ज्योतिष विज्ञान प्रश्नोत्तरी


















प्रश्न ‌ :   ज्योतिष  से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर : ज्योतिष से अभिप्राय उस विज्ञान से है जिसमे खगोलीय पिंडों के गुरुत्वीय, विद्युत चुंबकीय तथा नाभिकीय बलों के  पदार्थों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाता है. प्रभावित होने वाले पदार्थ जड़ (जीवन विहीन) भी हो सकते हैं और चेतन (जीवित ) भी.  
जब इन बलों का अध्ययन जड़ वस्तुओं पर होता है तो अंग्रेजी मे  इसे सिद्धांत ज्योतिष (Astronomy) कहते हैं. जब प्राणि जगत पर इन बलों के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है तो इसे फलित ज्योतिष          ( Astrology) कहते 
प्रश्न  : सिद्धांत ज्योतिष की विषय वस्तु क्या  है ?
उत्तर : सिद्धांत ज्योतिष को अंग्रेजी मे  एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) कहते हैं. विज्ञान की इस शाखा के अंतर्गत हम ग्रहों , उपग्रहों, नक्षत्रों तथा सूर्यों  के भौतिक गुणों का अध्ययन करते हैं. भौतिक गुण से अभिप्राय है खगोलीय पिंडों की गति (Speed) , द्रव्यमान (Mass) , पृथ्वी से दूरी (Displacement from the Sun) तथा उनके द्वारा  सूर्य के परिक्रमा काल (Revolving period) तथा घूमने वाले वृत्ताकार(Circular), दीर्घ वृत्ताकार ( Elliptical)  या पर वलयाकार ( Parabolic)  प्रदक्षिणा मार्गों  (Trajectories) का निर्धारण करना है. इसके अतिरिक्त अन्य खगोलीय पिंडों जैसे उल्का पिंड, पुच्छल तारे या अन्य अज्ञात अथवा ज्ञात सूर्यों, ग्रहों, उपग्रहों आदि का अध्ययन भी इसी शाखा के भीतर किया जाता है. 
प्रश्न - नक्षत्र क्या हैं ?
उत्तर- नक्षत्र (Constellation) वास्तव मे तारों (stars) के समूह को कहते हैं.
प्रश्न्न : फलित ज्योतिष और सिद्धांत ज्योतिष मे क्या अंतर है ?
उत्तर :  सिद्धांत ज्योतिष के अनुसार सभी ग्रह उपग्रह नक्षत्र आदि का केंद्र सूर्य है. जब सूर्य को  खगोलीय पिंडों का केंद्र मान लेते हैं तो इसे  सूर्यकेंद्रित मॉडल (Heliocentric model)कहते हैं. फलित ज्योतिष मे पृथ्वी को सौर परिवार का केंद्र मानते हैं तो इसे  भूकेंद्रित मॉडल (Geocentric model) कहते हैं .

प्रश्न : भारतीय ज्योतिष मे किस मॉडल को मान कर गणना की जाती हैं ?
उत्तर : भारतीय ज्योतिष मे भूकेंद्रित मॉडल (Geocentric model )के आधार पर गणना की जाती है.
प्रश्न : राशिचक्र (Zodiac)  क्या है ?
उत्तर: यदि पृथ्वी को सौर परिवार तथा नक्षत्र मंडल का केंद्र माना जाय तो  पृथ्वी के चारों तरफ के समान दूरी पर स्थित आकाश  को गोले की सतह (surface) कहते हैं, इस सतह  की 27 0  चौड़ी पट्टी  को राशि चक्र (Zodiac)  कहते हैं . सौर मंडल के सभी ग्रह तथा उपग्रह इसी पट्टी के भीतर घूमते हैं.
प्रश्न : बारह राशियां ( 12 zodiac signs) क्या हैं ?


उत्तर : राशिचक्र ( Zodiac) की गोलाकार सतह ( spherical  surface)  की  27  की पट्टी   पृथ्वी नामक केंद्र से 360 का कोण बनाती है. यदि राशि चक्र की 27 की इस पट्टी के  बारह काल्पनिक भाग कर दिये जाएं तो हर भाग पृथ्वी के सापेक्ष 30का होगा. यही बारह भाग बारह राशियां कहलाते हैं. पहला भाग मेष (Aries) कहलाता है दूसरा वृष (Taurus), तीसरा मिथुन(Gemini) चौथा कर्क(Cancer) पांचवां सिंह (Leo), छठा कन्या (Virgo), सातवां तुला ( Libra) आठवां वृश्चिक (Scorpio), नवां धनु (Sagittarius), दसवां मकर(Capricorn) , ग्यारहवां कुंभ (Aquarius) तथा बारहवां अंतिम भाग मीन(Pieces)  कहलाता है. 
प्रश्न : नक्षत्र मंडल ( constellation) क्या है ?
उत्तर : राशि चक्र के जब 27 भाग कर दिये जाएं तो प्रत्येक भाग नक्षत्र कहलाता है. प्रत्येक नक्षत्र पृथ्वी से 360/27= 13.33का कोण बनाता है. इन 27 भागो के आरंभ से अंत तक ये नाम हैं –
अश्विनी भरणी कृत्तिकारोहिणी मृगशिराआर्द्रा पुनर्वसु पुष्यआश्लेषामघापूर्वा फाल्गुनीउत्तरा फाल्गुनीहस्त चित्रास्वाति विशाखा अनुराधा ज्येष्ठामूलपूर्वाषाढ़ाउत्तराषाढ़ाश्रवणधनिष्ठाशतभिषापूर्वाभाद्रपद उत्तर भाद्रपदतथा रेवती.
एक राशि मे 27/12= 2.25 नक्षत्र आते हैं.  चौथाई का हिसाब तभी हो सकता है जब हम एक नक्षत्र को चार भागों मे बांट दें. इन चार भागों को नक्षत्र के चार चरण कहते हैं. एक चरण 13.33/4= 3.33 का.
हर राशि मे होंगे 30/3.33 = 9 चरण.  
अब हम आसानी से पता लगा सकते हैं कि हर राशि मे कौन से तीन नक्षत्र आएंगे.
1.     मेष राशि मे – अश्विनी के 4 चरण + भरणी के 4 चरण + कृत्तिका का 1 चरण  (कुल नौ चरण)
2.    वृष राशि मे – कृत्तिका के बचे हुए 3 चरण+ रोहिणी के 4 चरण + मृगशिरा के आरम्भिक 2 चरण.
3.    मिथुन राशि मे – मृगशिरा के अंतिम 2 चरण+ आर्द्रा के 4 + पुनर्वसु के आरंभिक 3 चरण .
4.    कर्क राशि मे – पुनर्वसु का अंतिम 1 चरण + पुष्य के 4  चरण+ आश्लेषा के 4 चरण
5.    सिंह राशि मे – मघा के 4 चरण + पू. फा. के 4 चरण + उ.फा. का आरंभिक 1 चरण.
6.    कन्या राशि मे – उ.फा. के अंतिम 3  चरण + हस्त के 4 चरण+ चित्रा के 2  चरण
7.    तुला राशि  मे – चित्रा के अंतिम 2 चरण+ स्वाति के 4 चरण + विशाखा के आरंभिक 3 चरण
8.    वृश्चिक राशि मे – विशाखा का अंतिम 1 चरण+ अनुराधा के 4 चरण+  ज्येष्ठा के 4  चरण
9.    धनु राशि मे -  मूल के 4 चरण + पूर्वाषाढ़ा के 4 चरण + उत्तराषाढ़ा का 1 चरण
10. मकर राशि मे – उत्तराषाढ़ा के अंतिम 3 चरण + श्रवण के 4 चरण + धनिष्ठा के आरंभिक 2 चरण
11. कंभ राशि मे – धनिष्ठा के अंतिम 2 चरण + शतभिषा के 4 चरण + पूर्वाभाद्रपद के अंतिम 3 चरण
12. मीन राशि मे – पूर्वाभाद्रपद का अंतिम 1 चरण + उत्तरभाद्रपद के 4 चरण + रेवती के 4 चरण

याद रखने के लिए हम इसका चार्ट बना सकते हैं-

क्रम संख्या
राशि
नक्षत्र
चरण
1
मेष
अश्विनी
4
भरणी
4
कृत्तिका
1
2
वृष
कृत्तिका
3
रोहिणी
4
मृगशिरा
2
3
मिथुन
मृगशिरा
2
आर्द्रा
4
पुनर्वसु
3
4
कर्क
पुनर्वसु
1
पुष्य
4
आश्लेषा
4
5
सिंह
मघा
4
पूर्वाफाल्गुनी
4
उत्तराफाल्गुनी 
1
6
कन्या
 उत्तराफाल्गुनी 
3
हस्त
4
चित्रा
2
7
तुला
चित्रा
2
स्वाति
4
विशाखा
3
8
वृश्चिक
विशाखा
1
अनुराधा
4
ज्येष्ठा
4
9
धनु
मूल
4
पूर्वाषाढ़ा
4
उत्तराषाढ़ा
1
10
मकर
उत्तराषाढ़ा
3
श्रवण
4
धनिष्ठा
2
11
कुंभ
धनिष्ठा
2
शतभिषा
4
पूर्वाभाद्रपद
3
12
मीन
पूर्वाभाद्रपद
1
उत्तराभाद्रपद
4
रेवती
4

प्रश्न : भारतीय ज्योतिष के कितने विभाग हैं ?
उत्तर : ज्योतिष को त्रिस्कंध ज्योतिष भी कहा जाता है. ये  तीन स्कंध हैं-
(1).  सिद्धांत ज्योतिष (Astronomy)
(2). मुहूर्त्त ज्योतिष
 (3). फलित ज्योतिष (Astrology) 

प्रश्न : भारतीय ज्योतिष मे सूर्य को भी ग्रहों की तरह कुंडली मे दिखाया जाता है तथा चंद्रमा को भी. इसी तरह राहु केतु को भी ग्रहों की तरह दिखाया जाता है. ऐसा क्यों ?
उत्तर : भारतीय ज्योतिष का उद्देश्य था खगोलीय पिंडों के भौतिक बलों  के मानव जीवन पर प्रभाव का अध्ययन करना तथा  आने वाले समय मे  शुभ अशुभ  काल खंडों  की जानकारी प्राप्त करना. इस दृष्टि से सूर्य तथा चंद्र सबसे अधिक बल शाली खगोलीय पिंड हैं. इन्हे फलादेश मे जोड़ना जरूरी था.  राहु और केतु वस्तुत: पृथ्वी तथा चंद्रमा की कक्षाओं के वो स्थान हैं जहां ये कक्षाएं एक दूसरे को काटती हैं. अत: माना गया कि इन बिंदुओं पर भी किसी अन्य प्रकार का प्रभाव होना चाहिए जो कि मानव के जीवन को कुछ हद तक प्रभावित करता हो. इसीलिए इन्हें भी ग्रहों की श्रेणी मे स्थान दिया गया.
प्रश्न – क्या सूर्य तथा चंद्र के प्रभावों का कोई उदाहरण है ?
उत्तर – जब किसी मोटे पेड़ को काटा जाता है तो उसकी कटी क्षैतिज सतह ( cross  sectional surface) पर गोल छल्ले (concentric rings) दिखाई पड़ते हैं. ये छल्ले प्रत्येक वर्ष सूर्य के प्रभाव से बने बताए गए हैं . हर ग्यारहवां छल्ला गहरा होता है क्योंकि हर ग्यारहवें वर्ष सूर्य पर विक्षोभ उत्पन्न होते हैं
इसी प्रकार स्त्रियों मे मासिक धर्म के रक्त स्राव को चंद्रमा के प्रभाव का परिणाम माना जाता है. समुद्र मे आने वाले ज्वार भाटा का कारण भी  चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण का परिणाम माना जाता है.
ऐसे अनेक उदाहरण  दिये जा सकते हैं.
प्रश्न : कुंडली (Horoscope) क्या है ?





उत्तर :  पृथ्वी   के चारों ओर जो खाली गोला है उसमे 27  की जो गोलाकार पट्टी है  उसमे चार दिशाएं मौजूद होती हैं . पूर्वपश्चिम उत्तर और दक्षिण
उत्तर भारतीय कुंडली मे भी चार दिशाएं होती हैं. लग्न (Ascendant) उस खाने को कहा जाता है जो पूरब दिशा दिखाता है. यह कुंडली मे ऊपर के तीन खानों मे से बीच का खाना होता है.  
लग्न के 180सामने नीचे के तीन खानों मे से बीच का खाना सप्तम स्थान  कहलाता है. यह खाना पश्चिमी क्षितिज को दर्शाता है.
अब पूरब पश्चिम को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा गोले के दो भाग करती है- ऊपर का भाग और नीचे का भाग . ऊपर का  सबसे ऊंचा भाग दसवां स्थान कहलाता है. नीचे का सबसे नीचा स्थान चौथा भाग कहलाता है. लग्न से घड़ी की दिशा मे चलने पर  दूसरा तथा तीसरा भाग आते हैं चौथे भाग के बाद फिर पांचवां तथा छठा भाग आते हैं. इसी प्रकार सातवें स्थान के बाद आठवां तथा नवां स्थान आते हैं. दसवें स्थान तथा लग्न के बीच ग्यारहवां तथा बारहवां  स्थान आते हैं .
इस प्रकार पृथ्वी के चारों ओर के सतह को हम कुंडली के बारह भागों मे दर्शाते हैं . इन बारह भागों को बारह भाव भी कहते हैं तथा इस कुंडली को भाव कुंडली भी कहते हैं.
यह कुंडली बताती है कि कोई नक्षत्र तथा ग्रह किस कोण से हमें अर्थात लग्न को प्रभावित कर रहा है. 
यह कुंडली यह भी बताती है कि जब जातक का जन्म हुआ तो कौन सा ग्रह किस दिशा मे था? अर्थात पूर्वी क्षितिज ( लग्न, Ascendant)  था या पश्चिमी क्षितिज (western horizon,  7th house)  पर या फिर दिन के मध्य आकाश मे (दसवां भाव) या फिर रात के मध्य आकाश (चौथा भाव) मे.   
                                              (क्रमश: )


















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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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