चाभी का खिलौना



  
कौन कहता है कि वह  इंसान है ।
गौर से देखो वो  चाभी का खिलौना है ॥ 1॥

नए दोजख बनाने पर तुली है ।
ये आदमजात पागल हो गई है ॥2॥

महज बरबादियों मे ही नहीं है ।
यहां आबादियों मे भी सियासत है ॥3॥

कल तुम्हारे हाथ से जो छिन गया ।
वह निवाला आज मेरे पेट मे है ॥ 4॥

तुम सभी कमजोर लोगों के निवाले ।
कौन है जो सब हड़पना चाहता है ॥5॥

ये ऊपर से नहीं आई ज़मीनी है ।
परेशानी हमारी ही बुलाई है ॥6॥

गीदड़ों की दरजनों की डार से ।
बघेला एक हो तो भी बहुत है ॥7॥

वो सौदागर यहीं पर हैं जिन्होने  
आदमी को आदमी से काट रक्खा है ॥ 8॥  

Share on Google Plus

डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें