चाह
नहीं मैं बाजारों में रक्खी ही रह जाऊं ।
जमाखोर के
गोदामों में या फिर सड़ती जाऊं। ॥1
या फिर पानी
बन कर बीमारों को परसी जाऊं ॥2
दाल महारानी
बन कर या भूखों को ललचाऊं ।।3
या भोजन
भट्टों के मोटे पेटों में खो जाऊं ॥ 4
जिस ढाबे पर
खाने आते लुटे पिटे मज़दूर अनेक ॥5
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