आप आए थे----

     
आप आए थे हवा के खुशनुमा झोंके लिए ।
दर्द का बे इंतिहा सैलाब क्यों दे कर गए ॥

आपके व्यक्तित्व की तो बात ही कुछ और है ।
आपसे जो भी मिले वो आपके ही हो गए ॥

भावनाओं की बड़ी गहरी समझ है आपको ।
आपके इस फन के देखो हम भी कायल हो गए ॥  

बात रिश्तों की चली तो जिक्र आया आपका ।
आप रिश्तों की नफासत भी हमें समझा गए 

घायलों के दर्द का अहसास सब करते नहीं ।
आपसे घायल मिले बेदर्द हो कर रह गए ॥

आपमें कुछ नुख्स हों हम चाहते तो थे ।
आप तो लेकिन तपाए शुद्ध कंचन हो गए ॥

थीं जमीं पर ढेर सी बेलें यहां फैली हुईं 
आप उन सबके लिए पक्के सहारे हो गए ॥ 

आपके जाते ही मायूसी यहां  छा जाएगी । 
आपके रहते हुए हम बेसहारा हो गए ॥ 

हर कोई गमगीन है कल आप आएंगे नहीं। 
 ये उजाले आज से ही स्याह कैसे हो गए ॥ 



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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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