नक्षत्र तथा राशि आधारित फलादेश- भाग 3

 

भारतीय दर्शन पुनर्जन्म मे विश्वास व्यक्त करते हैं। इसका मतलब है कि हमारा वर्तमान जन्म तीनो कालों –भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल मे से केवल एक काल खंड है। अर्थात हम भूतकाल मे भी थे और भविष्यकाल मे भी होंगे।

इसका यह भी मतलब है कि हमारा चेतन शरीर केवल पांच तत्वों ( अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी तथा आकाश) से तो बना ही है, साथ ही इस चेतन शरीर मे एक अन्य सूक्ष्म शरीर भी मौजूद है जो इन पांच तत्वों से नही बना है। इस सूक्ष्म शरीर के घटक हैं- मन, बुद्धि, अहं तथा जीव(आत्म तत्व). सूक्ष्म शरीर के ये घटक चूंकि भूतों (भौतिक तत्वों)  से निर्मित नहीं हैं, अत: सूक्ष्म शरीर पर इस त्रिविमीय विश्व की भौतिकी के नियम भी लागू नही होते।  

इस सूक्ष्म शरीर के भीतर भी एक और शरीर है। इसका नाम है कारण शरीर । इस शरीर मे केवल एक ही घटक है। और वह है जीवात्मा. 

इसका मतलब यह हुआ कि आकाश (दूरी) तथा काल (समय) इस सूक्ष्म शरीर तथा कारण शरीर के लिए कोई मायने नहीं रखते। प्रकाश की गति भौतिक विश्व की सबसे अधिक गति( तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकेंड) हो सकती है लेकिन यह गति हमारे भौतिक शरीर पर ही लागू हो सकती है, सूक्ष्म तथा कारण  शरीर पर नहीं। सूक्ष्म शरीर तथा कारण शरीर पल मात्र मे ब्रह्मांड के किसी भी कोने मे पहुंच सकता है। कारण यही है कि सूक्ष्म शरीर तथा कारण शरीर भौतिक पदार्थों से नहीं बने  हैं ।

अगर ऐसा है तो खगोलीय पिंडों के गुरुत्व तथा विद्युत चुंबकीय बल भी हमारे भीतर स्थित सूक्ष्म व कारण  शरीर  पर भौतिक प्रभाव नहीं डाल सकते।

महान दार्शनिक ग्रंथ श्रीमद्भगवत गीता बताती है कि शस्त्र आत्मा को (अर्थात सूक्ष्म तथा कारण शरीर को) काट नही सकते, अग्नि जला नही सकती जल भिगो नही सकता तथा वायु सुखा नही सकती । अर्थात पृथ्वी तत्व(शस्त्र ), अग्नि तत्व, जल तत्व, तथा वायु तत्वो का हमारे सूक्ष्म व कारण  शरीर पर कोई प्रभाव नही पड़ता ।  

गीता यह भी बताती है कि पांच तत्वों से बनी यह देह जीर्ण भी होती है । अर्थात यह पंच भौतिक देह काल (समय) के आधीन है? इसके जीर्ण होने पर जीवात्मा सहित सूक्ष्म शरीर इसे त्याग देता है। और कर्मानुसार नया शरीर धारण करता है। ( वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्ण न्यनानि संयाति नवानि देहि ॥ ) अर्थात जैसे हम पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करते हैं ठीक उसी प्रकार हमारी जीर्ण हो चुकी भौतिक देह को त्याग कर जीवामा (कारण शरीर) भी नई देह धारण करता है।

हमारे  नक्षत्र आधारित प्राचीन वैदिक ज्योतिष का संबंध भी  केवल स्थूल पंचभौतिक शरीर से ही न होकर सूक्ष्म शरीर तथा कारण शरीर (केवल जीवात्मा) से भी है।  (क्रमश )

 

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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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