
इतना तो आप और हम जानते ही थे कि अपना भारत देश महान है और ये भी कइयों को पता होगा कि अपने देश की माटी ने पुराने पत्थर काल से लेकर हाल तक कई ऋषि-मुनियों को जन्म दिया है। मनु महाराज से लेकर बाबा रामदेव तक कितने संत आये, इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया और कुछ चले गये, कुछ अभी मौजूद हैं ।
पुरानी बात छोड़कर हम आज की बात करते है। सवाल
है-क्या आज भी अपने यहां महान संत हैं ?
जी हां ! आज भी अपने भारत में कई ऋषि-मुनि,
संत, बाबा तथा देवकुमारियां मौजूद हैं। कई
टीवी चैनल तो इन्हीं संतों के बूते पर जिन्दा हैं। ये संत हमें यही सीख देते हैं
कि ‘भक्ति में बड़ी शक्ति है’ तथा- ‘हमे बस कर्म करते रहना चाहिए, जहां जरा सी भी फल की इच्छा की, कि सारे पुण्य वाश
आउट हो जाते हैं।’
आज दूरदर्शनी बाबा हमें
ये भी प्रेरणा देते हैं कि हमारी शरण में आ जाओ। ज़मीन-जायदाद, मकान, फैक्टरी बेचकर हमारे आश्रम में आओ। हमे अपना
जीवन दान कर दो । हम तुम्हारा यह लोक तो
शुद्ध करेंगे ही परलोक भी सुधार देंगे । डायरेक्ट ईश्वर से मिलवा देंगे। जानेवाले
जा भी रहे हैं। सुना है- जाने के बाद कुछ वक्त तक वे आश्रम में निष्काम सेवा करते
हैं, फिर जल्दी ही ईश्वर उन्हे अपने पास स्वर्गलोक मे बुला
लेते हैं। और जहां स्वर्ग लोक पहुंचे, क्षण मात्र मे सारे
दुख दूर हो जाते हैं ।
इन महान संतों की बात भी छोड़िए । आज के दौर
में इन से भी महान, पहुंचे हुए फकीर इस देव-भूमि में अवतार
ले चुके हैं।
सबसे पहले स्मरण करें हम ‘लिफ़्ट बाबा’ का।
लिफ़्ट-बाबा को रात बारह से दो बजे के बीच मुंबई के बस-स्टापों के आस-पास काली कार
में घूमते देखा जा सकता है। उस निशाचर काल में यदि कोई महिला बस की प्रतीक्षा करती
मिलती है तो बाबा का हृदय करूणा से पिघल जाता है। वे तत्काल महिला को लिफ़्ट देकर
मंदिर ले जाते हैं। फिर भली प्रकार पूजा कर मंजिल तक छोड़ आते हैं, और परलोक के लिए पुण्य लाभ अर्जित कर लेते हैं।
हैरानी तो इस बात की है कि यह समाज सेवा आप
काफी समय से कर रहे हैं और किसी को भनक तक नहीं। वह तो इस बार पता चला जब बाबा
अपनी मां की उम्र की एक महिला को लिफ़्ट देकर मंदिर में पूजा के लिए गए । महिला
ऊंचे कुल की रही होगी। तभी तो उन्होंने लिफ़्ट बाबा के महान सेवा कार्य को आप हम तक
पहुंचाया। वरना आज कौन किसी के गुन गाता है ? रात बीती-बात
बीती।
‘लिफ्ट बाबा’ की इस जन्म की आयु भले ही मात्र
सत्ताइस वर्ष हो, मगर-ऐसा सुना जाता है कि बाबा रावण के
जमाने से ही अनेक जन्म धारण कर परोपकार की अखंड-ज्योति जलाते आ रहे हैं। यह भी सुना जाता है कि द्वापर युग में धृतराष्ट्र नाम के एक अंधे राजा
की सभा में जब द्रौपदी -चीरहरण का सीन शूट हो रहा था तो लिफ़्ट बाबा भी वहां मौजूद
थे।

मुंबई के लिफ़्ट बाबा की भांति दिल्ली में भी
एक बाबा समाज-सेवा में जुटे हुए हैं। आइए
हम उनका भी स्मरण करें। दिल्ली और आसपास के इलाकों में उन्हें ‘बार बाबा’
के नाम से जाना जाता है।
कुछ त्रिकालदर्शी साधुओं ने तो ताल ठोंककर
दावा किया है कि ‘बार बाबा’ के रूप में साक्षात मनु महाराज ने ही मानव-योनि मे
पुनः जन्म लिया है। मनु जी का मानना था कि जहां नारियों की पूजा होती है वहां
देवताओं का वास होता है- यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते
तत्र देवता । लेकिन कलियुग में आकर उन्होंने देखा-नारी बार बाला बन गई है। आज नारी-देह की पूजा हो रही है। बारों में
मदिरा पिलाना और नाचना भी आज नारी का व्ययसाय बन गया है।
लेकिन मनु महाराज या कहिए - ‘बार बाबा’,
नारी के इस नए रूप से रूष्ट
हैं। उन्होंने अपने स्तर पर बार-बालाओं की मुक्ति का यज्ञ शुरू कर दिया है। बार बाबा रात को करीब दो से तीन के बीच बारों
की तरफ़ निकल जाते हैं। वहां वह बार बालाओं को ठीक उसी तरह खोजते हैं, जैसे कोई भूखा शेर दहाड़ता हुआ हिरनों को खोजता है। जैसे ही कोई भाग्य की
भेजी बार बाला बाबा को मिलती है, वह उससे मदिरा की मांग करते
हैं। जैसे ही बार बाला कहती है कि ‘टाइम ख़त्म हो गया है, ’ वे
तत्काल रिवाल्वर निकाल कर नली बार-बाला के माथे की बिंदिया पर टिका कर कहते हैं-
तो जाओ बार बाले! मृत्यु लोक में तुम्हारा
टाइम भी समाप्त हुआ। जाओ ! स्वर्ग-लोक में सुख-पूर्वक देवताओं के साथ निवास करो।’
इसी के साथ बाबा सारी गोलियां बार-बाला के
ब्रह्म-रंध्र के पार पहुंचा देते हैं। बार-बाला को नारकीय जीवन से निकाल, मोक्ष प्रदान कर बाबा का ह्दय आंनदातिरेक से मानो उमड़ने लगता है। आखों से
प्रेम और करूणा के मिले-जुले आंसू बहने लगते हैं।
नारी-उद्धार का यह अश्वमेध यज्ञ बार-बाबा कई
बार कर चुके हैं। लेकिन इसके प्रचार-प्रसार से बाबा दूर ही रहना पसंद करते हैं। यह
होम करते हुए एक बार उनके हाथ जल भी चुके हैं, जब बार-बाला
की हत्या के जुर्म में उन्हें कारागार भेजा गया। अपनी ‘दिव्य-शक्तियों’ के बल पर
एक बार तो बाबा बाइज्जत बरी हो गए । मगर कुछ गंदे विचारों के लोग उन्हें दोबारा
ख़ून के जुर्म में फंसाना चाहते हैं।

पर बार-बाबा को अपने यहां की न्याय-प्रणाली
पर पूरा भरोसा है। वे कहते हैं- ऊपरवाले के यहां देर है, अंधेर
नहीं। एक न एक दिन दूध का दूध और पानी का पानी होकर रहेगा।
अंत में सिर्फ़ यही कहा जा सकता है कि अपने
यहां महान संतों की परंपरा अभी ख़त्म नहीं हुई है। आज भी अनेक पहुंची हुई विभूतियां
यहां पैदा हो रही हैं।
ज़रूरत है, उन्हें
पहचानने की।
(समाप्त)
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