गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

पराया दर्द ....


                       
 जमाने भर की पीड़ा झेलते थे कल तलक 
आज अपना दर्द ही उनसे नही झेला  गया ॥

जहां चौबीस घंटे रोशनी थी कल तलक ।
वहीं दोपहर में ही घुप अंधेरा  छा गया 

यहां उठने  लगी हैं आंधियां चारों तरफ से 
चिरागों को जलाना बहुत मुश्किल हो गया ॥

पहुंचती थी जहां की बात काफी दूर तक ।
वहां खामोशियों का कहर बरपा हो गया ॥

कभी बेवाकियों के वास्ते मशहूर था जो 
वो गूंगे और बहरों का शहर क्यों हो गया ॥

खा रहा था धूल मंडी में पड़ा उनका जमीर ।
सुना है आज अच्छे भाव से वह उठ  गया ॥



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