अलादीन का चिराग


                                                                                                                      
              अलादीन ने जैसे ही चिराग का घिसा, उसके सामने पहाड़ सा ऊंचा जिन्‍न प्रकट हो गया । हाथ बांधे, सर झुकाए उस जिन्‍न ने गंभीर आवाज में कहा- क्‍या  मैं आसमान के तारे तोड़ कर आपके कदमों में बिछा दूं  ? पहाड़ों को पीस कर समुद्र में डुबो दूं ? सूरज को पच्छिम से उगने पर मजबूर कर दूं ? या फिर इस धरती की ही चाल रोक दूं ? क्‍या हुक्‍म है मेरे आका ?’
          अलादीन मुस्‍करा कर बोला मेरी दिली ख्‍वाहिश तो हिंदुस्‍तान के गांव, खेत-खलिहान देखने की है । क्‍या ये मुमकिन है ? मुमकिन है मेरे आका । बस इशारे की देर है जिन्‍न ने उत्‍तर दिया ।
          अगले ही पल अलादीन जिन्‍न की पीठ पर सवार हो आसमान में उड़ने लगा । सबसे पहले जिन्‍न अरब दरिया के किनारे मुंबई के नजदीकी हिस्‍से पर पहुंचा । अलादीन ने देखा नासिक ओर आस पास के इलाकों में खेत अंगूर  की बेलों से ढके थे । बेलों पर बेहिसाब गुच्‍छे लटके थे । गेहूं, गन्‍ना, सरसों या चने जैसी फसलों का दूर दूर तक नामो निशान न था । शराब के कारखानों से अंगूरी शराब की भीनी भीनी खुशबू चारों तरफ फैली थी ।
          अलादीन की समझ में कुछ नहीं आया । उसने पूछा जिन्‍न, तुम ही बताओ यहां के किसान सिफ अंगूर की खेती क्‍यो कर रहे  हैं ? बगैर अनाज ये अपनी भूख आखिर कैसे मिटाएंगे?
          आपका सवाल जायज है मेरे आका जिन्‍न बोला इसके अंगूरों की शराब अमीरों की प्‍यास भले ही बुझा दे, मगर इनके अपने ही पेटों की धधकती भूख को नहीं मिटा सकेगी । इन्‍हें भूखों मरना होगा ।
          जिन्‍न से यह कठोर वचन सुनकर अलादीन का मन दुखी हो गया । उसने जिन्‍न को हिंदुस्‍तान के भीतर गांवों की तरफ चलने का हुक्‍म दिया ।
          जिन्‍न उड़ता हुआ विदर्भ के आसमान पर मंडराने लगा । अलादीन ने देखा खेतों में चारों तरफ कपास की फसल तैयार खड़ी थी । गांवों के बाहर जगह जगह धुआं उठ रहा था। कहीं कोई चहल पहल न थी । मौत का सन्‍नाटा सारे इलाके पर छाया हुआ था ।
          अलादीन एक बार फिर मात खा गया । वह कुछ भी नहीं समझ सका । हार कर उसने जिन्‍न से पूछा हे जिन्‍न, ये माजरा क्‍या है ? जहां देखो, सिर्फ कपास । आखिर क्‍यों ?
          सुनिये मेरे आका, जिन्‍न बताने लगा, पहले यहां भी लोग धान, गेहूं, मक्‍का बोते थे। सरकार ने इन्‍हें सलाह दी कि कपास बोना ज्‍यादा फायदेमंद रहेगा । पैसा अच्‍छा मिलेगा । इसके लिए किसानों को कर्जे भी दिये गये । बीज, खाद में सब्सिडी भी दी गयी । तैयार माल भी अच्‍छी कीमत देकर सरकार ने खरीद लिया । जब ये इलाका कपास की खेती में आगे बढ़ गया तो सरकार के तेवर बदल गये । लोगों ने कर्जे लेकर बीज, खाद खरीदा इस उम्‍मीद में कि फसल बिकेगी तो सारे कर्जें उतर जाएंगे । मगर इस बार न तो उन्‍हें सब्सिडी मिली, न वाजिब कीमत । उल्‍टे सरकारी खरीद भी बंद कर दी । ये फसल इसीलिए अब तक नहीं कटी ।
          वाकई, ये तो नाइंसाफी है । अलादीन बोला, मगर ये गांवों के बाहर कई जगह से धुआं क्‍यों उठ रहा है जिन्‍न ?
जिन्‍न ने बताया कर्जे में दबे किसानों की उम्‍मीदों पर जब पानी फिर गया तो वे हताश होकर आत्‍महत्‍या करने पर मजबूर हो गये  । ये धुआं उन्‍हीं किसानों की चिताओं से उठ रहा है मेरे आका ।
          अलादीन गमगीन हो उठा । वह अपने आप से पूछने लगा क्‍या ये वही देश है जिसकी तहजीब तवारीख में सबसे पुरानी बताई जाती है ? धरती के बेटों के साथ ऐसा जुल्‍म तो अपने अरब के मुल्‍कों में भी नहीं हुआ । अलादीन ने जिन्‍न को हुक्‍म दिया इस नापाक जगह को अब मैं एक पल भी नहीं देख सकता । तुम मुझे हिंदुस्‍तान के उस हिस्‍से में ले चलो जो बंगाल की खाड़ी के किनारे बसा है ।
          पलक झपकते ही जिन्‍न कोलकाता शहर के आसपास बसे गांवों पर मंडराने लगा । अलादीन ने देखा जहां तक नजर जाती थी, वहां दूर दूर तक बंजर खेत थे । सारी जमीन कांटेदार तारों से घिरी थी । ईंट, बजरी, सीमेंट, और सरिये के पहाड़ जगह जगह खड़े थे । बड़ी बड़ी मशीने काम  पर लगी थीं ।
          अलादीन इस बार भी कुछ नहीं  समझ सका । आखिरकार उसेक जिन्‍न से ही पूछना पड़ा ये खेतों में फसलों की जगह इमारतें बनाने का सामान किस मकसद से गिराया गया है ? तुम्‍हीं बताओ हे जिन्‍न ?
          जिन्‍न बताने लगा मेरे आका, इस सूबे पिछले चालीस साल से जो सरकार है, वह खुद को खेतिहर मजदूरों और किसानों का हमदर्द बताती है । इस सरकार ने किसानों से हजारों बीघा जमीन छीनकर बाहरी मुल्‍कों के थैलीशाहों को बेच दी है । अब वही बाहर के लोग यहां के मजदूरों, किसानों की तकदीर ठिकाने लगाने के लिए आ पहुंचे है । इन खेतों में अब बड़े बड़े शॉपिंग माल बनेंगे, आलीशान होटल खुलेंगे । क्‍लब, रेसकोर्स, जुआघर, शराब की दुकाने खुलेंगी । विदेशी माल जो चाहो, यहीं मिलने लगेगा । चमचमाती चौड़ी सड़के बनेंगी, आसमान छूती एअर कंडीशन इमारतें बनेंगी, किसान मजदूरों को ऊपर उठाने के तरीकों पर विचार करेंगे ।
          अलादीन खामोश होकर सब कुछ सुन रहा था कि तभी चीखने चिल्‍लाने, गोलियां और लाठियां चलने की आवाजें आने लगीं । उसने देखा जुलूस निकालते निहत्‍थे किसान मजदूरों को चौतरफा घेर कर पुलिस के जवान बेरहमी से लाठियां चला रहे थे । खून के फव्‍वारे फूटी खोपड़ियों से बरस रहे थे । लहुलुहान लोग जान बचाकर भाग रहे थे । मक्खियों की तरह लाशें सड़क सयपर खून से सनी पड़ी थीं । हा हाकार मचा हुआ था ।
     ये कौन लोग हैं जिन्‍न ?  इन्‍हें किस गुनाह की सजा मिल रही है  ?  अलादीन ने पूछा तो जिन्‍न बोला ये वही गरीब किसान हैं मेरे आकाद्ध जिनकी जमीनें जबर्दस्‍ती छीन ली गयीं हैं । इनका गुनाह यही है कि इन्‍होंने सूबे की सरकार पर भरोसा किया, उसे अपने सुख दु:ख का साथी समझा । कहकर जिन्‍न खामोश हो गया ।
          अलादीन की आंखें भीग गयीं । वह बस इतना ही कह सका चलो जिन्‍न, यहां से चलें । इससे तो हमारा मुल्‍क ही बेहतर है । 
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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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