दिन चूंकि छुट्टी का था , सो आठ बजे तक हम रजाई ओढ़े सपनों की दुनियां मे बेफिक्र खोए हुए थे. तभी धड़धड़ा कर दरवाज़ा खुला. लिहाफ ज़रा सा हटा कर देखा. मिर्जा ही हो सकते थे. मिर्जा ही थे. बदहवास, हाथ मे अखबार, दोनो कल्ले फूले हुए, होंठों से फरार पीक लहलहाती बर्फीली दाढ़ी को रंगती हुई. सपाट चांद पर पर बेतरतीब अटकी गोल नमाजी टोपी, घुटनों से लंबा कुरता और टखनों से ऊंची शलवार पहने जाने किस दुनियां मे खोए हुए मिर्जा.
हम कुछ कहते इससे पहले कुरसी पर तशरीफ
धंसाते हुए हकलाए – लो कल्लो बाट. अमां इलाके के पड़िंदे डानों की तलाश मे कबके उड़न
छू हो लिये. एक आप हैं कि अब टक मूंदे पड़े हैं. लाहौल विला कुव्वट.
हम झल्ला कर बोले – सुबह सुबह क्यूं
चाटे जा रहे हो मिर्जा. हफ्ते मे एक दिन
छुट्टी इसीलिए तो मिलती है कि आराम से.....
हमारी बात पूरी हुई भी न थी कि खिड़की
से सुर्ख पीक की पिचकारी बाहर सड़क की तरफ बरसाते हुए मिर्जा बोले – लो कल्लो बात !
अमां इलाके भर मे चरचे हैं इस खबर के.
चटकारे ले ले कर सुन रहे हैं लोग. सुनाएंगे तुम्हें भी. ऐसी जल्दी भी क्या है. खबर कहीं भागी थोड़े ही जाती है ! जरा चाय पानी हो जाए पहले ! जरा सुस्ता लें.
श्रीमती जी ने रसोई
से ही बांग दी- चाय मे अदरख लेंगे क्या?
- जी
जरूर. बगैर अदरक के सर्दियों की चाय मे जायका कहां. मिर्जा ने भी पंचम सुर मे जवाब
दिया. फिर चश्मे की डोरियां कानों पर यूं चढ़ाईं जैसे प्राचीन काल का कोई योद्धा धनुष पर प्रत्यंचा
चढ़ा रहा हो. फिर गोद मे फैले अखबार की एक एक खबर को घूरते हुए एक खबर पर उंगली गड़ा
कर चीखे – ये रही वो चटपटी मसालेदार खबर. जरा गौर फरमाइये.
- खबर
पर से उंगली हटाए बिना मिर्जा गुसलखाने की तरफ लपके. दोबारा उफन आया दरियाए सुर्ख पीक सुपुर्दे चिलमची किया. ताबड़ तोड़ कुल्ले किये. शीशे मे मुखौटे के दीदार
किये. मुस्कुराए. फिर आकर सोफे पर धंसते हुए गुर्राए – लिखा है एक इजीनियर ने
नौकरी पर लात मार कर सियासी पार्टी बना ली . नाम रक्खा है’
भारतीय ज़मीनवादी पार्टी. पार्टी का नारा है- हे पैसे वालो! तुम हमे
चंदा दो. हम तुम्हें ज़मीन देंगे.
मुंह
बिचकाते हुए हमने मिर्जा की तरफ देखा – क्या यही है वो दो कौड़ी की खबर जिसके लिए
आप ज़मीन आसमान सिर पर उठाए घूम रहे हैं ?
न खबर न खबर का शोरबा !
मिर्जा
पल भर को झेंपे , फिर संभले . बिटिया के हाथ
से चाय की प्याली झपटी और फिर इतमीनान से बोले, ‘ लो कल्लो
बात ! अभी खबर पढ़ी ही किस नाचीज़ ने है ? ये तो जनाब मुखड़ा
था. अंतरा अभी बाकी है. उबलती चाय सुड़कते मिर्जा बोले अमां जी की बात कहूं,
खबर तो मुआ बहाना है,
मकसद तो ये गरमा गरम अदरक वाली मसालेदार चाय थी. यही प्याली मिर्जा
को यहां खींच लाती है. काश ! हमारी बेगम को भी शऊर होता ऐसी कड़क चाय बनाने का
!बनाती चाय हैं बन जाता है गधे का ..... खैर जाने भी दो यारो. चाय जैसी भी बनाती
हो बेगम तो अपनी ही है .
मन ही मन हमे मिर्जा पर गुस्सा आ रहा था.
पगलैट ने हसीन सपनों की दुनिया से लाकर जमीन पर पटक दिया ! रंग मे भंग कर दिया
हराम खोर ने. बिस्तर पर बैठ हम भी चाय पीने लगे.
इधर मिर्जा प्याली खाली कर अखबार पढ़ने
लगे. ..... इस पार्टी के मालिक हैं सरदार रछ्पाल सिंह तंदूरी. पार्टी का चुनाव
निशान मिला है खोता (गधा). चुनाव प्रचार भी तंदूरी जी इसी जानवर की पीठ पर बैठ कर करते
हैं. पब्लिक उन्हे देखने दूर दूर से जुट रही है.
-
देखने या सुनने ? हमने अपना शक जाहिर किया.
-
भई इसमे तो लिखा है पब्लिक
उन्हे देखने जुट रही है ! मायूस मिर्जा बोले.
-
ठीक है, चलो बकते रहो. हमारे पास मिर्जा को झेलते रहने
के अलावा कोई रास्ता न बचा था.
उधर मिर्जा ने शेरवानी की सुरंगनुमा जेब
से पान दान निकाला. दो गिलौरियां बांएं व
दो दाएं कल्ले मे धकेल कर लगे कचरने. कचरने
की बेरहम कवायद से कलेजे को ठंडक पड़ी तो डोरी
वाले चश्मे को खाइयों सी गहरी आंखों के किनारों
पर फंसा कर बोले, ‘अरे क्या मेनीफेस्टो दिया है
इस पाल्टी ने ? जरा कान दो मियां, तबीयत बाग बाग न हो तो कहना. कहते हैं खुदा न खास्ता
हम पावर मे आए तो छोटे मोटे काश्तकारों की जमीने बंदूक
की नोक पर छीनेंगे. बनाएंगे स्पेशल इकोनॉमिक
जोन, और फिर औने पौने
दामों पर बेचेंगे बड़ी बड़ी कंपनियों को. एवज मे ये कंंपनियां पाल्टी को करोड़ों के चंदे देंगीं. हम ऐसे हालात पैदा कर देंगे कि किसान बड़ी तादाद मे खुद्कुशी करने लगेंगे.
चाय का दूसरा प्याला खींचने के बाद
मिर्जा की मरियल देह मे जैसे बिजली दौड़ गई थी. चश्मे के शीशों के पीछे से उनकी पैनी
नजर हमे घूरने लगी. बोले- जानते हो मियां आगे क्या लिखा है ?
पाल्टी के मुखिया रछपाल तंदूरी कहते हैं – हमें अभी से पब्लिक का रुख
देख कर पता चल चुका है कि हम लार्जेस्ट पार्टी बनने जा रहे हैं. मान लो दो चार सीटें कम पड़ी भी तो निर्दलीयों को खरीद लेंगे , निर्दलीय
होते ही बिकने के लिए हैं. सरकार बना कर चलाने का ठेका बाहर की बड़ी बड़ी कंपनियों को दे देंगे.
कंपनियों की रबड़ की मुहर बन कर पूरे पांच साल सत्ता का सुख भोगेंगे. कैबिनेट से जिस
भी मंत्री को हटाने का इशारा कंपनियां देंगी, उसे फौरन बाहर का
रास्ता दिखाया जाएगा. कैबिनेट से तो कैबिनेट से
उसे पार्टी से भी निकाला जाएगा,
दूध मे से मक्खी की तरह. यहां के तेल के कुएं, कोयले, तांबे,
सोने वगैरह की खानें या मुनाफा
देने वाली बड़ी बड़ी कंपनियां तश्तरी मे परोस कर उन बाहरी कंपनियों
को पेशे नजर की जाएंगी.
ये क्या मनहूस खबर सुना दी मिर्जा ?
आज का दिन तो गया भाड़ मे ! हो गई तसल्ली ? पड़ गई कलेजे
मे ठंडक ? अब जान बख्श दो गुरू ! हमने दोनो हाथ जोड़ कर सिर झुकाया.
सोचा बंदा ज़रा भी समझदार हुआ तो झेंप कर उठ ही जाएगा.
मगर मिर्जा बड़ी कुत्ती
चीज़ थी. उसकी खाल इतनी पतली न थी. तब तक बिटिया फिर चाय
ले आई ! चाय की प्याली पर बाज का झपट्टा सा मारते हुए मिर्जा हमारा मुंह ताकने लगे
.
हमने कहा,
“ लो कल्लो बात “ कैसा चल रहा है ?
मिर्जा ने जबरदस्ती मुस्कराने की नाकामयाब
कोशिश की. फिर कराहते हुए चहके ,’ लो कल्लो बात” एक जाना माना पीसीओ बन चुका है. इसकी शोहरत
इलाके के आला पीसीओ मे शुमार हो गई है. अमां एक
लमहे को भी बैठने को नही मिलता . अभी बेगम बैठी होंगी. फिर बिटिया बैठेगी. और
सांझ को हम बैठेंगे. रात गए तक जमघट लगा रहता है.
हमने मशविरा दिया ‘
अब कचैरी वचैरी जाना छोड़ क्यूं नहीं देते ? खानदानी अर्जीनवीस हो. लो कल्लो बात की बगल मे एक कंप्यूटर प्रिंटर रख लो. लौंडे तुम्हारे
दिन भर मटर गश्ती करते रहते हैं. किसी एक को कंप्यूटर सिखा के बिठा दो. तुम बोलते जाओ,
लौंडा टाइप करता जाएगा. इनकम डबल हो जाएगी.
हमारी बात पर पहली बार मिर्जा ने तवज्जो
दी. पर जल्दी ही मरी हुई चिड़िया की तरह गरदन लटका कर बोले .’
अमां लौंडे आजकल हराम खोर और निहायत मक्कार हो गए हैं. काम के ना काज
के, ढाइ सेर अनाज के. बताऊं क्या बका करते हैं ? हम तो लीडर बनेंगे ! भला लीडरी से
बेहतर और कौन सा बिजनेस होगा ? कुछ करना न धरना ! जरा सा झूठ
बोला, इधर की उधर की . सियासी दंगे करवा दिए. बम फुड़वा दिये.
बस ! चमक गई दुकानदारी ! और इलाके के बुजुर्ग लीडरों की चमचागीरी और कर ली तो हो गए
पौ बारह ! टिकट पक्का समझो फिर तो. फिर तुम्हीं बताओ सरमा. ये हरामखोर बैठेंगे कंप्यूटर पे ? वो भी सौ पचास रुपल्ली के चक्कर में
? वो भी दिन भर ? लीडरी करेंगे ! लीडरी न हुई इनकी पुश्तैनी
जागीर हो गई !
हमने पूछा- वैसे लौंडे
पढ़े कहां तक हैं ? दसवीं बारहवीं तो कर ली होगी ?
मिर्जा हंसे,- लो कल्लो बात ! अमां ग्रेजुएशन
किये बैठे हैं सारे. पढ़ाने में मिर्जा ने कोई
कसर नहीं छोड़ी ! बाल सारे कचैरी मे बैठ के उड़ा दिये तब जा के तालीम की अहमियत अकल मे
बैठी ! तालीम की कद्र मिर्जा बखूबी समझे है मियां !
तभी घर से मिर्जा का
बुलावा आया,’ अब्बा आज हम पीसीओ पे नहीं बैठेंगे. एक्स्ट्रा किलास है. अब्बी कहती है आप बैठ जाओ.
“ लो कल्लो बात” ! मिर्जा
का चेहरा उतर गया. बोले - जाने कौन मनहूस घड़ी
मे ये जी का जंजाल खरीदा था ! न रात को चैन न दिन को सुकून. दिन भर बैठ के या तो मक्खियां
मारा कीजिए या फिर चरकटों के अजीबो गरीब थोबड़े घूरा कीजिए ! और ये शब्बो बिटिया ?
इसकी क्या कहूं ! जितनी धरती के ऊपर है उससे दुगनी धरती के नीचे है !
हर इतवार को इसकी एक्स्ट्रा किलास लग जाती है ? बैठना ही नही
चाहती मक्कार ! ये बूढ़ा मिरजा ! पैर कबर मे लटके हैं. कहां कहां बैठेगा जाके ?
फिर आसमान की तरफ देखते
हुए थकी आवाज मे कराहे मिर्जा- अब तो अल्ल ताला अपने पास ही बिठा ले तो सुकून मिले
! इस दोजख मे बहुत हुआ उठना बैठना !
फिर छड़ी ऊठाई और बेमन से उठ कर चल दिये ? "लो कल्लो
बात" की तरफ. जैसे कह रहे हों- बड़े बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले !
(समाप्त)
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