बुधवार, 9 सितंबर 2020

व्यंग्य- अथ मॉडर्न फलित ज्योतिष कथ्यते – चैप्टर नंबर टू


    प्राणनाथ जी इलाके भर मे बदनाम वैद्य थे। उनके पास जाने वाला मरीज़ शायद ही कभी जिंदा लौटा हो । जो एक बार दुकान के भीतर गया, वह फिर चल कर बाहर नही आया । लोग दबी ज़बान से उन्हे यमदूत  भी कहने लगे थे। दूकान शहर के बीच मे थी, मरीज़ों का  तो देश मे पहले भी टोटा न था, पर धंधा फिर भी सिफर बटे सन्नाटा । मरीज़ दुकान मे झांकते हुए यों गुज़र जाता मानो कह रहा हो- मौत आनी है आएगी इक दिन, जान जानी है जाएगी इक दिन ।  ऐसी बातों से क्या घबराना .....

            दुकान के सामने से ढेरों मरीज निकलते देख प्राणनाथ जी का कलेज़ा मुंह को आ जाता। दिल जारजार रोने को करता। वो तो भला हो निंदिया रानी का,  जो उन गमगीन लमहों मे प्राणनाथ जी को अपने आगोश मे ले लेती । भरी दुपहरी मे “फटते बादलों” से उनके खर्राटे राहगीरों से मानो गुहार कर रहे होते- जाने वालो जरा, मुड़ के देखो मुझे,  एक इंसान हूं, मैं तुम्हारी तरह..... 

           ऐसा ही एक दिन था जब दुकान के बाहर  मरीजों की बेपनाह भीड़ बरपा थी । पर अफसोस ! दुकान के भीतर जेठ का सूखा पड़ा था।  प्राणनाथ जी छाती पीट पीट कर रो रहे थे । रोते रोते कब आंख लग गई, उन्हें पता ही न चला।
       नींद मे उन्हें हसीन सपना आया। हाथ में भृगुसंहिता लिये ज्योतिषाचार्य भृगु जी सामने खड़े मुस्करा रहे थे।
           धोती  को कमर पर रस्से की तरह लपेट, जमीन पर सीधे लेट कर प्राणनाथ जी ने उन्हें डंडौत ठोका। आंखों से सावन भादों की झड़ी बरस पड़ी । सिसकते हुए बोले, ‘‘हे प्रभो ! जरा मेरे नछत्तर  भी बांचिये।  बैदकी का धंधा बंद हुआ ही समझो । आत्महत्या के शौकीन तो आ ही जाते थे, आजकल वे भी पंखे से लटकने लगे हैं। खाने की थाली देखे हफ्तों  बीत गए । यही हाल रहा तो भीख का कटोरा पकड‌ना होगा।   

      भक्त का दारुण विलाप सुन भृगु जी का हृदय धूप मे रखी मक्खन की टिकिया की तरह पिघल  गया। प्राणनाथ  जी को उठाया, गले से लगाया और बोले, ‘वत्स, चिंता छोड़ो सुख से जियो। जिसने सिर दिया है, वह सेर भी देगा।’’

            ‘‘सो तो ठीक है प्रभो, पर देगा कब? जरूरत तो मुझे आज है। मरने के बाद हलवा पूड़ी, खीर सब्जी खिलाई तो क्या फायदा ? एक एक दिन कैसे धकेलता हूं वो ऊपर बैठा क्या जाने।’’
प्राणनाथ जी सिसके तो भृगु जी का भी कंठ भर्राया । बोले,
    ‘‘अगर प्रॉब्लम इतनी ही क्रिटिकल है तो वत्स, मैं तुझे ज्योतिष सिखाता हूं। यह ऐसी विद्या है जिसमें आज भी स्कोप है। इसी दुकान मे बैठ तू चांदी पीटेगा। और गलती से अगर ज्योतिष का वीडियो चैनल खोल दिया तो नोटों की मूसलाधार बारिश मे तेरी दुकान ही न बह जाए ।
           प्राणनाथ  जी के रूआंसे चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई। बोले, ‘‘एहसानमंद रहूंगा भगवन ।  आपकी भृगुसंहिता के बूते जाने कितने हलवाहे रोटियां तोड़ रहे हैं। जिन्होने ज्योतिष तो दूर कभी स्कूल का मुंह तक नही देखा आज वे भृगुसंहिता बगल मे दबाए, लंबे लंबे तिलक छापे, त्रिकालदर्शी बने घूम रहे हैं ।  इधर मैं बेगुनाह  मक्खियों को मारते मारते खिन्न हो गया हूं। महीने मे पंद्रह दिन उपवास मे खींच लेता हूं । पांच दिन जल पर रहता हूं। केवल दस दिन आधा पेट खाना नसीब होता है । सौ का नोट देखे अरसा बीत गया । दाल-भात  किसे कहते हैं याद नही आ रहा । वड़ा पाव पर ही जीवन-सूत्र टिका है। आपकी कृपा हो जाय तो मटर पनीर खाने को मिले। नॉन वेज तो मैं वैसे भी नहीं खाता।’’
भक्त वत्सल भृगु जी इमोशनल हो गए  -

           ‘‘ठीक है वत्स । आज मैं तुझे  कुछ ऐसे योग बताऊंगा जिनके बारे में तूने कभी सुना भी न होगा। मार्केट में इन योगों की भारी डिमांड है। अगर इन्हें सीख गया  तो लक्ष्मी  जी दासी बनी बनाई हैं ।’’
            प्राणनाथ जी  के पिचके हुए मुखमंडल पर खुशी की बिजलियां गिरने लगीं । कापी पेंसिल उठाई और भृगु जी की तरफ देखने लगे ।

            भृगु जी बखाने, ‘‘पुत्र, सबसे पहले मैं तुझे “मामा-भांजा योग” बताता हूं। यदि जन्म के समय जातक के लाभ स्थान में नीच का मंगल हो, या फिर  लाभेश नीच का हो कर राज्य भाव में पड़ा हो, तथा छठे भाव का स्वामी धन स्थान मे बैठा हो तो मामा भांजा  नामक महान योग बनता है । ऐसा जातक मामा के साथ मिल कर बहुत आगे जाता है । वह पॉलिटिकल रिलेशंस को कैश करने मे भी माहिर होता है। जाली दस्तावेजों के जरिये बैंकों को करोड़ों का चूना लगाता है, फिर फॉरेन कंट्रीज़ मे मामा के साथ मिल कर हीरे जवाहरात व ज्वैलरी के आलीशान शो रूम खोलता है । दुनिया भले ही उसे भगोड़ा कहे, लुटेरा कहे,  पर जातक की सेहत जस की तस बनी रहती है ।

-           किंतु गुरुदेव, नीच के मंगल व नीच के लाभेश के कारण जातक की कीर्ति पताका कभी झुक तो नही जाती ? प्राणनाथ जी ने शंका प्रकट की तो आचार्य हंसे और बोले-
-           हां वत्स ! ऐसे जातक को मंगल तथा लाभेश की महादशाओं मे प्रॉब्लम होती है। इन दशाओं मे मामा भांजों पर अभियोग लग सकते हैं। बनी बनाई इमेज मिट्टी मे मिल सकती है। जेल जाना पड़ सकता है। किंतु ये जातक मान अपमान के थपेड़े खाकर भी धैर्य नहीं खोते । वो गाना है न! जो राह चुनी तूने, उस राह पे राही चलते जाना रे...वो इन्ही के लिए लिखा गया था ।  चाहे मनी लांड्रिंग के सारे सुबूत मिल भी जाएं, चाहे सजा भी हो जाए पर अपनी पेशेंस और ऊपरवाले के भरोसे ये सभी मुश्किलें लांघ जाते हैं।  इनका फंडा होता है- कभी अपना भी वक्त आएगा ।
    प्राणनाथ जी योग सुन कर अति प्रसन्न भए  व भौंके, ‘‘ हे आचार्य ! मामा भांजा योग मेरे मन- मष्तिष्क में भली भांति बैठ गया है। आज के हालातों मे मान-अपमान अपना मीनिंग खो चुके हैं। योग वही ठीक हैं  जो नोट दिला सकें, अब अगला योग बखानिए । ’’

          भृगु जी ने अधरों पर मंद हास्य बिखेर कर आगे कहना शुरू किया,
     हे वत्स ! तू जरूरत से कुछ ज्यादा ही समझदार चीज है। फौरन समझ गया । एनी वे, अब दूसरा योग सुन ।  इस योग को “चार्वाक योग” कहते हैं, यदि जन्म के समय लग्न में नीच का चन्द्रमा व शुक्र पड़े हों, बुध नीच का होकर बुद्धि स्थान में पड़ा हो तो यह विख्यात चार्वाक योग कहलाता  है । ऐसा जातक बैंकों से कर्ज लेने मे अत्यंत सिद्धहस्त होता है । लोन के पैसे से  वह जिंदगी के सारे मजे कैश करता है । ऐसा जातक तब तक कर्ज लेता रहता है जब तक देने वाले बैंक हाथ खड़े नही कर देते । वह भारी रिश्वत  देकर सरकार मे ऊंची मलाईदार कुरसियों पर भी जा बैठता है । जब बैंकों से लिया हुआ कर्ज  बेतहाशा बढ़ जाता है तो यह जातक देश की सीमाओं से निकल कर विदेशों मे बस जाता है । वहीं बैठे बैठे अपने आप को दिवालिया घोषित कर देता है । नूरा कुश्ती चलती रहती है। चार्वाकयोग वाला जातक  घी पीता रहता है ।
    प्राणनाथ जी पुलके, ‘‘गुरु जी ! ऐसा जातक तो एक तरह से अपने खानदान का नाम रोशन कर देता है । एक ही झटके मे वह फर्श से अर्श पर जा अटकता है। इतना प्रेसियस योग शेयर करने के लिए आपका शुक्रिया। यह आभार  देह मे प्राण रहते नहीं भूलूंगा।’’

      आचार्य भृगु हंस पड़े व बोले, ‘‘बड़े विनोदी स्वभाव के हो वत्स । डोंट वरी । कड़की के दिन जाने वाले हैं। अच्छे दिन आने वाले हैं । अब भिक्षापात्र मंगाने की जगह नोट गिनने की मशीन ऑर्डर  करो वत्स ।’’
      प्राणनाथ जी “भृगु ज्योतिष केन्द्र’’ का साइन बोर्ड बनवाने जैसे ही निकले वैसे ही नींद खुल गई। देखते क्या हैं कि मरने को तैयार करीब तीन चार मरीज़ उन्हें घेरे खड़े हैं।
    खोपड़ी खुजाते हुए प्राणनाथ जी सोचने लगे कि भृगु ज्योतिष केन्द्र खोलें या नहीं ?

(समाप्त) 

      


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें