हमारे प्राचीन साहित्य मे दो महाकाव्य बहुत प्रसिद्ध हैं . ये
हैं वाल्मीकि रामायण तथा महाभारत. वाल्मीकि रामायण जहां अयोध्या नरेश श्री राम के
जीवन चरित्र पर आधारित है वहीं महाभारत श्रीकृष्ण के समकालीन भारतीय परिवेश पर
लिखा गया महाकाव्य है.
महर्षि व्यास द्वारा रचित तथा समय समय पर संशोधित इस महाकाव्य
से हमे द्वापर युग के भारतीय समाज की
विस्तृत जानकारी मिलती है. एक कहावत ही बन गई है कि जो विश्व मे है वह महाभारत मे
है. जो महाभारत मे नही है वह विश्व मे है ही नही. तभी कुछ विद्वान महाभारत को
मात्र महाकाव्य न मानकर प्राचीन भारतीय ज्ञान का विश्वकोष मानते हैं .
महर्षि व्यास युधिष्ठिर का स्वर्गारोहण
सिनौली से मिले महाभारतकालीन नरकंकाल तथा हथियार
अभी कुछ समय पहले तक महाभारत को काल्पनिक माना जाता था. अर्थात जिसके पात्र जिसकी विषयवस्तु आदि सभी कवि की कल्पना से उपजे थे.
महर्षि व्यास युधिष्ठिर का स्वर्गारोहण
सिनौली से मिले महाभारतकालीन नरकंकाल तथा हथियार
अभी कुछ समय पहले तक महाभारत को काल्पनिक माना जाता था. अर्थात जिसके पात्र जिसकी विषयवस्तु आदि सभी कवि की कल्पना से उपजे थे.
लेकिन प्रसिद्ध समुद्र पुरातत्व वेत्ता डॉ. एस आर राव ने द्वारिका के समुद्र मे जो खोजें की हैं उनमे
एक नगर के अवशेष मिले हैं. साथ ही कुछ ऐसे पुरातात्विक अवशेष भी मिले हैं जिनका
उल्लेख महाभारत महाकाव्य मे आया है. जैसे कि एक मुद्रा मिली है जिस पर किसी जानवर
के तीन मुंह बने हैं. इस मुद्रा का जिक्र महाभारत भी है. यह द्वारिकावासियों की
पहचान के रूप प्रत्येक द्वारिका वासी को दी जाती थी. वहीं मिट्टी के बर्तन, कांसे का एक घंटा,
चूड़ियां मनके, पानी के जहाज के लंगर उन्हे
रोकने वाले गोल सुराख वाले भारी भारी पत्थर आदि अनेक अन्य वस्तुएं भी वहां मिली हैं. साथ ही काफी लम्बी पत्थरों की दीवार भी मिली है .
इन पुरातात्विक साक्ष्यों मिलने से यह सिद्ध हो गया है कि
कृष्ण पौराणिक चरित्र नहीं बल्कि ऐतिहासिक व्यक्ति व्यक्ति थे तथा उनकी नगरी द्वारिका भी काल्पनिक
नगरी नही बल्कि वास्तव मे उस काल मे अस्तित्व मे थी .
तो अब तक भारत का प्राचीन इतिहास आरम्भ होता था गौतम बुद्ध
के जन्म अर्थात 567 ईसा पूर्व से. बुद्ध
के अस्तित्व से जुड़े अनेक ग्रंथ तथा उनमे वर्णित नगरों वस्तुओं के पुरातात्विक प्रमाण मिल जाने से भारत के प्राचीन इतिहास की शुरूआत बुद्ध की
जन्म तिथि से मानी गई थी. लेकिन अब
द्वारिका नगरी के पुरातात्विक साक्ष्य मिलने से भारत का प्राचीन इतिहास हजारों
वर्ष पीछे चला गया है.
अब प्रश्न है कि किस तिथि को भारतीय प्राचीन इतिहास की
प्रामाणिक तिथि माना जाए ?
ऐसे अनेक साहित्यिक तथा पुरातात्विक साक्ष्य आज मिल रहे हैं
जिनसे सिद्ध होता है कि महाभारत का युद्ध भी वास्तव मे हुआ था. अभी हाल ही मे
उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के सिनौली गांव मे खुदाई के दौरान पुराने हथियार, रथ, अस्थि कंकाल , मिट्टी के भूरे चित्रित पात्र,
सिंधु घाटी काल की मुद्राएं, छिद्रयुक्त
मिट्टी के घड़े तथा अन्य अनेक वस्तुएं मिली हैं जिनकी उम्र थर्मोल्यूमिनिसेंस विधि से लगभग 1400 ईसा पूर्व से 2000 ईसा पूर्व के बीच पाई गई है.
महाभारत युद्ध के संदर्भ मे परीक्षित का जन्म एक महत्वपूर्ण
तिथि है. परीक्षित के जन्म से छह सात माह पहले परीक्षित का जन्म हुआ था यदि
परीक्षित के जन्म की सही गणना हो सके तो महाभारत युद्ध की काल गणना आसानी से की जा
सकती है.
वायुपुराण
का एक उदाहरण प्रस्तुत है :
महापद्माभिषेकास्तु
जन्म यावत्परीक्षित ।
एतद्वर्ष
सहस्त्रंतु ज्ञेयं पंचाशदुत्तरम ॥ 415॥ 99वां अध्याय
अर्थात परीक्षित के जन्म से लेकर महापद्म के अभिषेक तक का समय
एक हजार पचास वर्ष जानना चाहिए ।वायु पुराण का ही एक अन्य संदर्भ प्रस्तुत है-
उद्धरिष्यति
तान सर्वान कौटिल्यो वै द्विरष्टिभि : ।
भुक्त्वा
महीं वर्ष शतं नंदेंदु स भविष्यति ॥330॥
99वां अध्याय
अर्थात महापद्म नंद के बाद वे ( उसके पुत्र ) क्रम से शासनारूढ़ होंगे . उन सबको कौटिल्य
निर्मूल कर देंगे .
महापद्म वंश का अंतिम राजा
सौ वर्ष तक शासन करेगा .
महापद्म नंद के राज्याभिषेक की प्रामाणिक तिथि ज्ञात नहीं है, लेकिन अंतिम नंद
शासक का उन्मूलन उसी वर्ष होना तर्क संगत है जिस वर्ष चंद्रगुप्त मौर्य का
राज्याभिषेक हुआ . ग्रीक इतिहास्कारों के उल्लेखों तथा अन्य भारतीय स्रोतों के
आधार पर यह तिथि 321 ईसा पूर्व निकलती है .
चूंकि नंद वंश का शासन सौ वर्ष बताया गया है अत: महापद्म नंद
के राज्याभिषेक की तिथि 321 + 100 = 421 ईसा पूर्व निकलती है. इस तिथि मे परीक्षित
के जन्म से महापद्म के अभिषेक तक बीते एक
हजार पचास वर्ष जोड़ने पर तिथि आती है
1050+421= 1471 ईसा पूर्व. दूसरे शब्दों मे कहें तो परीक्षित का जन्म इस प्रकार
1471 ईसा पूर्व निकलता है.
इस तिथि का सत्यापन विष्णु पुराण के निम्न लिखित संदर्भ से भी
होता है :
यावत्परीक्षितो
जन्म यावन्ननंदाभिषेचनं ।
एतद्वर्ष
सहस्त्रं तु ज्ञेयं पंचाशदुत्तरम ॥ 104॥
( वि.
पु. चतुर्थ अंश, 24वां अध्याय)
अर्थात परीक्षित के जन्म से लेकर नंद के अभिषेक तक एक हजार
पचास वर्ष का समय जानना चाहिए .
नौ नंदों के संपूर्ण शासन काल के बारे मे भी विष्णु पुराण मे
स्पष्ट उल्लेख मिलता है:
तस्याप्यष्टौ
सुतासुमाल्याद्या भवितान ।।23॥
तस्य
महापद्म्स्यानु पृथिवीं भोक्ष्यंति ॥24॥
महापद्म
पुत्राश्चैकं वर्ष शत्मवनी पतयो भविष्यंति ॥25॥
ततश्चनव
चैतान्नंदान कौटिल्यो ब्राह्मणसमुद्धरिष्यति ॥ 26॥
(वि,पु, चतुर्थ अंश, 24वां अध्याय )
अर्थात महापद्म और उसके सुमाली आदि आठ पुत्र सौ वर्ष तक
पृथिवी पर शासन करेंगे.
तदनंतर इन नव नंदों को
कौटिल्य नामक ब्राह्मण नष्ट करेगा .
इस प्रकार हम देखते हैं कि वायु पुराण तथा विष्णु पुराण के
संदर्भों मे तनिक भी अंतर नहीं है. दोनो पुराणों के अनुसार परीक्षित का जन्म काल
1471 ईसा पूर्व आता है .
किंतु श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार यह तिथि कुछ भिन्न निकलती
है:
आरभ्य
भवतो जन्म यावन्नंदाभिषेचनम ।
एतद्वर्ष
सहस्त्रंतु शतं पंच दशोत्तरम ।।26॥
(श्रीमद्भागवत्पुराण,
12/2 अध्याय )
अर्थात तुम्हारे (परीक्षित के) जन्म से लेकर राजा नंद के
अभिषेक तक 1115 वर्ष का समय लगेगा ।
इस प्रकार भागवत्पुराण के अनुसार परीक्षित के जन्म से लेकर
नंद के राज्याभिषेक तक की अवधि 1115 +421 = 1536 वर्ष आती है .
एक अन्य उदाहरण –
यदा
मघास्तो यास्यंति पूर्वाषाढ़ा महर्षय: ।
तदा नंदात
प्रभृत्येष्कलिर्वृद्धि गमिष्यति ॥32॥
(श्रीमद्भागवत्पुराण,
12/2 अध्याय )
अर्थात जिस समय सप्तर्षि मघा नक्षत्र से चल कर पूर्वाषाढ़ा
नक्षत्र मे जा चुके होंगे उस समय राजा नंद का राज्य रहेगा . तभी से कलियुग की
वृद्धि होगी .
सप्तर्षियों के
नक्षत्र मंडल के परिभ्रमण से भी पुराणकार ने परीक्षित के जन्म से लेकर नंद के
राज्याभिषेक तक का समय निकाला है :
तेनैव
ऋषयो युक्तास्तिष्ठन्त्यब्द शतं नृषाम ।
ते
त्वदीये द्विजाकाले अधुनाचाषृता मघा ॥ 28॥
(श्रीमद्भागवत्पुराण,
12/2 अध्याय )
अर्थात उस नक्षत्र के साथ सप्तर्षि गण मनुष्यों की गणना से सौ
वर्ष तक स्थित रहते हैं. तुम्हारे जन्म के समय और अब भी वे मघा नक्षत्र पर स्थित हैं
।
मघा सहित पूर्वाषाढ़ा तक ग्यारह नक्षत्र हैं . इस प्रकार
परीक्षित के जन्म के एक हजार वर्ष पूर्ण होकर अगले सौ वर्षों मे के काल खंड मे
सप्तर्षि प्रविष्ट हो चुके थे,
अर्थात एक हजार एकसौवां वर्ष चल रहा था , पूरा
नहीं हुआ था . स्पष्ट है कि यह समय एक हजार तथा कुछ वर्ष आना चाहिए । एकहजार एकसौ
वर्ष या उससे अधिक यह समय नही होना चाहिए.
अत: श्रीमद्भागवत्पुराण कार के अनुसार जो एक हजार एक सौ
पंद्रह वर्ष का समय आ रहा है वह त्रु टिपूर्ण
है या श्लोक के अनुवाद मे कोई गलती हो रही है. विष्णु पुराण तथा वायु पुराण
के अनुसार यह समय 1050 वर्ष आ रहा है . अत: इसी अवधि को प्रामाणिक माना जाना
चाहिए.
इस समय अर्थात 2020 मे सप्तर्षि विशाखा नक्षत्र से निकल कर
अनुराधा नक्षत्र मे पहुंच चुके हैं. अर्थात 34 नक्षत्र पार कर चुके हैं. अत: परीक्षित
के जन्म से आज तक 3400 वर्ष तो बीत ही चुके हैं. साथ ही कुछ वर्ष और भी बीत चुके हैं.
लगभग चालीस वर्ष . इस तरह परीक्षित का जन्म आज से 3400-2020 + 40=1420 वर्ष या उससे कुछ अधिक आना चाहिए. किंतु मघा नक्षत्र
से पूर्वाषाढ़ा तक का समय पुराण कारों ने
1050 वर्ष निकाला है.अत: यह समय आज से 1050+421+2020 = 3491 वर्ष आना चाहिए. ईसा पूर्व निकालना हो तो 3491- 2020= 1471 वर्ष ईसापूर्व के आस पास आता है.
अत: सप्तर्षियों की गणना से भी परीक्षित का जन्म आज से लगभग
1471 वर्ष पूर्व आता है.
महाभारत युद्ध के समय ग्रहों की स्थिति -
महाभारत युद्ध आरम्भ होते समय मुख्य ग्रहों शनि गुरु तथा
केतु की स्थिति इस प्रकार थी –
श्वेतोग्रहस्तया
चित्रां समति क्रम्य तिष्ठति ।
अभावं हि
विशेषेण कुरुणां यत्र पश्यति ॥12॥
मघा
स्वंगारको वक्र: श्रवणे च बृहस्पति ।
भगं
नक्षत्र माकस्य सूर्य पुत्रेण पीड्यते ॥ 14॥
(महाभारत ,
भीष्म पर्व, तीसरा अध्याय )
अर्थात केतु चित्रा का अतिक्रमण करके स्वाति पर स्थित हो रहा
है . उसकी विशेष रूप से कुरु वंश के विनाश पर दृष्टि है. मंगल वक्री होकर मघा
नक्षत्र पर स्थित है . बृहस्पति श्रवण नक्षत्र पर विराजमान हैं तथा सूर्यपुत्र शनि
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र पर पहुंच कर उसे पीड़ा दे रहा है .
शनि,
केतु तथा गुरु की उपरोक्त नक्षत्रों मे स्थिति सन 1949 मे भी थी
अर्थात द्वितीय विश्व युद्ध के समय . शनि नक्सत्रमंडल का एक चक्कर तीस वर्षों मे
लगाते हैं. गुरु बारह वर्षों मे तथा केतो अठारह वर्षों मे . 30,12 तथा 18 का लघुतम समापवर्तक 180 आता है. अर्थात हर 180 वर्षों मे ये
तीनो ग्रह इस स्थिति मे आते हैं.
गणना करने पर ज्ञात हुआ कि 1471 ईसा पूर्व मे भी ये तीनो ग्रह
वास्तव मे इन्ही नक्षत्रों मे स्थित थे. ग्रहों की गति कितनी शुद्ध होती है बताने
की आवश्यकता नहीं .
अत: महाभारत युद्ध 1471 ईसा पूर्व होने मे अब कोई संदेह नही
रह जाता. महाभारत युद्ध के समय नवम्बर का
महीना था. परीक्षित का जन्म महाभारत युद्ध के बाद छठे महीने अर्थात अप्रैल 1470 ईसा पूर्व
मे हुआ होगा .
अब महाभारत युद्ध आरंभ होने वाले दिन, पक्ष तथा महीने के
बारे मे बात करते हैं. महाभारत के निम्न लिखित श्लोक से
स्थिति काफी स्पष्ट हो जाती है :
चंद्रसूर्यावुभौग्रस्ता
वेक मासीं त्रयोदशीम ।
अपर्वणि
ग्रहेणैतो प्रज्ञा संक्षपयिष्यत: ॥ 32॥
(महाभारत, भीष्म पर्व, तीसरा अध्याय )
(महाभारत, भीष्म पर्व, तीसरा अध्याय )
अर्थात
इस पक्ष मे तेरहवें दिन जो यह अमावस्या आ गई है – ऐसा पहले कभी हुआ है – इसका मुझे
स्मरण नहीं है. इस एक ही महीने मे तेरह दिन के भीतर चंद्रग्रहन व सूर्य ग्रहण दोनो
लग गए हैं.
इस
श्लोक से स्पष्ट है कि जिस माह सूर्य तुला
राशि मे रहते हुए ग्रस्त थे वह मास क्षय मास (मल मास) था. त्रयोदशी तिथि को ही
अमावस्या आ गई थी. यद्यपि चंद्रमा मघा
नक्षत्र मे था अर्थत सिंह राशि मे था किंतु तिथि अमावस्या थी.इस प्रकार महाभारत
युद्ध की स्थिति बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है . महाभारत मे दिये गए संदर्भों के आधार
पर निष्कर्ष निकलता है कि कार्तिक माह की अमावस्या को जब सूर्य ग्रहण लगा हुआ था
तथा त्रयोदशी तिथि व क्षयमास था तब प्रात: काल महाभारत का ऐतिहासिक युद्ध आरंभ हुआ
. यह तिथि अनुमानत: 05 नवम्बर 1471 ईसा पूर्व बैठती है. (समाप्त)
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