भूले से भी आज़ादी की बात न करना ।
यहां गुलाम बेशर्म लोग रहते हैं ॥1॥
चाहे जितना ज़ोर ज़ुल्म कर लो उन पर ।
वे सबको चुप चाप सहा करते हैं ॥ 2॥
ज़िंदा रहना ही फितरत है उनकी ।
जूते खाकर भी वे सुख से जी लेते हैं॥3॥
अत्याचारों को मिल कर सह लेते हैं।
पर मिल कर विद्रोह नहीं करते हैं ॥ 4॥
उनको काटोगे सफेद पानी निकलेगा ।
लाल रंग से ही वे इतना डरते हैं ॥5॥
उनका अपना कोई वतन नहीं है ।
इसको मालिक की
जागीर समझते हैं ॥ 6॥
आज़ादी के साथ मौत मिलने से अच्छा ।
गाली खाकर जीना ठीक समझते हैं ॥7॥
इज्जत क्या होती है उनको नही पता ।
सदियों से वे ठोकर ही खाते आए हैं ॥8॥
चाहे ये उनकी महानता मानी जाए ।
लोग उन्हें उल्लू का पठ्ठा ही कहते हैं ॥ 9॥
शीश झुका कर जोर जुल्म सहने से ।
कुछ तो उनको किन्नर भी कहते हैं॥10॥
वह जो करता है अच्छा ही करता होगा ।
इसी भरोसे वे जीवन गुजार देते हैं ॥ 11॥
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