जमाने भर की पीड़ा झेलते थे कल तलक ।
आज अपना दर्द ही उनसे नही झेला गया ॥
जहां चौबीस घंटे रोशनी थी कल तलक ।
वहीं दोपहर में ही घुप अंधेरा छा गया
॥
यहां उठने लगी हैं आंधियां चारों तरफ से ।
चिरागों को जलाना बहुत मुश्किल हो गया ॥
पहुंचती थी जहां की बात काफी दूर तक
।
वहां खामोशियों का कहर बरपा हो गया ॥
कभी बेवाकियों के वास्ते मशहूर था
जो ।
वो गूंगे और बहरों का शहर क्यों हो
गया ॥
खा रहा था धूल मंडी में पड़ा उनका
जमीर ।
सुना है आज अच्छे भाव से वह उठ गया
॥
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