शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

गज़ल - यह किन्नर प्रदेश है






भूले से भी आज़ादी की बात न करना ।
यहां गुलाम बेशर्म लोग रहते हैं ॥1॥

चाहे जितना ज़ोर ज़ुल्म कर लो उन पर ।
वे सबको चुप चाप  सहा करते हैं ॥ 2॥

ज़िंदा रहना ही फितरत है उनकी ।
जूते खाकर भी वे सुख से जी लेते हैं॥3॥

अत्याचारों को मिल कर सह लेते हैं।
पर मिल कर विद्रोह नहीं करते हैं  ॥ 4॥

उनको काटोगे सफेद पानी निकलेगा ।
लाल रंग से ही वे इतना डरते  हैं  ॥5॥

उनका अपना कोई वतन नहीं है ।
इसको  मालिक  की जागीर समझते हैं ॥ 6॥

आज़ादी के साथ मौत मिलने से अच्छा ।
गाली खाकर जीना ठीक समझते  हैं ॥7॥

इज्जत क्या होती है उनको नही पता ।
सदियों से वे ठोकर ही खाते आए हैं ॥8॥

चाहे ये उनकी महानता मानी जाए ।
लोग उन्हें उल्लू का पठ्ठा ही कहते  हैं ॥ 9॥

शीश झुका कर जोर जुल्म सहने से ।
कुछ तो उनको किन्नर भी कहते हैं॥10॥

वह जो करता है अच्छा ही करता होगा ।
इसी भरोसे वे जीवन  गुजार देते हैं ॥ 11॥



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