जैसे सीजन आने पर मुंह उठा कर गधे रेंका करते हैं,
कुछ-उसी तरह,
रगड़ा हुआ तमाखू निचले
होंठ की जड़ में बिठा कर रामभरेसे ने बांग दी-‘सट्टवान बनाम भोला हाजिर
हो..............।’
भोला कटघरे में पहुंचा ही था कि वकील ने गीता सामने कर दी
और बोला, ‘गीता की कसम खाओ कि जो कहोगे सच कहोगे। सच के सिवा कुछ न
कहोगे । ’
भोला-झूठे लोग गीता से डरते तो दुनियां में आज झूठ न होता । सच बोलने के लिये भला कसम की क्या जरूरत ?
वकील-क्या किसी के माथे पर लिखा है कि वह सच्चा है या झूठा ?
भोला-ये बात तो आप और सत्यवान जी पर भी उतनी ही लागू होगी है-जितनी मुझ पर !
वकील-तो तुम सच बोलने की कसम नहीं खाओगे ?
भोला-सच बोलने की सजा ही तो भुगत रहा हूं। झूठा होता तो
यहां पर न होता, कहीं ऐश कर रहा होता।
वकील-अच्छा ये बताओ कि तुमने सत्यवान जी के घर से दो हजार
रूपये क्यों चुराए ?
भोला-अपनी दिहाड़ी निकालना क्या चोरी है ?
वकील-क्या मतलब ?
पुलिस रिपोर्ट क्या
झूठी है ?
भोला-ये पता लगाना मेरा काम नहीं है।
वकील-तुम कहना क्या चाहते हो ?
भोला-मैं सत्यवान जी की कोठी पर दस रोज से पुताई कर रहा था।
इनसे जब भी पैसे मांगता-ये टाल जाते।
वकील-पैसे में देर हुई तो चोरी कर ली ?
भोला-नहीं, इनके कोट की जेब से अपनी दिहाड़ी निकाल ली।
भोला-पूछ कर पैसे न मिलते,
उस रोज दीवाली थी।
खाली हाथ घर कैसे जाता ?
वकील-तुम्हें कैसे पता चला कि इनके कोट में रूपये हैं ?
भोला-मेरे सामने दो लोग आये। सत्यवान जी को एक लिफाफा थमाया
और बोले-भरोसा एंड संस से आये हैं सर। सेठ जी ने मिठाई भेजी है। सत्यवान जी ने
इशारे से पूछा-कितनी है तो उन्होनें कहा-20 किलो। हंसते हुए सत्यवान जी ने लिफाफा कोट की भीतरी जेब के
हवाले कर दिया। थोड़ी देर बाद कोट खूंटी पर टांग,
ये बाहर निकले। मौका
देख कर मैने लिफाफा खोला और हजार हजार के दो नोट निकाल कर घर को चल दिया।
वकील (जज से)- मी लार्ड,
मुजरिम ने गुनाह कबूल
कर लिया है। लिहाजा उसे कड़ी से कड़ी सजा सुनाई जाए ।
जज (अभियुक्त भोला से)-तुम्हें सफाई में कुछ कहना है ?
भोला-हां, कहना है सरकार।
जज-इजाजत है।
भोला-सरकार,
मेरा कोई वकील नहीं है,
मैं वकील की फीस नहीं
भर सकता। मैं अपना केस खुद लडूंगा। मेरा पहला सवाल है-सरकारी नौकरी करते हुए कोई
अपना बिजनेस कर सकता है ?
वकील-नहीं कर सकता,
ये कानूनन जुर्म है। मगर इसका मुकदमे से क्या ताल्लुक ?
भोला-ताल्लुक है जज साहब। ये सत्यवान जी, जो सामने कटघरे में खड़े हैं-ये बैंक में मैनेजर तो हैं ही,
साथ ही एक निजी कंपनी
भी चलाते हैं। कंपनी सुझाव देती है कि बैंकों सें करोड़ों का लोन कैसे लिया जाय।
मिल जाने के बाद उस लोन को हड़पा कैसे जाय ?
वकील-मगर मुकदमे का इस वाकए से क्या ताल्लुक मी लॉर्ड ?
भोला-जज साहब,
भरोसा एंड संस को
सत्यवान जी वाले बैंक से पांच करोड़ का कर्ज उसी कंपनी ने दिलाया। कर्ज लिया गया
फैक्टरी के लिये, मगर उसे पैसे को शेयर मार्केट में लगा कर बीस करोड़ बनाया
गया । ये मुनाफा कंस्ट्रक्शन के कारोबार में लगा। टावर बनने लगे। फ्लैट
बिकने लगे। आज भरोसा एंड संस सौ करोड़ को
छूने वाले हैं। बैंक का पांच करोड़ ज्यों का त्यों पड़ा है। सत्यवान जी की कंपनी की
सलाह पर बैंक ने भरोसा एंड संस पर वसूली का केस ठोक दिया। इरादा ये है कि मुकदमा बीसों साल खिंचता रहे। तारीखों पर तारीखें लगती रहें,
मगर फैसला कभी न हो
सके। जज साहब, वह केस सरकार की तरफ से यही वकील साहब लड़ रहे हैं। भरोसा
एंड संस के वकील और इन सरकारी वकील महाशय की नूरा कुश्ती चल रही है। ये वकील साहब
रिश्ते में सत्यवान जी के सगे साले हैं। भरोसा कंपनी के वकील सत्यवान जी के दामाद
हैं। अब आप खुद समझ सकते हैं कि जिन सत्यवान जी ने मुझ पर चोरी का मुकदमा दायर
किया है-वह कितने गहरे पानी की मछली हैं ?
सरकार,
मेरे बयान से यह भी
साफ हो गया है कि चोर मैं नहीं, सत्यवान जी हैं,
भरोसा एंड संस हैं तथा
खुद ये वकील साहब हैं जो चोरों की वकालत कर रहे हैं।
वकील-मी लार्ड,
मैं कुछ कहने की इजाजत
चाहता हूं।
जज-इजाजत है।
वकील-शुक्रिया मी लार्ड,
अदालत ने मुजरिम का
बयान सुना। मुजरिम ने जिस होशियारी से मुद्दे को दूसरी तरफ मोड़ा यह गौर करने लायक
था। मुकदमा था चोरी का। भोला बनाम सत्यवान,
मगर मुजरिम ने गुनाह
कबूल करने की जगह भोला एंड संस बनाम बैंक के मुद्दे को भी घसीट लिया। मालूम होता है-मुजरिम को कानून की जानकारी है,
इसे शेयर बाजार की भी
जानकारी है। इसे नपे-तुले शब्दों में अपनी बात समझाना भी खूब आता है। मुझे यकीन है
मी लार्ड, भोला इसका असली नाम नहीं है। मैले-कुचैले कपड़े पहने,
खिचड़ी दाढ़ी-मूछों वाला
यह शख्स दिहाड़ी मजदूर नहीं हो सकता। यह कोई प्रतिबंधित संगठन का सदस्य है जो
मजदूरों के भेस में मजदूरों के बीच रह कर उन्हें भड़का रहा है। मैं अदालत से दरख्वास्त
करूंगा कि मामले की नजाकत भांपते हुए मुजरिम को दस दिन के लिये पुलिस हिरासत में
भेजा जाए ।
जज-दोनों पक्षों के बयानात पर गौर करने के बाद अदालत मुजरिम
को दस दिन की पुलिस हिरासत में भेजने का हुक्म देती है।
ग्यारहवें दिन भोला को कड़ी देख-रेख में अदालत में पेश किया
गया। उसका चेहरा सूजा हुआ था। मुंह पर कई जगह नीले निशान थे। वह बेहोशी की हालत मे था । किसी तरह कटघरे पर सर टिका
कर बड़ी मुश्किल से खड़ा था।
जज-बहस शुरू की जाए।
वकील-मी लार्ड,
इस मामले में पुलिस को
महत्वपूर्ण सुराग मिले हैं। मुजरिम के घर की तलाशी में भी कुछ असला व कुछ
आपत्तिजनक लिटरेचर, सीडी, नक्शे आदि मिले हैं। मैं पुलिस इंस्पेक्टर धरम सिंह की
गवाही की इजाजत चाहता हूं।
जज-इजाजत है।
वकील-इंस्पेक्टर धरम सिंह,
आपने मुजरिम से दस दिन
तफ्तीश की, आपने क्या देखा।
इंस्पेक्टर-सर,
मुजरिम के घर की तलाशी
में ऐसी किताबें मिलीं जो नक्सली ग्रुपों
के पास होती हैं। उसके घर से एक पिस्टल तथा छै जिन्दा कारतूस भी मिले। जब कड़ाई से
पूछताछ हुई तो पता चला कि मुजरिम पीपुल्स बार ग्रुप का मेंबर है। पढ़ा-लिखा है। भेस
और नाम बदल कर मजदूरों के बीच रहता है। अमीरों के खिलाफ मजदूरों को भड़काता है।
समाज में दुश्मनी की भावना फैलाता है। यह कई साल से मजदूरों के बीच रहता है। वहीं
एक मजदूर औरत से इसने शादी भी कर ली। बच्चों को भी वह उसी माहौल में रखता था ताकि
उसकी असलियत किसी पर जाहिर न हो।
वकील-मी लार्ड,
इंस्पेक्टर धरम सिंह
की गवाही के बाद बात शीशे की तख्त साफ है कि मुजरिम भोला एक खतरनाक,
शातिर अपराधी है। मैं
अदालत से गुजारिश करता हूं कि मुजरिम को ऐसी कड़ी-से कड़ी सजा दी जाय कि भविष्य में
कोई नक्सली ऐसी हिम्मत न कर सके।
जज (भोला से)-तुम्हें अपनी सफाई में कुछ कहना है ?
भोला-हां सरकार ! मैं गुनाहगार हूं। मैं नक्सली हूं। मेरे
घर मे पिस्टल थी। आपत्तिजनक साहित्य भी था। मगर मेरी आपसे गुजारिश है,
मुझे अब पुलिस हिरासत
में न भेजें। दस दिन की हिरासत से अच्छा है चोरी की सजा भुगतना।
जज-गवाहों और सुबूतों के आधार पर अदालत इस नतीजे पर पहुंचती
है कि भोला एक राष्ट्र-द्रोही, संविधान विरोधी शख्स है जो मजदूरों के भेस में रह कर अमीरों
के खिलाफ लोगों के दिलों में जहर भर रहा
है तथा मौका मिलने पर चोरी भी करता है। जुर्म की गभींरता देखते हुए अदालत उसे
सात-साल की बामशक्कत कैद व दस हजार का जुर्माना तय करती है। जुर्माना न भरने पर
तीन साल की सजा बढ़ाने की सिफारिश भी करती है। इसी के साथ बैंक मैनेजर सत्यवान जी
को बेकसूर साबित करते हुए बाइज्जत रिहा करने का आदेश देती है।
भोला ने देखा-न्याय की देवी की आंखों पर अब भी काली पट्टी
बंधी थी। हाथ में लटका तराजू वजन की तरफ झुका हुआ था। उसके मुंह से बस इतना ही निकला-असत्यमेव
जयते और वह वहीं कटघरे में गिर कर ढेर हो गया।
(समाप्त)
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