छिट-पुट हास्य व्यंग्य दोहे

                                                            
एक बार  धर्मराज मृत्युलोक की विजिट पर थे. उन्होने जो कुछ देखा उसे दोहे में इस तरह बयां किया.                

अंधा बांटै रेवड़ी गधा पंजीरी खाय ।
तेल कहीं दिखता नहीं राधा नाची जाय ॥1

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने मे सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग होनी चाहिए ॥

महान गज़ल कार दुष्यंत कुमार त्यागी अगर आज लिखते तो शायद ऐसे लिखते -
मेरे पीछे भी नहीं तो तेरे पीछे ही सही ।
हो कहीं भी हाथ लेकिन हाथ होना चाहिये ॥2
गांव के कुएं पर किसी किशोरी ने महान कवि केशव दास के सफेद बालों पर तंज कसा तो वह बोले - 
केसव केसन अस करी, जस अरिहूं न कराय ।
चंद्र बदनि मृग लोचनी बाबा कहि कहि जाय ॥ 

उन्ही सफेद बालों को डाई कराने के बाद आचार्य केशव अगर आज किसी रेस्तरां पर चाय पीने जाते तो  सुंदर कन्या की प्रतिक्रिया  को वह कुछ इस तरह लिखते -

केसव डाई न  अस करी जस वाइफ न कराय ।
चन्द्रबदनि मृग लोचनी आ जा कहि कहि जाय ॥3

सुना है किसी कवि की बेकार कविता सुनकर एक राजा को इतना गुस्सा आया था कि राजा ने कवि को हाथी के पैरों तले कुचलवा दिया . वह कुचली हुई आत्मा दोबारा  कवि बन कर आई और उसने वही कविता इस तरह लिखी-

गालहिं हाथी पाइये  गालहिं हाथी पांव ।
गालहिं साधै सब सधै, गाल जाय सब जाय ॥4

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी के आदर्श नायक श्रीराम  ने अपना संदेश कुछ इस तरह दिया था- 

संदेश  यहां मैं नहीं स्वर्ग  का लाया ।
इस भूतल को ही स्वर्ग  बनाने आया ॥5
अगर आज की तारीख में  श्री राम स्वर्ग का संदेश लाते तो क्या कहते -

पैगाम  यहां मैं नहीं नर्क का लाया ।
इस भूतल को ही नर्क बनाने आया ॥6



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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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