(क) परिचय: कंप्यूटर एक मानव
निर्मित मशीन है. इसे जो भी परिवर्तनीय विद्युत संकेत दिया जाता है, उसे यह डिजिटल संकेत मे बदल देता
है. हम पहले देख चुके हैं कि डिजिटल संकेतों मे दो ही मान होते हैं. ‘0’ या फिर ‘1’. अर्थात या तो शून्य, या फिर अधिकतम. कंप्यूटर
की संपूर्ण कार्यप्रणाली इन्हीं दो संख्याओं पर आधारित होती है।
आस्ट्रेलिया की आदिवासी जातियाँ बहुत पुराने समय से
दो अंकीय प्रणाली काम में ला रही थीं. अफ्रीका के आदिवासी भी ढ़ोल से दो ध्वनियाँ
(तेज़ तथा मंद) पैदा कर संकेत भेजते थे। मोर्स कुंजी मे भी डॉट तथा डैश- दो ही
संकेतों से अंग्रेजी के सारे अक्षर व्यक्त किए जाते हैं.
सन 1666 में गोटफ्रेडलीबनिज ने दशमलव संख्याओं
को बाइनरी संख्याओं में बदलने की शुरूआत
की। सन1939 मे अमेरिका के आयोवा स्टेट
कॉलेज के भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर जॉन अटानासोफ़ ने बाइनरी संख्याओं पर आधारित कंप्यूटर का
पहला नमूना तैयार किया। लगभग इसी समय
दुनिया के दूसरे भागों में क्लाउड शैनन,कोरनाड जुसे तथा जॉर्ज स्टीबिट्ज़ आदि
गणितज्ञ भी बाइनरी संख्याओं के लॉजिक को बूलियन बीजगणित के साथ जोड़ने की कोशिशों
मे जुटे हुए थे.
(ख) बाइनरी
संख्याएँ तथा उनकी मूल गणितीय प्रक्रियाएँ
–
दशमलव पद्धति में जिस प्रकार नौ मूल संख्याएँ (0
से 9 तक) होती हैं, ठीक उसी
प्रकार बाइनरी पद्धति में केवल दो मूल संख्याएँ (0 तथा 1) होती हैं । कंप्यूटर
केवल इन्हीं दो संख्याओं के बल पर बड़ी से बड़ी
संख्याएँ व्यक्त कर सकता है।
इससे पहले कि हम यह बताएँ कि कंप्यूटर इन दो संख्याओं से
दशमलव पद्धति की बड़ी संख्याएँ कैसे व्यक्त कर पाता है, हमें कंप्यूटर में प्रयोग होने वाले कुछ
शब्दों की जानकारी लेनी होगी, जैसे कि बिट, बाइट आदि।
बिट(Bit) : - बाइनरी संख्याओं-
‘0’ तथा ’1’ का नाम बिट है। क्लाउड ई. शैनन
ने सबसे पहले 1948 मे अपने शोध पत्र में सूचना की लघुतम इकाई के रूप में इस शब्द
का प्रयोग किया था । यह शब्द (Binary Digit) के Bi तथा t को मिला कर बनाया गया प्रतीत होता है।
बाइट (Bite):- आठ बिटों से बनने वाली संख्या या अक्षर को को हम बाइट कहते हैं। जैसे
( 1001 0110 ).
शब्द (Word):- सामान्यत: 8 बिट से लेकर 80 बिटों तक की संख्या या अक्षर समूह को हम शब्द कहते
हैं। किन्तु वास्तव में यह कंप्यूटर की
संरचना पर निर्भर करता है कि उसका एक शब्द कितने बिट से मिल कर बना है।
मूल गणितीय प्रक्रियाएँ :
![]() |
computer understands Binary Number System only |
- बाइनरी
संख्याओं का जोड़
: जिस प्रकार दशमलव संख्याओं मे जोड़, घटाना गुणा व भाग होते हैं, उसी
प्रकार बाइनरी संख्याओं मे भी ये चारों क्रियाएँ होती हैं।
सबसे पहले दो दशमलव संख्याओं का जोड़ (addition)देखते हैं : उदाहरण के रूप में,
45
+17

यहाँ हमने पहले इकाई के स्थानीय मान वाले अंकों 5 तथा 7 को जोड़ा ।इनका योग हुआ 12. 12 का इकाई
मान वाला अंक अर्थात 2 हमने लिख दिया व 1 को दहाई वाले अंकों 4 व 1 के साथ जोड़
दिया। इस प्रकार दहाई वाला अंक हुआ 4+1+1 = 6 . अत: 45 व 17 को जोड़ कर मिला 62.
इसी प्रकार हम बाइनरी संख्याएँ जोड़ते समय भी करेंगे। बस हमे
इतना ध्यान रखना होगा कि :
0 + 0 = 0
1 + 0 = 1
0 + 1 = 1
1 = 1 = 0 तथा हासिल 1 होगा, जो बाईं तरफ के आगामी बाइनरी डिजिट के साथ
जुड़ जाएगा .
अब एक बाइनरी जोड़ का उदाहरण लेते हैं :
1101
+1001

1011 0
सबसे पहले हमने दाईं
तरफ के लघुतम मान वाले डिजिट 1 तथा 1 को जोड़ा। यह 10 आया।इसमें से हमने न्यूनतम मान 0 लिख लिया तथा हासिल 1 को
दहाई मान वाले डिजिटों 0 व 0 के साथ जोड़ा। यह हो गया 0+0+1 =1. अब सैकड़ा वाली
संख्याओं 1 तथा 0 को जोड़ा. यह आया 1। इसे भी लिख लिया। अब हजार मान वाली डिजिटों 1
तथा 1 को जोड़ा। यह आया 0 तथा हासिल 1। हासिल को बिल्कुल बाईं तरफ लिख लिया। इस
प्रकार जोड़ हुआ 10110.
- बाइनरी
संख्याओं का घटाव : घटाव के
लिए हमें निम्न चार सूत्र ध्यान में रखने होंगे-
0
– 0 = 0
1
– 0 = 1
1
– 1 = 0
0
– 1 = 1 हासिल एक लेने से यह 10 – 1 = 1 के
समतुल्य हुआ.
अब एक दशमलव का उदाहरण लेंगे-
63
-29

इस उदाहरण में हमने पहले इकाई के अंकों 3 मे से 9 को घटाया. 3
में से 9 नहीं घट सकता था, इसलिए हमने दहाई की
संख्या 6 में से 1 दहाई उधार लेकर 3 को 13 बना दिया. अब 13 में से 9 घट कर 4 बचा, जिसे हमने इकाई की जगह पर लिख लिया.
अब 6 की जगह पर 5 बचा. 5 में से 2 घटाया तो 3 बचा,
जिसे हमने दहाई की जगह पर लिख लिया.
बिल्कुल इसी तरह हम एक उदाहरण बाइनरी संख्याओं का लेंगे-
1010
-0110

इस उदाहरण में इकाई के 0 मे से इकाई
का 0 घटाया तो 0 ही बचा. इस शून्य को इकाई के अंकों के नीचे लिख लिया. अब दहाई के
1 में से दहाई का 1 घटाया तो 0 बचा, जिसे दहाई के नीचे लिख लिया. अब सैकड़ा के 0 में से सैकड़े
का 1 घटाया, जो नहीं घाट सकता था, अत: हजार वाले 1 को उधार लिया. अब
ऊपर 10 हो गया, जिसमे से 1 घटा कर 1 बचा. इसे सैकड़े वाले स्थान पर लिख लिया. हजार
वाली लाइन में ऊपर कुछ नहीं बछ, अर्थात 0 बचा. नीचे पहले ही 0 था। अत: वैसे भी हजार वाले
स्थान पर 0 ही आया.
3 बाइनरी संख्याओं का गुणा : इसके लिए हमें
निम्न लिखित चार सूत्र ध्यान में रखने होंगे-
0
x 0 = 0
0
x 1 = 0
1
x 0 = 0
1
x 1 = 1
पहले एक उदाहरण हम दशमलव संख्याओं का लेंगे-
35
X 7

अब हम बाइनरी संख्याओं का उदाहरण लेंगे.
101
x11
x11
पहले हम 101 को 1 से गुणा करेंगे. ये आएगा 101. अब हम अगली लाइन मे दाईं
तरफ एक 0 लगाएंगे, जैसा की हम दशमलव संख्याओं में करते हैं। अब पुन: दूसरे 1 से पूरी संख्या को गुणा
करेंगे. ये आएगा 1010.
101
x11
101
1010 <-- 0 यहाँ प्लेस होल्डर है।
x11
101
1010 <-- 0 यहाँ प्लेस होल्डर है।
अब दोनों पंक्तियों की संख्याओं को जोड़ लेंगे.
101
x11
101
1010
1111
x11
101
1010
1111
4 बाइनरी संख्याओं
का भाग : बाइनरी संख्याओं के भाग के लिए निम्न सूत्र ध्यान में रखने
होंगे-
0
÷ 1 = 0
1
÷ 1 = 1
यह काफी आसान है। नीचे दिया गया उदाहरण देखें। इसमें 11 से 1011
को भाग दिया गया है.
11 शेष=10
11 )1011
-11
101
-11
10 <-- शेष
11 )1011
-11
101
-11
10 <-- शेष
अपने उत्तर की परीक्षा के लिए हम भाजक और भाग फल को गुणा करेंगे। इस गुणनफल
मे शेष जोड़ेंगे। यह संख्या भाज्य होगी, अर्थात जिसे भाग दिया गया है।
यानी 1011.
11
x 11
11
11
1001 <-- 11 और 11 गुणनफल
x 11
11
11
1001 <-- 11 और 11 गुणनफल
1001
+ 10
1011 <-- गुणनफल और शेष का योग.
+ 10
1011 <-- गुणनफल और शेष का योग.
यह योग है 1011 अर्थात भाज्य, जिसे भाग दिया गया था.
हेक्सादशमलव(Hexadecimal) संख्याएँ : जिस प्रकार
बाइनरी संख्याओं का आधार 2 तथा दशमलव संख्याओं का आधार 10 होता है, उसी प्रकार हेक्सादशमलव संख्याओं का आधार होता है- 16. दशमलव के दस अंकों के बाद 11 को व्यक्त करता है A, 12 को B, 13 को C, 14 को D, 15 को E तथा 16 को F. इस प्रकार हेक्सादशमलव पद्धति
के मूल अंक हुए- 0,1,2,3,4,5,6,7,8,9,A,B,C,D,E,F. हेक्सादशमलव पद्धति की सबसे अच्छी बात यह है कि
इसमे अंकों तथा अक्षरों का समावेश है। ऐसी संख्याओं को हम अल्फ़ान्यूमेरिक संख्याएँ
कहते हैं।
कंप्यूटरों में
इस्तेमाल होने वाले माइक्रोप्रोसेसरों में हेक्सादशमलव संख्याओं का ही प्रयोग होता
है। निम्न लिखित सारणी मे तीन पद्धतियों- बाइनरी, दशमलव तथा हेक्सादशमलव पद्धतियों
के तुल्य मान दिये गए हैं:
हेक्सादशमलव
|
बाइनरी
|
दशमलव
|
0
|
0000
|
0
|
1
|
0001
|
1
|
2
|
0010
|
2
|
3
|
0011
|
3
|
4
|
0100
|
4
|
5
|
0101
|
5
|
6
|
0110
|
6
|
7
|
0111
|
7
|
8
|
1000
|
8
|
9
|
1001
|
9
|
A
|
1010
|
10
|
B
|
1011
|
11
|
C
|
1100
|
12
|
D
|
1101
|
13
|
E
|
1110
|
14
|
F
|
1111
|
15
|
(ग) बाइनरी, दशमलव, हेक्सादशमलव तथा इनका
परस्पर परिवर्तन.
हेक्सादशमलव संख्याओं को बाइनरी तथा दशमलव संख्याओं मे बदलना
:
मान लीजिए संख्या है 9F.ऊपर दी गई सारणी के अनुसार 9 का बाइनरी मान है 1001,
तथा F का बाइनरी मान है 1111. इन मानों को हेक्सादशमलव
संख्याओं के मानों की सीध में नीचे इस प्रकार लिख देंगे:
9 F
1001 1111 इस प्रकार 9F की तुल्य बाइनरी संख्या हुई
1001 1111.यदि दशमलव तुल्य संख्या
जाननी हो तो उपरोक्त सारणी से 9 तथा Fके दशमलव मान जोड़ने
होंगे, जो इस प्रकार हैं:
9 F
9 + 15
= 24
बाइनरी संख्याओं को दशमलव संख्याओं में बदलना : अब प्रश्न उठता है कि केवल 0 तथा 1 की सहायता से बड़ी बड़ी
संख्याओं को कैसी व्यक्त किया जा सकता है।
इसका रहस्य छिपा है- बिटों के स्थानीय मान(Place value) पर. हर बिट
का एक स्थानीय मान होता है। सबसे कम मान वाला
बिट सबसे दाईं तरफ होता है। इसे लीस्ट सिग्नीफिकेंट बिट (LSB) भी कहते हैं। इसका दशमलव पद्धति
मे मान होता है (2)0. सबसे
अधिक स्थानीय मान रखने वाला बिट सबसे दाईं तरफ होता है। इसे मोस्ट सिग्नीफिकेंट
बिट(MSB) भी कहते हैं। इसका मान होता है (2)x , जहाँ x से मतलब है उस
बिट की दाईं तरफ से गिनने पर आने वाली संख्या। एक उदाहरण से इसे अच्छी तरह समझा जा
सकता है:
1 0 0 1 : यह एक बाइनरी संख्या है। यदि हम इस संख्या का मान दशमलव संख्या मे जानना चाहें तो
हमें
हर बिट का स्थानीय मान निकाल कर सबको जोड़ना होगा। वही जोड़ इस
बाइनरी संख्या का तुल्य दशमलव मान होगा।
1 0 0 1 में दाईं तरफ के 1 (LSB)का मान होगा 1* (2)0=
1*1 =1
1 0 0 1 में दाईं तरफ से पहले 0 का मान होगा 0*(2)1= 0*2=0
1 0 0 1 में बाईं तरफ वाले 0 का मान होगा 0*(2)2= 0*4=0
1 0 0 1 में सबसे दाईं तरफ वाले 1 (MSB)मान होगा
1 *(2)3= 1*8=8
इन सब स्थानीय मानों का योग करने पर ---------------------------------------------
1
0 0
1
8
+ 0 + 0 + 1 = 9
अत:
1001 का दशमलव पद्धति में मान हुआ 9.
(क) इसी प्रकार किसी दशमलव संख्या का
मान यदि बाइनरी संख्या मे जानना हो तो निम्न लिखित विधि अपनाएँ :
(ख) मान लीजिए हम दशमलव की संख्या 200
को बाइनरी संख्या में बदलना चाहते हैं। पहले हम दशमलव पद्धति में 200 के अंकों का
स्थानीय मान देखेंगे.
दशमलव
|
||
100
|
10
|
1
|
2
|
0
|
0
|
2 x 100 + 0 + 0 = 200
|
बाइनरी
|
|||||||
128
|
64
|
32
|
16
|
8
|
4
|
2
|
1
|
1
|
1
|
0
|
0
|
1
|
0
|
0
|
0
|
1 x 128 + 1 x 64 + 0 + 0 + 1 x 8
+ 0 + 0 + 0 =200
|
(घ) बाइनरी व दशमलव संख्याओं के जोड़
में यही अन्तर है कि बाइनरी संख्याएँ 2 तक
सीमित हैं, जबकि दशमलव संख्याएँ 10 तक हैं.
|
|
(ङ) बाइनरी संख्याएँ जोड़ते समय हमें
बस इतना ही याद रखना है कि बाइनरी संख्याएँ 2 पर आधारित हैं। जबकि दशमलव संख्याओं
का आधार होता है 10. बाइनरी संख्याओं में यदि 1 मे 1 जोड़ें तो 0 आएगा,1 हासिल के रूप मे
दहाई वाले स्थान पर पहुँच जाएगा. जबकि दशमलव संख्याओं में 1 मे 1 जोड़ने पर 2 आएगा.
|
|
(ii) बाइनरी संख्याओं को
हेक्सादशमलव(Hexadecimal) संख्याओं मे बदलना :
हेक्सादशमलव :इस पद्धति में संख्याओं का आधार 16 होता है। हेक्सा का अर्थ
है 6 तथा डेसीमल का अर्थ है 10. इस प्रकार हेक्साडेसीमल का अर्थ हुआ 10+6=16.
(9)
बूलियन
बीजगणित तथा लॉजिक गेट : -
पहले बूलियन
बीजगणित की बात करें। साधारण बीजगणित मे हम अज्ञात संख्याओं को ‘क’ ‘ख’ ‘अ’ ‘ब’ आदि अज्ञात संख्याओं तथा 1,2,3--- आदि प्राकृतिक संख्याओं का प्रयोग करते हैं। बूलियन
बीजगणित मे हम बाइनरी संख्याओं-1,0 का प्रयोग अज्ञात
संख्याओं x, y आदि के साथ करते हैं.
आधुनिक
कंप्यूटर अभियांत्रिकी क्योंकि डिजिटल
इलेक्ट्रानिक्स पर आधारित है, और डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स मे संकेत या तो
अधिकतम होता है, या फिर शून्य होता है। अधिकतम सिग्नल की
स्थिति को ‘हाई’, तथा न्यूनतम सिग्नल
की स्थिति को ‘लो’ कहते हैं। अब यदि हम
‘हाई’ को ‘1’ से
तथा ‘लो’ को ‘0’
से व्यक्त करें तो इन संकेतों के परिणाम हम बूलियन बीजगणित के द्वारा जान सकते
हैं.
अब हम चर्चा करेंगे उन डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक परिपथों की, जिन्हें आम भाषा मे लॉजिक गेट कहा जाता है.
लॉजिक गेट वास्तव में वे इलेक्ट्रॉनिक सर्किट हैं जिन्हें एक या अधिक ‘लो’ या ‘हाई’ सिग्नल देने पर एक आउटपुट प्राप्त होता है. यह आउटपुट भी लो या हाई
सिग्नल ही होता है.
बूलियन
बीजगणित के द्वारा आउटपुट सिग्नल की प्रकृति जानी जा सकती है. गेट के इनपुट तथा
आउट पुट संकेतों को रेखा चित्रों द्वारा व्यक्त कर सकते हैं। यहाँ हम कुछ
महत्वपूर्ण गेटों की चर्चा करेंगे:
(1)
‘और’ गेट (OR gate) : इस गेट में दो इनपुट दिये जाते हैं, जो या तो ‘हाइ’ होते
हैं, या ‘लो’ या
फिर एक ‘हाइ’ व दूसरा ‘लो’. आउटपुट
निम्न लिखित बूलियन समीकरण के अनुसार होता है :


A
|
B
|
Y=A+B
|
0
|
0
|
0
|
0
|
1
|
1
|
1
|
0
|
1
|
1
|
1
|
1
|
(2)‘एंड’ गेट (AND gate) : इस प्रकार
के गेट में यदि दोनों इनपुट हाई हैं तो
उसी दशा में आउटपुट हाई होगा, नहीं तो लो होगा। आउटपुट निम्न
समीकरण के अनुसार होता है :
Y = A*B ‘एंड गेट’ की ट्रुथ टेबल
A
|
B
|
Y=A*B
|
1
|
1
|
1
|
1
|
0
|
0
|
0
|
1
|
0
|
0
|
0
|
0
|
(3)नॉट
गेट(NOT gate): नॉट गेट वास्तव में एक इनवर्टर है. इसमें एक इनपुट तथा एक ही
आउटपुट होता है. यह आउट पुट
इनपुट का ठीक उल्टा होता है. अर्थात यदि इनपुट हाई है तो आउटपुट लो होगा.
‘नॉट गेट’ की ट्रुथ टेबल
A
|
Y = Ā
|
1
|
1
|
1
|
0
|
0
|
0
|
0
|
0
|
(4)बफर सर्किट (buffer circuit): यदि दो नॉट गेटों को एक के बाद एक करके जोड़ दिया जाय तो
आउटपुट वही हो जाता है जो इनपुट था। ऐसे सर्किट को बफर सर्किट कहते हैं।
(5)नन्द गेट( NAND gate) : नन्द गेट में भी दो या दो से अधिक इनपुट
सिग्नल हो सकते हैं, जबकि आउटपुट केवल एक ही होता है।
इस गेट में यदि सभी इनपुट सिग्नल हाई हों
तो आउटपुट सिग्नल लो होगा.
दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं की यदि एंड गेट के साथ
एक नॉट गेट जोड़ डिया जाय तो यह नन्द गेट बन जाएगा.




![]() |
B
नन्द गेट के लिए समीकरण है- Y=A.B
नन्द गेट की ट्रुथ टेबल-
A
|
B
|
Y
|
0
|
0
|
1
|
0
|
1
|
1
|
1
|
0
|
1
|
1
|
1
|
0
|
(6)नॉर गेट (
NOR gate): नॉर गेट भी दो या दो
से अधिक इनपुट सिग्नल होते हैं तथा एक आउटपुट सिग्नल होता है। दूसरे शब्दों मे कह
सकते हैं कि यदि एक ऑरगेट के साथ इनवर्टर जोड़ दें तो नॉर गेट बन जाता है।
इस गेट के आउट पुट में केवल तभी हाई सिग्नल मिलता है, जब कि सारे इनपुट लो हों.
A





Y= A+B
B
‘नॉर’ गेट की ट्रुथ टेबल:
A
|
B
|
-------
Y=A+B
|
0
|
0
|
1
|
0
|
1
|
0
|
1
|
0
|
0
|
1
|
1
|
0
|
(6)
एक्सोर
गेट (XOR) : एक्सोर शब्द दर असाल एक्सक्लूसिव ओर गेट शब्द का संक्षिप्त
रूप है। इस गेट
मे भी एक आउटपुट
तथा दो इनपुट होते हैं.
इस गेट की
विशेषता यह है कि जब दोनों इनपुट भिन्न होते हैं या लो होते हैं तो आउटपुट लो होता
है। तथा जब दोनों इनपुट हाई होते हैं तो
आउटपुट हाई होता है.
एक्सौर गेट का बूलियन
समीकरण है-
Y
= A.B + A.B
ट्रुथ टेबल Truth
table:
A
|
B
|
Y=A.B+A.B
|
1
|
0
|
0
|
0
|
1
|
0
|
1
|
1
|
1
|
0
|
0
|
0
|
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें