व्यंग्य- पत्नी पीड़ित मंच की पहली बैठक


    पत्नी पीड़ितों की पहली बैठक सरकारी अस्पताल के बिल्कुल बगल मे रखी गई  थी ।
       मंच पर बैसाखियों के सहारे खड़े महाशय जी को दुनियां उस्ताद भीमसैन के रूप में जानती थी। उनकी दोनों जंघाओं पर धुर टखनों से लेकर कूल्हों तक उजले पलस्तर चढ़े थे। इसी तरह दोनों तरह दोनों भुजाओं पर भी बाजूबंद की तरह  उजले पलस्तर चढ़े थे। लगता था जैसे क्रिकेट का खिलाड़ी पैड बांधे तैयार खड़ा है। जाने कब क्रीज से बुलावा आ जाय। उस्ताद जी का बदन क्या था समझ लीजिए -  हड्डियों का  ढांचा था । उन मुट्ठी भर हड्डियों की  आबरू रूपा बनियान तथा पट्टेदार जांघिये से बचाई गई थी ।
     भीमसैन जी कराहे - साथियो, नाली के इस कीड़े को आपने चीफ गेस्टी से नवाजा । मैं तहे दिल से शुक्र गुजार हूं आपका ।  मेरी पत्नी  मेरा कितना ख्याल रखती है-आप देख सकते  हैं। मेरे बदन के तकरीबन सभी अंग तोड़ कर इस अर्धांगिनी ने आधे कर दिये हैं ।  जिन्दगी के चालीस साल इस  शेरनी के साथ कैसे बीते- मै ही जानता हूं ? मुहल्ले पड़ोस में कोई भी समस्या हो-ये खली की बहन साड़ी का पल्ला गैंडे सी थुलथुल विराट कमर में खोंस, ताल ठोंकती मिलेगी। मानो ललकार रही हो-मां का दूध पिया है तो आ जाओ  मैदान मे ।
       दिन भर लड़-भिड़ कर रात गए जब ये वीरांगना घर में घुसती है तो हंसिये जैसी त्यौरियां माथे तक चढ़ी रहती हैं। भूखी बाघिन सी गुर्राती हर कोने-कचौने में, मुझे खोजती है। कई बार तो मैं बौक्स वाले डबल बैड के भीतर भी छिपा, पर यह कर्णम मल्लेश्वरी अपनी कराल, बुलडोजरी भुजाओं से मुझे बाहर खींच लाई। घर मे घुसते ही बिजली की तरह कड़कती है -कपड़े प्रेस हो गए ? सब्जी कौन सी बनाई ? आटा ठीक से गूंधा ? बरतन साफ धोए ? झाडू-पोचा ठीक से किया या खानापूरी की ?
  उन नाजुक मौकों पर थरथराता, कपड़ों में ही दीर्घ व लघु शंकाओं का निवारण करता मैं महावीर जी का मन ही मन ध्यान करता हूं-भूत-पिसाच निकट नहिं आवै महावीर जब नाम सुनावैं....मगर सब बेकार। मेरे ना कहते ही यह मदमाती हथिनी मुझ पर टूट पड़ती है। मुरब्बे के आंवलों सा गोदने लगती है मुझे । कई बार तो एक सौ पचास किलो की यह गैंडी मेरी छाती पर चढ़ कर नाची भी।
      भीमसैन जी का गला रूंध गया। पहले वह सिसके। फिर माइक पकड़ फूट-फूट कर रोने लगे। स्थिति बेकाबू होती देख शूरवीर सिंह जी हरकत में आए । बड़ी मुश्किल से  माइक छुड़ा कर उन्हें बिस्तर पर लिटाया।
        भीम सैन जी बिस्तर पर लेट ही रहे थे कि ‘अमीरजादा’ व्हील चेयर पर बैठ, हाथ से पैडल घुमाते, मंच पर  प्रकट हुए । श्रोताओं की लहलहाती फसल को जी भर कर निहारा । ज्यादातर श्रोता दरी या बिस्तरों  पर लेटे बैठक की कार्रवाई देख रहे थे। दो- चार ही बैठने की हालत मे थे ।
         अमीरजादा बोले-दोस्तो ! हम मर्द लोग युगों-युगों से पत्नी नाम की इस जहर की पुड़िया को फांकते आ रहे हैं। इतिहास गवाह है कि सारे फसाद की जड़ यह नारी ही रही। क्या हम मर्द सिर्फ शहीद होने के लिए बने हैं?  कितनी बार गिड़गिड़ाया इस रजिया सुलताना के आगे कि भागवान इतने तीज-त्योहार आते हैं। कभी तो मायके का रूख कर ! मगर इसके सिर पर जूं तक नहीं रेंगती। मेरा क्रेडिट कार्ड इसके कब्जे में है । मैं नाम का अमीरजादा, एक-एक रूपये के लिये भिखारी की तरह गिड़गिड़ाता हूं। परसों की ही बात है। मैं गहरी नींद से चौंक कर उठा । यह हाकी से मेरी तुड़ाई  करती चीख रही थी-‘चोर-चोर। बचाओ ।  मैं चिल्लाया -शान्ती होश में आओ। मैं चोर नहीं, तुम्हारा अमीरजादा हूं। पर अगली सुने तब न! इसके सिर पर तो खून सवार था। दोनों टांगों की हड्डियां जब तक टूट नहीं गई, यह मुझे कूटती रही। आज इसी की मेहरबानी से व्हील चेयर पर बैठा हूं। खैर ! किसी को क्या कहूं ? नसीब अपने-अपने हैं।
     फिर उन्होने भीमसैन जी की बगल मे लेटे सज्जन को देख कर कहा-‘अब मैं गुजारिश करूंगा कवि ‘चीत्कार’ जी से कि वो मंच पर पधारें  और हम पीड़ितों को रास्ता दिखाएं।’
  चीत्कार” जी ने उठने की भरपूर कोशिश की मगर वह नहीं उठ सके । उठना तो दूर, वह हिल-डुल तक न सके । उन्हें बिस्तर पर ही माइक परोसा गया।
      चीत्कार जी गला खंखार कर कोकिला कंठ से बोले-दोस्तो ! अमीरजादा जेब से भले ही गरीब हों मगर दिल के राजा हैं। तभी तो मेरे जैसे दगे हुए कारतूस से उम्मीद रखते हैं ! मैं आपका ज्यादा वक्त नहीं लूंगा। अभी आपको पट्टियां करानी  हैं, शाम की दवा खानी है। जो भाई अस्पताल में भरती हैं -उन्हे वापस बिस्तरों पर जाना है।‘
           फिर चीत्कार जी ने किसी तरह कविता-संग्रह हाथों मे उठाया व बोले-‘मेरे घर मे, खुद कापीराइट कानून तोड़ा गया । रात रात भर आंखें फोड़ कर कविताएं मैने  लिक्खीं और छपवा दीं इस भागवान ने अपने नाम से !  रातों रात कवित्री बन गई। पब्लिशर ने जो रकम दी-उससे डायमंड सेट खरीद लाई। आप ही बताइये-मैं किस कोट कचहरी में फरियाद करूं ? कौन यकीन करेगा इस साहित्यिक डकैती पर ? मुंह खोलता हूं तो कहती है- यौन-शोषण व दहेज-उत्पीड़न का केस ठोक दूंगी। सारे खानदान की इज्जत मिट्टी मे मिला दूंगी। फिर करते रहना जिन्दगी भर चीत्कार, जेल में बैठ कर।’
       तो साथियो। इस पागल सांडनी को पूजने से बेहतर मुझे यही लगा कि सरकारी अस्पताल में भरती हो जाऊं। अब सुखी हूं। गगनभेदी खर्राटों, थरथरा देने वाली डकारों व दरियाई घोड़े सी इसकी जम्हाइयों से अब जान बच गई है। लोग मुझे भगोड़ा कहते हैं। कहो यार, हजार बार कहो। जिन्दा हूं। तभी तो कहते हो। जान है तो जहान है। जिन्दगी भर शाल-श्रीफलों से सम्मानित हुआ। कवि सम्मेलनों में वाह-वाही लूटी। अब आखिरी राउंड में जेल की चक्की कैसे पीसता ?
    चीत्कार जी ने खुद ही अपने आंसू पोंछे और आगे बोलने ही वाले थे कि अमीरजादा ने उनके साथ से माइक छीन लिया और बोले -‘साथियो ! अब आप सभी पत्नी पीड़ितों से गुजारिश है कि  मंच पर आएं और  खुल कर अपना दर्द बांटें ।
         भीड़ से एक मरियल सा आदमी गिरता-पड़ता मंच पर चढ़ा । अमीरजादा से माइक झपटा  और रुंधे गले से बोला -भाइयो, आज मेरे बदन पर  सिर्फ चालीस किलो गोश्त बचा है। बैंक में सिर्फ दो सौ रूपये हैं। मै घर के  पिछवाड़े तबेले में रहता हूं। किसी तरह दो जून की रोटी जुट पाती है । ढेरों बीमारियां हैं पर इलाज कराने की हिकमत नहीं।

            मगर भाइयो, आज से तीस साल पहले जब मेरी बरबादी हुई तो मेरा वजन नब्बे किलो था। और ये चालीस किलो की थी। मेरा चाट-पकौड़ी का काम था। अच्छा चलता था। रोज करीब तीन-चार सौ की कमाई थी। उसी ठेली से मैने जमीन खरीदी, मकान बनाया, बच्चों को पढ़ाया। भैंस खरीदी। दूध बेचा। पर तभी इस भागवान को चाट खाने की लत पड़ गई। शाम को जो माल बना कर मै सोता-सुबह उसमे से आधा गायब मिलता। एक रात को नींद खुली तो  खड़खड़ाहट सुन कर रसोई की तरफ गया। यह भागवान पलथी मार कर बैठी थी। बगल मे गोल गप्पों का आधा खाली  कनस्तर था ।  थाली में दस बारह टिक्की छोले सजे थे। जनम-जनम की भूखी यह आत्मा ताबड़तोड़ हाथ मुंह चला रही थी।
           भाइयो, आज इस हथिनी का वजन एक कुंटल से ऊपर है। मकान की रजिस्ट्री इसके नाम है। भैंस और ठेली बिक गई। मकान भाड़े पर उठा दिया। खुद मायके रहती है। मैं बीमार, बेरोजगार, तबेले में पड़ा आखिरी सांसें गिन रहा हूं। आप ही बताइये-‘किससे फरियाद करूं ? करेगा कोई यकीन ?’
          तब जांघिया पहने, वह शख्स दहाड़ें मारते
 हुए छाती पीटने लगा। अमीरजादा समेत कई
 और पत्नी पीड़ितों ने उसके आंसू पोंछे। पानी पिलाया। फिर अमीरजादा बोले-देखा भाइयो ?
फूल सी दीखने वाली यह पत्नी कितनी बेदर्द होती है? खैर ! अब पत्नी पीड़ित मंच ही इन  
मामलों को सुलझाएगा ।
           फिर अमीरजादा माइक हाथ मे उठा कर भीड़ से पूछने लगे -‘अगर किसी का केस रतन चाट वाले से भी सीरियस हो तो मंच पर आए ।
     सुन कर  पत्नी पीड़ितों की भीड़ बेकाबू और हिंसक हो उठी। पांडाल मे नारे गूंजने लगे-
‘पत्नी पीड़ित, जिन्दाबांद’ – जिंदाबाद जिंदाबाद !
नही सहेंगे-नही सहेंगे, ‘जोर-जुल्म अब नहीं सहेंगे’ ।
‘जालिम पत्नियों-होश में आओ’ ।
‘बब्बर शेरो, जागो-जागो. अपनी ताकत को पहचानो ....
        तभी हाथों मे डंडे व हाकियां लिये महिला मंगल दल की गुस्साई भीड़ आती  दिखाई पड़ी ।  मंच पर लेटे कवि चीत्कार जी, भीमसैन जी, अमीरजादा व रतनचाट वाला बिजली की फुर्ती से कूदे और फर्राटा दौड़ के पेशेवरों की तरह भागते हुए पल भर मे ओझल हो गए।
        अब बचे खुचे पत्नी पीड़ितों  की बारी थी। चारों तरफ लाठियां व हाकी बजने की आवाजें आ रही थीं। जो भी हत्थे चढ़ा, महिला मंगल दल ने उसकी तबीयत से धुलाई की। मंच जैसे हल्दीघाटी का मैदान बन गया। मिमियाते बब्बर शेर जान बचा कर भाग रहे थे ।  
(समाप्त

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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.

3 टिप्पणियाँ:

  1. पीडित पति क्लब के सभी दीन हीन बंधुओं के प्रति मेरी संवेदनाएं ..भीमसैनजी ,अमीरजा़दा,रतन चाटवाला,और पत्नी से बचा लेने की करुण चीत्कार करते मान्यवर चीत्कार जी ...आप सब को लेखक की चुटीली भाषा का शुक्रगुजा़र होना चाहिये जो आपकी पीडा़ को न केवल यथावत् बयां किया वरन् एक सजीव चित्रण भी कर दिया ! ऐसे ऐसे रूपक और उपमाओं से इन 'दीन'बंधुओं को नवाजा़ है पढ़ते पढ़ते कई बार उन भयंकर पत्नियों को सामने पाया जो पतियों की धड़ल्ले से धुलाई कर रही हैं...कनस्तर भर भर गोलगप्पे पेल दे रहीं हैं ..तुडा़ई,कुटाई,धुलाई,छंटाई,पिसाई सब किये दे रहीं हैं! दहशत से रोंगटे हो गये ����.
    बहुत रोचक,हँसाता,गुदगुदाता व्यंग्य ..पढ़ते पढ़ते हँसती रही ...हँसते हँसते पढ़ती रही .पत्नी पीड़ित बंधुओं की सजीव व्यथा कथा सुनाने के लिये लेखक बधाई के पात्र हैं ...����
    अब देखना ये है कि ऐसी दुर्दांत वामाएं कौन से ग्रह में पायी जाती होंगी ! मेरी खोज जारी रहेगी ..पता मिलते ही सबके साथ शेयर करूँगी ��
    तब तक के लिए स्वागत,आभार ,अभिनंदन ��������
    अनुपमा नौडियाल

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  2. पीडित पति क्लब के सभी दीन हीन बंधुओं के प्रति मेरी संवेदनाएं ..भीमसैनजी ,अमीरजा़दा,रतन चाटवाला,और पत्नी से बचा लेने की करुण चीत्कार करते मान्यवर चीत्कार जी ...आप सब को लेखक की चुटीली भाषा का शुक्रगुजा़र होना चाहिये जो आपकी पीडा़ को न केवल यथावत् बयां किया वरन् एक सजीव चित्रण भी कर दिया ! ऐसे ऐसे रूपक और उपमाओं से इन 'दीन'बंधुओं को नवाजा़ है पढ़ते पढ़ते कई बार उन भयंकर पत्नियों को सामने पाया जो पतियों की धड़ल्ले से धुलाई कर रही हैं...कनस्तर भर भर गोलगप्पे पेल दे रहीं हैं ..तुडा़ई,कुटाई,धुलाई,छंटाई,पिसाई सब किये दे रहीं हैं! दहशत से रोंगटे हो गये 😄😄.
    बहुत रोचक,हँसाता,गुदगुदाता व्यंग्य ..पढ़ते पढ़ते हँसती रही ...हँसते हँसते पढ़ती रही .पत्नी पीड़ित बंधुओं की सजीव व्यथा कथा सुनाने के लिये लेखक बधाई के पात्र हैं ...🙏🏻😃😃
    अब देखना ये है कि ऐसी दुर्दांत वामाएं कौन से ग्रह में पायी जाती होंगी ! मेरी खोज जारी रहेगी ..पता मिलते ही सबके साथ शेयर करूँगी 😊
    तब तक के लिए स्वागत,आभार ,अभिनंदन 😊😊🙏🏻🙏🏻🙏🏻
    अनुपमा नौडियाल

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  3. धन्यवाद अनुपमा नौडियाल जी। लेखक ने तो जो कुछ लिखा, लिखा ही, किंतु आप जैसी साहित्यानुरागी पाठिकाओं ने लिखना सार्थक कर दिया । पता नही लेखक इतनी सफलता से लिख पाया है कि नहीं।
    एक बार फिर पात्रों के साथ संवाद कायम कर पाने के लिए आभारी हूं।

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