2. कंप्यूटर
(क). परिचय: अंग्रेज़ी
का एक शब्द है- कंप्यूट
(compute). इसका अर्थ है- गिनना. इसी से बना है
कंप्यूटर, जिसका अर्थ हुआ गिनने वाला. यह
गिनने वाला कोई प्राणी भी हो सकता है तथा मशीन भी हो सकती है. इस पुस्तक में
कंप्यूटर से तात्पर्य है- वह मशीन, जो अंकों व शब्दोंं का संसाधन कर सके तथा उन्हेें ग्राफ आदि के द्वारा भी व्यक्त कर
सके. दूसरे शब्दों में आप कह सकते हैं कि
कंप्यूटर एक कृत्रिम मशीनी दिमाग है जो
उपयोग कर्ता के निर्देशों के अनुसार काम करता है.
(ख).
कंप्यूटर का क्रमिक विकास : माना जाता है कि मानव का विकास बन्दर से हुआ
है. यह कपि मानव आज से करीब पचास लाख साल पहले जंगलों में रहता था. जानवरों का शिकार करता था. पत्थर के जिन औजारों
से वह शिकार करता था, उनके कई अवशेष विश्व के कई देशों में आज भी मिलते हैं. समय
बीतने के साथ जब शिकार करना मुश्किल हुआ तो मानव अनाज, फल व दूध का प्रयोग भी आहार
के रूप में करने लगा. उसने बस्तियां
बसाना, खेती करना व पशु पालना भी शुरू कर दिया.
पेट की भूख का प्रबंध हो जाने के बाद दिमाग की भूख जागी.
विचारों के आदान-प्रदान के लिए मनुष्य ध्वनि समूहों की मदद लेने लगा. आपस में एक के बदले दूसरी चीज़ लेने
देने से बाज़ार का विचार आया. बाज़ार की जरूरत ने संख्याओं को जन्म दिया. संख्याओं
ने गणितीय प्रक्रियाओं जैसे जोड़, घटाना, गुणा,भाग को जन्म दिया. गणित की
प्रक्रियाओं को याद रखना आसान न था. इसलिये ऐसे यंत्र की जरूरत पड़ी जो संख्याओं के
जोड़ने , घटाने को प्रत्यक्ष दिखा सके.
(1). अबेकस : वह यंत्र जो
मानव ने सबसे पहले गिनने की समस्या के
लिये बनाया- अबेकस
(abacus)
था. यह स्लेट की शक्ल का एक सादा उपकरण था, जिसमें दस तारों
पर मनके पिरोए होते थे.पहले तार पर एक मनका, दूसरे पर दो, तीसरे पर तीन आदि. जो
संख्याएं जोड़नी होतीं, उनके मनकों की संख्या के बराबर वाले तार को छांट लिया जाता
था. इन संख्याओं को प्रतीक चिन्ह भी दिये
जाने लगे, जैसे एक को 'I', दो को 'II', आदि.
इस प्रकार हम अबेकस को कंप्यूटर का पूर्वज भी कह सकते हैं.
सबसे
पहला अबेकस सुमेरिया सभ्यता में ईसापूर्व दो हज़ार
(2700-2300 BC) में बना बताया जाता है. इसमें गिनती का आधार 60 था. इस
पद्धति के अवशेष आज तक चले आ रहे हैं. जैसे कि समय आज भी हम 60 के आधार पर नापते
हैं. 60 सेकेंड का एक मिनट, 60 मिनट का एक घंटा. कोण भी हम आज तक इसी सेक्साजेसिमल
पद्धति में मापते हैं, जैसे कि 60मिनट का एक रेडियन आदि.
बेबीलोनिया में शुरू में अबेकस की मदद से सिर्फ जोड़ व
घटाने का काम ही लिया जाता रहा होगा. बाद में धीरे धीरे बड़ी व जटिल संख्याएं भी
इसकी मदद से हल होने लगीं.
पुरातत्व वेत्ताओं को मिश्र में कुछ गोल तश्तरी नुमा
चीज़ें मिली हैं. यूनानी इतिहासकार क्राबर्टोटस लिखता है कि इन तश्तरी नुमा चीज़ों
से जोडने घटाने की क्रिया मिश्र की पद्धति से उलटी है. इसका अर्थ यही है कि
प्राचीन मिश्र में भी अबेकस का प्रयोग जोड़ने घटाने आदि में होता था.
ग्रीस के सलामिस द्वीप में पुरातत्व विज्ञानियों को सन
1846 में संगरमर का एक 149*75*4.5 सें.मी. का एक बोर्ड मिला है जिस पर पांच
क्षैतिज रेखाएं कुछ लंबवत रेखाओं से कटी हैं तथा उसके नीचे फिर ग्यारह समांतर
रेखाएं हैं जो कुछ लंबवत रेखाओं से कटी हैं.
निष्कर्ष निकाला गया है कि यह अबेकस जैसा कोई गणना करने
का यंत्र था.
रोम में भी अबेकस का प्रयोग होता था. होरेकस ने मोम से बने
अबेकस के बारे में लिखा है जो रोम में ईसा पूर्व पहली शताब्दी में प्रचलित था.
पहली शताब्दी ईसवी का एक अबेकस पुरातत्व विज्ञानियों को रोम में मिल गया है. इसका
चित्र यहां दिया जा रहा है.
चीन में अबेकस का
लिखित रिकॉर्ड चौदहवीं शताब्दी का मिलता है. इस अबेकस का नाम था सुआनपन. इसमें दस
दस लंबवत छड़ों की दो क्षैतिज कतारें थीं. ऊपरी कतार को स्वर्ग तथा निचली को नर्क
कहा जाता था. ऊपर वाली छड़ों में दो मनके तथा निचली छड़ों मे पांच मनके होते थे.चीनी
अबेकस द्वारा जोड़ घटाना, गुणा, भाग,वर्गमूल तथा घनमूल निकाले जा सकते थे. चीनी
अबेकस आज भी स्कूलों में प्रयोग हो रहे हैं. फर्क इतना है कि इनमें ऊपर वाली कतार
में एक मनका तथा नीचे वाली कतार में चार मनके हैं.
(मध्य कालीन चीन में प्रयुक्त अबेकस,जिसमें संख्या 6,302,715,408 दर्शाई गई है.)
भारत में पहली शताब्दी ईसा के पश्चात अबेकस के प्रयोग का
उल्लेख मिलता है. "अभिधर्मकोष" जैसे अनेक ग्रंथों में इसके प्रयोग की
विधियां दी गई हैं. पांचवीं शताब्दी में भारतीय गणितज्ञ अबेकस द्वारा प्राप्त
आंकड़ों को सुरक्षित रखने की विधियां खोज रहे थे. जिसमें कतार में कोई मनका नहीं
होता था, उसे भारतीय शून्य कहते थे.
प्राचीन लैटिनअमेरिकी इंका सभ्यता में भी अबेकस का एक
अलग रूप विकसित था. वे लोग लंबवत रस्सियों में गांठ मार कर संख्याएं याद रखते थे.
ये गांठें ठीक वही काम करती थीं, जो काम अन्य देशों में मनकों से लिया जाता था.
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प्राचीन चित्र मे अबेकस |
कई देशों में प्राथमिक शिक्षा के तौर पर आज भी अबेकस का
प्रयोग मिलता है.
लेकिन अबेकस से गिनती करने की सीमाएं थीं. एक तो यह बहुत
बड़ी संख्याओं की गिनती नहीं कर सकता था, दूसरे
गिनती का काम धीमी गति से होता था.
इस
प्रकार हमने देखा कि विश्व की प्राय: सभी प्राचीन सभ्यताएं गिनती के लिए अबेकस या
उस जैसी अन्य तकनीक प्रयोग में ला रही थीं. जबकि प्राचीन यूरोप में अबेकस के प्रयोग
का ज़्यादा उल्लेख नहीं मिलता.
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