

बात सबको जंच गई. आयोग गठित हो गया. चार साल मे आयोग ने रिपोर्ट पेश कर दी. चार साल इसलिए लगे कि आयोग को कई देशों मे जाना पड़ा, वहां के संविधानों का अध्ययन करना पड़ा. यह कोई छोटा-मोटा काम न था. बेहिसाब हवाई यात्राएं करना, तमाम मुल्कों के लक्ज़री होटलों मे महीनों ठहरना, नित नए लज़ीज़ पकवान मन मार कर खाना, बेहतरीन पिकिनक स्थलों मे इच्छा न होते हुए भी घूमना ! आत्मा की आवाज़ दबा कर सेमीनारों मे भाग लेना. संविधान विशेषज्ञों से मूड न होते हुए भी मिलना, थके हुए प्रेज़ेंटेशन झेलना, ज़बरदस्ती सवाल पूछना, किसी तरह मन मार कर नीरस व उबाऊ लेक्चर सुनना- कि तना तकलीफ का काम था !
मगर सवाल था-देश का
! अगर प्राइवेट होटलों को बचाने मे हमारे कंमांडो जान गंवा सकते हैं,
, नकली बुलेटप्रूफ जैकेट
पहने पुलिस अफसर आतंकवादियों की गोलियों से छलनी हो सकते हैं, तो
यह छोटी सी कुरबानी आयोग के सदस्य कैसे न
कर पाते !
देश के नाम पर सारी
जहालत उन्होने खुशी खुशी झेली. चार साल की
मशक्कत के बाद जो दस्तावेज़ तैयार हुआ,
उसे बड़ी हिफाज़त से रक्खा गया था, पर उसकी कॉपी हमे उसी तरह मिल गई जैसे रेलवे परीक्षा के पर्चे पहले ही बाहर आ कर लाख लाख रुपए मे बिक
जाते हैं. दस्तावेज़ मे एक अध्याय सिफारिशों का था. आयोग ने दावा किया
था कि इन सिफारिशों पर अमल किया गया तो भविष्य
मे कभी संविधान संशोधन की ज़रूरत नही पड़ेगी. सि फारिशें संक्षेप मे इस प्रकार थीं :
1. किसी भी देश
की सबसे ज़्यादा क्रिएटिव पावर होती है युवा पीढ़ी. इसे सत्ता से दूर रखने के लिये निम्न लिखित उपाय करने ज़रूरी हैं
(क) इन्हें रोज़ी रोटी मे बुरी तरह
जकड़ कर रखा जाय.
(ख) रिज़र्वेशन
के ज़रिये इन्हें संगठित न होने दिया जाय.

(घ) युवाओं को सेनाओं मे बांट दिया
जाए. ताकि ये सेनाएं आपस मे घमासान युद्ध करती रहें तथा सत्ता मे भागीदारी करने का कुत्सित विचार
इनके दिमाग मे आ तक न सके.
(ङ) काले पैसे का प्रवेश चुनावों
मे अनिवार्य कर दिया जाए. ताकि एक तो अपने
को ईमानदार बताने वाले दलिद्दर किस्म के जंतु चुनाव लड़ने की सोच ही न सकें, दूसरे-समाज मे काले पैसे की
प्रतिष्ठा स्थापित हो सके. लोग गर्व से कह
सकें कि हमारे पास भी ब्लैक मनी है.

अमीरों की लाख गलतियां भी न देखी जाएं. अगर लोकलाज से देखनी ही पड़े तो गिरफ्तार न किया जाए. करना ही पड़ा तो निजी मुचलके पर फौरन छुड़वा लिया जाय. मान लो सबूत भी खिलाफ हो तो रिमांड पर लिया जाय पर सज़ा न हो. अगर सज़ा देनी ही पड़े तो कोर्ट के थ्रू उसे सारी सुविधाएं जेल के भीतर ही मुहैय्या कराई जाएं. तभी जनता मे संदेश जा सकेगा कि एक ही देश मे दो कानून लागू करने मे सरकार कितनी कामयाब रही है.
3. अविश्वास प्रस्ताव के दौरान
अगर सरकार गिरने का खतरा हो तो दूसरी पार्टियों के सांसदों को अंतरात्मा की आवाज़
पर वोटिंग करने का अधिकार दिया जाय और दैव की इच्छा मानते हुए राष्ट्रहित मे उसे वैध
ठहराया जाए. क्रॉस वोटिंग करने वाले साहसी देशभक्त सांसदों का नागरिक अभिनंदन किया जाए, उन्हें शॉल, श्रीफल से सम्मानित किया जाए. सहायता राशि
के रूप मे कम से कम दस दस करोड़ रुपए का मानदेय भी ज़रूर दिया जाय.

5. देश
की सभी पार्टियां इस 'परिवारवाद के सिद्धांत का कड़ाई से पालन
करें. किसी ऐसी पार्टी को ऊपर न उठने दिया
जाय, जो किसी 'आइिडयोलोजी' पर आधारित हो.


8. धर्म
के ठेकेदारों को हवा मे ज़हर घोलने के लाइसेंस बांटे जाएं. ऐसा माहौल बनने दिया जाए
कि मजहब,जाति व धर्म के नाम पर लोग एक दूसरे के खून के प्यासे
हो जाएं. दंगे भड़क उठें. जितने ज़्यादा लोग मरेंगे, उतना ही
तंत्र मज़बूत होगा.
9. पड़ोसी
देशों के साथ दोस्ताना संबंध रखे जाएं, ताकि जब अपने यहां
खतरे के बादल दिखाई दें तो पड़ोसी हमला करके कुरसी बचा सकें.
10. ऊपर
जितने लोग बैठे हैं - सबके आगे गांधी जी के तीन बंदर रखवा दिए जाएं. आंखें,
मुंह और कान बंद रखने की कसम खाकर ही वे कुरसी पर बैठें. चाहे आग
लगे, भूकंप आए, बाढ़ आए, जनता महंगाई की चक्की मे पिसती
रहे, बेरोज़गारी बढ़ती रहे, आतंकवादी
निहत्थी जनता को भूनते रहें, रेल दुर्घटनाओं मे बेकसूर लोग
मरते रहें, हवाई कंपनियां गाहकों को लूटती रहें, घोटाले होते रहें, पर कोई
न तो बोले, न देखे और न सुने.


इसीलिए अपने भत्ते बढ़ाने मे नेता देर न करें. ध्वनिमत से प्रस्ताव पास करके भत्ते बढ़ा लें क्योंकि देखिए महंगाई बढ़ती जा रही है ! जजों और नौकर शाहों के लिए भी महंगाई बढ़ रही है. उनका भी ध्यान रक्खें !.
(समाप्त)
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