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दून के पहाड़ी क्षेत्र के खेत |
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून जिले में गांव और पुरानी बस्तियों
की पहचान उनके नाम के आखिर मे जुड़े वाला शब्द से होती है। लगभग 150 गांव और पुरानी बस्तियों के नामों में ‘वाला’ शब्द जुड़ा हुआ है।
गांव-और पुरानी बस्तियों के नाम पर यह
'वाला' शब्द कब,
क्यों और कैसे जुड़ा,
इसका उल्लेख लेखक को अभी तक नहीं मिला है । लेकिन, माना जाता है कि गांव की विशेषता, परंपरा और स्थानीय संस्कृति के आधार पर ही 'वाला' शब्द जुड़ा होगा।
वासुदेवशरण अग्रवाल जी की प्रसिद्ध पुस्तक “पाणिनिकालीन भारतवर्ष’ मे पाणिनि कृत ‘अष्टाध्यायी’ की सटीक विवेचना की गई है। लगभग चार सौ वर्ष ईसा पूर्व के भारत की सामाजिक
सांस्कृतिक राजनीतिक व धार्मिक परंपराओं का सुंदर चित्रण इस पुस्तक मे मिलता है । इसी
मे ग्रामों, नगरों और अन्य बस्तियों के नाम किस आधार पर रक्खे
जाते थे – इसका संक्षिप्त उल्लेख मिलता है । उदाहरण के लिए ‘पुर’
शब्द उन बस्तियों के बाद लगाया जाता था जो नदी के किनारे बसे होते थे।
‘प्रयाग’ वहां लगाया जाता था जो दो नदियों
के संगम पर बसे होते थे ।
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दून का पहाड़ी गांव |
किंतु इस पुस्तक मे ऐसे गांवों का उल्लेख नही है जिनके अंत मे ‘वाला’ शब्द लगता था।
सन 1974 के आसपास की बात है । तब देहरादून मे एक प्रसिद्ध साहित्यिक
संस्था हुआ करती थी । नाम था – साहित्य संसद । महादेवी कन्या पाठशाला महाविद्यालय की
हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ शशि प्रभा शास्त्री जी, चौथे
तारसप्तक के पहले कवि अवधेश कुमार, कुसुम शर्मा जी, प्रसिद्ध फोटोग्राफर ब्रह्मदेव जी, डॉ जितेन ठाकुर,
सुभाष पंत, ज्ञानेंद्र जी, नवीन नौटियाल, धीरेंद्र अस्थाना, देश बंधु, आनंद दीवान, सुखवीर विश्वकर्मा
आदि अनेक नामचीन साहित्यकार तथा बुद्धिजीवी उस संस्था के प्रमुख स्तंभ थे।
प्रत्येक माह साहित्य संसद की गोष्ठी होती थी । ऐसी ही एक गोष्ठी
के दौरान डॉ शशिप्रभा जी ने इस विषय पर दिलचस्पी दिखाई थी कि आखिर क्यों देहरादून
मे इतने ‘वाला’ हैं? क्या कारण हो सकता है ?
डॉ शास्त्री का अनुमान था कि ‘वाला’ की यह परंपरा बहुत पुरानी नहीं होनी
चाहिए। आज से करीब तीन- साढ़े तीन सौ साल पहले जब देहरादून मे बंजारे व गूजर बहुतायत
मे रहा करते थे – लगभग तभी से यह परंपरा आरंभ हुई होगी – ऐसा उनका मानना था ।
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दून का एक गांव |
जिस गांव मे किसी शिल्प या किसी वस्तु की बहुतायत रहती थी उसी
के आधार पर उस गांव का नाम रख दिया जाता होगा- ऐसा अधिकांश विद्वानों का मानना है ।
यहां हम कुछ उदाहरण देकर आज के संदर्भ से भी तथ्य को जोड़ने की
कोशिश करेंगे।
अनारवाला- जैसा नाम से ही जाहिर है – इस इलाके मे अनार की पैदावार
ज्यादा हुआ करती थी । अम्बीवाला मे अम्बी अर्थात बीजू आमों के पेड़ बड़ी तादाद मे रहे
होंगे जिससे अम्बियां आसानी से सुलभ होती होंगी । आज भी लेखक के निवास के दो तीन किलोमीटर
दूरी पर बसे अंबीवाला गांव मे आम के काफी पेड़ हैं । करीब पचास साल पहले तो आमों के
पेड़ों की पूरी सड़क के साथ साथ लंबी लंबी लाइनें थीं। तोतापरी, सिंदूरी, बीजू, लंगड़ा,
अचारी, कलमी वगैरह कितनी ही किस्मों के आम के पेड़
अम्बीवाला मे तब मौजूद थे। आज भी काफी पेड़ बचे हुए हैं।
डोईवाला अपनी खास किस्म की लकड़ी से बनी करछुलों( डोइयों) के
लिए जाना जाता था । यहां के कारीगर लकड़ी की डोई बनाने मे सिद्धहस्त थे ।
चक तुनवाला मे तुन नामक इमारती लकड़ी के पेड़ काफी तादाद मे थे
। जो आज भी हैं ।
ब्राह्मणवाला मे ब्राह्मणों की बड़ी बस्ती थी । जो पुरोहिताई
का कार्य करते थे । आज भी इस इलाके मे पुराने ब्राह्मणों की पीढ़ियां रहती हैं।
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तुन का पेड़ |
रांगड़वाला मे रांगड़ लोग रहा करते थे। रांगड़ मूलत: हिंदू थे लेकिन बाद
मे मुस्लिम धर्म मे दीक्षित हो गए । ये पंजाब के मूल निवासी थे और अपने साथ वहां का
खास चावल रांगड़ भी देहरादून लाए थे। लेखक ने इंडियन मिलिटरी अकादमी के सामने रांगड़ों
के विशाल धानों के खेत खुद देखे थे । सन 1974 तक इन खेतों मे धानों की रोपाई हुआ करती
थी। यहीं पर इनका विशाल गांव रांगड़ वाला भी था, जिसके
अवशेष अब भी बचे हुए हैं।
बड़ोंंवाला मे बताते हैं
बरगद के जंगी पेड़ हुआ करते थे जिससे इस इलाके को बड़ोंवाला कहा जाने लगा । आज भी इस इलाके मे कुछ जंगी वटवृक्ष मौजूद हैं, जिन्हें लेकर अनेक किंवदंतियां प्रचलित हैं।
आमवाला के तीन चार भाग थे तरला आमवाला , परला आमवाला, मंझला आमवाला और सिर्फ आमवाला
। इस तरह मसूरी पर्वतों की तलहटी के काफी बड़े भूभाग पर आम के विशाल बाग थे। और ये बाग
शायद काफी पहले से थे तभी केदारखंड मे इस प्रदेश का नाम आम्रातक वन भी है ।
जामुनवाला मे जाहिर है जामुन के पेड़ों की भरमार रही होगी । आज
भी इस गांव मे जामुन के काफी पेड़ हैं।
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जामुन का पेड़ |
डोभालवाला मे डोभाल जाति के लोगों की बहुलता थी । देहरादून शहर
के बीचोंबीच स्थित इस इलाके पर डोभाल जाति के लोगों का वर्चस्व सिद्ध करता है कि गढ़वाल
राजाओं के दरबार मे डोभाल बंधुओं- रामा धरणी
की प्रभावशाली मौजूदगी थी ।
मियांवाला मे वे परिवार ज्यादा रहते थे जो कभी हिंदू थे लेकिन
मुस्लिम अत्याचारों के आगे घुटने टेक कर उन्होने इस्लाम कुबूल किया था । मियां लोग
देहरादून तथा समूचे उत्तराखंड मे मिलते हैं। भले ही देहरादून से होकर ही तैमूर लंग, गुलाम कादिर, नादिरशाह जैसे बड़े बड़े विदेशी आक्रमण कारी हिंदुस्तान मे घुसे
थे लेकिन स्थाई तौर पर वे यहां नहीं बस पाए । जो थोड़े बहुत धर्म परिवर्तन यहां हुए
वे औरंगजेब के बाद हुए । औरंगजेब से अपनी जान बचाकर जब दाराशिकोह पहाड़ी राज्य गढ़वाल
की राजधानी श्रीनगर पहुंचा तो राजा फतेहपतिशाह ने राजधर्म के अनुरूप उसे तथा उसके साथ आए लाव लश्कर
को शरण दी ।
दाराशिकोह के पकड़ लिये जाने के बाद कुछ मुस्लिम परिवार यहीं बस गए । इन्ही
लोगों मे कुछ हिंदू परिवार भी थे जो दाराशिकोह की खिदमत मे राज्य की तरफ से तैनात किये
गए थे। इन्ही के वंशज संभवत: मियां कहलाते हैं। ये सभी त्योहार तथा रीति रिवाज हिंदुओं
की तरह मनाते हैं। भाषा बोली भी गढ़वाली ही है। केवल नाम से तथा गांव मे तामीर मस्जिद
से ही इनके मुस्लिम होने का पता चलता है।
देहरादून मे मियांवाला गांव यही याद दिलाता है कि इन लोगों की
बड़ी आबादी कभी यहां बसी थी ।
कुआंवाला इलाके मे सिंचाई का साधन प्राय: नही के बराबर है। यहां
पीने व सिंचाई के पानी के लिए कुओं पर निर्भरता अधिक थी अत: इलाके को कुआंवाला कहने लगे।
निंबूवाला क्षेत्र मे आज भी नींबू प्रजाति के पेड़ जैसे गलगल, चकोतरे मौसम्बी, कागज़ी आदि ज्यादा मिलते
हैं शायद इसीलिए इसका नाम निंबूवाला पड़ा हो ।
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दून के पहाड़ी गांव का झरना |
आदूवाला मे अदरक की खेती प्रचुर मात्रा मे होती थी और आज भी
होती है। इसी लिए इसका नाम आदूवाला पड़ा होगा। इसी तरह मक्कावाला मे मक्का की फसल अच्छी
होती रही होगी ।
बकराल वाला मे जम्मू कश्मीर से आए बकराल जाति के लोग प्रमुख रूप से बसे हुए थे
इसीलिए यह गांव बकरालवाला कहा गया ।
जोगीवाला आज जहां पर है वहां पहले नागसिद्ध नामकी एक जगह थी । वहां काफी पहले से नाग जाति
के साधु संत रहा करते थे । यह जगह देहरा खास से बाहर किंतु समीप ही थी । साधुओं जोगियों
की रिहायश होने के कारण संभवत: इसे जोगीवाला कहा गया ।
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लच्छीवाला |
बंजारावाला गांव जहां पर है वहां बंजारा जाति के घुमंतू लोगों की बड़ी बस्ती थी
। ये लोग बाहर से आकर दून मे बसे थे। इनका मुख्य व्यवसाय गाय भैंस पालना तथा खेती बाड़ी
करना था । बंजारों के कई गांव थे। आज भी देहरादून मे पुरानी जोहड़ें मिलती हैं। ये जोहड़ें
बंजारों ने पशुओं के पानी पीने के लिए खुदवाई थीं। इन्ही जोहड़ों के आस पास कई लोगों
को सोने के सिक्कों की हंडिया भी मिली हैं। जब मुगल आक्रांताओं ने यहा भीषण मारकाट
मचाई तो बंजारे अपना धन जमीन मे गाड़ कर भाग गए। ताकि बाद मे आकर अपना धन खोद कर निकाल
सकें। लेकिन कई लोग वापस नहीं लौटे। वही धन आज भी किसी को मिल जाता है ।
कुछ गांवों को तत्कालीन राजाओं की तरफ से लगान जमा करने से छूट मिली हुई थी । ऐसे
गांवों के साथ माफी शब्द जोड़ दिया गया- जैसे प्रेमपुर माफी , मेहूंवाला माफी , धरतावाला
माफी, बंजारावाला माफी आदि।
सन 1821 के आस पास से जब अंग्रेजों ने लंढौर तथा मसूरी को ग्रीष्मकालीन निवास के
लिए चुन लिया तो उन्होने अपने वफादारों को कुछ रिहायशी
इलाके बसने के लिए दे दिए । इन्हे ग्रांट कहा
गया- जैसे आरकेडिया ग्रांट, एनफील्ड ग्रांट, मारखम ग्रांट तथा भारूवाला ग्रांट आदि।
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उदाहरण के लिए आरकेडिया ग्रांट मे ईस्ट इंडिया कंपनी के बड़े अधिकारियों ने चीन
से चाय के पौधे मंगवा कर चाय के बागान लगवाए तो उन्हे बाहरी मजदूर व कुशल श्रमिकों
की जरूरत पड़ी। यह समय था लगभग सन 1850 का। आज के पूर्वी उत्तरप्रदेश तथा बिहार राज्यों
से पासवान, यादव, कुर्मी, कुरील, अहीर, मुसहर, पांडे, मिश्रा, लोधी,कनौजिया, खटीक आदि अनेक जातियों
के लोग देहरादून के पछवादून मे बसाए गए। इनमे अंबीवाला, बनियावाला,
बड़ोंवाला, हरभज वाला, हरबंसवाला,
आदि गांव प्रमुख थे। इन लोगों को जो भूमि रहने के लिए दी गई वह आरकेडिया
ग्रांट कहलाई।
अंग्रेजी प्रभाव के अनेक गांव आज भी देहरादून
मे मौजूद हैं जैसे हरबट पुर अंग्रेज हरबर्ट के नाम पर, एटन बाग एटन के नाम पर, मारखम के नाम पर मारखम ग्रांट, एंफील्ड के नाम पर एंफील्ड
ग्रांट, चाय कंपनी आरकेडिया के नाम पर आरकेडिया ग्रांट आदि ।
चक जोगीवाला, चक तुनवाला, चक भारूवाला आदि मे चक का मतलब यह था कि
यह सारा भूभाग किसी एक ही मालिक के नाम पर अलॉट किया गया था।
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ग्रामीण महिलाएं |
इसी प्रकार ‘खुर्द’ तथा, ‘कलां’, शब्दों का भी अपना इतिहास
है । संगतियावाला खुर्द, संगतियावाला कलां, हरियावाला खुर्द,
हरियावाला कलां आदि गांवों मे
हम देखते हैं कि एक ही नाम मे कलां और खुर्द शब्द जुड़े हुए हैं। दरअसल गांव
एक ही होता था लेकिन रहने वालों के हिसाब से उसके दो भाग कर दिये जाते थे । जो भाग
अच्छा होता था उसमे गांव के खास लोग चौधरी या जमींदार रहते थे। इसे खुर्द कहते थे।
बड़े भाग मे छोटे किसान खेतिहर मजदूर रहते थे । इसे कलां कहा जाता था। ये शब्द खुर्द तथा कलां फारसी
से आए हैं अत: इन गांवों को हम मुगलकालीन या उससे भी पहले सल्तनत कालीन मान सकते हैं।
यूरोप व अमेरिका आदि देशों मे भी किसी शहर के दो भाग आज भी होते हैं जैसे कि डल्लास
टाउन तथा डल्लास डाउन टाउन. डाउन टाउन कम विकसित इलाका है जबकि मुख्य इलाका अधिक विकसित
है। उसी तर्ज पर खुर्द अधिक विकसित व कलां कम विकसित व व्यवस्थित रहा करता होगा ।
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खैर का पेड़ |
खैरी मानसिंहवाला मे खैर के पेड़ काफी तादाद मे थे । इसीलिए खैरी शब्द जोड़ दिया गया।
खैर की लकड़ी से कत्था बनाया जाता है जिसे पान मे लगाकर खाया जाता है । अंग्रेजी मे
इसका नाम है- ऐकेशिया
कैटेचू (Acacia catechu (Linn.f.) Willd.) है
इस विषय पर अभी इतनी जानकारी ही जुटा पाया । भविष्य मे पूरे शोध के साथ एक बार
फिर आपकी सेवा मे पुन: उपस्थित होने की आज्ञा
चाहता हूं।
देहरादून मे आज की तारीख मे मुझे 152 ‘वाला’ मिले। यदि इस सूची
मे कुछ वाला छूट गए हों और आप जानते हों तो कृपया कमेंट मे सूचित करने की कृपा करें।
यदि ‘वाला’ नामांत गांवों के बारे मे किसी पाठक के पास कोई विशेष जानकारी हो तो कृपया
शेयर करें। तभी सत्य अपने पूर्ण रूप मे प्रकट हो सकता है ।
क्र.
|
नाम
|
1
|
अनारवाला
|
2
|
अधोईवाला
|
3
|
अम्बीवाला
|
4
|
अठूरवाला
|
5
|
अंधरवाला
|
6
|
आदूवाला
|
7
|
आमवाला करनपुर
|
8
|
आमवाला तरला
|
9
|
आमवाला मंझला
|
10
|
आमवाला उपरला
|
11
|
उद्दीवाला
|
12
|
कन्हारवाला
|
13
|
कालूवाला
|
14
|
कलुवा वाला
|
15
|
किद्दूवाला,
|
16
|
कुआंवाला
|
17
|
कुड़कावाला
|
18
|
केदारावाला
|
19
|
केसरवाला
|
20
|
केसोवाला
|
21
|
कैंचीवाला
|
22
|
खेड़ा गोपीवाला
|
23
|
खंड रायवाला
|
24
|
गजियावाला
|
25
|
गोविंदवाला
|
26
|
गुमानीवाला
|
27
|
चक तुनवाला
|
28
|
चुक्खूवाला
|
29
|
छिद्दरवाला
|
30
|
जमनीवाला
|
31
|
जमोलीवाला
|
32
|
जस्सोंवाला
|
33
|
जाटोंवाला
|
34
|
जामनवाला
|
35
|
जैंतनवाला
|
36
|
चक जोगीवाला
|
37
|
जीवनवाला
|
38
|
झबरावाला
|
39
|
तिमली मानसिंह
वाला
|
40
|
तुंतूवाला
|
41
|
दा वाला
|
42
|
दौड़वाला
|
43
|
धर्मावाला
|
44
|
धरतावाला
|
45
|
धरतावाला माफी
|
46
|
धामावाला
|
47
|
नत्थूवाला
|
48
|
नागल बुलंदावाला
|
49
|
नालीवाला
|
50
|
नथुवावाला
|
51
|
नौरतूवाला
|
52
|
नींबूवाला
|
53
|
नीलवाला
|
54
|
नूनावाला
|
55
|
चकडालनवाला
|
56
|
डोईवाला
|
57
|
डोभालवाला
|
58
|
डौंकवाला
|
59
|
डांडाखुदानेवाला
|
60
|
डांडानूरीवाला
|
61
|
ढालवाला
|
62
|
पालावाला
|
63
|
पाववाला
|
64
|
पेलीवाला
|
65
|
पित्थूवाला
|
66
|
पुरोहितवाला
|
67
|
पोलिओ नाथूवाला
|
68
|
पौधवाला
|
69
|
पाववाला सौड़ा
|
70
|
पीरवाला
|
71
|
फांदूवाला
|
72
|
बड़ोंवाला
|
73
|
बदामावाला
|
74
|
बनियावाला
|
75
|
बरोटीवाला
|
76
|
बाजावाला
|
77
|
बालूवाला
|
78
|
बैलोंवाला
|
79
|
बंसीवाला
|
80
|
बंजारावाला माफी
|
81
|
बंजारावाला चक
|
82
|
बुग्गावाला
|
83
|
बालावाला
|
84
|
बाड़वाला
|
85
|
ब्राह्मणवाला
|
86
|
बकरालवाला
|
87
|
बल्लीवाला
|
88
|
बरोटीवाला
|
89
|
बैरागीवाला
|
90
|
बुल्लावाला
|
91
|
बुलाकीवाला
|
92
|
ब्रह्मावाला
|
93
|
बक्सरवाला
|
94
|
बांदावाला
|
95
|
बारूवाला
|
96
|
बीबीवाला
|
97
|
भाऊवाला
|
98
|
भारूवाला ग्रांट
|
99
|
भानियावाला
|
100
|
भूपतवाला
|
101
|
भंडारीवाला
|
102
|
भानवाला
|
103
|
भट्टोंवाला
|
104
|
भीतरवाला
|
105
|
भोजावाला
|
106
|
भीमावाला
|
107
|
माधोवाला
|
108
|
मेहूवाला (2)
|
109
|
मोरूवाला
|
110
|
मंगलूवाला
|
111
|
मक्कावाला
|
112
|
मलूकावाला
|
113
|
मसंदावाला
|
114
|
खैरी मानसिंहवाला
|
115
|
मारखम डैशवाला
|
116
|
मेंहूवाला
|
117
|
मांडूवाला
|
118
|
मातावाला बाग
|
119
|
मोथरोंवाला
|
120
|
मोहब्बेवाला
|
121
|
मियांवाला
|
122
|
मिस्सरवाला
|
123
|
राजावाला
|
124
|
रामसावाला
|
125
|
रायवाला
|
126
|
रैणीवाला
|
127
|
रांगढ़वाला
|
128
|
रांझावाला
|
129
|
लच्छीवाला
|
130
|
लक्खनवाला नेवट
|
131
|
लोहारवाला
|
132
|
विजयपुर गोपीवाला
|
133
|
सालावाला
|
134
|
सेखोंवाला
|
135
|
सभावाला
|
136
|
सारंगधर वाला
|
137
|
सेमलवाला
|
138
|
सिगलीवाला
|
139
|
सलोनीवाला
|
140
|
संगतियावाला खुर्द
|
141
|
चकसालियावाला
|
142
|
सिंघनीवाला
|
143
|
सुद्धोंवाला
|
144
|
सुंदरवाला
|
145
|
हरियावाला
खुर्द
|
146
|
हरिया वाला
कलां
|
147
|
हंसूवाला
|
148
|
हर्रावाला
|
149
|
हरबंसवाला
|
150
|
हिंदूवाला
|
151
|
होरावाला
|
152
|
हरभजवाला
|
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