एक आदमी सत्ता पाकर रावण बन जाता है ।
और दूसरा
सत्ता पाकर राम बना रहता है ॥1॥
जीवों पर दया की बात जो करता नही थकता ।
अकेले मे वही बकरे व मुर्गे खूब खाता है ॥ 2॥
गरमी है अगर सत्ता तो निष्ठा आंच है उसकी ।
यहां सत्ता बदलते ही वहां निष्ठा बदलती है ॥
3॥
न जाने कब तलक ये सिलसिला जारी रहेगा ।
जिसे वो गालियां बकता उसी को प्यार करता है ॥4॥
हमारे खून से यह दोगलापन कब हटेगा ।
हमारी शख्सियत पर मैल सा किपका हुआ है ॥5॥
सताए जा रही है सात पुश्तों की फिकर उनको ।
पर सताई
जा रही एक पुश्त की चिंता नही है ॥6॥
जरा सा आपका संकेत मिलने की जरूरत है ।
यहां इंसान और इंसानियत दोनो बिकाऊ हैं ॥7॥
सड़क के पास आलीशान दफ्तर मे इसी हफ्ते ।
रिडक्शन सेल कलमों की व जिस्मों की लगी है ॥8॥
तिराहे पर पड़ी वह चोट खाई चीज़ क्या है ।
पीड़ा से बिलखती वह हमारी आस्था है ॥9॥
अमीरों के लिए उनके घरों से भौंकती कुतिया ।
हमेशा राह चलते बेकसूरों पर झपटती है ॥10॥
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