यह थी बैठक नंबर दो.
इस से पहले जो बैठक नंबर एक हुई, वह सरकारी अस्पताल से बिल्कुल
सट कर हुई थी, ताकि अगर किसी नसीब के मारे
की हालत बिगड़ जाए तो उसे हाथों हाथ भरती किया जा सके.
मगर ये दूसरी बैठक तो अस्पताल के एक दम भीतर बुलाई गई थी. इरादा सिर्फ इतना
ही था कि जो भाई पत्नियों के कर कमलों से कुछ ज़्यादा ही पिट गए थे तथा आइसीयू में पड़े
मौत से जूझ रहे हैं या फिर जिन पर खून व
ग्लूकोज़ की बोतलें चढ़ी हैं, या फिर जिनके श्री मुख पर ऑक्सीजन का नकाब फिट है-ऐसे
वीर पुंगव भी बैठक अटेंड कर सकें. भले ही वे कुछ बोल न सकें, मगर बैठक की कार्रवाई का आंखों देखा हाल तो सुन ही लें ! आगे की पूरी जगह इन्हीं महान पुरुषों
से सुशोभित थी. वे अलग- अलग वार्डों से पलंग सहित खींचे जा कर यहां पधारे थे. उन ज़ांबाज़ों
की आंखों की चमक बता रही थी कि बैठक से उन्हें काफी उम्मीदें हैं.
पत्नी पीड़ित मंच की नई कमेटी के चेयरमैन
थे सरदार जरनैल सिंह जी बठिंडे वाले, जो सन सत्तानबे के 'गृह युद्ध' में दोनों जांघें
खो चुके थे. इस नुकसान के लिए वह सरदारनी की विराट देह या उनकी युद्ध शैली, या फिर
उनके द्वारा प्रयुक्त अस्त्र शस्त्रों को दोष नहीं देते थे. दोष तो देते थे वह गुरद्वारे
के उस जत्थेदार को, जो इस युद्धव्यसनी व असाधारण डील डौल वाली महिला का रिश्ता
लेकर उनके घर आया था.
दो वीर शेरों को जन्म देने के बाद इस महिला ने प्रजनन की गतिविधियों से छुट्टी ले ली. अब जो वक्त मिलता उसमें वह जरनैल जी के साथ पंजे लड़ाती, कभी गत्तकें खेलती या फिर कभी दंगल करती. इन फौजी टाइप खेलों में जरनैल जी की रुचि कभी नहीं रही. एक तो उनकी देह बहुत कंजूसी से ढाली गई थी, दूसरे सरदारनी एक मर्दमार कोटि की महिला थी. ऐसी महिला से खली जैसे पुरुष भले ही जीत जाएं, मगर आम पुरुष को तो धूल ही चाटनी ही पड़ती थी. यह धूल जरनैल सिंह जी फेरे फिरने के बाद से ही चाटते आ रहे थे.
वक्त के साथ यह पंजा लड़ाई गृह-युद्ध में बदलने लगी. ऐसे ही एक गृहयुद्ध में जब वह
निहत्थे थे ठीक उसी वक्त सरदारनी जी ने किरपाण खींच कर उनकी जांघों पर दे मारी.
वार इतना करारा था कि दोनों टांगें केले के तने सी कट कर दूर जा पड़ीं. खैर बात घर
की घर में रहे इसलिए कहा गया कि घर में चोर घुस आया था. उसी ने यह कातिलाना हमला
किया.
उस घटना के बाद सरदारनी जी के बलिष्ठ हाथों में दुकान की चाभियां सौंप, जरनैल
सिंह जी ने वानप्रस्थ धारण कर लिया. व्हील चेयर पर आसीन हो, आप मुहल्ले भर की
गोपनीय खबरें संकलित करते. किस घर में बीती रात जानलेवा हमला हुआ, कौन अस्पताल में
भरती हुआ. किसका अंग-भंग हुआ? कौन रात फुटपाथ पर सोया- ये चटपटी खबरें आप अखबारों को
सुलभ कराते. बदले में हर खबर पर दस का नोट मिलता. दिन भर में सौ-पचास सीधे हो
जाते. घर के भीतर रात गये ही प्रवेश करते. उनका पक्का विश्वास था कि सोई शेरनी को जगाना अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी
मारना है. दबे पांव रसोई में घुसते. जो कुछ भी रूखा-सूखा मिलता, बटोर कर खा लेते.
फिर ठंडा पानी पी,व्हील चेयर पर ही सो जाते. गुरद्वारे में सवेरे जैसे ही अरदास होती,
निकल पड़ते पीड़ितों की सेवा में.
पत्नी पीड़ित मंच के सेक्रेटरी चुने गए थे- धरम चंद-करमचंद गुप्ता एंड संस साबुन
वाले, जिन्होनें अपनी साबुन फैक्टरी खुशी-खुशी अपनी प्यारी पत्नी सावित्री के नाम
कर दी थी. वैसे लोगों ने जब भगवान राम को नहीं बख्शा तो गुप्ता जी को कैसे छोड़ते !
दबी ज़ुबान से लोग यही कहते थे कि सावित्री ने फैक्टरी के भीतर शुभचिंतकों के हाथों
गुप्ता जी की जम कर धुलाई कराई थी. इस धुलाई का नतीज़ा यह निकला कि गुप्ता जी पत्नी
को वरदान देने पर मजबूर हो गए. सावित्री ने साबुन-फैक्टरी मांगी. प्राणों की एवज़
में फैक्टरी का दान गुप्ता जी को नफे का सौदा लगा. दिल पर पत्थर रखे बगैर उन्होनें
फैक्टरी सावित्री के नाम लिख दी.
उस हादसे के बाद धरम चंद जी की आंखों पर चढ़ा चश्मा उतर गया. वे साबुन बनाना
छोड़, पत्नी पीड़ित भाइयों की सेवा में तन मन धन से जुट गए. कड़ी मेहनत के बूते ही आज
वे सेक्रेटरी चुने गए थे.
प्रोग्राम के चीफ गेस्ट थे मौलाना मुकद्दर अली, जिन्हें खुद अपने मुकद्दर पर
ऐतबार न था. तकरीबन एक दर्ज़न तलाकशुदा बीवियों के मुकद्दमे आप एक छाती पर झेल रहे थे.
सर से पांव तक पट्टियां बंधी थीं, जिन पर आपकी जांबाज़ी की इबारत खून से लिखी गई थी.
मंच के खजानची थे शायर 'खाक नसवारी' जी. उन्हें ये महकमा खास मकसद से दिया
गया था. बेलबूटों वाला मैला तहमत और उधड़ी रूपा बनियान पहने, 'खाक' साहब को ट्रेज़रारी सौंपने का मकसद फकत इतना था कि
मुशायरों में शिरकत करने से पहले आप जाम का इंतज़ाम खुद कर सकें. भर पेट 'पीने' के
बाद ही मुशायरा-स्थल को कूच करें. घर के दरवाज़े चूंकि उन्हें आते देख खुद ब खुद
बंद हो जाते थे, अत: अस्पतालों के एमर्जेंसी वार्ड या फिर पुलिस थानों के हवालात-ही
उनके 'घर' हो गए थे, जहां गली-कूचों से उठवा कर कोई नेक बंदा उन्हें दाखिल कर आता. तमंचे की
नोक पर तलाक लिखवाने के बाद उनकी बेग़म साहिबा नए शौहर के साथ ज़िन्दगी बसर करने
लगीं तो 'खाक साहब' गली-कूचों की खाक छानने निकल पड़े.
ये चारों स्टालवार्ट कई रोज़ से उनींदे थे, सो मंच पर उनके लिए बिस्तर लगाए
गए. लेटे-लेटे ही वे प्रोग्राम की
कार्रवाई देख रहे थे.
हॉल खचाखच भर चुका था. हर 'सुनने वाले' के बदन पर पट्टियां सुशोभित थीं. लगता
था महाभारत की लड़ाई में घायल हुए सभी योद्धाओं को चुग चुग कर यहां लाया गया है.
हॉल के इर्द-गिर्द कई इज़्ज़तदार लोग भी मंडराते देखे गए. वे खुल कर इस
प्रोग्राम में शिरकत तो नहीं करना चाहते थे, मगर किसी न किसी बहाने वहां मौजूद वक्ताओं
के संस्मरण भी सुनना चाहते थे. सभी दम साधे कार्रवाई शुरू होने का इंतज़ार कर रहे
थे.
तभी पट्टेदार जांघिया पहने मंच पर एक आदमी चढ़ा. इन जनाब के मुखमंडल पर झाड़-झंखाड़ों
सी मूंछें-दाढ़ी उगी थी. खोपड़ी के खिचड़ी बाल बेतरह उलझे थे. पीठ पर उछले लाठियों के नीले निशान उनकी अथाह सहनशीलता का परिचय दे रहे थे. कहीं कहीं ज्वालामुखी
जैसे क्रेटरों से लावे सा खून रिस रहा था. कहीं गिल्टियां 'मुस्कराती कलियों सी' बदन
पर इठला रही थीं. आपने कमर पर मोटा रस्सा लपेटा हुआ था, जिसका आप क्या उपयोग करते
हैं- अभी तक रहस्य बना हुआ था. पैरों पर बिवाइयां फटी थीं, उनसे रिसता हुुआ खून जगह जगह पैरों केे निशान छोड़ता जा रहा था.
माइक पर आ कर आप बोले- भाइयो ! मैं
डंगरों का डाक्टर कश्यप हूं. मैने ज़िन्दगी में बगैर झोटे के कई भैंसों की कोख हरी
की, दूध-चोर गायों से दूध तो दूध, खून तक खींचा, बैलों के खुरपके पर अपना बनाया
मलहम ऐसाा मला कि बैल फौरन खेतों की तरफ भागे.
मगर दोस्तो, एक बार मैं खुद बीमार हुआ. बीमारी मामूली थी. पेट साफ नहीं था.
घरवाली ने इलाज शुरू किया. कमरे में छत से उल्टा लटका कर लाल मिर्चों का धुआं कर
दिया. फिर दरवाज़े ढक कर निकल गई. कोई घंटे भर बाद जब आई तो मेरे पेट, नाक, मुंह,
आंख, व बदन से पानी के कई रूप निकल कर
फर्श पर बह रहे थे. इस तरीके से मेरी कब्ज़ ही नहीं, कई और चीज़ें भी साफ हो गई, मगर
आखिर हूं तो इंसान न ! क्या मैं ऐसे ट्रीटमेंट के काबिल था? दोस्तो जब भी किसी औरत को देखता हूं मुझे भैंसे पर सवार यमराज दीखने लगते
हैं. घर शेर की मांद हो गया है. ज़मीनें बिकवा दीं.पैसा अंटी कर लिया. लौंडे मेरी
तरह गली गली डॉक्टर बने घूम रहे हैं. मेरी
हालत तो आपके सामने है. अस्पताल जाता हूं.
चपरासी घुसने नहीं देता. कहता है चल भाग पागल. आप ही बताइये- क्या मैं आपको पागल लगता हूं
?
पब्लिक में से आवाज़ें उठीं- नहीं नहीं. तुम कहां पागल? पागल तो हम हैं !
सुन कर वे खुश हुए व बोले-थैंक्यू दोस्तो, अब मैं दावत देता हूं जनाबे आली सरदार जरनैल
सिंह जी बठिंडे वाले को.
हाथों से व्हील चेयर खिसकाते हुए जरनैल सिंह जी खंखारे , दर्शकों के सैलाब की तरफ नज़र दौड़ाई और बोलना शुरू किया - दोस्तो, ये नारी अबला-वबला कहीं भी नहीं है. इसके सशक्तीकरण की बात तो और भी फिजूल है. ये तो वैसे ही सशक्त है. मेरा हुलिया क्या औरत की ताकत बयान नहीं करता ? इन्हें और ताकतवर बनाया तो हम मर्द धरती पर नहीं टिक सकते. हमें चांद तारों पर बसेरा करना होगा. इतनी भारी तादाद मे यहां भर्ती आप पत्नी पीड़ितों को देख कर मेरा कलेजा फटा जाता है. रुलाई आ रही है. इस पत्नी नामक जीव ने हमारी क्या गत बना दी है ! जैसे चाहे इस्तेमाल करती है. जैसे चाहे, नचाती है, और जब मन भर जाता है तो हमें निचोड़ कर तार पर सुखाने डाल देती है. जैसे हम इनके मरद न हुए कोई मैला जांघिया हों. मैं तो यही कहूंगा कि अब हमें फेमिली का आइडिया ही बदलना पड़ेगा......
इतना कहते कहते जरनैल सिंह जी हांफने लगे. हांफते- हांफते वह कांपने लगे. कांपते-कांपते वह फूट फूट कर रोने लगे. डॉक्टर कश्यप वक्त की नजाकत भांप गए. जरनैल सिंह जी के हाथ से झटपट माइक छीना, व्हील चेयर पीछे धकेली और सामने आ कर बोले-
हाथों से व्हील चेयर खिसकाते हुए जरनैल सिंह जी खंखारे , दर्शकों के सैलाब की तरफ नज़र दौड़ाई और बोलना शुरू किया - दोस्तो, ये नारी अबला-वबला कहीं भी नहीं है. इसके सशक्तीकरण की बात तो और भी फिजूल है. ये तो वैसे ही सशक्त है. मेरा हुलिया क्या औरत की ताकत बयान नहीं करता ? इन्हें और ताकतवर बनाया तो हम मर्द धरती पर नहीं टिक सकते. हमें चांद तारों पर बसेरा करना होगा. इतनी भारी तादाद मे यहां भर्ती आप पत्नी पीड़ितों को देख कर मेरा कलेजा फटा जाता है. रुलाई आ रही है. इस पत्नी नामक जीव ने हमारी क्या गत बना दी है ! जैसे चाहे इस्तेमाल करती है. जैसे चाहे, नचाती है, और जब मन भर जाता है तो हमें निचोड़ कर तार पर सुखाने डाल देती है. जैसे हम इनके मरद न हुए कोई मैला जांघिया हों. मैं तो यही कहूंगा कि अब हमें फेमिली का आइडिया ही बदलना पड़ेगा......
इतना कहते कहते जरनैल सिंह जी हांफने लगे. हांफते- हांफते वह कांपने लगे. कांपते-कांपते वह फूट फूट कर रोने लगे. डॉक्टर कश्यप वक्त की नजाकत भांप गए. जरनैल सिंह जी के हाथ से झटपट माइक छीना, व्हील चेयर पीछे धकेली और सामने आ कर बोले-
तो दोस्तो, आपने देखा कि हमारे जरनैल सिंह जी कितने दुखी हैं. गुप्ता जी की हालत
तो और भी नाजुक है . उन्हे तो घर मे घुसने तक नही दिया जाता. खाक नसवारी जी के बारे
मे क्या कहूं? उनके पास तन ढकने लायक लत्ते कपड़े तो पहले भी कभी नही रहे पर
आज की तारीख मे हालत ये है कि उनके बदन पर
इज़्ज़त ढकने के नाम पर जो मैला कुचैला फटा पुराना लंग़ोट था आज वह भी गायब है. पूरे नागा
साधू बने बैठे थे. मैंने अपना जांघिया उन्हे दिया तब जाकर वह आपके सामने प्रकट हो सके.
यहां से बैठक के बाद खाक नसवारी सीधे जूना अखाड़े जाएंगे और वहां जाकर नागा साधू बन
जाएंगे, उनका कहना है कि जब
नंगा ही रहना है तो मुसलमान हो कर क्यों रहूं. नागा बाबा बन कर अखाड़े की सेवा क्यूं
न करूं.
फिर पानी का गिलास एक ही सांस मे खींच कर डाक्टर कश्यप शुरू हुए - अब आप ही बताइये- इस पत्नी नामक जंतु को बेबस और अबला कहना कहां तक जायज है. मुझे तो पक्का यकीन है कि नारी इस धरती का प्रोडक्ट है ही नहीं. इसे एलियनों ने अपने ग्रह से यहां पटक कर हमारे मत्थे मढ़ा और अपनी जान बचा ली.
अभी डाक्टर कश्यप केे स्त्री पुराण का आखिरी
अध्याय खत्म भी नही हुआ था कि बाहर हलचल होने लगी. भीड़ बेकाबू होने लगी. देखते ही देखते
सभा स्थल को पुलिस ने घेर लिया. एक हाथ से जांघिया ऊपर खींचते डाक्टर कश्यप स्टेज से
कूदे ही थे कि लाठी का भरपूर वार उनके टखने पर हुआ. कटे मुर्गे की तरह वहीं गिर कर
फड़्फड़ाने लगे. महिला इंस्पेक्टर माइक पर गरजीं- अस्पताल की शांति और शहर का अमन बिगाड़ने
के इल्जाम मे सरदार जरनैल सिंह, धरम
चंद, मौलाना मुकद्दर अली, खाक नसवारी और डाक्टर कश्यप के खिलाफ गैर जमानती वारंट हैं.
आप सब लोग अपने आपको पुलिस के हवाले करें. चीते सी फुर्तीली महिला सिपाहियों ने पकड़
पकड़ कर सबको पुलिस वैन मे ठूंसा और थाने की तरफ चल पड़ीं.
पुलिस के इस अभियान को सफल बनाने के लिए सरदारनी, सावित्री, जौहरा और श्रीमती कश्यप आदि वीरांगनाओं को प्रशस्ति पत्र देकर शाल ओढ़ा कर उनका नागरिक अभिनंदन किया गया.
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