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महाभारत युद्ध |
महाभारत नामका मिनी वर्डवार खत्म हो चुका था. मैदाने जंग मे अब सिर्फ एक ही शह सवार यमराज से
लोहा ले रहे थे . नाम था महारथी भीष्म पितामह. बाणों की पैनी नोकों के डबल बेड पर उनका
घायल शरीर टिका था. दक्षिणायन मे वह प्राण
नहीं त्यागना चाहते थे. उत्तरायण का पहला दिन, मकर संक्रांति चुना था
उन्होने प्राण छोड़ने के लिए. मतलब अभी नवंबर का आखिरी हफ्ता चल रहा था जबकि मकर
संक्रांति यानी चौदह जनवरी आने मे करीब डेढ़ महीना बाकी था.
ऐसे मे एक दिन धृतराष्ट्र उनके पास आए. प्रणाम किया और कहा - हे ताऊ जी, अब तो कुरु वंश की जड़ें खुद ही चुकी हैं. जो होना था, जो नहीं होना था – सभी कुछ हो गया है. बट मेरे मन मे अब भी कुछ सवाल हैं. उनका जवाब मिल जाय तो हार्ट बर्निंग कुछ कम हो जाए .
आंखें बंद किये भीष्म मुस्कराए और बोले- पूछो बेटा.
धृतराष्ट्र – मेरे पास ग्यारह अक्षौहिणी सेना
यानी बारह लाख दो हजार आठ सौ पचास सिपाही थे . पांडवों के पास खींच तान कर सात
अक्षौहिणी यानी सात लाख पैंसठ हजार चार सौ पचास सिपाही थे, मतलब कि मेरे से करीब आधे. फिर मेरे पास सौ
महाबलवान पुत्र थे, आप थे, कर्ण था, गुरु द्रोण और कृप थे. फिर भी मैं क्यों हारा ?
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मृत्यु शय्या पर पितामह भीष्म |
भीष्म – बेटा, इस समय मैं डेथ बेड पर हूं. तुम्हारे नमक का लोन भी चुक गया है. सो अब खुल कर कहूंगा. डिफाल्टर तुम भी नहीं थे. तुम सिर्फ अंधे ही नहीं पैदायशी अंधे भी थे बेटा. और अंधा बेचारा जब भी रेवड़ियां बांटता है, अपने अपनों को ही देता है. सत्ता पाकर अगर तुम भी बहक गए तो इसमे हैरानी किस बात की ? पावर पाकर निष्पक्ष बने रहना दुनिया का सबसे मुश्किल काम होता है बेटा.
धृतराष्ट्र – आप लोगों ने ही तो मेरे नाम पर
मुहर लगाई थी ! मैं अंधा हूं और रूल्स के हिसाब से राजा बनने के लिए क्वालीफाइ नहीं करता
हूं – ये बात क्या आप जैसे सीनियर्स को पता न थी ? विदुर जैसे पॉलिसी एक्स्पर्ट ने अपोज़ क्यों नहीं
किया ?
भीष्म – पता थी बेटा ! हम सब को ये बात पता थी. पर क्या करते ! पांडु एक्यूट जांडिस के शिकार थे, उन्हे इलाज कराने पांडुकेश्वर के सेनीटोरियम भेजना जरूरी था. विदुर दासी पुत्र थे और आप जैसे बड़े भाई के होते हुए राजा नही बन सकते थे. उन्हे प्रोपोज़ल दिया भी गया पर उन्होने एक्सेप्ट नहीं किया. तो फिर ले दे कर कुरु राज्य की ज़िम्मेदारी तुम्हें देनी पड़ी. पर तुमने तो पुत्र मोह मे कुरु राज्य का बैंड बजा डाला !
धृतराष्ट्र – पर तात ! मोह का आरोप मुझ पर ही क्यों लगता है ? इंसान तो इंसान जानवर तक अपने बच्चों से मोह रखते हैं. ऐसा कौन होगा दुनियां मे जिसे मोह न हो ?
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धृतराष्ट्र |
भीष्म – आम आदमी के लिए तो तुम्हारी बात ठीक है बेटा, बट राजा पर यह पैमाना फिट नही बैठता. राजा बनने के बाद ड्यूटी बदल जाती हैं. सारी प्रजा तुम्हारी संतान की तरह हो जाती है. तुम्हारे हाथों मे जो उंगलियां हैं वे सब अलग अलग साइज़ की हैं. क्या तुम बड़ी उंगली को अच्छा और छोटी को खराब मानते हो ? या सबको बराबर मानते हो ?
धृतराष्ट्र – चलिए ताऊ जी, मैंने मान लिया कि मुझे मोह था, वैसे इतना मोह तो सभी को होता है! लेकिन उसकी इतनी बड़ी सजा क्यूं मिली ?
भीष्म - बेटे, मोह होना न होना तब तक पर्सनल मैटर है जब तक कि उससे किसी दूसरे की सेहत पर फर्क न पड़े. सोचो क्या तुमने कदम कदम पर पांडवों और कौरवों मे फर्क नहीं किया ? पांडवों को पांडुकेश्वर मे जो रॉयल ट्रीटमेंट मिलना चाहिये था वह मिला क्या? आखिर पांडुने तुम्हे अपनी पावर्स परमानेंटली नहीं दी थीं. सिर्फ डेलीगेट की थीं. उन्होने कहा था कि मेरे ट्रीटमेंट चलने तक आप राजा रहोगे. बाद मे हॉस्पिटल से ओके रिपोर्ट मिलने के बाद मै ज्वाइन कर लूंगा. ये बात दूसरी है कि उनकी रिपोर्ट नेगेटिव नही आ सकी और वह ड्यूटी ज्वाइन न कर सके. पर उनके बच्चों व बीवी का हक तो उन्हें देते ! दिया क्या ? वो जंगलों मे कैसे रहते हैं, क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं कहां पढ़ते हैं, कहां हथियार चलाना सीखते हैं- ये सब देखना एज़ ए रूलर, तुम्हारी ड्यूटी थी. क्या तुमने ड्यूटी निभाई ?
धृतराष्ट्र – मैं अकेला अंधा क्या क्या तो देखता, कहां कहां तो मरता ? मेरी हालत तो ऐसी थी कि – कहां रैग्या नीति, कहां रैग्या माणा, एक श्यामसिंह पटवारी ने कहां कहां तो जाणा ?
भीष्म – बस बस रहने दो बेटा. जब भीम को जहर के लड्डू खिला कर और रस्सियों से बांध कर दुर्योधन ने गंगा मे फिंकवाया था तो क्या बेटे को दंड दिया तुमने ? जब बेचारे पांडवों को लाख के घर मे जला कर मारने की नाकामयाब कोशिश की तुम्हारे सपूत ने तब क्या वार्निंग तक इश्यू की थी तुमने ? जब पांडवों को जुए मे तुम्हारे जुआरी साले शकुनि ने धोखे से हरवाया तब क्या एक्शन लिया तुमने ? जब वनवास के दौरान पांडवों की बदहाली का मजाक उड़ाने तुम्हारे लाड़ले वन मे उनकी झोंपड़ी के बगल मे राजसी ठाट बाट के साथ टेंट लगा कर रहे तब तुमने इस टुच्ची हरकत का विरोध किया था ? और पांडवों की ग्रेटनेस देखो. गंधर्व जब दुर्योधन को मार पीट कर बांध कर ले जा रहा था तो पांडवों ने ही उसकी जान बचाई थी. जब तुम्हारे प्यारे दामाद जयद्रथ ने जंगल मे द्रौपदी को अकेली पाकर किडनेप किया तो तुमने इस घटिया हरकत पर डांटा उसे ? जब तुम्हारी मौजूदगी मे सरे दरबार द्रौपदी को बालों से खींच कर दु:शासन लाया और जब तुम्हारे प्यारे युवराज ने उसकी साड़ी उतारनी शुरू की तब क्या रोकने के इम्मीडिएट ऑर्डर दिये तुमने ? जब मेसेंजर बन कर आए कृष्ण को तुम्हारे लाड़ले बेटे दुर्योधन ने गिरफ्तार करवाया तो बेटे को इस बदतमीज़ी की सजा दी तुमने ? जब अकेले निहत्थे अभिमन्यु को घेर कर बेरहमी से मॉब लिंचिंग की तुम्हारे महारथियों ने तो एक बार भी आवाज़ उठाई तुमने ? कोई वार रिलेटेड एडवाइजरी जारी की ?
क्या क्या गिनाऊं तुम्हारे कारनामे बेटा ? क्या क्या जुल्म नहीं ढाए तुमने और तुम्हारे लाड़लों ने पांडवों पर ? बहुत लम्बी लिस्ट है. और अब आकर पूछते हो ये क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ और क्यूं हुआ ? बेटे ये तो होना ही था ! अवश्यमेव भोक्तव्यं कृत कर्मं शुभाशुभम । बेटे करनी का फल तो भोगना ही पड़ता है, राजा को भी और रंक को भी.
धृतराष्ट्र – पर ताऊ जी आप तो हमारे गार्जियन थे
. गलत हो रहा था तो रोका क्यों नहीं ? मार्गदर्शन क्यों नही किया ? तब भी मैं अगर न मानता तो आज मुझे इतना दुख तो न
होता !
भीष्म – बेटा, एक तो हमने हस्तिनापुर राज्य का नमक खा रक्खा
था. नमक का कर्ज था मन पर. नमक का फर्ज था सिर पर. दूसरे तुमने हमसे कभी सलाह
लेना तो दूर, हमारी सुध तक नहीं ली. मैं था, गुरु द्रोण थे, कृपाचार्य थे और सबसे पहले तो महात्मा विदुर
जैसे नीतिज्ञ, निष्पक्ष और राज्य के
हितैषी मौजूद थे. तुमने या तुम्हारे युवराज ने
कभी किसी मैटर पर उनसे कंसल्ट किया ? तुम्हें तो चारण और भाटों के स्तुतिगान ही अच्छे
लगते थे. हमारी क्यूं सुनते तुम ? तुम्हारा साला शकुनि, तुम्हारा दामाद जयद्रथ, तुम्हारी जबरदस्ती अंधी बनी रानी गांधारी, तुम्हारे ससुर गांधार के राजा सुबल, तुम्हारे समधी सिंधु नरेश वृद्धछत्र – ये सब थे
तुम्हारी किचन केबिनेट के एडवाइज़र . हाल ये था कि अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछत कौन ? घोड़े मरे, गधों पे जीन कसी. और अब आकर पूछते हो – ये सब
क्यों हुआ?
ज़्यादा
बोलने की वजह से भीष्म पितामह को अत्यंत पीड़ा होने लगी. मारे सीवियर पेन के,
बंद आंखों से आंसू बहने लगे. थोड़ी
देर खामोश रहने के बाद पितामह बोले- बस बेटे, आज के लिए इतना डोज़ काफी है. ये तो हरि कथा है-
हरि अनंत हरि कथा अनंता. अब मेरा मेडीटेशन का टाइम हो रहा है. तुम जाओ. फिर कभी
कुछ पूछना हो तो आ जाना. यू आर मोस्ट वेलकम. अभी कुछ दिन हूं धरती पर .
इतना कह कर भीष्म पितामह ने एक बार आंखें खोलीं. धृतराष्ट्र की तरफ देखा, जो दोनो हथेलियों से आंखें मल
रहे थे . पितामह ने मुस्करा कर आंखें बंद कीं और
समाधि मे प्रविष्ट हो गए.
इधर
धृतराष्ट्र खुशी से नाचने लगे और बगल मे बैठी गांधारी से बोले- पगली पट्टी खोल.
मुझे दीखने लगा है.
(समाप्त)
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