शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2021

पतझड़

 

पतझड़ में कितना उदास है  गुलमोहर !

नागफनी के तीखे लम्बे कांटों जैसी

 मटियाली सी खाली खाली सूनी डालें

कहां घोंसले बन सकते ऐसी डालों पर !

दूर दूर तक नहीं कहीं चिड़ियों का कलरव

दृष्टि झुकाए जटा जूट बिखराए मानो

हो समाधि में लीन प्राणयोगी वह कोई

कृष्णपक्ष की काल रात्रि सी  नीरवता में

या शव साधन में निमग्न वैतालिक कोई

रूप रंग और स्वाद गंध से असंपृक्त

या फिर कोई निर्मोही सन्यासी जोगी

या राजदंड से भयाक्रांत अपराधी कोई ।














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