रविवार, 24 अक्टूबर 2021

वसंत

 

                        

 

शीतलता  के गहन अतल दु:खमय सागर से बाहर आकर

मकर व्यूह को तोड़ सूर्य ने

भयाक्रांत निस्तेज थरथराते गुलमोहर को देखा ।

आत्मग्लानि से खिन्न  विपन्न वह गुलमोहर

 मगरमच्छ के  खूनी जबड़ों में जकड़े

 गजेंद्र की मोक्ष कामना  के समान

हाथ जोड़ मानो पढ़ता  था सहस्रनाम ।

दिनमणि की कृपा दृष्टि  

पड़ गई अंतत: मलिन दीन गुलमोहर पर 

हीन लौह को स्पर्श मिला पारस गुटिका का

हरे नए कोमल चमकीले

चिकने पत्तों के आभूषण भरने लगे अंग अंगों पर ।

भांति भांति की चिड़ियों को मिल गया बसेरा

शाखाओं पर दहके अंगारों जैसी

मोहक, मनभावन मंजरियां दमक उठीं ।

अब वसंत में कितना खुश लगता गुलमोहर !

 

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