सूचना प्रौद्योगिकी [Information Technology]
सूचना (Information) क्या है :- किसी भी भौतिक राशि को उसके परिमाण (magnitude) द्वारा व्यक्त किया जा सकता है.यह परिमाण अंकों द्वारा ही व्यक्त हो
सकता है. अत: आंकड़ों से प्राप्त जानकारी को हम सूचना कह सकते हैं.
उदाहरण के लिए यदि हम साल भर तक हर
दिन का तापक्रम नोट करते जाएं तो हमें यह
सूचना मिलती है कि मई-जून में दिन का
तापमान सबसे अधिक तथा नवंबर-दिसंबर में सबसे कम होता है.
सूचना प्रौद्योगिकी (Information
Technology) :- सूचनाओं
(informations) के संसाधन (processing), भंडारण(storage) व संप्रेषण(communication) में प्रयोग होने वाली तकनीक को सूचना प्रौद्योगिकी कहते हैं. सूचना
प्रौद्योगिकी के मुख्यत: दो भाग हैं :
•
कंप्यूटर( computer)
•
संचार तंत्र ( communication)
कंप्यूटर के बारे में पिछले अध्याय में विस्तार से चर्चा हो चुकी है.
यहां पर हम सूचना के संचार-तंत्र की चर्चा
करेंगे. सबसे पहले यह जानना जरूरी होगा कि सूचना संचार क्या है.
सूचना का गणितीय स्वरूप :
कंप्यूटर एक मानव द्वारा बनाई गई मशीन है. इसमे जैसे आंकड़े
भरे जाएंगे, वैसे ही परिणाम प्राप्त होंगे (Garbage in Garbage out).
प्रश्न उठता है कि कोई सूचना आंकड़ों मे कैसे बदलती है. इसका उत्तर यह
है:
1. सबसे पहले कोई सूचना इलेक्ट्रॉनिक संकेत में
बदली जाती है.इसे एनालॉग सिग्नल कहते हैं.
(1)
यह एनालॉग सिग्नल अब इन्पुट
के रूप में कंप्यूटर को दिया जाता है . ‘एनॉलॉग टु डिजिटल कनवर्टर’ (ADC), नामक माइक्रोप्रोसेसर की मदद से यह एनॉलॉग सिग्नल
डिजिटल सिग्नल मे बदल दिया जाता है .
(2)
डिजिटल सिग्नल मे केवल दो स्थितियां होती हैं- या तो आंकड़ों का मान
शून्य होता है, या फिर अधिकतम होता है. इसमे बीच का कोई मान नहीं होता.
(3)
इन दो अवस्थाओं को ‘शून्य’ (0) तथा ‘एक”(1) संख्याओं से व्यक्त किया जाता है.
(4)
द्विपदी बीजगणित ( Binary
algebra) की सहायता से अब डिजिटल संख्याओं का परिमाण दशमलव संख्याओं
में बदल दिया जाता है.
(5)
इस प्रकार कंप्यूटर किसी भी एनॉलॉग विद्युतीय संकेत को संख्या के रूप
मे हमारे सामने प्रस्तुत कर देता है.
![]() |
एनालॉग तथा डिजिटल सिग्नल |
सूचना संचार( Information Communication) : - सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक विभिन्न
माध्यमों के द्वारा पहुंचाना ही सूचना संचार है.
दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि सुदूर स्थानों पर स्थित दो सूचना
केन्द्रों (उदाहरण के लिए कंप्यूटरों) में सूचनाओं का जो आदान प्रदान विभिन्न
संचार माध्यमों से होता है, उस पूरी प्राविधि को
सूचना संचार कहते हैं.
सूचना संचार के लिए
आइएसओ (इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ स्टैंडर्डाइजेशन) ने एक मॉडल तैयार किया है, जिसे
ओएसआइ मॉडल कहते हैं.इसका अर्थ है- ओपन सिस्टम इंटरकनेक्शन
ओएसआइ मॉडल का संक्षिप्त इतिहास
Brief History of -OSI (Open System Interconnection)
1978 में आइएसओ (इंटरनेशनल ऑरगनाइजेशन ऑफ
स्टैंडर्डाइजेशन) द्वारा सेवन लेयर्ड नेटवर्क आर्कीटेकचर ओएसआइ पर काम शुरू
हुआ.
सात परत वाले इस मॉडल का विचार हनीवेल कंप्यूटर के
चार्ल्स बैकमैन ने दिया. आर्पानेट(एडवांस रिसर्च प्रॉजेक्ट एजेंसी नेटवर्क) पर काम करते हुए जो अनुभव वैज्ञानिकों को हुए
वे सभी इस मॉडल को विकसित करने मे बहुत काम आए. आइएसओ7498 मे ओएसआइ का नया डिज़ाइन
दस्तावेज के रूप में रखा गया.
इस मॉडल में नेटवर्किंग सिस्टम को परतों में विभाजित
किया गया है. हर परत में एक या अधिक क्रियाएं सक्रिय रहती हैं. हर क्रिया अपने से
नीचे वाली परत के साथ सीधे सीधे अंत:क्रियाशील रहती है. साथ ही अपने से ऊपर की परत
को सभी जरूरी सुविधाएं प्रदान करती है.
ओएसआइ मॉडल
|
||||
हॉस्ट लेयर
|
डेटा यूनिट
|
लेयर संख्या
|
लेयरका नाम
|
फंक्शन
|
डेटा
|
7
|
अप्लीकेशन
|
अप्लीकेशन के लिए नेटवर्क प्रॉसेस
|
|
6
|
प्रेज़ेंटेशन
|
डॆटा का प्रेज़ेंटेशन,
एंक्रिप्शन, डीक्रिप्शन
|
||
5
|
सेशन
|
इंटरहॉस्ट कम्म्युनिकेशन
|
||
सेगमेंट
|
4
|
ट्रांसपोर्ट
|
एंड टु एंड कनेक्शन व
विश्वसनीयता, बहाव पर नियंत्रण
|
|
मीडिया लेयर
|
पैकेट
|
3
|
नेटवर्क
|
डेटापथ का निश्चयन, तथा
तार्किक एड्रेसिंग
|
फ्रेम
|
2
|
डेटा लिंक
|
भौतिक एड्रेसिंग
|
|
बिट
|
1
|
भौतिक
|
मीडिया, सिग्नल तथा बाइनरी
संप्रेषण
|
अब हम प्रत्येक परत के बारे में
संक्षेप में जानकारी देना चाहेंगे.
परत 1. भौतिक परत (Physical Layer).
इस परत में सूचना संचार में काम आने वाले उपकरणों के
भौतिक स्पेसिफिकेशनों की व्याख्या की जाती है. डिवाइस तथा भौतिक माध्यम के
अंतर्संबंध भी इस परत में आते हैं. जैसे कि इस्तेमाल होने वाली पिनों का लेआउट,
वोल्टेज, केबल के स्पेसिफिकेशन, हब, नेटवर्क अडाप्टर, हॉस्ट बस अडाप्टर, आदि.
भौतिक परत के प्रमुख काम तथा सेवाएं इस प्रकार हैं :
- संचार माध्यम के साथ कंप्यूटर आदि डिवाइस का कनेक्शन.
- डेटा के बहाव का नियंत्रण आदि.
- मॉड्यूलेशन अथवा प्रयोक्ता के उपकरण से संचार चैनल
पर डिजिटल डेटा का रूपांतरण. ये संकेत या तो तांबे तार या फिर ऑप्टिकल फाइबर
केबल या फिर रेडियो लिंक द्वारा संचरित होते हैं.
दर असल भौतिक परत ही सूचना बिटों को
एक स्रोत से दूसरे स्रोत तक पहुंचाने वाले उपस्करों का संयोजन सुनिश्चित करती है.
चाहे तरीका यूटीपी केबल हो, चाहे फाइबर ऑप्टिक केबल हो या फिर रेडियो लिंक हो, या
कोई अन्य तरीका.
परत 2. डेटालिंक परत (Data Link Layer) :
डेटालिंक परत हमें उपलब्ध कराती है- वे तरीके जिनसे
हम डेटा को विभिन्न उपकरणों के बीच नेटवर्क से भेजते हैं. शुरू में यह परत
पीपीपी(प्वाइंट टु प्वाइंट प्रोटोकॉल) के लिए इस्तेमाल मे लाई गई थी.
सारांश यह है कि डेटा लिंक परत ही सूचना फ्रेमों को
एक केन्द्र से दूसरे केन्द्र तक पहुंचाती है.
यहां पर बताना जरूरी होगा कि नेटवर्क परत से
प्राप्त सूचना बिट्स की अविरल धारा को
डेटा लिंक परत छोटी छोटी , मैनेज की जा सकने वाली
सूचनाइकाइयों मे बांट देती है. इन इकाइयों को ही फ्रेम कहते हैं.
परत 3. नेटवर्क परत( Network Layer) : यह परत मूलत: नेटवर्क की रूटिंग से
संबंधित कार्यों का निष्पादन करती है. यह कई बार डेटा को व्यवस्थित करने की साथ
साथ डिलीवरी की त्रुटियों की रिपोर्टिंग भी करती है. राउटर इसी परत में काम करते
हैं. ज़्यादातर प्रोटोकॉल्स भी इसी परत में क्रियाशील होते हैं.
कहने का मतलब यही है कि नेटवर्क परत ही एक सूचना पैकेट को
सूचना स्रोत से प्राप्त करके, ग्रहण करने वाले स्रोत तक पहुंचाती है.
नेटवर्क परत का ही दूसरा नाम इंटरनेटवर्किंग परत भी है.
टीसीपी आइपी प्रोटोकॉल इसी वर्ग में आते हैं.
परत 4. परिवहन परत( Transport Layer):
यह परत, जैसा
कि इसके नाम से ही प्रकट है, उपभोक्ताओं के बीच डेटा के पारदर्शी स्थानांतरण का
महत्वपूर्ण कार्य संपादित करती है. परत बहाव नियंत्रण, सेगमेंटेशनडिसेगमेंटेशन,
त्रुटिनियंत्रण आदि द्वारा डेटा संचार हेतु स्थापित लिंक की विश्वसनीयता का
निर्धारण भी करती है. टीसीपी(ट्रांसमिशन
कंट्रोल प्रोटोक़ोल) तथा यूडीपी(यूज़र डेटाग्राम प्रोटोक़ोल) इसी परत में काम करते
हैं.
जिस तरह डाकघर में चिठ्ठियों व पार्सलों को अलग अलग
करके भेजा जाता है, ठीक उसी तरह परिवहन परत में भी विभिन्न प्रकार के सूचना
पैकेटों की छंटनी होकर उनके गंतव्य तक भेजा जाना सुनिश्चित किया जाता है.
संक्षेप मे कहें तो एक प्रक्रिया से दूसरी प्रक्रिया तक सूचना भेजे जाने के
लिए परिवहन परत ही उत्तरदायी है.
परत 5. सेशन परत( Session Layer):
यह परत कंप्यूटरों के बीच कनेक्शनों को नियंत्रित
करती है. यह परत कनेक्शनों को स्थापित करती है, उन कनेक्शनों का प्रबंधन करती है,
व उन कनेक्शनों को रद्द भी करती है. ओएसआइ ने इस परत को सेशनों को बन्द करने के
लिए भी उत्तरदायी माना है.
संक्षेप में कहें तो सेशन परत अन्य परतों के साथ
संवाद स्थापित करने, सूचना संप्रेषण के दौरान चल रही क्रियाओं का नियंत्रण करने, व
विभिन्न इकाइयों के बीच तालमेल बिठाने के लिए भी उत्तरदायी है.
परत 6. प्रेज़ेंटेशन परत(Presentation Layer):
यह परत एप्लीकेशन
परत की विभिन्न इकाइयों के साथ संदर्भ स्थापित करती है. यह परत विभिन्न प्रकार के
डेटा प्रस्तुतीकरण से स्वतंत्रता प्रदान करती है. यह परत डेटा को इस प्रकार
परिवर्तित करती है ताकि एप्लीकेशन परत इसे स्वीकार कर सके. यह परत भेजे जाने वाले
डेटा को एंक्रिप्ट भी करती है ताकि भेजे जाने के दौरान कंपैटिबिलिटी जैसी समस्याएं
न आएं.
तात्पर्य यह है कि प्रेज़ेंटेशन परत :
(क) प्रेषक के डेटा फॉरमेट के अनुरूप सूचना प्राप्त
करने वाली मशीन के डेटा फॉरमेट को परिवर्तित कर देती है.
(ख) प्रेज़ेंटेशन परत सुरक्षा की दृष्टि से भेजी जाने
वाली सूचना को एन्क्रिप्ट करती है, तथा
सूचना प्राप्त करने वाली मशीन पर यह सूचना डिक्रिप्ट कर देती है.
(ग). प्रेज़ेंटेशन परत सूचना को संघनित रूप मे बदल
देती है, जिससे सूचना का आकार बहुत छोटा हो जाता है. मूल रूप से मल्टीमीडिया,
ऑडियो व वीडियो किस्म की सूचनाओं के लिए यह कंप्रेशन लाभदायक होता है.
परत 7.एप्लीकेशन परत( Application Layer).
यह परत अंतिम उपभोक्ता के सबसे करीब होती है. इसका
मतलब यह है कि यह परत तथा उपभोक्ता- दोनो ही सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन के साथ इंटरएक्ट
करते हैं. हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल(एचटीटीपी), फाइल ट्रांसफर
प्रोटोकॉल(एफटीपी)व सिंपल मेल ट्रांसफर प्रोटोकॉल(एसएमटीपी) इसी परत में सक्रिय
होते हैं.
एक ही वाक्य में कहें तो- एप्लीकेशन परत ही उपभोक्ता
को सूचना सेवाएं भौतिक रूप से प्रदान करने के लिए उत्तरदायी है.
इससे पहले कि हम
नेटवर्किंग के बारे में बात करें, हमें कुछ शब्दों के बारे में जानना होगा, जिनका
जिक्र बार बार आता रहेगा.
- रिपीटर(REPEATER) – यह एक
इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है, जो सिग्नल को ग्रहण करके उसे न केवल प्रवर्धित करता
है, बल्कि शक्तिशाली भी बना कर पुन: लंबी दूरी तक भेजने के योग्य बना देता
है. रिपीटर का प्रयोग उस समय जरूरी हो जाता है, जब कंप्यूटर में भंडारित
सूचना या किसी अन्य सिग्नल को सौ मीटर या उससे अधिक दूरी तक भेजना हो.
इस प्रकार हम देखते
हैं कि रिपीटर का काम इलेक्ट्रॉनिक सूचना या सिग्नल को शक्तिशाली बना कर लंबी दूरी
तक भेजने के काबिल बनाना है.
- हब(HUB) –यह भी एक
इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है, जिसमें बहुत सारे इनकमिंग सिग्नल आकर जुड़ते हैं. ये
सिग्नल या तो ट्विस्टेड केबल के जोड़े से आते हैं, या फिर ऑप्टिकल फाइबर केबल
से.बहरहाल ये संकेत जिस किसी माध्यम से भी आएं, हब इन्हें नेटवर्क का भाग बना
देता है. हब प्राय: दो प्रकार के होते हैं:
- 1.
पहला वर्गीकरण- एक्टिव या पैसिव हब : ज़्यादातर आधुनिक हब एक्टिव होते हैं. ये
एक्टिव हब पावर सप्लाइ से ही पावर ग्रहण करते हैं. पैसिव हब सिग्नल को अनेक
उपभोक्ताओं को एक ही समय में एक साथ नहीं दे पाते.
दूसरा वर्गीकरण –
बुद्धिमान अथवा मूक हब बुद्धिमान हबों में एक कंसोल पोर्ट भी होता है, इसका मतलब
यह है कि इन हबों को नेटवर्क के सिग्नल ट्रैफिक के प्रबंधन के लिए प्रोग्राम भी
किया जा सकता है. गूंगे या मूक हब इनकमिंग सिग्नल को ग्रहण करके सीधे सीधे सभी
पोर्ट्स पर भेज देते हैं. बगैर कोई प्रबंधन किये.
3.ब्रिज(BRIDGE) – जैसा कि नाम से ही प्रकट है, नेटवर्क ब्रिज नेटवर्क
के भागों को आपस में जोड़ने वाला उपकरण है. जोड़ने का यह काम ओएसआइ मॉडल के डेटालिंक
लेयर(लेयर2) पर होता है.
4. राउटर(ROUTER) – राउटर का काम है- इनकमिंग सूचनापैकेटों का परीक्षण करना.
फिर उन सूचनापैकेटों के लिए सबसे अच्छा निर्गम पथ खोज कर उन्हें आउटगोइंग पोर्ट तक
भेजना.
नेटवर्किंग ( Networking) :- सूचना युक्त कंप्यूटरों को
आपस मे जोड़ना ही नेटवर्किंग है. यह नेटवर्किंग यूटीपी केबल(अनट्विस्टेड पेयर) तार, फाइबर ऑप्टिक केबल, रेडियो लिंक तथा
उपग्रह – इतने तरीकों से हो सकती है. सुविधा के लिए नेटवर्किंग को निम्नलिखित
वर्गों में बांटा गया है :
- लोकल एरिया नेटवर्किंग( LAN)
- मेट्रोपोलिटन एरिया नेट्वर्क(MAN)
- वाइड एरिया नेटवर्क(WAN)
लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) : यह नेटवर्क किसी एक भवन के भीतर किसी
ऑरगनाइजेशन की सीमित जरूरतों के हिसाब से बनाया जाता है. इसमे कंप्यूटर एक ही स्थान पर लगभग एक सौ या कुछ
अधिक मीटर की दूरी पर स्थित होते हैं. क्योंकि यह नेटवर्क एक स्थान मे सीमित होता
है, अत: इसे लोकल एरिया नेटवर्क कहा जाता है. कंप्यूटरों को लैन द्वारा जोड़ने का
काम यूटीपी केबल द्वारा किया जाता है. काफी कम दूरी होने के कारण इस नेटवर्किंग
में सिग्नल की क्षति (signal loss) बहुत कम होती है, अत: किसी सिग्नल प्रवर्धक(Repeater) की जरूरत नहीं पड़ती.
मेट्रो एरिया नेटवर्क (MAN) : जब कंप्यूटर नेटवर्क किसी महानगर
के भीतर ही सीमित हो तो उसे मेट्रो एरिया नेटवर्क के अंतर्गत रखा जाता है. यह
नेटवर्क भी फाइबर ऑप्टिक केबल द्वारा स्थापित किया जाता है. इसकी जरूरत तब पड़ती है
जब उपभोक्ता हाइस्पीड पर कनेक्टिविटी
चाहता हो. इसके उदाहरण हैं केबल इंटरनेट,
तथा डीएसएल टेलीफोन.
वाइड एरिया नेटवर्क(WAN) : जब किसी संदेश ,चित्र या ध्वनि को काफी दूरी तक भेजना होता है तो
वाइड एरिया नेटवर्क का प्रयोग किया जाता है. भले ही वैन केबल द्वारा भी सिग्नल का
संप्रेषण कर सकता है, लेकिन इस विधि से सिग्नल की बहुत क्षति होती है. कुछ निश्चित
दूरियों के बाद रिपीटर लगाने पड़ते हैं.
इसीलिए वैन मे अंतर्महाद्वीपीय दूरियों के लिए रेडियो, संचार उपग्रह
अथवा सेलफोन का प्रयोग किया जाता है.
लैन के अंतर्गत कंप्यूटरों को
निम्न लिखित विधियों से जोड़ा जा सकता है:
1.
लाइन टोपोलोजी.
2.
बस टोपोलोजी.
3.
ट्री टोपोलोजी.
4.
रिंग टोपोलोजी.
5.
मेश टोपोलोजी.
6.
स्टार टोपोलोजी.
- फुली कनेक्टेड.
- लाइन टोपोलोजी में कंप्यूटरों को केबल द्वारा एक के बाद
दूसरे के क्रम मे जोड़ा जाता है. इसीलिये इसे प्वाइंट टु प्वाइंट कनेक्शन भी
कहा जाता है.
- बस टोपोलोजी मे मुख्य केबल में
ट्रैप दिये जाते हैं, जिनसे कंप्यूटरों को ड्रॉप लाइन के द्वारा जोड़ा जाता
है. इसमे सबसे बड़ी कमी यह है कि जैसे जैसे कनेक्शन बढ़ते हैं, सिग्नल कमजोर
होता जाता है. लेकिन अच्छाई यह है कि कनेक्शन करना आसान होता है.
- ट्री टोपोलोजी मे
- रिंग टोपोलोजी में हर डिवाइस
अपने निकटतम कंप्यूटर से जुड़ी होती है. इस टोपोलोजी मे हर कंप्यूटर के बाद
रिपीटर जरूर होता है, जो सिग्नल की शक्ति को बढ़ा देता है.
- मेश टोपोलोजी मे एक कंप्यूटर का
सिग्नल प्रवाह दूसरे कंप्यूटर तक सीधे सीधे होता है. ठीक उसी समय उसी कंप्यूटर का संबंध दूसरे कंप्यूटर से
भी हो सकता है. इस प्रकार एक मेश जैसी संरचना बन जाती है.
- स्टार टोपोलोजी मे प्रत्येक डिवाइस का सीधा सीधा कनेक्शन
एक केन्द्रीय हब से होता है. इस टोपोलोजी मे डिवाइसें एक दूसरे से सीधी जुड़ी
नहीं होतीं.
- फुली कनेक्टेड टोपोलोजी में सभी डिवाइसें एक से अधिक तरीके से एक दूसरे से जुड़ी होती हैं.
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नेटवर्किंग टोपोलोजी |
प्रोटोकॉल(Protocol) :- यह एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है. इसका अर्थ है- सूचना भेजने के तौर तरीके. यहां ओएस आइ मॉडल के हिसाब से कुछ प्रोटोकॉल्स के बारे मे चर्चा की जाएगी.
(क)
टीसीपीआइपी प्रोटोक़ोल सूट : सूचना भेजने का यह सूट ओएसआइ मॉडल विकसित
होने से पहले ही चलन मे आ चुका था. फिर भी इस प्रोटो कॉल की तुलना ओएसआइ मॉडल से
करने पर तीन लेयर (ओएस आइ की एप्लीकेशन, प्रेज़ेंटेशन व सेशन लेयर) एप्लीकेशन लेयर में समाहित हो जाती हैं .
टीसीपी की एप्लीकेशन लेयर में निम्न लिखित प्रोटोकॉल आते हैं:
(क) (क)
सिंपल मेल ट्रांसफर प्रोटोकॉल(SMTP)
(ख)
फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल(FTP)
(ग)
हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल(HTTP)
(घ)
डोमेन नेम सिस्टम प्रोटोकॉल(DNS)
(ङ)
सिंपल नेटवर्क मैनेजमेंट प्रोटोकॉल (SNMP)
(च)
टेलीफोन नेटवर्क प्रोटोकॉल (Telnet)
टीसीपी की परिवहन परत में निम्न लिखित प्रोटोकॉल आते हैं :
(क)
स्ट्रीम कंट्रोल ट्रांसफर
प्रोटोकॉल(SCTP)
(ख)
ट्रांसफर कंट्रोल प्रोटोकॉल(TCP)
(ग)
यूज़र डेटाग्राम प्रोटोकॉल (UDP)
टीसीपी की नेटवर्क परत में निम्न लिखित प्रोटोकॉल आते हैं:
(क)
इंटरनेट कंट्रोल मेसेज
प्रोटोकॉल(ICMP)
(ख)
इंटरनेट ग्रुप मेसेज
प्रोटोकॉल(IGMP)
(ग)
रिवर्स एड्रेस रेसॉल्यूशन प्रोटोकॉल (RARP)
(घ)
एड्रेस रेसॉल्यूशन प्रोटोकॉल(ARP)
सूचनाओं के पते (एड्रेसिंग़) : जब हम
इंटरनेट के द्वारा सूचना भेजते हैं तो भेजने वाले और पाने वाले का पता जरूरी होता
है, वरना सूचना हमारी इच्छानुसार नहीं पहुंच पाएगी.
इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों द्वारा उत्पन्न यह पते संख्याओं के रूप में
होते हैं. ब्लॉक डायग्राम द्वारा इस बात
को हम ऐसे समझा सकते हैं:
![]() |






भौतिक पता(physical address)
|
आइ पी एड्रेस (IP address)
|
पोर्ट का पता(port address)
|
1 भौतिक पता(physical address) : यह लिंक एड्रेस भी कहलाता है. यह एड्रेस वास्तव में मशीन के एन आइ सी (Network Interface Card) का नंबर होता है. इसका साइज़ 48 बिट होता है. अर्थात 6 बाइट का नंबर होता है, जो हर बाइट के बाद सेमी कोलोन द्वारा पृथक किया होता है. उदाहरण के लिए :
04:03:09:01:2B:5C.
2 आइपी एड्रेस (IP address) : हमने
भौतिक पतों मे देखा कि ये वास्तव में हार्डवेयर के एक कार्ड का नंबर है. जब हम विश्व व्यापी स्तर पर सूचनाओं का आदान
प्रदान करते हैं तो पाते हैं कि अलग अलग नेटवर्कों में अलग अलग किस्म के भौतिक पते
हैं. जाहिर है कि ऐसी स्थिति में भौतिक हमें बहुत ज़्यादा मदद नहीं पहुंचा सकता.
हमें तो ऐसे पते की जरूरत है कि जो हमारे द्वारा चाहे गए कंप्यूटर से हमें जोड़ दे,
चाहे उसका नेटवर्क किसी भी तरह का क्यों न हो.
आइपी पते की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि किन्ही भी दो कंप्यूटरों के
आइ पी एड्रेस एक से नही हो सकते. 32 बिट वाला यह एड्रेस सभी कंप्यूटरों के लिए अलग होता है. सूचना पैकेट का भौतिक पता
तो नेटवर्क बदलने के साथ बदल जाता है किंतु आइपी एड्रेस नही बदलता. वह शुरू से अंत
तक एक सा ही रहता है.
यह पता ही वास्तव में कंप्यूटर को नेटवर्क में अलग पहचान देता है.
इसका एक उदाहरण इस प्रकार है :
132.24.75.9
3.
पोर्ट एड्रेस (Port address): इंटरनेट का
एकमात्र उद्देश्य केवल डेटा को पहुंचाना हे नहीं है. आजकल कंप्यूटर एक ही समय में
एक से अधिक काम करते हैं. जैसे कि एक ही कंप्यूटर कहीं तो फाइल ट्रांसफर कर रहा
है, तो कहीं आवाज के रूप मे सूचना किसी दूसरे कंप्यूटर को भेज रहा है. ऐसी स्थिति
में हमें एक और पते की जरूरत पड़ेगी, जो यह बता सके कि कंप्यूटर पर एक साथ दो अलग
अलग काम हो रहे हैं. अर्थात दोनो कामों के पते अलग अलग होने चाहिएं. इस के
लिए TCP/IP आर्कीटेक्चर
की जरूरत पड़ती है. अत: हम कह सकते हैं कि
सूचना पैकेटों के साथ भेजा गया TCP/IP लेबल ही पोर्ट एड्रेस
कहलाता है. यह पोर्ट एड्रेस 16 बिट का होता है, तथा अकेली संख्या (753 आदि ) से
व्यक्त किया जाता है. .
सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित उपकरण: आज यह बताना बहुत मुश्किल है कि कौन सा उपकरण
सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित है, और कौन सा नही। इसका कारण यह है कि आज सूचना
प्रौद्योगिकी का प्रवेश लगभग हर क्षेत्र मे हो चुका है।
उदाहरण के लिए मोबाइल फोन को ले सकते हैं। यह यंत्र न
केवल सूचना,
ग्राफिक्स आदि को ग्रहण करता है, बल्कि उन्हें भेजता भी है, उन्हें संग्रह भी करता है।
दूरदर्शन केंद्र को लाइव
भेजे जाने वाले दृश्य तथा समाचार जिस वीडियो कैमरे से शूट किए जाते हैं, या जिस वैन से दूरदर्शन केंद्र को भेजे जाते हैं, वह एंटेना तथा ट्रांसमिशन सिस्टम सूचना प्रौद्योगिकी के अंतर्गत ही आते
हैं।
कृत्रिम उपग्रहों को नियंत्रित किए जाने के लिए अर्थ स्टेशन से दिये जाने वाले निर्देश भी सूचना प्रौद्योगिकी के दायरे मे ही आते हैं। ये कृत्रिम उपग्रह भी दूरभाष तथा दूरदर्शन केंद्रों से प्राप्त रेडियो तरंगों को सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित ट्रान्सपोंडरों द्वारा ही पूरे विश्व मे प्रसारित करते हैं।
![]() |
पृथ्वी की कक्षा मे घूमते संचार उपग्रह |
कृत्रिम उपग्रहों को नियंत्रित किए जाने के लिए अर्थ स्टेशन से दिये जाने वाले निर्देश भी सूचना प्रौद्योगिकी के दायरे मे ही आते हैं। ये कृत्रिम उपग्रह भी दूरभाष तथा दूरदर्शन केंद्रों से प्राप्त रेडियो तरंगों को सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित ट्रान्सपोंडरों द्वारा ही पूरे विश्व मे प्रसारित करते हैं।
एक छोटे से सेंसर से लेकर एक विशाल असेंबली लाइन तक मे आज सूचना
प्रौद्योगिकी का प्रयोग होता है।
आज अमेरिका मे बैठा डॉक्टर सूचना-प्रौद्योगिकी के विकसित उपकरणों की
मदद से भारत के ऑपरेशन थियेटर मे लेटे मरीज़ का ऑपरेशन कर सकता है।
आज विश्व के किसी देश मे समाचार
पत्र का पेज बनता है, तो कई देशों मे एक ही समय में वह छपता है।
धरती के ही नहीं बल्कि अंतरिक्ष के किसी भी ग्रह मे क्या हो रहा है- यह सारा हाल हमें हमारे
कृत्रिम उपग्रह तत्काल बता देते हैं।
एक माइक्रो रोबोट किसी धमनी से प्रविष्ट होकर हमारे हृदय मे पहुँच
सकता है, तथा
वहाँ ऑपरेशन भी हमारे द्वारा दिये गए निर्देशों के अनुसार कर सकता है।
अत: सूचना प्रौद्योगिकी आज हमारे जीवन के हर क्षेत्र मे प्रवेश कर
चुकी है। उससे
संबंधित उपकरणों को किसी
सीमा मे बांधना आज संभव नहीं रहा।
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