बादल

        


किसी नें बादलों में प्यार के प्रतिमान भी देखे 
किसी को जिस्म भूखे और प्यासे भी नज़र आए ॥

किसी को बादलों में ताजमहलों के हुए दीदार ।
किसी को रेत के टूटे घरौंदे भी नज़र आए 

कहीं देखे गए ये प्यार का पैगाम पहुंचाते 
कहीं ये मौत का फरमान देते  भी नजर आए ॥

ये बेलों पर इनायत बन के भी बरसा किये ।
दरख्तों पर यही बिजली गिराते भी नज़र  आए ॥

कभी टहला किये  ये पर्वतों  की चोटियों पर  
कभी नीची ढलानों पर यही लेटे नज़र आए ॥

इन्हें शूलों से भी हमने उलझते खूब देखा ।
कभी फूलों को ये आगोश में लेते नज़र  आए ॥

भरी तपती दुपहरी की बरसती आग में 
ये ठंडी  छांव की सौगात देते भी नजर आए ॥

हमारा ख्याल था बादल सभी को प्यार करते हैं ।
मगर ये भी हमारे हाल पर हंसते नजर आए ॥

सुना है लोग इनको दूध सा उजला बताते हैं ।
हमें इन पर किसी के खून के छींटे नजर आए ॥ 

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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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