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दानव का अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित चित्र |
दानव लोक मे पिछले कुछ बरसों से
अशांति चल रही थी। अशांति बेवजह नही थी।
उसके पीछे सॉलिड कारण था।
कारण यह था कि पड़ोसी ग्रह मानव लोक से
दानव लोक मे मानव आने लगे थे । और आने ही नही लगे थे बल्कि सारे दानव लोक पर छाने
भी लगे थे । कुछ ही दिनों मे उन्होने अपनी तादाद इतनी बढ़ा ली कि दानव लोक की संसद
पर उनका कब्जा हो गया ।
सीन पलट गया । दानव लोक अब मानव लोक
हो गया । सारे कायदे कानून मानवों के हिसाब से बनने लगे। अपने ही ग्रह पर दानव
माइनरिटी मे आ गए । दानवों को अब कुत्ते भी घास नही डालते थे ।
ऐसे मे बुद्धिजीवी दानवों ने आपात बैठक बुलाई । बैठक मे
पश्चाताप किया गया कि कैसे आपसी फूट के कारण दानवों के हाथ से सत्ता फिसली । अपने
ही प्लेनेट पर हम पराए हो गए ! धिक्कार है दानव कौम को !
धिक्कार प्रस्ताव ध्वनिमत से पास हो
गया।
इसके बाद प्रस्ताव आया कि दानवों के
अधिकार तेजी से छीने जा रहे हैं। अत: जल्द से जल्द दानवाधिकार आयोग का गठन करके
उसे संवैधानिक दर्जा दिलाया जाय। नहीं तो वह दिन दूर नहीं,
जब अपने ही लोक मे दानव दूसरे दर्जे के
नागरिक बन जाएंगे।
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पारंपरिक दानव |
आयोग गठित हो गया। आयोग को संवैधानिक
दर्जा भी आखिरकार मिल ही गया। उसी आयोग की आज पहली बैठक थी ।
आयोग का अध्यक्ष कुंभोदर अपनी विशाल तोंद पर हाथ फेरते
हुए बोला –
प्यारे भाइयो,
आज का दिन हम दानवों के इतिहास का महान दिन
है। चालाक मानवों से कड़े मुकाबले के बाद आखिर हम दानवाधिकार आयोग का गठन करने और
उसे संवैधानिक निकाय बनाने मे कामयाब हो गए। इस आयोग का एक ही मकसद है- दानव जाति
के हक हुकूकों पर आंच न आने देना ।
आज आयोग की पहली बैठक बुलाई गई है । आप सभी से गुजारिश है कि अपने बेशकीमती सुझाव
रक्खें ताकि दानव जाति को खत्म होने से बचाया जा सके।
यह सुन कर अंगारचक्षु नामक दानव उठा और कराहते हुए बोला-
अध्यक्ष जी,
इन मानवों ने हमारी दानव संस्कृति का बैंड
बजा दिया है। पहले हम मानवों का शिकार बड़ी आसानी से कर लेते थे। अब एक मानव को
मारने से पहले थाने मे एफआइआर लिखानी पड़ती
है। जिस मानव का शिकार करना है उसका आधार
नम्बर रपट मे लिखाना पड़ता है। हम उसी मानव को क्यों खाना चाहते हैं- इसका उचित
स्पष्टीकरण देना पड़ता है । यह शर्त भी एक
दम गलत है कि एक घर से एक साल मे सिर्फ एक
मानव का ही शिकार किया जाएगा ।
फिर शराब से भरा घड़ा गटागट पीकर अंगारचक्षु
ने दूर पटका और बोला
– हम दानवों पर इतनी
पाबंदियां जान बूझ कर लगाई जा रही हैं ताकि हम परेशान होकर दानव लोक छोड़ दें। अत:
अध्यक्ष जी, मेरा
प्रस्ताव है कि हम दानवों को किसी भी मानव का बगैर पूर्व सूचना दिये सरे आम शिकार
करने की खुली छूट दी जाए। अगर हमे किसी घर से अच्छा लज़ीज़ ,
टेस्टी मांस मिलता है तो उस घर के सारे मानवों को एक बार मे
खाने की छूट भी मिलनी चाहिए ।
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दानव द्ववारा नारी अपहरण |
अध्यक्ष कुंभोदर दहाड़ा-
भाई अंगारचक्षु का प्रस्ताव जायज है
। दूसरे ये प्रस्ताव दानव लोक की महान परंपराओं से मेल भी खाता है । दानव जाति
हमेशा मर्जी की मालिक रही है। ये कायदे कानून मानना हमारी तबीयत के एकदम खिलाफ है ।
इस प्रपोज़ल को अप्रूवल के लिए भेजा जाएगा अब कोई और प्रस्ताव रक्खें ।
तभी सजा धजा दानव कामकेतु उठा । विशाल
देह पर डिओडोरेंट स्प्रे किया और गरजा-
अध्यक्ष जी,
पहले हम किसी भी सुंदर स्त्री-रत्न को देख कर तत्काल उठवा लेते थे। चाहे वह देव
पत्नी हो ऋषि पत्नी हो या फिर मानव , यक्ष,
किन्नर गंधर्व आदि । लेकिन बुरा हो इस मानव जाति
का ! आते ही तरह तरह की बंदिशें लगा दीं।
अब कोई दानव किसी देवी, मानवी,
यक्षिणी,
किन्नरी,
गंधर्वी को उठवाना तो दूर जी भर कर देख भी नही सकता ।
कहीं उसने “मी टू” कह दिया तो जाने कब तक जेल की रोटी खानी पड़ेंगी ?
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रावण के ससुर मय दानव |
अहा! कितने सुहाने थे वे दिन जब
हमारे नाती रावण ने मानव लोक मे जाकर मानवों
को नाकों चने चबवा दिए थे ! अगर हमारा आदमी विभीषण दगा न देता तो आज भी हम मृत्यु
लोक मे एकछत्र राज कर रहे होते, स्वादिष्ट
मानवों की बोटियां खा रहे होते और नित नई मानवी स्त्रियों से राक्षस विवाह रच रहे
होते ! जाने कहां गए वो दिन ?
अध्यक्ष कुंभोदर
दहाड़ा - ऐसा ही होगा कामकेतु । डोंट वरी । हम काल की गति को पलटना भी जानते
हैं। वो अच्छे दिन फिर से लौटेंगे । किडनैपिंग
को कानूनी मान्यता दिलाई जाएगी । तुम्हारा सुझाव दानवीय मूल्यों के साथ फिट बैठता है। इसे भी नोट कर लिया गया है ।
फिर कुंभोदर ने सभा मे उपस्थित
दानवों के विशाल समूह को देखा और दहाड़ा -
-क्या कोई और प्रस्ताव भी है ?
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दुर्योधन का भ्रम |
यह सुन कर कराल केतु नामक दानव उठा और बोला
- अध्यक्ष जी इन मानवों का आर्कीटेक्चर एक दम घटिया
क्वालिटी का होता है। इन बेवकूफों को
चाहिए था कि हम दानवों की शिल्प विद्या
अपनाते और एक से बढ़ कर एक खूबसूरत भवन
बनाते । हमारे पूर्वज मयदानव ने द्वापर युग मे युधिष्ठिर के लिए क्या लाजवाब राज
सभा बनवाई थी ! क्या गजब का महल बनाया था। दुर्योधन भी चक्कर खा गया और पानी के
तालाब को सूखा फर्श समझ कर तालाब मे जा गिरा। उसे गिरता देख द्रौपदी हंस कर बोली
थी- अंधे की औलाद भी अंधी होती है। तो
अध्यक्ष जी, पाताल
लोक के मायामी नामक सुंदर प्रदेश मे रहने वाले हमारे पूर्वज मय दानवों के पास
कितनी हाइ टेक्नोलोजी थी ? अब
तो वे मानव लोक मे हस्तिनापुर के पास मयराष्ट्र (मेरठ) नामक नगर बना कर रहने भी
लगे हैं। पर यह घमंडी मानव जाति उनसे कोई
ज्ञान नही लेती। इस मूर्ख मानव जाति को घमंड हो गया है कि सारी दुनिया मे उन्हीं की
सभ्यता महान है । मेरा प्रस्ताव है कि अब जो भी निर्माण कार्य हों सभी दानव
आर्कीटेक्टों की देखरेख मे हों। इन माचिस की डिब्बियों जैसे फ्लैटों मे हम दानव
लोग नही रह सकते ।
कुंभोदर गंभीर हो गया । माथा पकड़ते
हुए उसने भी करालकेतु की बातों का समर्थन
किया । फिर थकी हुई आवाज़ मे कहने लगा-
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मय दानवों का शिल्प (मायामी) |
आज सत्ता मानवों के हाथ मे है । आज
शिल्प भी उन्ही का महान है, शासन
प्रणाली भी उन्ही की अच्छी है। सभ्यता भी उन्ही की बेहतर । खान पान ,
रीति रिवाज,
रहन सहन,
ज्ञान विज्ञान सभी उनका ही अच्छा।
टेक्नोलोजी भी उन्हीं की अच्छी। सब पावर की
महिमा है । ठीक ही कहा है एक मानव कवि ने- पराधीन सपनेहु सुख नाहीं। तो दानव बंधुओ
सारे गुण सत्ता की पावर मे होते हैं। पुरुष बली नहिं होत है,
समय होत बलवान,
भीलन लूटी गोपिका,
वे अर्जुन वे बान ।
आप दानवों का फ्रस्टेशन मै समझ सकता
हूं। एक उच्च कोटि की सभ्यता को मानवों जैसी हीन सभ्यता के अंडर मे रहना पड़ रहा है
! कितनी कुंठा होती होगी ?
वो आपने भर्तृहरि का एक श्लोक पढ़ा होगा । उसी मे कुछ करेक्शन करके आज के हालात बताना चाहता हूं भाइयो-
यस्यास्ति पावर स
नर: कुलीन। स लर्नेड स लॉरेल टेलेंटेड।
स एव स्पीकर स च देशभक्त: । सर्वे गुणा पावरमाश्रयंति ॥
कहते कहते कुंभोदर बिलखने लगा। उसके साथ सभी अन्य दानव
भी रोने लगे । नेपथ्य मे डीजे पर एक गीत बजने लगा-
आवहु रोवहु सब मिलि दानव भाई ।
दानव दुर्दशा देखि न जाई ॥
(समाप्त)
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