
करीब जाकर देखा-
मिर्ज़ा थे, नुक्कड़ पर ठेली लगाए. ठेली पर लदे थे ढेर सारे मुखौटे. मुझे देखा तो बगलें चुराने लगे.
हमने कहा -मिर्ज़ा,
मशक्कत कर रहे हो, चोरी नहीं, फिर मुंह क्यों छिपा रक्खा है ?
मिर्ज़ा मेरी तरफ
घूमे और बोले- मुखौटों का कारोबार आगे चल कर खूब फलने-फूलने वाला है. सोचा अभी से इसमे
जड़ें जमा लूं.
- अब कब के लिए जड़
जमाओगे मिरज़ा ? सामान उम्र भर का, पल की खबर नहीं ! तुम्हारा तो अच्छा खासा पीसीओ
हुआ करता था ! हां ! क्या नाम था उसका ? शायद
– “लो कल्लो बात” यही नाम था न ? क्या हुआ उसका ?
-मिरज़ा गमगीन हुए,
पर जल्दी ही संभल कर बोले- हां यही नाम था उसका. बड़े मियां का निकाह क्या पढ़वा
दिया कि आफत मोल ले ली. उसकी बेगम साहिबा तो पीसीओ से निकलने का नाम ही न ले ! पहले हमें निकाल बाहर
किया, फिर हमारी बेगम को दरवाज़ा दिखाया और फिर खुद भीतर घुस गई. अब ये दोजख तो
भरना ही था. सोचा मुखौटों का ही कारोबार कर लूं.
- मगर मिर्ज़ा, ये
तुम्हें इल्हाम कैसे हुआ कि मुखौटों का कारोबार आगे चल कर खूब
फले-फूलेगा ?

-तो कब से बेच रहे
हो मुखौटे ?
- हो गए कोई तीन
चार महीने.
-ये तो मारकिट के मिज़ाज़ पर है. कभी मोदी के मुखौटे जम कर बिके तो कभी उमा
भारती के. कभी सोनिया गांधी के तो कभी सरदार मनमोहन जी के. बहन जी के, सचिन तेंदुलकर के व अमिताभ बच्चन के
मुखौटे भी अच्छे उठ जाते हैं. आजकल विराट कोहली के मुखौटे भी खूब बिक रहे हैं. जो
सुर्खियों में रहता है, उसी के मुखौटे ज्यादा बिकते हैं.
- अगर किसी गलत काम
की वज़ह से नेता सुर्खियों में छाता है तो क्या तब भी उसके मुखौटों की सेल बढ़ती है?

-क्या दिक्कत आती
है मिर्ज़ा ? ज़रा खुल कर बताइये न.
-मेरे कान के पास
अपने सुर्ख होंठ ला कर मिर्ज़ा खुसफुसाए- बदनाम नेताओं के छुटभइये कमीशन लेने पहुंच
जाते हैं शाम को. मक्कार जानते हैं कि
नेता जी के आज कितने मुखौटे बेचे मिर्ज़ा ने. कितनी नकदी काटी ?
मैने देखा- ठेली पर
कई नेताओं के मुखौटे बिक्री के लिये रखे थे. ओवैसी, इमरान, राहुल
गांधी, पुतिन, मोदी, उमा भारती, ट्रंप, मायावती, सोनिया, शी जिनफिंग, खोमैनी, वगैरह के मुखौटों को लोग दिलचस्पी से उठा उठा कर देख रहे थे.
कुछ मुखौटे ममता बनर्जी, केसीआर, मुलायम सिंह व अमर सिंह के भी थे.
अमिताभ बच्चन, सलमान, आमिर खान, शाहरुख खान वगैरह के भी कुछ मुखौटे थे जिनकी तरफ लड़कियां
ज्यादा खिंच रही थीं.

तभी गली से एक लड़का
भागता हुआ आया और मिर्ज़ा से बोला-
-अमर सिंग का
मुखौटा है ?
-हां है. आज ही
मंगाया है.
-कित्ते का ?
-दस का.
-दे दो एक.
बच्चा अमरसिंह का
मुखौटा लगा कर भागा. उसकी टी शर्ट पर लिखा था- किसी भी नेता से कोई भी काम कराना
हो तो अपुन के पास आओ. डील करो, और लंबी तान कर सो जाओ. काम हो जाएगा.
एक और बच्चा भागता
हुआ आया और बोला -लालू का मुखौटा
मिलेगा?
-मिलेगा.
-और भैंस का ?
- नहीं है. फिर कुछ सोच कर बोले मिर्ज़ा- हां. एक ऐसा
मुखौटा है मेरे पास , जिससे तुम्हारी दिक्कत हल हो जाएगी.
मिर्ज़ा की इस बात में बच्चे की दिलचस्पी बढ़ी. बोला-दिखाओ
मिर्ज़ा ने नीचे से कुरेद कर एक ऐसा
मुखौटा निकाला जो था तो भैंस का, मगर शक्ल
लालू जैसी थी. लड़के को वह पसंद आ गया. पैसे दे कर मुखौटा लगा लिया और लगा सड़क पर
चिल्लाने लगा- भैंस गई पानी मे । चारा मुुुुझे दो.
मिर्जा की ठेली पर कुछ एकदम नए मुखौटे भी थे . सिंधिया, पायलट, कन्हैया
कुमार, उद्धव ठाकरे और अक्षय कुमार के मुखौटे ठेली के सबसे कम हिस्से
को घेरे हुए थे मगर उन्हे भी गुन के गाहक आकर
गाहे बगाहे उलट पलट जाते.
मैने देखा- मिर्ज़ा का अनुमान एक दम सही था. मुखौटे बड़ी तेज़ी से बिक रहे थे.
बिक्री बढ़ी तो मिर्ज़ा की हिम्मत भी बढ़ी. मुझे बिठा कर बगल की पान की दुकान
में जा घुसे. थोड़ी देर में वह पान की सात आठ गिलौरियां बंधवा कर लौटे. कम से कम
चार गिलौरियां गलफड़ों में फंसी फड़फड़ा रही थीं. सुर्ख लाल रंग होंठों से छलक रहा
था.
एक पान मेरी ओर बढ़ाते हुए बोले- जानता हूं तुम पान का शौक नहीं रखते, मगर
इसे खाकर देखो. मीठा है, और खालिस बनारसी है. मुंह में पहुंचते ही घुल जाता है.
मिर्ज़ा का मासूम, बचपनी अंदाज़ देख कर मना न कर सका.
अभी मै पान का आनन्द ले ही रहा था कि एक साहबान मुखौटों की ठेली पर आ कर
रुके. शक्ल सूरत से वह शायर मालूम होते थे. लंबे उलझे बेतरतीब बाल, गालों
पर खूंटे से उठे खिचड़ी बाल, मोटे मोटे कांचों वाला चश्मा, और गात पर मुठ्ठी भर
हड्डियां चमड़ी पर मढ़ी हुई.
उन महाशय ने कुछ मुखौटे उलटे-पलटे.
फिर मुस्कराते हुए बोले-
जहां भी देखिये केवल मुखौटे दीखते हैं ।
यहां हर शख्स असली चेहरा ढांपे हुए है ॥
(समाप्त)
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