जिसे लोग
राजू कहते फिर रहे हैं वह पिछले जन्म में चार्वाक था.
वह द्वापर
युग था. सतयुग और त्रेता युग का आध्यात्मिक हैंगओवर लोगों के
दिलो-दिमाग से अभी तक नहीं उतरा था. इसी लिए चार्वाक की प्रैक्टिकल बात लोगों की
समझ में नहीं आ सकी. भला पांच हजार साल पहले कोई कहे- ऋणं कृत्वा
घृतं पिबेत- लोन लेकर घी पिओ ! सोचिये कौन अमल करता.
बेचारे चार्वाक को कलियुग में फिर से जन्म लेना
पड़ा.
इस युग में
हालात उसके फेवर में थे. शेयर मार्केट का
फंडा ज़ोरों पर था. चार्वाक मीडियम क्लास फेमिली में पैदा हुआ थ. वही घिसे पिटे
संस्कार, किसी को धोखा मत दो, ईमानदारी की सूखी रोटी भली, बेइमानी की चुपड़ी रोटी
खराब, झूठ न बोलो. विष दे दो विश्वास न दो- वगैर वगैरह. ऐसे अंध विश्वासों को
तोड़ने में उसे कड़ी मेहनत करनी पड़ी. तब जा कर कहीं वह ऊपर आ सका. ऊपर मतलब अपर
क्लास में. जहां ऐसी ऊल जलूल बकवासों का
कोई अर्थ नहीं होता. प्रॉपर्टी, कंस्ट्रक्शन और रियल एस्टेट का काम किया. चार्वाक
अमेरिका में पढ़ चुका था. आइटी याने इंफॉर्मेशन टेक्नोलोजी की उन दिनों खूब धूम मची
थी. उसने भी असत्यम नाम की आइटी कंपनी खोल ली.
असत्यम का
आइपीओ निकला. खूब पैसा बटोरा, छंटे हुए चार्टर्ड अकाउंटेंट्स रक्खे. गोलमाल का खेल
शुरू हुआ. असत्यम का पैसा चार्वाक के सपूतों की निजी कंपनियों मे लगने लगा. असत्यम
को मुनाफा दिखाया जाता रहा. निवेशक खुश
होता रहा कि असत्यम प्रॉफिट में चल रही है. जबकि घी चार्वाक एंड संस की थालियों पर
गिरता रहा. असत्यम, दरिद्रम होती रही. और जब 'पे' देने लायक पैसा भी न बचा तो शेयर
ही गिरवी रख दिये.
इस मनहूस पैसे
में यही खराब बात है. आएगा तो आता ही चला जाएगा. पर हवस फिर भी नहीं भरती. आगे आगे
चलती है. शेयर गिरवी रखने से काफी पैसा आया, उसका भी घी पी लिया, पर पेट नहीं भरा.
विश्व बैंक से मोटा लोन अप्लाइ किया. ताकि रही सही कसर भी पूरी हो सके. मगर विश्व
बैंक वालों को तो पूरी जांच करनी थी. वे
तो बिकाऊ नहीं थे. पता चला कि असत्यम में कई फ्रॉड हुए हैं. उनके अकाउंट में कई
गंभीर खामियां हैं. पैसा नहीं मिल सकता.
लोन नहीं
मिला. चलो नहीं मिला, न सही. पर बुरा ये हुआ कि असत्यम की असली सूरत बेनकाब हो गई. अब एक बार चीज़ नंगी आंखों
से दीख जाए तो माननी ही पड़ती है. देख कर मक्खी नहीं निगली जाती. सेबी को भी मानना
पड़ा. स्टॉक मार्केट से हटाया, सस्पंशन के ड्रामे शुरू हुए, आंध्र के मुख्य मंत्री
का असत्यम की पीठ पर धरा हाथ नज़र आया. चार्वाक के बेटे की कंपनी 'मेटायस' को दिये गए ठेके नज़र आने लगे. उड़ीसा, मुंबई,
दिल्ली------भला कहां नहीं मिले थे मेटायस को ठेके. मेटायस मुटाती रही, असत्यम सूखती
गई. मेटायस के साथ सत्ता की ताकत थी, असत्यम के साथ गरीब निवेशक थे. असत्यम बेचारी
द्रौपदी हो गई, जिसे उसके ही पतियों ने दांव पर लगा दिया. जिस की साड़ी को मेटाय़स
नाम का दु:शासन सरे दरबार खींच रहा था.
धृतराष्ट्र रूपी अंधी सरकार, वित्त मंत्रालय रूपी नपुंसक भीष्म पितामह, सेबी रूपी सत्ता
भोगी नीतिज्ञ विदुर, स्टॉक एक्सचेंज़ रूपी मित्र कर्ण, सब तमाशा देख रहे थे. मगर
कोई कुछ न बोला. द्रौपदी लुटती रही. कर्णधार देखते रहे.
देखते रहे.
देख रहे हैं, और देखते रहेंगे.
चार्वाक का
कुछ नहीं बिगड़ेगा. वह काले पैसे को शेयर मार्केट से सफेद करता रहेगा. शेयर मार्केट
का वह पैसा किसका था ? वह पैसा था-आपका, मेरा या फिर हमारे जैसे उन बेवकूफ लोगों
का, जो शेयर मार्केट के ज़रिये अमीर बनना चाहते थे. हमारी यही बेवकूफी चार्वाक खूब
भुना रहा है.
चार्वाक की दोस्ती सत्ताधीशों से है. या तो राजनीतिक
पार्टियां उसके पे-रोल पर हैं या फिर वह खुद इन कंपनी रूपी पार्टियों के पे रोल पर
है. राजनीति का थैली बाजों के साथ न्यूनतम साझा कार्यक्रम बन चुका है. काला पैसा व
छोटे निवेशक का पैसा- मिल कर इस गठजोड़ को सींच रहे हैं. बगैर कुछ किये धरे अमीर
बनने की आस पाले बैठा छोटा निवेशक सरे बाज़ार लुट रहा
है.
यह एक खुला
डाका है. जिसे कानूनी मान्यता मिली हुई है. करोड़ों शेयर धारकों को चूना लगाने वाले
चार्वाक को बाइज़्ज़त बहाल करने की होड़ मची है. इसे कहते हैं सफेदपोश डकैती. आप लुट
गए हैं. आपको लूटने वाला सामने खड़ा है और आप कुछ नहीं कर पा रहे.
हैदराबाद
के आस -पास की सैकड़ों एकड़ ज़मीन इस सत्यवान ने कौड़ियों के भाव खरीद ली. इस काम में
मदद किसने की ? सत्ता में बैठे लोगों नें. एसईज़ेड बनाए इन्हीं जैसे लुटेरों के
लिए. किसानों की ज़मीनें छीनी गईं इन्हीं धोखेबाज़ों के लिए. चीज़ ली चार्वाक ने अपने
नाम से, पैसा लगाया -आपका हमारा. आप कौड़ी कौड़ी करके जोड़ते रहे, असत्यम के शेयर
लेते रहे. चार्वाक उठता रहा, आप गिरते रहे. 'सेबी' मुस्कराती एक तरफ खड़ी होकर
तमाशा देखती रही. मानो कह रही हो-लूट ले चार्वाक, जितना लूट सकता है. मैं हूं न ! ऑडिटर स्याह को सफेद करने में जुटे रहे.
चार्वाक
जानता था- कि इस मार्केट सिस्टम में क्या क्या छेद हैं. कहां और कैसे इसमें सेंध
लगाई जा सकती है.
चार्वाक ने
तो कृष्ण जी के कर्मयोग तक का बैंड बजा दिया था. कृष्ण जी डर के मारे उसके सामने
नहीं पड़ते थे. उससे डिस्कशन नहीं करते थे. क्योंकि उनकी थ्योरी मॉरल पर टिकी हुई
थी, विश्वास पर टिकी हुई थी. वही विश्वास जो आम निवेशक को 'सेबी' पर होता है,
ऑडीटर्स पर होता है. और देश की सबसे ऊंची कुर्सियों पर बैठे लोगों के स्टेटमेंट्स
पर होता है.
इतिहास उठा
कर देखिये, जब भी टूटा, विश्वास ही टूटा. इज़्ज़त ही गिरी. धोखा नहीं टूटता. बे
इज़्ज़ती कभी नहीं गिरी. चार्वाक द्वापर में भी सच था. आज भी सच है. और कृष्ण का कर्मयोग
? विवादों के घेरे में तब भी था. आज भी है.
वो देखिये-
चार्वाक जेल में बैठा हंस रहा है. वहां न्यायपालिका
ने उसे विशेष ट्रीटमेंट दिलवाया है. एक बेडरूम, एक बैठक, एक किचन. वो नर्म गद्दों
पर सो सकता है, रोज़ घर से खाना मंगा सकता है, या वहीं मरज़ी के पकवान बनवा सकता है.
रोज़ गोश्त खा सकता है. अपनी पसंद के अखबार पढ़ सकता है. टीवी देख सकता है. वहीं बैठ
कर आगे की योजनाएं बना सकता है-जैसे कि,जो हजारों एकड़ ज़मीन खरीदी है, उस पर एसईज़ेड
कैसे बनेगा, टाउनशिप डवलप करने का ठेका किसे दिया जाएगा, असत्यम जैसी कई और कंपनियां
कैसे खुलेंगी-वगैरह वगैरह.
और रही बात
बेइज़्ज़ती की. तो भई, भर्तृहरि हजारों साल
पहले कह गए हैं- सर्वे गुणा कांचनमाश्रयंती. याने, सारे गुण धन में निवास करते
हैं. जिसके पास पैसा है- उसे कुछ कहना तो रहा दूर, उसकी तरफ कोई आंख उठा कर भी
नहीं देख सकता. देखिये, गरीब जनता के सात हज़ार आठ सौ करोड़ रुपए पी जाने वाला
चार्वाक जेल में भी किस शान से रहता है ! और दो सौ अस्सी रुपए चुराने वाली एक आठ
साल की बच्ची ! यूपी पुलिस उसे चुटिया से पकड़,
हवा में उठाए रखती है. चांटे मारती है, डंडे बजाती है, उलटा लटकाती है. सरे आम !
कैमरे के सामने !
चार्वाक के
साथ साथ शकुनि भी धरती पर आया था. द्वापर में वे भले ही कभी न मिले हों, पर यहां
वे एक ही थैली के चट्टे-बट्टे थे. दो-तीन साल पहले उसने रिफाइनरी का आइपीओ निकाला. मेरे जैसों की सूझ बूझ से वह
आइपीओ ओवरसब्स्क्राइब हुआ. दस हजार करोड़
रुपए मार्केट से अंटी करने के बाद स्टेटमेंट आया शकुनि का- ये पेड़ तीन साल में फलेगा.
जो पानी देगा- वो फल खाएगा. मगर आज तीन साल होने को आए. शेयर वहीं खड़ा है. न डबल
हुआ, न ट्रिपल. और फल तो क्या, अभी तक फूल भी नहीं लगे. उसकी देखा देखी कई और
अंजे-गंजे भी आइपीओ लाने लगे. सेंसेक्स का पागल सांड़ थूथन उठाए, पूंछ खड़ी किये ऊपर
ही ऊपर भागने लगा.
और फिर एक
दिन ढह गया रेत का किला. आसमान छूता शेयर बाज़ार एक पल में धूल फांकने लगा. फसल पकी देख, डाकू आया और ले
गया काट कर. कहां गए वो आइपीओ ? कहां गया वो बैल ?
आइये- हम
और आप मिल कर एक बार फिर चार्वाक और शकुनि के अगले आइपीओ का इंतज़ार करें. भारी
मात्रा में उनके शेयर खरीदें, उनके आइपीओ को ओवरसब्स्क्राइब कराने के नए रिकॉर्ड बनाएं
और इस तरह अपनी गाढ़ी कमाई इन महान पुरुषों के हवाले करें, तथा वे युग पुरुष भी खुल
कर हमारी खून पसीने की कमाई का सदुपयोग अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए करते हुए
ज़िन्दगी भर तबीयत से घी पी सकें.
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