - हां पितामह डाउट है. आइ डोंट थिंक कि सिर्फ मुखौटों के बूते हस्तिनापुर मैनेज हो पाएगा ?  कुछ और टिप्स भी देने पड़ेंगे आपको.

भीष्म –  अब से छत्तीस साल बाद कृष्ण की मृत्यु के दिन कलियुग शुरू हो रहा है. मतलब कि कलियुग समझो आ ही गया है. इस युग मे इंटेलेक्चुअल मुखौटा ज्यादा लगेगा. गाल बजाने मे जो जितना माहिर होगा वह उतना ही बड़ा बुद्धिजीवी माना जाएगा . तो हे धर्मराज, जब भी भीड़ को एड्रेस करो तो इतनी बड़ी बड़ी हांको कि ऑडिएंस तुम्हारी जय जयकार करने लगे. इतने कैचिंग वादे करो, ऐसे हसीन सब्ज़ बाग दिखाओ कि लोग तुम्हे सचमुच का धर्मराज समझने लगें. और हां ! चाहे जितना बड़ा झूठ बोलो, चाहे जितनी उल्टी सीधी  हांको, पर तुम्हारी आवाज़ मे गजब का सेल्फ कॉंफिडेंस होना चाहिए. सुनने वाले को लगे कि ये दिल की आवाज़ है.  प्रजा को वादों की खट्टी मीठी टाफियां खिला कर सुला देना. नींद मे मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखाना. ऐसा करने वाला राजा टेंशन मे नहीं आता. प्रजा सुखी हो न हो, खुश जरूर हो जाती है. और प्रजा की खुशी मे ही राजा की खुशी होती है.

धर्मराज  – (खुश हो कर) पितामह ! ये टिप भी काफी इफेक्टिव होनी चाहिए. अगर मैं कथनी और करनी के चक्कर मे पड़ा रहा तो एक दिन मे ही  सिंहासन से हाथ धो बैठूंगा. वादों की चीनी मै पूरे राज्य मे बिखेर दूंगा. प्रजा रूपी चींटियां  शुगर क्यूब्स चाट- चाट कर सो जाएंगी. पर एक टेंशन है पितामह, हर नींद के बाद आंख तो खुलती ही है ! जागने पर प्रजा समझ जाएगी कि राजा ने हमारा बेवकूफ काटा है. तब मैं क्या करूंगा  दादू  ?

भीष्म : ये भी कोई प्रॉब्लम है ? प्रजा पर करों (Taxes) का इतना   बोझ डाल देना कि वे हिलने डुलने के लायक ही न बचें. जब तक जेब में चार पैसे रहते हैं तो आदमी एंठा रहता  है. जब एकाउंट खाली कर दोगे तो सारी एंठन खुद ब खुद भाग जाएगी. हर बंदा दो जून की रोटी के जुगाड़ मे बिजी रहेगा.

धर्मराज  ने शंका व्यक्त की – अगर तब भी पब्लिक के बागी तेवर बरकरार रहे तो ?

पितामह बोले- तो क्या ? शैव,  वैष्णव, शाक्त, द्वैत अद्वैत के दंगे फैला देना. लड़ने कटने देना. तब भी बात न बने तो महंगाई इतनी बढ़ा देना कि पब्लिक भूखी मरने लगे. अपने आप अकल ठिकाने आ जाएगी.

धर्मराज  – फिर भी ग्रैंड पा,  एकाध टिप और मिल जाती तो राजधर्म अच्छी तरह निभ जाता !

भीष्म – हां ! वत्स मै भी सोच रहा था कि ट्रम्प कार्ड हाथ मे जरूर होना चाहिए. एक काम करना. श्रेष्ठियों  ‌( corporates) को लूट खसोट की पूरी अथॉरिटी दे देना. राज्य की सारी जमीन, जंगल, सोने चांदी हीरे, नीलम, माणिक्य आदि की खाने सौंप देना, नदियों के पानी  का भी हक उन्हे दे देना, किसानों की उपज के दाम उन्हे फिक्स करने देना, शॉर्ट मे कहूं तो राज्य की सारी जमा पूंजी उन पर न्योछावर कर देना. इसके बदले वे तुम्हारी गद्दी पर आने वाले  सभी खतरे  हटा देंगे. हाथी के पैर मे सबका  पैर होता है वत्स.  व्यापारी खुश तो राजा बेफिक्र.  और हां ! टैक्स कलेक्टर्स व सिक्योरिटी को टॉर्चर मत करना. खुद भी खाना और अफसरों को भी खाने देना. तभी बात बनेगी.

धर्मराज ने हाथ जोड़ कर पितामह को प्रणाम किया. चरण छुए और कहा- हे कुरु कुल के शिरोमणि, राजधर्म पर आपके ये टिप्स धर्मराज को बहुत काम आएंगे. आइ एम श्योर, इन्हे फॉलो करके मैं  हस्तिनापुर की राजगद्दी बचा  लूंगा. आइ एम ग्रेटफुल टु यू ग्रैंड पा.  थैंक्स ए लॉट ! सी यू अगेन.

भीष्म – वेलकम वत्स. ये टिप्स टाइम टेस्टेड हैं. इनका प्रभाव आज तक व्यर्थ नहीं गया.   दोबारा मिलने का मन करे तो चौदह जनवरी से पहले आ जाना. डिपार्चर लाउंज मे पड़े पड़े बोर हो गया हूं. मकर संक्रांति को मेरी फ्लाइट  कंफर्म है.  
         
(समाप्त)  


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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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