ये कदमों के निशां --



ये कदमों के निशां कितने सलीके से पड़े हैं ।
सुनो इन पर चलो तो संभल कर चलना ॥

जहां पानी भरा हो मगर सूखा दीखता हो ।
कभी ऐसी जमीनों पर चलो तो ध्यान रखना ॥

वो शीशे में जड़ी तसवीर सबको खूब भाती है ।
वो बदलेगी नहीं उस पर कलाकारी न करना ॥

उन्होने पौधशाला में जहर के बीज बोए हैं ।
हवा में भी जहर होगा वहां से  मत गुजरना ॥

नया दीपक जलाने के तुम्हारे वायदे झूठे ।
खुदा के वास्ते जलते दियों को मत बुझाना ॥

जहां तुम आज भी कांटे बिछाते आ रहे हो ।
वो अब भी आम रस्ता है यह मत भूल जाना ॥

तुमसे आज मांगा और तुमने कल दिया ।
ये कल परसों न हो जाए हमेशा याद रखना॥

पिला देना उन्हें विष पर नही  विश्वास देना  ।
स्वयं बोला हुआ हर वाक्य अबसे याद रखना ॥

निराला है तुम्हारा जहर देने का तरीका    
कभी अमृत पिलाने की हमे कोशिश न करना ॥

उनके नख व जबड़े खून से भीगे हुए हैं ।
ऐसे देवताओं से जरा सा दूर रहना ॥



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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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