ये सूरज ....



ये सूरज ढला जा रहा जैसे जैसे ।
घिरी आ रही शाम भी वैसे वैसे ॥ 1॥

यहां मर रहे हैं जवां कैसे कैसे ।
ये क्यों आ रहे हैं बयां वैसे वैसे ॥ 2 ॥

दवा आप लेते गए जैसे जैसे ।
बढ़ा मर्ज बेइंतिहा वैसे वैसे ॥3॥

उजड़ते गए झोंपड़े जैसे जैसे ।
यहां बन रहे हैं किले वैसे वैसे ॥4॥

बढ़ी बोलियां हाट मे जैसे जैसे ।
बिकाऊ हुआ आदमी वैसे वैसे ।।5॥  

भयानक अंधेरा बढ़ा जैसे जैसे ।
लगा टिमटिमाने दिया वैसे वैसे ॥6॥

हवा मे जहर घुल रहा जैसे जैसे ।
उमीदें फना हो रहीं वैसे वैसे ॥7॥

रपटती डगर पर बढ़ी रेस जैसे ।
हुई जा रही मंजिलें दूर वैसे ॥8॥




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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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