दाल-गीता

परित्राणाय दालानाम विनाशाय च तस्करे ।
   दाल संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥ 1

 (अर्थात हे अर्जुन, दालों की रक्षा के लिए, दालों के तस्करों, जमाखोरों का विनाश  करने के लिए  तथा दालों की पुन: स्थापना करने के लिए मैं हर युग में अवतार लेता हूं.)


यदा यदा हि दालस्य हानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानम दालस्य तदात्मानम सृजाम्यहम ।। 2

( अर्थात हे भारत, जब जब भी विश्व में दालों की हानि होती है, मैं दालों की बहाली के लिए मनुष्य रूप में जन्म लेता हूं.)

 सर्व अन्नान परित्यज दालेकम शरणम व्रज ।
 दाल त्वं सर्व अन्नेषु मोक्षयिष्यषि मा शुच: ॥3

(अर्थात, हे अर्जुन, तू सभी अन्नों को त्याग कर एक मात्र दाल की शरण में आ जा. दाल तुझे सभी अन्नों से मुक्त कर देगी, तू जरा भी चिंता मत कर.)
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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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