वर्तमान भूराजनीतिक परिदृश्य और भारत

                                                             
इस समय संपूर्ण विश्व अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है. संघर्ष के अनेक क्षेत्र विस्फोटक स्थिति मे  पहुंचे हुए हैं . सीरिया इराक व तुर्की मे यह संघर्ष काफी समय से चल रहा है. अच्छा भला सीरिया वर्षों से भयंकर रणक्षेत्र बना हुआ है. लाखों लोग मारे जा चुके हैं. लाखों दूसरे देशों को पलायन कर गए हैं. और बचा हुआ सीरिया खौफनाक आतंक के साये मे जी रहा है. कोई नहीं जानता कब कहां से मिसाइलें बम बरसाने लगें. शहर के शहर खंडहरों मे बदल गए हैं. बच्चे घर से ही ऑन लाइन पढ़ाई कर रहे हैं. अगले पल ज़िंदगी बचेगी या नही बताना मुश्किल है. आइ एस लड़ाकों ने अपनी मजहबी सनक के चलते पूरे मध्य एशिया को कब्रिस्तान बना दिया है. सीरिया उनका आखिरी मजबूत ठिकाना है जो अभी तक खाली नही कराया जा सका है.  अब तुर्की भी सीरिया से भिड़ने के लिए तत्पर है. सीरिया और तुर्की के पीछे रूस और अमेरिका का हाथ है. मुर्गों की लड़ाई चल रही है. कलंदर उन्हें लड़ा रहे हैं.
रूस अपने मित्र और सीमावर्ती देश सीरिया को कट्टरपंथियों के कब्जे मे नहीं जाने देना चाहता. क्योंकि फिर उन उग्रवादियों का अगला निशाना रूस के मुस्लिम बहुल इलाके ही होंगे. अपनी ज़मीन पर उग्रवादियों से लड़ने मे कई नुकसान हैं. अपनी छवि खराब होगी. संसाधनों का दुरुपयोग होगा. आर्थिक  क्षति उठानी पड़ेगी.
जबकि इसी युद्ध को सीरिया की जमीन पर ही रोके रखने के कई फायदे हैं. अपने हथियार बिक रहे हैं. विदेशी मुद्रा आ रही है. संसाधनों का नुकसान नही हो रहा है. छवि भी भीतर और बाहर अच्छी बनी हुई है. आग को अपने घर आने के बाद बुझाया तो क्या बुझाया. उसे घर से दूर ही रोको. इसी मे भलाई है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन यही कर रहे हैं.   इस युद्ध कुंड मे आइ एस की आहुति तो होगी ही साथ मे तुर्की व कुर्द कबीले भी स्वाहा होंगे. सीरिया मे जो विध्वंस हुआ है व अभी होगा उसके पुनर्निर्माण के ठेके तब रूसी और अमरीकी कॉरपोरेटों को मिलेंगे. वाह क्या कमाल है ! वही देश विध्वंस करा रहे हैं वही देश  निर्माण भी करेंगे. यही खेल चल रहा है. चलता रहेगा.
                   
मध्य एशिया मे युद्ध का एक और मुहाना खुला हुआ है . यह है इस्राइल और फिलिस्तीन . यहूदी चाहते है कि उनका प्राचीन इस्राइल ईरान तक फैला था. वह सारा इलाका फिर से कब्जाकर वे वृहत्तर इस्राइल बनाएं.   तो इसका मतलब वे दुनियां के नक्शे से फिलिस्तीन ईरान आदि कई देशों को मिटा कर वृहद इस्राइल बनाएंगे. संघर्ष होगा. भीषण युद्ध होंगे. यहां तक कि परमाणु युद्ध भी हो सकता है.
तीसरा मुहाना मध्य एशिया मे अफगानिस्तान है. इतिहास गवाह है कि आज़ादी पसंद अफगानों को  न सोवियत यूनियन, न रूस और न अमेरिका दबा पाए. कई साल तक अफगानिस्तान मे डटे रहने के बावजूद सोवियत सेनाओं को वापस लौटना पड़ा. इसी तरह अमरीकी सेना को भी अफगानिस्तान  से बगैर किसी स्थाई समाधान के निकलना पड़ा.  तालिबानियों ने हथियार नहीं डाले. लगता है कि आखिर अफगानिस्तान पर तालिबानियों की सरकार ही बनेगी. उसके बाद ही अमन की उम्मीद की जा सकती है.
लेकिन महाशक्तियां काबुल में ऐसी सरकार कतई नहीं बनने देंगी जिनके रहते अफगानिस्तान अमेरिका रूस व यूरोपियन देशों के लिए बंद हो जाए. ये शक्तियां काबुल मे किसी भी कीमत पर कठपुतली सरकार बनाए रक्खेंगी जो उनके इशारों पर नाचती रहे.
तो फिर अफगानिस्तान का सत्ता संघर्ष कभी खत्म नहीं होगा? लगता तो यही है.

चौथा युद्ध का मुहाना है भारतीय उपमहाद्वीप जहां अज़ादी के बाद से ही भारत और पाकिस्तान मे असंतोष है. अंग्रेजों ने जाते जाते भारत के दोनो हाथ पंजाब और बंगाल काट डाले. पाकिस्तान ने भारत के हिस्से मे आया एक बड़ा भूभाग भी धोखे से हड़प लिया जिसे हम पाक अधिकृत कश्मीर कहते हैं.
वर्तमान सरकार ने जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करके उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों मे बांट दिया. पाक ने कश्मीर का जो हिस्सा हड़पा था अब उसे मुक्त कराने की बारी है. किंतु इस काम मे पाकिस्तान को उसका दोस्त चीन पूरी मदद देगा. पाकिस्तान ने सीपीईसी ( चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर)  बनाने की इजाजत चीन को दी है. इस रोड के जरिये तथा ग्वादर बंदरगाह के जरिये चीन भारत की घेरा बंदी तो करेगा ही साथ ही अरब सागर से मध्य  एशिया मे अपने व्यापार को भी बढ़ाएगा. क्योंकि यह कॉरिडोर पीओके  से ही गुजरता है अत:  चीन भारत की इस कोशिश मे अड़चन पैदा करेगा. फिर युद्ध होगा. संभव है कि चीन और पाक मिल कर भारत पर आक्रमण करें.   अनेक मित्र देशों के सहयोग से भारत अंतत: कामयाब हो जाएगा. किंतु युद्ध जब तक होगा भीषण होगा.
पांचवां युद्ध क्षेत्र भी भारतीय उपमहाद्वीप मे चीन तथा भारत के बीच है. सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश पर चीन की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है. मौका पाकर वह भारत पर हमला करेगा. इस समय चीन वैसे भी लगभग सुपर पावर बन चुका है. चीन के साथ भी भारत का युद्ध भीषण होगा.
मध्य एशिया मे ही यमन का गृहयुद्ध भी विस्फोटक रूप ले सकता है. परदे के पीछे से खेल रहे ईरान तथा ओमान भी यमन का खात्मा कर उसे आपस मे बांटने  की कोशिश करेंगे .
अफ्रीका महाद्वीप मे भी बोको हरम ने आतंक मचा रक्खा है अत: वहां  भी केन्या, नाइजीरिया, जिम्बाब्वे,  इथोपिया आदि देशों मे सत्ता संघर्ष चल रहे हैं.   
पाकिस्तान के भीतर बिलोचिस्तान भी आज़ादी के लिए छटपटा रहा है. इसी तरह चीन के भीतर और बाहर भी अनेक प्रांतों मे आज़ादी के संघर्ष चल रहे हैं जिन्हे दबाए रखना आगे चल कर असंभव हो जाएगा. बहुत संभव है कि आने वाले समय मे चीन के भी सोवियत यूनियन की तरह अनेक टुकड़े हो जाएं.



पाकिस्तान का निर्माण भी कई विरोधी ताकतों को जबरदस्ती इकट्ठा करके किया गया था. बिलोचिस्तान तो अलग देश था उसे पता नही किस आधार पर पाक ने कब्जाया. इसी तरह सिंध की भी अपनी प्राचीन संस्कृति थी जिसे कुछ शर्तों के साथ अंग्रेजी राज्य मे शामिल किया गया था. उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र भी अपनी अलग पहचान रखता है. इस तरह पाकिस्तान के नाम पर केवल वह भाग बचता है जो पंजाब के टुकड़े करके बना था.   जाहिर है कि बंटवारे का दर्द न तो  भारतीय पंजाबी ही भूले हैं और न पाकिस्तान के पंजाबी. पंजाब के ये दोनो टुकड़े आज भी आपस मे मिलने के  लिए छटपटा रहे हैं. भले ही आधे हिस्से को मुस्लिम व आधे को धर्म निरपेक्ष बना दिया गया. भले ही एक की भाषा उर्दू व दूसरे की हिंदी कर दी गई. पर दोनो पंजाबों का दिल एक ही है आज भी. कई घरों का हाल तो ये है कि एक सगा भाई पाकिस्तान मे मुसलमान है तो दूसरा सगा भाई हिंदुस्तान मे हिंदू. दोनो भाइयों की रगों मे एक ही खून बहता है . ये मजहब की दीवार,  ये भाषा की दीवार दोनो भाइयों को किसी भी कीमत पर मिलने से रोक नही पाएंगी. इन दीवारों को टूटना ही है. ये बनी ही टूटने के लिए हैं. आज का पाकिस्तान ही तो असली प्राचीन भारत है जहां पाणिनी जैसे विद्वान हुए, जहां तक्षशिला जैसे विश्व विद्यालय थे  जहां से आचार्य विष्णु गुप्त (चाणक्य) तथा वैद्य जीवक जैसे रस शास्त्री निकले थे . रावी  तथा चिनाब के संगम पर ही राजा भरत  के नाना के राज्य केकय की राजधानी थी. संभवत: आज  की हड़प्पा साइट से चारसद्धा तक का क्षेत्र .
इस प्रकार देखें तो भारत का दिल तो पाकिस्तान मे है. मोहेंजोदारो आज उसी जगह पर है जहां कभी जयद्रथ के पिता का राज्य सिंधु देश था. पुरु ने आज के पाकिस्तान मे ही सिकंदर को कड़ी टक्कर दी थी. धृतराष्ट्र के श्वसुर गांधार नरेश थे. उनके पुत्र शकुनि ही वास्तव मे महाभारत युद्ध के लिए उत्तरदायी थे. कौरवों के मामा शल्य का राज्यभी आधुनिक पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी प्रांत मे था. पांडवों की एक मांं  माद्री मद्र देश की राजकुमारी थी जो आधुनिक पाकिस्तान मे था.  
 अंग्रेजों ने भारत को सौ साल तक लूट  कर उतना नुकसान नही पहुंचाया जितना पाकिस्तान बना कर किया.  

तो आज ये सभी दबी हुई फाइलें वक्त की गर्द से बाहर आकर खुलने के लिए बेकरार हैं. जबरदस्ती काटे हुए इन दोनो जिंदा टुकड़ों को जोड़ने वाली शक्ति भारत मे अवतरित हो चुकी है. प्रतीक्षा है तो केवल    उचित समय की.  तब तक के लिए इजाजत दीजिए । जय हिंद । 

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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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